सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 64: आदेश 13 नियम 1 के प्रावधान

Shadab Salim

31 Dec 2023 8:30 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 64: आदेश 13 नियम 1 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 13 दस्तावेजों का पेश किया जाना परिबद्ध किया जाना और लौटाया जाना से संबंधित है। कोई भी वाद दस्तावेजों की बुनियादी पर टिका होता है, इस आदेश के अंतर्गत दस्तावेजों से संबंधित प्रावधान किए गए हैं, यह बताया गया है कि दस्तावेज कब कैसे पेश किए जाएंगे और उन्हें कैसे लौटाया जाएगा। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 13 के नियम 1 पर चर्चा की जा रही है।

    नियम-1 मूल दस्तावेजों का विवाद्यकों के स्थिरीकरण के समय या उसके पूर्व पेश किया जाना-

    (1) पक्षकार या उनके प्लीडर मूल सभी दस्तावेजी साक्ष्य जहां उनकी प्रतियां वादपत्र या लिखित कथन के साथ फाइल की गई है, विवाद्यकों के स्थिरीकरण के समय या उसके पूर्व पेश करेगा।

    (2) न्यायालय इस प्रकार पेश किए गए दस्तावेजों को ले लेगा :

    परन्तु यह तब जब कि उनके साथ ऐसे प्ररूप में तैयार की गई एक सही सूची हो जो उच्च न्यायालय ने निर्दिष्ट किया हो।

    (3) उपनियम (1) की कोई बात ऐसे दस्तावेजों को लागू नहीं होगी, जो-

    (क) अन्य पक्षकार के साक्षियों की प्रतिपरीक्षा के लिए पेश किए जाएं; या

    (ख) किसी साक्षी को उसकी स्मृति ताजा करने के लिए सौंपे जाए।"।

    ② दस्तावेजों को पेश न करने का प्रभाव- लोपित

    इस आदेश के नियम 2 को लोपित कर दिया गया एवं नियम 1 महत्वपूर्ण नियम है। नियम 1 के अंतर्गत मूल दस्तावेज प्रस्तुत करने की समय सीमा-वादपत्र या लिखित कथन के साथ ही मूल दस्तावेज, मय उसकी एक प्रति के तथा सूची के, देने की व्यवस्था क्रमशः आदेश 7, नियम 14 तथा आदेश 8, नियम 1-क में की गई है। यदि पहले मूल दस्तावेज नहीं देकर उसकी प्रतियाँ ही दी गई थीं, तो अब सभी मूल दस्तावेज विवाद्यकों के स्थिरीकरण के प्रक्रम पर या इससे पहले प्रस्तुत किए जावेंगे, जिनको न्यायालय प्राप्त करेगा और जिनके साथ एक सही दस्तावेज-सूची निर्धारित प्ररूप में तैयार करके दी जावेगी।

    यह व्यवस्था मूल दस्तावेजों के बारे में है, जिनकी प्रतियाँ अभिवचन के साथ संलग्न की गई थीं। यह नियम साक्षियों की प्रतिपरीक्षा या साक्षियों की स्मृति ताजा करने के लिए पेश किए गए किसी दस्तावेज पर लागू नहीं होगा। ऐसे दस्तावेज यथासमय प्रस्तुत किए जा सकेंगे।

    (क) वादी के दस्तावेज- [ आदेश 7, नियम 14]-

    वादी अपने वादपत्र का आधार बनाने वाले अपने पास के दस्तावेजों को एक सूची में अंकित करेगा और उस सूची तथा दस्तावेज को मय उसकी एक प्रति के वादपत्र के प्रस्तुतीकरण के साथ न्यायालय में प्रस्तुत करेगा।

    [उपनियम (1) जहाँ ऐसा दस्तावेज उसके पास नहीं है, तो, यथासंभव वह बतायेगा कि वह दस्तावेज किसके कब्जे में है? [उपनियम (2)]

    जो दस्तावेज वादी द्वारा न्यायालय में पेश किया जाना चाहिये था, या वादपत्र के साथ संलग्र की जाने वाली सूची में अंकित किया जाना था, उसे पेश न करने या अंकित नहीं करने पर, न्यायालय की अनुमति के बिना, उसे वाद की सुनवाई में साक्ष्य में नहीं लिया जावेगा। उपनियम 3।

    परन्तु जो दस्तावेज वादी के साक्षी की प्रतिपरीक्षा के लिए पेश किया जावे या साक्षी को केवल अपनी स्मृति को ताजा करने के लिए दिया जाए, तो ऐसे दस्तावेजों पर इस नियम की कोई बात लागू नहीं होगी। अब आदेश 7 का नियम 15- (जिसमें दस्तावेज किसके कब्जे में है, यह बताना था) लोपित कर दिया गया है, जिसे आदेश 7, नियम 14 (2) में सम्मिलित कर लिया गया है। इसी प्रकार आदेश 7, नियम 18 को लोपित कर दिया है, जिसमें दस्तावेज की ग्राह्यता का उपबन्ध किया गया था, जिसे उपर्युक्त नियम 14 (3) में सम्मिलित कर लिया गया है।

    (ख) प्रतिवादी के दस्तावेज-

    आदेश 5 के नियम 7 के अनुसार, प्रतिवादी की उपस्थित होकर उत्तर देने के लिए दिये जाने वाले समन में प्रतिवादी को आदेश होगा कि वह आदेश 8, नियम -क में वर्णित दस्तावेज पेश करे।

    आदेश 8, नियम 1-क-नया जोड़ा गया है, जिसके अनुसार प्रतिवादी अपनी प्रतिरक्षा या मुजरा या प्रतिदावा के समर्थन में अपने पास के दस्तावेजों की एक सूची बनायेगा और उन दस्तावेजों को प्रतियों सहित लिखित-कथन प्रस्तुत करते समय प्रस्तुत करेगा। जहाँ ऐसा दस्तावेज उस प्रतिवादी के कब्जे या अधिकार में नहीं है, तो वह यथासंभव यह बतावेगा कि वह किसके कब्जे में है।

    जो दस्तावेज इस नियम के अधीन न्यायालय में प्रतिवादी को प्रस्तुत करना चाहिये था, उसे प्रस्तुत नहीं करने पर, न्यायालय की अनुमति के बिना, उस दस्तावेज को वाद की सुनवाई में साक्ष्य में नहीं लिया जावेगा। अपवाद-परन्तु यह नियम दो प्रकार के दस्तावेजों पर लागू नहीं होगा-जो-

    (क) वादी के साक्षियों की प्रतिपरीक्षा के लिए प्रस्तुत किए जावें, या

    (ख) साक्षी को उसकी स्मृति ताजा करने के लिए दिए जावें।

    आदेश 13 का नियम 2 लोपित कर दिया गया है, जो दस्तावेजों को पेश न करने के प्रभाव के बारे में था।

    आदेश 12, नियम 3 का द्वितीय परन्तुक लोपित कर दिया गया, जिससे की गई स्वीकृति को संशोधित करने या वापस लेने की अनुज्ञा न्यायालय से प्राप्त करने का उपबन्ध समाप्त हो गया है।

    सभी मूल दस्तावेज विवाद्यकों के स्थिरीकरण के समय या उससे पहले प्रस्तुत कर दिये जावेंगे, जिसकी प्रतियाँ वादपत्र या लिखित कथन, यथास्थिति, के साथ दे दी गई हो।

    अभिवचन या शपथपत्रों में वर्णित दस्तावेजों के निरीक्षण के लिए विवादद्यक स्थिरीकरण के पहले ही अवसर दिया जावेगा, बाद में नहीं।

    दस्तावेज की ग्राद्मता- न्यायालय की अनुमति के बिना - शब्दावली का प्रभाव - आदेश 13 का नियम 2 लोपित कर दिया गया है और इसी प्रकार आदेश 18 के नियम 17-क और आदेश 7 के नियम 18 को भी लोपित कर दिया गया है।

    आवश्यक दस्तावेज, जो नियमानुसार प्रस्तुत किए जाने थे और सूची में अंकित किए जाने थे, ऐसा न किए जाने पर उनको साक्ष्य में न्यायालय की अनुमति के बिना सम्मिलित नहीं किया जावेगा। ऐसा उपबन्ध आदेश 7 नियम 14(3) व आदेश 8 नियम 1 क (3) में किया गया है।

    शब्दावली न्यायालय की अनुमति के बिना यह प्रकट करती है कि किसी आवश्यक दस्तावेज को न्यायालय की अनुमति से पेश किया जा सकेगा और उसे साक्ष्य में लिया जावेगा। इस शब्दावली के अनुसार न्यायालय की अनुमति लेने के लिए दोषी पक्षकार को न्यायालय का यह समाधान करना होगा कि पर्याप्त कारण से ऐसा नहीं किया जा सका। न्यायालय कारण लेखबद्ध करते हुए ही अनुमति दे सकेगा।

    आवश्यक शर्ते-

    दस्तावेज पेश न करने का प्रभाव (1) नियम के अनुसार विवाद्यक स्थिर करने के समय या उससे पहले यदि दस्तावेज पेश नहीं किये जाते हैं, तो उनको वाद में किसी प्रक्रम पर साक्ष्य में नहीं लिया जावेगा।

    परन्तु दस्तावेज पेश न करने का अच्छा हेतुक (कारण) बताने पर यदि न्यायालय का समाधान हो जाता है, तो आदेश में कारण लिखकर ऐसे दस्तावेजों को स्वीकार किया जा सकेगा।

    उपरोक्त बातें/शर्तें (क) दूसरे पक्षकार के गवाह की प्रतिपरीक्षा के लिए पेश किए गए दस्तावेजों पर और (ख) साक्षी/गवाह को उसकी स्मृति ताजा करने के लिए दिये गये दस्तावेजों पर लागू नहीं होगी।

    न्यायालय का विवेकाधिकार-

    यदि किसी दस्तावेज को पहले प्रक्रम पर पेश नही किया जा सका, तो अच्छा कारण दर्शित करने पर बाद के प्रक्रम पर उस दस्तावेज को ग्रहण करने का न्यायालय को विवेकाधिकार है। केवल इस कारण से कि वादी का साक्ष्य पहले ही बन्द हो चुका है, फाइल किए जाने वाले किसी दस्तावेज के लिए न्यायालय मना नहीं कर सकता।

    उचित कारण का अभाव-जब एक प्रतिवादी ने देर की स्टेज पर बिना उचित कारण बताये कुछ दस्तावेज प्रस्तुत करने चाहे, तो आदेश 13, नियम 2 के अधीन न्यायालय उन दस्तावेजों को नामंजूर कर सकता

    अच्छा हेतुक होना आवश्यक-

    एक मामले में वास्तव में साक्ष्य का लेखन आरंभ नहीं हुआ, उस समय एक रजिस्टर्ड दानपत्र तथा किराये की रसीदें पेश की गई, जिनको वाद स्थापित होने के बाद तैयार करने की कोई संभावना नहीं थी। सिविल न्यायाधीश ने इन दस्तावेजों को ग्रहण नहीं किया, पर उच्च न्यायालय ने इनको ग्रहण कर लिया।

    जब न्यायालय का यह समाधान हो गया कि दस्तावेज पेश नहीं करने का पर्याप्त हेतुक (कारण) किसी दिनांक तक सही रूप से विद्यमान था, फिर प्रत्येक दिन की देरी का स्पष्टीकरण करना आवश्यक नहीं था।

    जब दस्तावेज पेश करने की अनुमति दी गई-प्रतिवादी ने लिखित-कथन के साथ आदेश 8, नियम 1 व 2 की पालना में दस्तावेज पेश नहीं किए. परन्तु लिखित-कथन में उनका प्रसंग दिया गया था। ये दस्तावेज पक्षकारों के बीच विवाद से संगत थे। अभी पक्षकारों की साक्ष्य प्रारंभ होनी थी। प्रतिवादी ने आदेश 13 के नियम 2 के अधीन दस्तावेज पेश करने के लिए आवेदन दिया। विचारण न्यायालय ने आवेदन खारिज कर दिया।

    पुनर्विचार में उच्च न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि-उस समय प्रतिवादी इन दस्तावेजों को ढूँढ नहीं पाया। इस कारण पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है। इस दस्तावेज से संबधित विवाद्यक बना लिया गया है और इसको पेश करने से वादी को प्रतिकूलता भी नहीं होगी। ऐसे प्रारंभिक प्रक्रम पर दस्तावेज की शुद्धता पर विचार करना उचित नहीं है। दस्तावेज पेश नहीं करने देने पर न्याय की विफलता होगी। अत: 200/-रु. खर्चा देने पर दस्तावेज प्रस्तुत करने की अनुमति दी गई और पुनरीक्षण स्वीकार किया गया।

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