सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 80: आदेश 17 (स्थगन) के नियम 3 के प्रावधान

Shadab Salim

11 Jan 2024 5:59 PM IST

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 80: आदेश 17 (स्थगन) के नियम 3 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 17 किसी वाद में स्थगन के अर्थ को स्पष्ट करते हुए यह बताता है कि अदालत किन किन परिस्थितियों में स्थगन आदेश दे सकती है। इस आलेख के अंतर्गत नियम-3 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम-3 पक्षकारों में से किसी पक्षकार के साक्ष्य, आदि पेश करने में असफल रहने पर भी न्यायालय आगे कार्यवाही कर सकेगा-जहां वाद का कोई ऐसा पक्षकार जिसे समय अनुदत्त किया गया है, अपना साक्ष्य पेश करने में या अपने साक्षियों को हाजिर कराने में या वाद को आगे प्रगति के लिए आवश्यक कोई ऐसा अन्य कार्य करने में जिसके लिए समय अनुज्ञात किया गया है, असफल रहता है [ वहां न्यायालय ऐसे व्यतिक्रम के होते हुए भी,-

    (क) यदि पक्षकार, उपस्थित हों तो वाद की विनिश्चित करने के लिए अग्रसर हो सकेगा, अथवा

    (ख) यदि पक्षकार या उनमें से कोई अनुपस्थित हों तो नियम 2 के अधीन कार्यवाही कर सकेगा।

    आदेश 17 का नियम 3 पक्षकारों द्वारा की गई चूक (व्यतिक्रम) के आधार पर आगे कार्यवाही करने के लिए न्यायालय को शक्तियाँ प्रदान करता है।

    इस नियम की आवश्यक शर्ते-

    (1) वाद के किसी पक्षकार को न्यायालय ने निम्न कार्यों में से कोई कार्य करने के लिए समय दिया था अर्थात्

    (क) साक्ष्य पेश करने के लिए, या

    (ख) साक्षियों को हाजिर करने के लिए, या

    (ग) वाद की आगे प्रगति के लिए आवश्यक कोई अन्य कार्य करने के लिए

    (2) वह पक्षकार उस कार्य को करने में असफल रहता है -

    (3) तो न्यायालय के सामने दो मार्ग हैं-

    (क) यदि वह पक्षकार उपस्थित है, तो तुरन्त वाद का निपटारा करने की आगे कार्यवाही करेगा (अग्रसर हो सकेगा), या-

    (ख) उनकी या उसकी अनुपस्थिति में, नियम 2 के अधीन कार्यवाही करेगा।

    आदेश 17, नियम 2 तथा 3 की परिधि नियम 2 तब लागू होगा, जब पक्षकार सुनवाई के दिन उपस्थित नहीं होता, जबकि नियम 3 तब लागू होता है, जब पक्षकार उपस्थित हो या उपस्थित मान लिए गए हो। यदि प्रतिवादी जिसे साक्ष्य पेश करने के लिए समय दिया गया था, उपस्थित नहीं होता है, तो नियम 2 लागू होगा, पर यदि प्रतिवादी उपस्थित है और चूक करता है, तो उसका मामला नियम 3 में आयेगा।

    नियम 3 का लागू होना-आदेश 17, नियम 2 वहाँ लागू नहीं होता, जहां पक्षकार उपसंजात (उपस्थित ) हो गया हो, परन्तु वह उस कार्य को नहीं करता जिसके लिए उसे समय दिया गया था। ऐसा व्यतिक्रम (चूक) आदेश 17, नियम 3 से आवृत्त होता है।

    यदि प्रतिवादी, जिसे साक्ष्य पेश करने के लिए समय दिया था, उपस्थित नहीं होता है, तो आदेश 17, नियम 3(ख) में दिये अनुसार, न्यायालय आदेश 17, नियम 2 के अधीन अग्रसर होगा; किन्तु यदि प्रतिवादी उपस्थित है और व्यतिक्रम करता है, तो आदेश 17, नियम 3 लागू होगा और न्यायालय उस वाद का तत्काल निर्णय कर सकेगा।

    उपस्थिति या अनुपस्थिति का कोई महत्व नहीं-

    एक वाद में वादी के एक गवाह की परीक्षा की गई और मामले को वादी के साक्ष्य के लिए स्थगित कर दिया गया। अगली पेशी पर न तो वादी उपस्थित हुआ न उसकी बची हुई साक्ष्य में गवाह पेश किये गये। इस पर न्यायालय ने आदेश 17, नियम 2 के अधीन कार्यवाही करते हुए मामले को बंद कर दिया और वाद को गुणागुन पर खारिज कर दिया। अभिनिर्धारित कि यह आदेश, आदेश 17, नियम 3 के अधीन था, जो प्रयोजनार्थ दोषी पक्षकार की उपस्थिति या अनुपस्थिति का कोई महत्व नहीं है। केवल वे शर्तें जो आवश्यक है, वे ये हैं कि-

    (1) जहाँ वाद का कोई पक्षकार, जिसे समय दिया गया (अनुदत) है।

    (2) अपना साक्ष्य पेश करने में, या

    (3) अपने साक्षियों को हाजिर कराने में, या

    (4) वाद की आगे की प्रगति के लिए कोई अन्य कार्य करने में असफल रहता है।

    वाद का विनिश्चय करने को अग्रसर हो सकेगा वाद का तुरन्त विनिश्चय करने को अग्रसर होना है, न कि वाद का तुरन्त विनिश्चय करना। एक सिविल न्यायालय सिविल विचारण में पक्षकार के व्यतिक्रम (चूक) को माफ करने के लिए बाध्य नहीं है और समान रूप से आदेश 17, नियम 3 के अधीन वहाँ उसी समय मामले का निर्णय करने के लिए बाध्य नहीं है परन्तु अपने सही न्यायिक विवेक के अनुसार जितना शीघ्र हो सके, उस मामले के विनिश्वय के लिए उचित समय में अगला कदम उठायेगा।

    तुरन्त का अर्थ- आदेश 17, नियम 3 में आये शब्द तुरन्त वहाँ चूक के दण्ड के रूप में वाद का उसी दिन निपटारा करने का का अर्थ यह नहीं है कि कोई आज्ञापक आदेश है। यह शब्द तुरन्त शब्द कार्यवाही/अनुसरण का विशेषण है, न कि शब्द वंचित का।

    आदेश 17, नियम 3 के अधीन कार्यवाही का स्वरूप

    (1) यदि आदेश 17, नियम 3 में अधिकथित शर्तें पूरी हो गई हों और पक्षकार उक्त उपबन्ध के अधीन कार्यवाही कर कर सकते हैं। तब उसके विनिश्वय से व्यथित पक्षकार डिक्री को अपास्त कराने के लिये संहिता के अधीन आवेदन फाइल नहीं कर सकता।

    (2) यदि व्यथित पक्षकार उस निर्णय और डिक्री के विरुद्ध अपील फाइल करता है तो अपील न्यायालय को इस बात की परीक्षा करनी होगी कि क्या निचले न्यायालय ने आदेश 11, नियम 3 के अधीन कार्यवाही करते हुए अपनी अधिकारिता का उचित प्रयोग किया था।

    (3) यदि अपील न्यायालय का मत है कि निम्नतर न्यायालय ने आदेश 17, नियम 3 के अधीन कार्यवाही सही की है और उसके द्वारा पारित डिक्री उस मामले की परिस्थितियों में अन्यथा उचित है, तो अपील खारिज कर दी जावेगी।

    (4) परन्तु अपील न्यायालय के मतानुसार विचारण न्यायालय को आदेश 17, नियम 3 के अधीन कार्यवाही नहीं करनी चाहिये थी, तो वह उस आदेश के स्थान पर आदेश 17, नियम 2 के अधीन आदेश प्रतिस्थापित करेगा और पक्षकार को निम्नतर न्यायालय में आदेश 9 के अधीन उचित उपचार करने की छूट दे देगा।

    अपील-व्यतिक्रम पर बाद खारिज आदेश 17, नियम 3 चूंकि व्यतिक्रम शब्द से स्थगन खर्चे की बाबत किए गए व्यतिक्रम के प्रति भी निर्देश होता है इसलिए स्थगन खर्चा न दिए जाने के कारण वाद को खारिज करने वाला आदेश उक्त आदेश 17, नियम 3 के व्याक्ति क्षेत्र के अन्तर्गत आता है और ऐसे आदेश के विरुद्ध अपील की जा सकती।

    पक्षकारों में से किसी के साक्ष्य आदि पेश करने में असफल रहने पर भी न्यायालय आगे कार्यवाही कर सकेगा- यदि वाद की सुनवाई की तारीख को एक पक्षकार के साक्षियों का साक्ष्य लेखबद्ध किया जा चुका हो तो ऐसा मामला आदेश 17 के संशोधित नियम 3(क) के उपबन्धों के अन्तर्गत नहीं बल्कि नियम 3 (ख) के अन्तर्गत आएगा और न्यायालय गुणागुग के आधार पर वाद का विनिश्चय कर सकता है। अतः न्यायालय द्वारा गुणागुन के आधार पर किए गए निर्णय के विरुद्ध आदेश 9 नियम 13 के उपबन्ध लागू नहीं होंगे और प्रत्यावर्तन का आवेदन चलने योग्य नहीं होगा बल्कि समुचित उपचार ऐसे निर्णय के विरुद्ध अपील फाइल करना होंगे।

    आदेश 9, नियम 13 का आवेदन चलने योग्य नहीं-एक वाद में प्रतिवादी द्वारा न्यायालय में उपस्थित होकर स्थगन की मांग की गई और स्थगन मिलने पर वकील को लाने की कहकर वह न्यायालय से बाहर गया और पुनः लौट कर नहीं आया। न्यायालय द्वारा वादी के साक्षियों की परीक्षा करने और उसके काउन्सेल को सुनने के पश्चात् वादी के वाद को डिक्री कर दिया गया। डिक्री का आदेश सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 11 नियम 3 के भीतर आता है न कि आदेश 17, नियम 2 के अधीन। ऐसी डिक्री को अपास्त करने के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 9, नियम 13 के अधीन आवेदन नहीं किया जा सकता।

    वाद की सुनवाई का न्यायालय की स्वप्रेरणा से स्थगन- जहाँ पर वाद को सुनवाई न्यायालय द्वारा स्थगित कर दी गई है और पक्षकार हाजिर होने में असफल रहता है ऐसा मामला सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 17, नियम 3 के अन्तर्गत आता है।

    पुनः स्थापना का आवेदन चलने योग्य - जब वाद का विचारण आरंभ हुआ, तो वादी ने कुछ दस्तावेज प्राप्त करने के आधार पर समय मांगते हुए आवेदन किया। एकल-न्यायाधीश ने स्थगन देने से मना कर दिया और यह अवलोकन करते हुए वाद को खारिज कर दिया कि वादी ने साक्ष्य देने और वाद का अभियोजन करने से मना कर दिया।

    वाद को पुनः स्थापित करने के आवेदन को चलने योग्य नहीं होने से खारिज कर दिया। अभिनिर्धारित कि-पक्षकार यद्यपि उपस्थित था, परन्तु उसको यह उपस्थिति केवल स्थगन की प्रार्थना करने के प्रयोजन से समझी गई। जब एक स्थगन के लिए मना कर दिया जो आगे वाद का अभियोजन करने में उसकी चूक थो। यद्यपि न्यायाधीश ने कहा कि वह इस वाद को आदेश 17, नियम 3 में निपटा रहा है, परन्तु न्यायालय की कार्यवाही का वास्तविक अर्थ और सार यह था कि-वाद को केवल उसका अभियोजन न करने के लिए खारिज किया गया था। अतः पुनः स्थापना का आवेदन चलने योग्य है।

    इस मामले में अपील न्यायालय की शक्तियाँ-

    आदेश 17 नियम 3 के अधीन पारित एकपक्षीय डिक्री के विरुद्ध अपील में अपील न्यायालय अनुपस्थिति के आधारों तथा उसके कारणों की पर्याप्तता की जाँच कर सकता है।

    एकपक्षीय कार्यवाही उचित आदेश 17 नियम 3-

    यदि राज्य की ओर से काउन्सल को कार्यवाही के बाबद अनुदेश न दिए गए हों और वह मामले में साक्ष्य पेश करने में असफल रहा हो तो ऐसो स्थिति में न्यायालय विधिसम्मत रूप से एकपक्षीय कार्य कर सकता है। पर अपील न्यायालय विचारण न्यायालय द्वारा पारित किए गए आदेश को विधिमान्यतः अपास्त नहीं कर सकता। राज्य से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वह प्राइवेट नागरिकों से भिन्न व्यवहार करेगा।

    पुनःस्थापना का आवेदन चलने योग्य - गवाहों को पेश करने में असफल रहने से वाद खारिज कर दिया गया। यह उस वाद का गुणागुण पर अंतिम निर्णय नहीं है। अतः यह आदेश 17 के नियम 2 के अधीन आयेगा, न कि नियम 3(क) के अधीन। आदेश 9, नियम 9 के अधीन वाद को पुनःस्थापना का आवेदन पोषणीय है।

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