सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 67: आदेश 13(क) के प्रावधान

Shadab Salim

4 Jan 2024 4:44 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 67: आदेश 13(क) के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 13(क) संक्षिप्त निर्णय से संबंधित है। यह आदेश वाणिज्यिक वादों हेतु संहिता में डाला गया है। यह संहिता में नया जोड़ा गया छोटा आदेश है। इस आलेख के अंतर्गत इस आदेश 13(क) पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

    आदेश 13(क)- संक्षिप्त निर्णय

    नियम-1 ऐसे वादों की व्याप्ति और वर्ग, जिनको यह आदेश लागू होता है-

    (1) इस आदेश में वह प्रक्रिया उपवर्णित है, जिसके द्वारा कोई न्यायालय मौखिक साक्ष्य अभिलिखित किये बिना किसी वाणिज्यिक विवाद स सम्बन्धित किसी दावे का विनिश्चय कर सकेगा।

    (2) इस आदेश के प्रयोजनों के लिए, 'दावा' शब्द के अन्तर्गत निम्नलिखित होंगे-

    (क) किसी दावे का भाग;

    (ख) कोई विशिष्ट प्रश्न जिस पर दावा (चाहे पूर्ण रूप में या भागतः) निर्भर है; या

    (ग) यथास्थिति, कोई प्रतिदावा ।

    (3) इस आदेश के अधीन संक्षिप्त निर्णय के लिए कोई आवेदन, किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी, किसी वाणिज्यिक विवाद की बाबत किसी ऐसे वाद में नहीं किया जायेगा, जो मूल रूप से आदेश 37 के अधीन किसी संक्षिप्त वाद के रूप में फाइल किया गया है।

    संक्षिप्त निर्णय के लिए आवेदन का प्रक्रम - आवेदक, प्रतिवादी पर समन की तामील किये जाने के पश्चात् किसी भी समय संक्षिप्त निर्णय के लिए आवेदन कर सकेगा:

    परन्तु ऐसे आवेदक द्वारा, वाद के सम्बन्ध में न्यायालय द्वारा विवाद्यक विरचित किये जाने के पश्चात् संक्षिप्त निर्णय के लिए कोई आवेदन नहीं किया जायेगा।

    न्यायालय किसी दावे पर किसी वादी या प्रतिवादी के विरुद्ध संक्षिप्त निर्णय दे सकेगा यदि उसका यह विचार है कि-

    (क) यथास्थिति, वादी को दावे पर सफल होने की वास्तविक सम्भावना नहीं है या प्रतिवादी द्वारा दावे का सफलतापूर्वक प्रतिवाद करने को वास्तविक सम्भावना नहीं है; और

    (ख) इस बात का कोई अन्य बाध्यकारी कारण नहीं है कि दावे का मौखिक साक्ष्य अभिलिखित करने के पहले निपटारा क्यों नहीं किया जाना चाहिए।

    इस आदेश के अंतर्गत निम्न प्रक्रिया है-

    (1) न्यायालय को संक्षिप्त निर्णय के लिए किए गए किसी आवेदन में, ऐसे किन्हीं विषयों के अतिरिक्त, जिन्हें आवेदक सुसंगत समझे, इसके अधीन खण्ड (क) से उपनियम (च) के अधीन वर्णित विषय सम्मिलित होंगे-

    (क) आवेदन में इस बात का कथन अवश्य अन्तर्विष्ट होगा कि इस आदेश के अधीन संक्षिप्त निर्णय के लिए किया गया आवेदन है:

    (ख) आवेदन में प्रथम ऐसे सभी तात्विक तथ्य प्रकट किये जायेंगे और विधि के प्रश्न, यदि कोई हों, को

    (ग) पहचान की जायेगी; यदि आवेदक, किसी दस्तावेजी साक्ष्य पर निर्भर करने को ईप्सा करता है तो आवेदक, -

    अपने आवेदन में ऐसे दस्तावेजो साक्ष्य सम्मिलित करेगा; और ऐसे दस्तावेजों साक्ष्य को सुसंगत अन्तर्वस्तु की पहचान करेगा जिस पर आवेदक निर्भर करता है;

    आवेदन में इस बात के कारण बतायेगा कि, यथास्थिति, दावे में सफल होने या दावे का प्रतिवाद करने को वस्तुतः कोई सम्भावनाएँ क्यों नहीं हैं।

    आवेदन में इस बात का अवश्य उल्लेख करेगा कि आवेदक किस अनुतोष को ईप्सा कर रहा है और उसमें ऐसे अनुतोष की ईप्सा करने का संक्षिप्त कथन किया जाना चाहिए।

    जहाँ संक्षिप्त निर्णय के लिए कोई सुनवाई नियत कर दी जाती है, वहाँ प्रत्यर्थी को कम से कम तीस दिन की सूचना निम्नलिखित के बारे में दी जानी चाहिए-

    (क) सुनवाई के लिए नियत तारीख, और

    (ख) दावा, जिसका ऐसी सुनवाई में न्यायालय द्वारा विनिश्चय किया जाना प्रस्तावित है।

    प्रत्यर्थी, संक्षिप्त निर्णय के आवेदन की सूचना या सुनवाई की सूचना की प्राप्ति (जो भी पूर्वतर हो) के तीस दिन के भीतर ऐसे किन्हीं विषयों के अतिरिक्त, जिन्हें प्रत्यर्थी सुसंगत समझता है, (उपवर्णित खण्ड (क) से खण्ड (च) में वर्णित विषयों के प्रति उत्तर देगा-

    सभी तात्विक तथ्य प्रकट किये जायेंगे; और

    विधि के प्रश्न यदि कोई हो, पहचान की जायेगी; और वे कारण बताये जायेंगे कि आवेदक द्वारा ईप्सित अनुतोष क्यों मंजूर नहीं किया जाना चाहिए। यदि प्रत्यर्थी अपने उत्तर में किसी दस्तावेजी साक्ष्य पर निर्भर करने की इंप्सरा करता है तो प्रत्यर्थी अपने उत्तर में ऐसे दस्तावेजो साक्ष्य सम्मिलित करेगा; और ऐसे दस्तावेजी साक्ष्य को सुसंगत अन्तर्वस्तु की पहचान करेगा जिस पर प्रत्यर्थी निर्भर करता है;

    उत्तर में इस बात का कारण बतायेगा कि, यथास्थिति, दावे में सफल होने या दावे का प्रतिवाद करने को वस्तुतः कोई सम्भावनाएँ क्यों हैं।

    उत्तर में प्रमिततः उन विवाद्यकों का कथन होगा, जो विचारण के लिए विरचित किये जाने चाहिए। उत्तर में इस बात की पहचान को जायेगी कि विचारण पर ऐसा कौनसा अतिरिका साक्ष्य अभिलेख पर लाया जायेगा जो संक्षिप्त निर्णय के प्रक्रम पर अभिलेख पर नहीं लाया जा सका; और उत्तर में यह अवश्य कथन होगा कि अभिलेखबद्ध साध्य या सामग्री, यदि कोई हो, के प्रकाश में न्यायालय को संक्षिप्त निर्णय की कार्यवाही क्यों नहीं करनी चाहिए।

    संक्षिप्त निर्णय की सुनवाई के लिए साक्ष्य-

    (1) इस आदेश में किसी बात के होते हुए भी, यदि प्रत्यर्थी संक्षिप्त निर्णय के किसी आवेदन में सुनवाई के दौरान अतिरिक्त दस्तावेजी साक्ष्य पर निर्भर करने की इच्छा करता है, तो प्रत्यर्थी-

    (क) ऐसा दस्तावेजो साक्ष्य फाइल करेगा; और

    (ख) ऐसे दस्तावेजो साक्ष्य को प्रतियाँ, आवेदन के प्रत्येक अन्य पक्षकार पर, सुनवाई की तारीख से कम से कम पन्द्रह दिन पूर्व, तामील करेगा।

    इस आदेश में किसी बात के होते हुए भी, यदि संक्षिप्त निर्णय के लिए आवेदक प्रतिवादी के दस्तावेजी साक्ष्य के उत्तर में दस्तावेजी साक्ष्य पर निर्भर करने को इच्छा करता है, तो आवेदक-

    उत्तर में ऐसा दस्तावेजो साक्ष्य फाइल करेगा; और ऐसे दस्तावेजी साक्ष्य को प्रति को प्रत्यर्थी पर, सुनवाई की तारीख से कम से कम पाँच दिन पूर्व, तामील करेगा। तत्प्रतिकूल किसी बात के होते हुए भी, उपनियम (1) और उपनियम (2) में, दस्तावेजी साक्ष्य- फाइल किया जाना अपेक्षित नहीं होगा यदि ऐसा दस्तावेजी साक्ष्य पहले फाइल किया जा चुका है; या (ख) उस पक्षकार पर तामील करना अपेक्षित नहीं होगा जिस पर उसकी पहले की तामील को जा चुकी है।

    आदेश, जो न्यायालय द्वारा किये जा सकेंगे (1) इस आदेश के अधीन किये गये किसी आवेदन पर, न्यायालय, ऐसे आदेश कर सकेगा जो वह स्वविवेकानुसार उचित समझे, जिसमें निम्नलिखित भी हैं-

    (1) दावे पर निर्णय का आदेश;

    (2) इसमें नीचे वर्णित नियम 7 के अनुसार सशर्त आदेश;

    (3) आवेदन को खारिज करने का आदेश;

    (4) दावे के भाग को खारिज करने का और दावे के भाग पर निर्णय का आदेश जो कि खारिज नहीं किया गया है:

    (5) अभिवचनों को (चाहे पूर्णत: या भागतः) हटाने का आदेश: या

    (6) आदेश 15(क) के अधीन वाद प्रबन्धन के लिए कार्यवाही करने का और निदेश देने का आदेश।

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