सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 65: आदेश 13 नियम 3 से 6 तक के प्रावधान
Shadab Salim
2 Jan 2024 11:07 AM IST
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 13 दस्तावेजों का पेश किया जाना परिबद्ध किया जाना और लौटाया जाना से संबंधित है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 13 के नियम 3,4,5 एवं 6 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।
नियम-3 विसंगत या अग्राही दस्तावेजों का नामंजूर किया जाना-न्यायालय वाद के किसी भी प्रक्रम में ऐसी किसी भी दस्तावेज को, जिसे वह विसंगत या अन्यथा अग्राह्य समझता है, ऐसे नामंजूर करने के आधारों को अभिलिखित करके नामंजूर कर सकेगा।
नियम-4 साक्ष्य में गृहीत दस्तावेजों पर पृष्ठांकन-ठीक आगामी उपनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, हर ऐसी दस्तावेज पर, जो वाद में साक्ष्य में ग्रहण कर ली गई है।
निम्नलिखित विशिष्टियाँ पृष्ठांकित की जाएँगी, अर्थात:-
(क) वाद का संख्यांक और शीर्षक:
(ख) दस्तावेज को पेश करने वाले व्यक्ति का नाम:
(ग) यह तारीख जिसको वह पेश की गई थी; तथा
(घ) उसके इस प्रकार ग्रहण किये जा चुकने का कथन, और पृष्ठांकन न्यायाधीश द्वारा हस्ताक्षरित या आद्यक्षरित किया जाएगा।
(2) जहाँ इस प्रकार गृहीत दस्तावेज किसी बही, लेखा या अभिलेख में की प्रविष्टि है और ठीक आगामी नियम के अधीन मूल प्रति के स्थान में उसकी एक प्रति रख दी गई है वहाँ पूर्वोक्त विशिष्टियों का पृष्ठांकन उस प्रति पर किया जायेगा और उस पर पृष्ठांकन न्यायाधीश द्वारा हस्ताक्षरित या आद्यक्षरित किया जायेगा।
नियम-5 बहियों, लेखाओं और अभिलेखों में की गृहीत प्रविष्टियों पर पृष्ठांकन (1) वहाँ तक के सिवाय जहाँ तक कि बैंककार बही साक्ष्य अधिनियम, 1891 (1891 का 18) द्वारा अन्यथा उपबंधित है, उस दशा में जिसमें वाद के साक्ष्य में गृहीत दस्तावेज डाकबही या दुकानबही या अन्य लेखा में की, जो चालू उपयोग में रहता है, प्रविष्टि है वह पक्षकार, जिसकी ओर से वह बही या लेखा पेशा किया गया है. उस प्रविष्टि की प्रति दे सकेगा।
(2) जहाँ ऐसी दस्तावेज लोक कार्यालय में से या लोक अधिकारी द्वारा पेश किये गये लोक अभिलेख ने की प्रविष्टि है या जिस पक्षकार की ओर से वह बही या लेखा पेश किया गया है।
उससे भिन्न व्यक्ति की बही या लेखा में की प्रविष्टि है वहाँ न्यायालय अपेक्षा कर सकेगा कि उस प्रविष्टि की प्रति-
(क) जहाँ वह अभिलेख, बही या लेखा पक्षकार की ओर से पेश किया गया है, वहाँ उस पक्षकार द्वारा दी जाए, अथवा
(ख) जहाँ वह अभिलेख बही या लेखा ऐसे आदेश के अनुपालन में पेश किया गया है जो स्वप्रेरणा कर कार्य करते हुए न्यायालय ने दिया है वहाँ दोनों पक्षकार या किसी भी पक्षकार द्वारा दी जाए।
(3) जहाँ प्रविष्टि की प्रति इस नियम के पूर्वगामी उपबन्धों के अधीन दे दी गई है वहाँ न्यायालय आादेश 7 के नियम 17 में वर्णित रीति से प्रति की परीक्षा और तुलना और प्रति को प्रमाणित कराने के पश्चात् प्रविष्टि को चिन्हित करेगा और उस बही, लेखा या अभिलेख को जिसमें वह है, उसे पेश करने वाले व्यक्ति को लौटवा देगा।
नियम-6 साक्ष्य में अग्राह्य होने के कारण नामंजूर दस्तावेजों पर पृष्ठांकन-जहां उस दस्तावेज को जिस पर साक्ष्य के रूप में दोनों पक्षकारों में से कोई निर्भर करता है, न्यायालय साक्ष्य में अग्राह्य ठहरा देता है वहां नियम 4 के उपनियम (1) के खंड (क), (ख) और (ग) में वर्णित विशिष्टियां इस कथन के सहित कि वे नामंजूर कर दी गई हैं, उस पर पृष्ठांकित की जाएंगी और पृष्ठांकन न्यायाधीश द्वारा हस्ताक्षरित या आद्यक्षरित किया जाएगा।
यह सभी नियम साक्ष्य के रूप में स्वीकार और अस्वीकार किये जाने वाले दस्तावेजों के संबंध में हैं। जब एक दस्तावेज साक्ष्य के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है तब क्या प्रक्रिया होगी एवं जब नामंजूर किया जाता है तब क्या प्रक्रिया अपनाई जाएगी।
स्टाम्प ड्यूटी के अभाव में दस्तावेज को साक्ष्य में ग्राह्यता बाबत आपत्ति का निस्तारण आपत्ति उठाये जाने के स्तर पर ही किया जाना चाहिए। समुचित स्टाम्प के अभाव में दस्तावेज को साक्ष्य में ग्राह्यता बाबत विरचित विवाद्यक का निस्तारण प्रारम्भिक विवाद्यक के रूप में किया जाना चाहिए।
न्यायालय का अधिकार सुरक्षित (नियम 3) किसी भी प्रक्रम में न्यायालय कारण लिखते हुए सुरक्षित किया गया है। पेश किए गये दस्तावेजों में से जो अग्राह्य पाया जाता है, उसे नामंजूर कर सकेगा। न्यायालय का यह अधिकार नियम 3 द्वारा स्पष्ट है।
पृष्ठांकन-प्रहीत (ग्रहण किए गये) दस्तावेजों पर नियम 4 के अनुसार पृष्ठांकन किया जावेगा और बहियों, लेखाओं और अभिलेखों में से प्रविष्टियों की प्रतियों पर नियम 5 के अनुसार पृष्ठांकन किया जावेगा। साक्ष्य में ग्राह्य नहीं होने वाले दस्तावेजों को नामंजूर कर नियम के अनुसार पृष्ठांकन किया जाएगा। दस्तावेजों के बारे में आक्षेप (एतराज) किसी दस्तावेज को अस्थाई रूप से अंकित करने और उसकी ग्राह्यतावके प्रश्न को विचारण के लिए सुरक्षित रखने का आदेश गलत है।
उसको साबित करने के तरीके में आपत्ति उसी समय उठाया जाना आवश्यक है जब वह दस्तावेज साक्ष्य में प्रस्तुत किया जाता है। उसे प्रदर्शित अंकित करने से पहले ही ऐसी आपत्ति उठायी जाना आवश्यक है। प्रमाण के तरीके पर एतराज जब राशनकार्ड की फोटोकॉपी, बिना किसी एतराज के, प्रदर्शित कर दी गई, तो मामले की अंतिम स्टेज पर प्रमाणित करने के तरीके के बारे में एतराज नहीं उठाया जा सकता।
पृष्ठांकन के अभाव का प्रभाव (आदेश 13, नियम 4) विचारण न्यायाधीश द्वारा दस्तावेज पर उक्त नियम के अध्यधीन यथा अपेक्षित पृष्ठांकन न करने के आधार पर यह दलील नहीं दी जा सकती कि उस दस्तावेज को साक्ष्य में ग्रहण किया गया नहीं समझा जा सकता।
माध्यमिक साक्ष्य के बारे में आक्षेप बिना किसी आक्षेप के जब माध्यमिक साक्ष्य को विचारण में प्रदर्शित कर दिया गया, तो वाद में यह आक्षेप कि ऐसी साक्ष्य देने की शर्तें पूरी नहीं की गयी, चलने योग्य नहीं है।
न्यायालय को व्यापक शक्तियां प्राप्त-एक दस्तावेज साक्ष्य में बिना किसी आक्षेप के ग्रहण कर लिया गया, तो भी न्यायालय इस विनिश्वय पर आ सकता है कि यह विधिपूर्वक साक्ष्य में अग्रहणीय है।
दस्तावेज को ग्रहण करना (नियम 4)-
जब एक बार किसी दस्तावेज को साक्ष्य में ग्रहण कर लिया जाता है, तो इसके बाद यह प्रश्न कि क्या वह सम्यकू रूप से स्टाम्पित है, स्टाम्प अधिनियम 1899 की धारा 36 द्वारा बाधित (वर्जित) है। जब कोई दस्तावेज न्यायालय में केवल रखा जाता है (पेश किया जाता है), तो यह नहीं कहा जा सकता है कि वह साक्ष्य में ग्रहण कर लिया गया है। जब इसे साक्ष्य में प्रस्तुत किया जावेगा और इसे प्रदर्शित कर अंकित किया जावेगा, तभी यह साक्ष्य में ग्रहण किया जावेगा।
परन्तु यदि एक बार इसे एक प्रदर्श (एक्जीबिट) के रूप में अंकित कर दिया जाता है तो, इसे प्रश्नगत नहीं किया जा सकता, चाहे न्यायालय ने इस मामले में अपने मस्तिष्क का प्रयोग नहीं किया हो।
दस्तावेज की ग्राह्यता का प्रश्न- एक वाद में दस्तावेजों की प्रतियाँ पेश की गई, जिन्हें कूटरचित बताया गया। इस पर उनकी ग्राह्यता के प्रश्न को तय नहीं किया, इससे कई कार्यवाहियाँ उत्पन्न होंगी। आदेश को अपास्त कर मूल दस्तावेज अभिलेख पर लाने का निर्देश दिया गया।