सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 78: आदेश 17 (स्थगन) के नियम 1 के प्रावधान

Shadab Salim

10 Jan 2024 8:50 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 78: आदेश 17 (स्थगन) के नियम 1 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश किसी वाद में स्थगन के अर्थ को स्पष्ट करते हुए यह बताता है कि अदालत किन किन परिस्थितियों में स्थगन आदेश दे सकती है। यह आदेश के अंतर्गत न्यायालय को स्थगन के मामले में व्यापक शक्तियां दी गई है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 17 के नियम 1 पर टिका प्रस्तुत किया जा रहा है।

    नियम-1 न्यायालय समय दे सकेगा और सुनवाई स्थगित कर सकेगा (1) यदि वाद के किसी भी प्रक्रम पर पर्याप्त हेतुक दर्शित किया जाता है तो न्यायालय लेखबद्ध कारणों से पक्षकारों या उनमें से किसी को भी समय दे सकेगा और वाद की सुनवाई को समय-समय पर स्थगित कर सकेगा,

    परन्तु ऐसा कोई स्थगन वाद की सुनवाई के दौरान किसी पक्षकार को तीन बार से अधिक नहीं अनुदत्त किया जाएगा।

    (2) स्थगन के खर्च-न्यायालय ऐसे हर मामले में वाद की आगे की सुनवाई के लिए दिन नियत करेगा और ऐसे स्थगन के कारण हुए खर्चों या ऐसे उच्चतर खर्चे, जो न्यायालय ठीक समझे, के सम्बन्ध में ऐसा आदेश कर सकेगा। परन्तु-

    (क) यदि वाद की सुनवाई प्रारंभ हो गयी है जब तक न्यायालय उन असाधारण कारणों, से जो उसके द्वारा लेखबद्ध किए जाएंगे, सुनवाई का स्थगन अगले दिन से पूरे के लिए करना आवश्यक न समझे, वाद की सुनवाई दिन-प्रतिदिन तब तक जारी रहेगी जब तक सभी हाजिर साक्षियों की परीक्षा न कर ली जाए:

    (ख) किसी पक्षकार के अनुरोध पर कोई भी स्थगन ऐसी परिस्थितियों को छोड़कर जो उस पक्षकार के नियंत्रण के बाहर हों, मंजूर नहीं किया जाएगा।

    (ग) यह तथ्य स्थगन के लिए आधार नहीं माना जाएगा कि किसी पक्षकार का लीडर दूसरे न्यायालय में व्यस्त है:

    (घ) जहाँ प्लीडर की रुग्णता या दूसरे न्यायालय में उसके व्यस्त होने से भिन्न कारण से, मुकदमें का संचालन करने में उसकी असमर्थता को स्थगन के लिए एक आधार के रूप में पेश किया जाता है वहाँ न्यायालय तब तक स्थगन मंजूर नहीं करेगा जब तक उसका यह समाधान नहीं हो जाता है कि ऐसे स्थगन के लिए आवेदन करने वाला पक्षकार समय पर दूसरा प्लीडर मुकर्रर नहीं कर सकता था:

    (ङ) जहाँ कोई साक्षी न्यायालय में उपस्थित है किन्तु पक्षकार या उसका प्लीडर उपस्थित नहीं है अथवा पक्षकार या प्लीडर न्यायालय में उपस्थित होने पर भी किसी साक्षी की परीक्षा या प्रतिपरीक्षा करने के लिए तैयार नहीं है वहीं न्यायालय, यदि वह ठीक समझे तो, साक्षी का कथन अभिलिखित कर सकेगा, और यथास्थिति पक्षकार या उसके प्लीडर द्वारा जो उपस्थित न हो अथवा पूर्वोक्त रूप में तैयार न हो, साक्षी की मुख्य परीक्षा या प्रतिपरीक्षा करने को अभिमुक्त करते हुए ऐसे आदेश पारित कर सकेगा जो वह ठीक समझे।

    आदेश 17 में स्थगन सम्बन्धी व्यवस्था तीन नियमों में की गई है। इनमे नियम 1 में 1999 में दो संशोधन किये गये हैं।

    संशोधन का प्रभाव - उच्चतम न्यायालय ने अपने नवीनतम निर्ण' में बताया है कि-संहिता का आदेश 17 स्थगन के विषय में है। इसमें दो संशोधन किये गये हैं- (1) किसी पक्षकार को तीन से अधिक स्थगन अनुमत नहीं किये जायेंगे, और (2) स्थगन पर खर्चा लगाना अनिवार्य कर दिया गया है।

    खर्च का स्वरूप-यह खर्चा दो प्रकार का होगा-

    (1) स्थगन होने के कारण खर्चा और

    (2) उससे भी अधिक राशि, जो न्यायालय उचित समझे।

    इसका अर्थ यह नहीं है कि किसी पक्षकार को तीन से अधिक स्थगन कभी नहीं दिये जा सकेंगे।

    आदेश 17, नियम 1 के परन्तुक के अधीन जब परिस्थितियाँ या कारण पक्षकार के नियन्त्रण के बाहर हों, तो स्थगन दिया जा सकेगा।

    इस प्रकार अर्थ करने पर ही यह उपबन्ध संविधान के अनुच्छेद 14 के उल्लंघन से बचेगा। फिर, यह ध्यान रखना है कि-तारीख मिलना किसी पक्षकार का अधिकार नहीं होता, वह अपेक्षित परिस्थितियाँ दिखाए जाने पर ही दिया जा सकता है, नैत्यिक क्रम में नहीं।

    लम्बित मामलों में इस संशोधन के पहले दिये गये स्थगनों की संख्या इस प्रयोजनार्थ संगणित नहीं की जावेगी।

    (1) स्थगन का स्वरूप -एक वाद में कहा गया है कि स्थगन एक अधिकार के रूप में नहीं माँगा जा सकता। जब अपीलार्थी ने स्थगन के लिए प्रार्थना नहीं को और विचारण न्यायालय में स्थगन के कारण नहीं बताये तो ऐसी स्थिति में अपीलार्थी को साक्ष्य बन्द कर देना उचित है।

    (2) स्थगन की सीमा- एक अन्य वाद में वादी को तीन स्थगन दिये जा चुके हैं। अतः अगले स्थगन के लिए आवेदन को नामंजूर करना सही है।

    (3) स्थगन-सुनवाई की तारीख - आदेश 17, नियम 1 के परन्तुक में आया शब्द सुनवाई की तारीख का अर्थ उस तारीख से है, जिस पर वादी को साक्ष्य देने के लिए बुलाया जाता है। इसके बाद उचित और पर्याप्त कारण के लिए उसे तीन स्थगन दिये जा सकते हैं।

    (4) स्थगन देने में न्याय का विरूपण-एक वाद में प्रतिवादी की साक्ष्य को बन्द करना- कॉपीराइट के उल्लंघन के लिए वाद में वादी ने वाद-प्रश्न करने के दो वर्षों के बाद अपनी साक्ष्य बन्द कर दी। परन्तु प्रतिवादियों को अपना साक्ष्य देने के लिए एक माह के भीतर केवल तीन छोटे अवसर हो दिये गये। अभिनिर्धारित कि-इस मामले में वादो को साक्ष्य को उस तारीख पर बन्द करने से न्याय के विरूपण का परिणाम हुआ।

    (5) अपवाद (परन्तुक) - परन्तुक में (क) से (क) पांच परिस्थितियां बताई गयी हैं, जिनके अनुसार स्थगन न देकर कार्यवाही लगातार चालू रखा जावेगा।

    न्यायालय का विवेकाधिकार न्यायालय स्थगित कर सकेगा का अर्थ- जब पर्याप्त हो, तो न्यायालय को सुनवाई स्थगित करने का विवेकाधिकार है, जो उस मामले के तथ्यों पर निर्भर होता है। इसमें न तो उच्चतम न्यायालय और न उच्च न्यायालय हस्तक्षेप करते हैं।

    स्थगन के खर्चे [नियम का उपनियम (2)]- यदि स्थगन के खर्चें की शर्त पर ही स्थगन दिया गया हो और प्रतिवादी खर्चे न दे, तो उसकी प्रतिरक्षा काटकर एकपक्षीय कार्यवाही की जा सकती है। परन्तु यदि खर्चे देने की शर्त के बिना ही स्थगन दे दिया गया हो, तो ऐसा नहीं किया जा सकता।

    मुंबई के एक वाद में कहा गया है कि महाराष्ट्र सहकारी समिति अधिनियम, 1960 के अधीन जांच अधिकारी को सिविल न्यायालय के समान अधिकार दिये गये हैं। वह केवल स्थगन ही नहीं दे सकता, वरन् स्थगन के लिए खर्चे भी स्वीकृत कर सकता है।

    निर्वाचन-अर्जी को लागू होना सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश १ (पक्षकारों की अनुपस्थिति सम्बंधी) तथा आदेश 17 (स्थगन सम्बंधी) के उपबन्ध निर्वाचन अर्जी को लागू होते हैं। जहां अर्जीदार अनुपस्थित हो जाता है, अथवा पैरवी के लिए कदम नहीं उठाता है, वहां अर्जीदार के अनुपस्थित हो जाने की दशा में निर्वाचन अर्जी खारिज की जा सकती है। ऐसी स्थिति में उस अर्जी के पुनः स्थापन की प्रार्थना भी की जा सकती है, किन्तु उसके लिए आवेदन अर्जीदार को देना होगा, प्रत्यर्थी अर्जी नहीं दे सकता।

    आदेश 17 अपीलों को लागू नहीं होता- अपीलों की सुनवाई का तरीका आदेश 41 से शासित होता है। यदि दूसरे न्यायालय में व्यस्त होने के कारण कोई वकील पुनरीक्षण की सुनवाई में उपस्थित नहीं हो सकता है, तो यह अनुपस्थिति के लिए एक पर्याप्त कारण है और अपील को एक पक्षीय रूप में नहीं सुना जा सकता। आदेश 41, नियम 21 के सिद्धान्त को लागू करके पुनः सुनवाई का अवसर देना चाहिए।

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