सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 81: आदेश 18 नियम 1 के प्रावधान

Shadab Salim

13 Jan 2024 5:28 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 81: आदेश 18 नियम 1 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 18 वाद की सुनवाई और साक्षियों की परीक्षा। वास्तविकता में इस प्रक्रम पर कोई वाद का विचारण प्रारंभ होता है। विवाधक तय हो जाने के पश्चात न्यायालय वाद की सुनवाई शुरू करते हुए साक्षियों की परीक्षा करता है। यह आदेश इस संहिता के महत्वपूर्ण आदेशों में से एक है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 18 के नियम 1 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम-1 आरम्भ करने का अधिकार-आरम्भ करने का अधिकार वादी को तब के सिवाय है जब कि वादी द्वारा अधिकथित तथ्यों को प्रतिवादी स्वीकार कर लेता है और यह तर्क करता है कि वादी जिस अनुतोष को चाहता है, उसके किसी भाग को पाने का हकदार या तो विधि के प्रश्न के कारण या प्रतिवादी द्वारा अधिकथित कुछ अतिरिक्त तथ्यों के कारण नहीं है और उस दशा में आरम्भ करने का अधिकार प्रतिवादी को होता है।

    आरम्भ करने का अधिकार" वादी को है परन्तु- (2) यदि प्रतिवादी (1) वादी द्वारा कहे गये कथनों (प्राख्यान) को स्वीकार करता है और (2) यह तर्क देता है कि या तो विधि के बिन्दु पर या प्रतिवादी द्वारा कथित अतिरिक्त तथ्यों पर वादी उस चाहे गये अनुतोष के भाग को पाने का हकदार नहीं है, तो ऐसे मामले में प्रतिवादी को आरम्भ करने का अधिकार होगा।

    किसी वाद में जब सुनवाई प्रारम्भ होती है, तो पक्षकारों को अपना पक्ष कथन करने, साक्ष्य देने और बहस करने का अवसर मिलता है। इसमें जिस पक्षकार को आरम्भ करने का अधिकार है वह अगले नियम 2 के अनुसार अपना कथन व साक्ष्य पहले देगा और अन्त में उत्तर दे सकेगा। यह नियम साक्ष्य अधिनियम की धारा 101-102 पर आधारित है, जो इस प्रकार है-

    धारा 101- सबूत का भार-जो कोई न्यायालय से यह चाहता है कि वह ऐसे किसी विधिक अधिकार या दायित्व के बारे में निर्णय दे, जो उन तथ्यों के अस्तित्व (होने) पर निर्भर हैं, जिन्हें वह प्राख्यात करता है (अधिकधित करता है), उसे साबित करना होगा कि उन तथ्यों का अस्तित्व है।

    जब कोई व्यक्ति किसी तथ्य का अस्तित्व साबित करने के लिए आबद्ध है, तब यह कहा जाता है कि उस व्यक्ति पर सबूत का भार है।

    दृष्टांत (ख)-"क" न्यायालय से चाहता है कि न्यायालय उन तथ्यों के कारण, जिनके सत्य होने का वह प्राख्यान (कथन) और "ख" प्रत्याख्यान (अस्वीकृति) करता है, यह निर्णय दे कि "ख" के कब्जे में की अमुक भूमि का हकदार है। "क" को उन तथ्यों का अस्तित्व साबित करना होगा। (अर्थात् सबूत का भार 'क' पर है)

    धारा 102- सबूत का भार किस पर होता है-किसी वाद या कार्यवाही से सबूत का भार उस व्यक्ति पर होता है जो असफल हो जाएगा, यदि दोनों में से किसी की ओर से कोई भी साक्ष्य न दिया जाए।

    दृष्टांत (क)-"ख" पर भूमि के लिए "क" वाद लाता है, जो "ख" के कब्जे में है और जिसके बारे में "क" प्राख्यान (कथन) करता है कि वह "ख" के पिता "ग' की विल (इच्छा पत्र) द्वारा "क" के लिए दी गई थी। किसी भी ओर से कोई साक्ष्य नहीं दिया जाए, तो "ख" इसका हकदार होगा कि वह अपना कब्जा बनाए रखे। अतः सबूत का भार "क" पर है।

    दृष्टांत (ख)- "ख" पर एक बन्ध-पत्र के मद्धे शोध्य (बमूलनीय) धन के लिए "क" एक वाद लाता है। उस बन्ध-पत्र का निष्पादन स्वीकृत है, किन्तु "य" कहता है कि वह कपट द्वारा प्राप्त किया गया था, जिसका "क" प्रख्यान (अस्वीकार) करता है।

    यदि दोनों में से किसी भी ओर से कोई साक्ष्य नहीं दिया जाए, तो "क" सफल होगा, क्योंकि बन्धपत्र विवादग्रस्त नहीं है और कपट साबित नहीं किया गया। अतः सबूत का भार "ख" पर है।

    सबूत का भार-यदि सबूत का भार वादी पर होने के बावजूद प्रतिवादी साक्ष्य पेश करता है तो वह वाद में न्यायालय से उस पर कार्यवाही न करने के लिए नहीं कह सकता-मामले के अन्त में सबूत के भार का प्रश्न जब पक्षकार साक्ष्य पेश कर चुके हों, अपना महत्व खो देता है-दोनों पक्षकारों को साक्ष्य देने के बाद न्यायालय को अभिलेख पर आए सम्पूर्ण साक्ष्य पर विचार करना चाहिए और उसका कोई भी भाग नहीं छोड़ना चाहिए।।

    किसी वाद या कार्यवाही में सबूत का भार उस व्यक्ति पर होता है, जो उस स्थिति में असफल रहेगा, यदि किसी भी ओर से कोई साक्ष्य ही नहीं दिया जाता है। सामान्य नियम यह है कि सबूत का भार उस व्यक्ति पर होता है, जो किसी तथ्य का प्रतिज्ञान करता है, न कि उस व्यक्ति पर, जो उसका प्रत्याख्यान करता है। अपरांच, जब कोई तथ्य विशेष रूप से किसी व्यक्ति की जानकारी में हो, तब उस तथ्य को साबित करने का भार उस व्यक्ति पर ही होगा।

    यदि आदेश-पत्री में कार्यवाही सही रूप से अंकित नहीं की गई, तो इसके बारे में एतराज या प्रश्न उसी न्यायालय में उठाया जाना चाहिए, न कि अपील में। इसके लिए धारा 114 सपठित आदेश 47 के अधीन पुनर्विलोकन करना चाहिए।

    एक मामले में मुंसिफ ने वादी के आदमी की गवाह के रूप में परीक्षा करने से मना कर दिया और स्वयं वादी की परीक्षा करने को कहा, यह आदेश अवैध माना गया।

    साक्षी की परीक्षा-वादी के अटॉर्नी की शक्ति-सिविल प्रक्रिया संहिता के उपबन्धों में ऐसा कोई स्पष्ट (प्रक्ट) प्रतिबन्ध नहीं है, जो पॉवर ऑफ अटॉर्नी को कार्यवाही के पक्षकारों की ओर से साक्षी के रूप में बयान देने से मना करता हो। पक्षकार को छूट है कि वह पॉवर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से साक्ष्य दे और ऐसा साक्ष्य वादी के साक्ष्य का वैध प्रतिस्थानी रहेगा।

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