सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 53: आदेश 9 नियम 9 के प्रावधान

Shadab Salim

26 Dec 2023 4:00 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 53: आदेश 9 नियम 9 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 9 पक्षकारों के अदालत में उपस्थित होने एवं नहीं होने के संबंध में प्रावधान निश्चित करता है। आदेश 9 का नियम 9 नियम 8 के अधीन वाद के खारिज होने पर नया वाद लाने के अधिकार पर रोक लगाता है। यह नियम प्रकार से रेस्जुडिकेट के सिद्धांत पर आधारित है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 9 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम-9 व्यतिक्रम के कारण वादी के विरुद्ध पारित डिक्री नए वाद का वर्जन करती है- (1) जहाँ वाद नियम 8 के अधीन पूर्णतः या भागतः खारिज कर दिया जाता है वहाँ वादी उसी वादहेतुक के लिए नया वाद लाने से प्रवारित हो जाएगा। किन्तु वह खारिजी को अपास्त करने के आदेश के लिए आवेदन कर सकेगा और यदि वह न्यायालय का समाधान कर देता है कि जब वाद की सुनवाई के लिए पुकार पड़ी थी उस समय उसकी अनुपसंजाति के लिए पर्याप्त हेतुक था तो न्यायालय खर्चों या अन्य बातों के बारे में ऐसे निबन्धनों पर जो वह ठीक समझे, खारिजी को अपास्त करने का आदेश करेगा और वाद में आगे कार्यवाही करने के लिए दिन नियत करेगा।

    (2) इस नियम के अधीन कोई आदेश तब तक नहीं किया जाएगा जब तब कि आवेदन की सूचना की तामील विरोधी पक्षकार पर न कर दी गई हो।

    नये वाद का वर्जन लोकनीति पर आधारित है, जो सुस्थपित विधि-सिद्धान्त को लागू करता है कि किसी प्रतिवादी को उसी समान वादहेतुक के लिए दो बार तंग नहीं किया जाना चाहिये। व्यतिक्रम के आधार पर वाद खारिज हो जाने के उपरांत उसी वाद हेतुक पर द्वितीय वाद वर्जित है।

    वादी अनुपस्थित, तो न्यायालय् उस वाद को खारिज कर सकता है या प्रतिवादी द्वारा की गई स्वीकृतियों के आधार पर डिक्री या आंशिक अनुतोष के लिए डिक्री पारित कर सकता है। ऐसी स्थिति में नियम 9 में उस वादी को एक उपचार दिया गया है।

    खारिजी को अपास्त करने के लिए आवेदन-वाद का पुनः स्थापन-

    (1) वाद की खारिजी - नियम 8 के अधीन एक वाद को पूर्णतः (पूरा) या भागतः (किसी भाग को) खारिज कर दिया गया है,

    (2) नया वाद वर्जित-वहां, वादी उसी वादहेतुक के लिए नया वाद नहीं ला सकेगा। यह आज्ञापक वर्जन है।

    (3) आवेदन देना - किन्तु वह खारिजी को अपास्त करने के लिए आवेदन न्यायालय में दे सकेगा। उपसंजात नहीं होने पर दावा खारिज। दावे की पुर्नस्थापना के लिए दावा खारिज होने के 30 दिन के अन्दर आवेदन पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा न कि ज्ञात होने की तारीख से दावे की पुर्नस्थापना हेतु आवेदन को अधिवक्ता के हस्ताक्षरों से प्रस्तुत किया जा सकता है

    (4) न्यायालय का समाधान - यदि वादी न्यायालय का यह समाधान कर देता है कि जब वाद की सुनवाई की आवाज़ लगी थी उस समय किसी पर्याप्त हेतुक के कारण वह उपस्थित नहीं हो सका। वर्ष 2011 में विनिर्दिष्ट अनुपालना संविदा हेतु प्रस्तुत वाद में वादी ने साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिये तीन से अधिक स्थगन प्राप्त किये तत्पश्चात वह बिना किसी युक्ति संगत कारण के वर्ष 2017 में अनुपस्थित रहा। पुनःस्थापन वाद आवेदन से प्रार्थी ने अनुपस्थिति बाबत् कोई समुचित कारण नहीं दर्शा कर केवल यह कहा कि वह निर्धारित तारीख को नगर से बाहर था। वाद के अभियोजन में वादी का लापरवाही पूर्ण व्यवहार वाद के पुनःस्थापन हेतु पर्याप्त हेतुक नहीं है।

    (5) आवेदन आदेश देने के पहले ने वह आवेदन की सूचना विरोधी पक्षकार 12 पर और उसको तामील के बाद हो आदेश देगा। इस प्रकार प्रतिवादी को सुनवाई का अवसर

    (6) अपास्त करने का आदेश - इस प्रकार न्यायालय अपना समाधान करने के बाद और प्रतिवादी को सुनवाई का अवसर देने के बाद उस आवेदन पर खारिजी के आदेश को अपास्त करने का आदेश देगा और-

    (क) इसके लिए वह जो ठीक समझे वह खर्च या शर्ते लगायेगा, और

    (ख) बाद में आगे कार्यवाही करने के लिए दिन नियत करेगा। इस कार्यवाही को वाद का पुनःस्थापन करना (रेस्टोरेशन/प्रत्यास्थापन) भी कहते है।

    नियम 8 के अधीन बाद खारिज किये जाने पर उपचार -

    यह आदेश एक डिक्री नहीं है, अतः अपील नहीं होगी,

    आदेश 47, नियम 1 के अधीन न्यायालय में पुनर्विलोकन (रिव्यू) का आवेदन दिया जा सकता है। एक वाद में दिए निर्णय के अनुसार जिस वादी का वाद नियम 8 के अधीन खारिज कर दिया गया उसे पुनर्विलोकन का उपचार प्राप्त नहीं है। इस मत को बम्बई तथा कलकत्ता उच्च न्यायालयों ने अपनाया है।

    आदेश 1 के नियम 9 के अधीन खारिजी के आदेश को अपास्त कराने के लिए आवेदन करना ही अब एकमात्र उपचार उपलब्ध है।

    व्यतिक्रम के कारण वाद को खारिजी के आदेश को अपास्त करने के लिए या तो आदेश 9 नियम 9 (1) के अधीन आवेदन किया जा सकता है या आदेश 47 के नियम 1 के अधीन पुनर्विलोकन के लिए आवेदन किया जा सकता है। किसी अन्य उपबन्ध के अधीन आवेदन नहीं किया जा सकता। यदि आदेश 9, नियम 9 के अधीन किये गये आवेदन को व्यतिक्रम के आधार पर खारिज कर दिया जाये तो उस आवेदन को कायम रखने के लिए आदेश 9, नियन 9 सपठित धारा 141 के अधीन आवेदन किया जा सकता है। संहिता के आदेश 9, नियम 9 के अधीन किए गए पिटीशन को व्यतिक्रम के कारण खारिज कर दिए जाने पर भी, संहिता को धारा 151 के अधीन (प्रत्यावर्तन के लिए) किया गया पिटीशन कायम रखने योग्य है।

    चूक (Default) के कारण खारिज हुए दावे को पुनःस्थापन हेतु प्रस्तुत किए गए प्रार्थना पत्र अन्तर्गत आदेश 9 व नियम 9 को चूक के कारण या अन्यथा खारिज कर दिया जाता है तो ऐसे आदेश के विरुद्ध आदेश 41 नियम 1(सौ) के प्रावधान के अनुसार अपील की जा सकती है।

    5. नियम 4 तथा नियम 9 में अन्तर- नियम 4 तथा 9 में अन्तर के आधारभूत बिन्दु भूत बिन्दु इस प्रकार बताये गये हैं-

    जहाँ किसी वाद को आदेश 9, नियम 2 या 3 के अधीन खारिज किया जाता है, तो उसे नियम 4 के अधीन पुनःस्थापित किया जा सकता है। इसके विपरीत, जहाँ कोई वाद आदेश 9, नियम 8 के अधीन खारिज किया जाता है, तो उसी समान वादहेतुक पर दूसरा वाद नहीं लाया जा सकता।

    आदेश 9, नियम 4 के अधीन वाद को पुनःस्थापित करने के पहले प्रतिवादी को कोई नोटिस (सूचना) देना उपबंधित नहीं है, परन्तु आदेश 9, नियम 9 के अधीन पुनःस्थापन से पहले नोटिस देना आज्ञापक है।

    उच्च न्यायालय की मूल अधिकारिता में एकल-न्यायाधीश द्वारा अभियोजन नहीं करने के कारण खारिज किए गये वाद के मामले में आदेश अपास्त कराने के लिए आदेश 9, नियम 9 लागू होता है, परन्तु परिसीमा अधिनियम, 1963 के अनुच्छेद 122 के अनुसार ऐसा आवेदन खारिजी की दिनांक से तीस दिन के भीतर देना होगा।

    आदेश 9 नियम 9 के उपबन्ध हिन्दू विवाह अधिनियम के अधीन कार्यवाही को लागू होते है।

    एक चुनाव-याचिका याची की उपस्थिति की चूक के कारण खारिज कर दी गई, तो उसे आदेश 9 नियम 9 के अधीन पुनःस्थापित किया जा सकता है। परन्तु इसके लिए स्वयं याची ही आवेदन कर सकता है, अन्य व्यक्ति नहीं।

    जब एक विभाजन वाद को वापस लेने पर खारिज कर दिया गया, तो यह वादी की अनुपस्थिति के कारण खारिज नहीं किया गया। अतः यहां आदेश 9 नियम 9 लागू नहीं होता। ऐसा आदेश अपीलनीय नहीं है।

    सिविल कार्यवाही- अनुपस्थिति के कारण वाद को खारिज कर दिया गया। इस पर वादी ने पुनःस्थापन का आवेदन किया। इसके साथ मृतक के विधिक प्रतिनिधि को पक्षकार बनाने का आवेदन किया, जो चलने योग्य माना गया, क्योंकि आदेश 9 के अधीन की कार्यवाही सिविल कार्यवाही है, जिसमें वादों के लिए लागू संहिता की प्रक्रिया लागू होगी।

    विभाजन-वाद को वापस लेने पर एक विभाजन-

    वाद को वादी द्वारा वापस लेने पर खारिज कर दिया गया। इस पर प्रतिवादी ने आदेश 9, नियम 9 तथा आदेश 9, नियम 13 के अधीन आवेदन पेश किया, जिसे अक्षम (नहीं चलने योग्य) मानकर खारिज कर दिया गया, क्योंकि यह वाद वादी की अनुपस्थिति के कारण खारिज नहीं किया गया था, अतः आदेश 9, नियम 9 को आकर्षित नहीं होता और न ही एकपक्षीय डिक्री इसमें पारित की गई कि आदेश 9, नियम 13 आकर्षित होता। परिणामस्वरूप, आदेश 41, नियम 1, जो आदेश 9, नियम 9 के अधीन दिये गये किसी भी आदेश के विरुद्ध अपील करने का उपबंध करता है, भी लागू नहीं होगा

    वाद की खारिजी को अपास्त कराने के आवेदन की खारिजी पर प्रत्यास्थापन का आवेदन- मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की पूर्णपीठ ने निम्नलिखित प्रतिपादनाये निर्धारित की है-

    (1) जब आदेश 9, नियम 9 के अधीन दिया गया प्रथम आवेदन वादी/प्रार्थी के उपस्थित न होने पर खारिज कर दिया गया, तो आदेश 9. नियम 9 सपठित धारा 141 सिविल प्रक्रिया संहिता के अधीन दूसरा आवेदन उस प्रथम आवेदन को पुनःस्थापित करने के लिये दिया जा सकता है।

    (2) इस दूसरी कार्यवाही में सफल होने के लिए, प्रार्थी को न्यायालय का यह समाधान करना होगा कि जब प्रथम आवेदन सुनवाई पर आया, वह किसी पर्याभ कारण से उपस्थित होने से प्रवारित हो गया था।

    (3) प्रथम आवेदन को अनुपस्थिति के कारण खारिज करने का आदेश संहिता के आदेश 43 के नियम 1 के खण्ड (ग) के अधीन अपील योग्य है।

    (4) उपरोक्त दोनों उपचार समवर्ती (साथ-साथ चलने योग्य) है। इनका साथ-साथ सहारा लिया जा सकता है। इनमें से कोई दूसरे को प्रवारित नहीं करता है।

    इस प्रकार वाद की खारिजी के लिए दो उपचार उपलब्ध है- (1) आदेश 9, नियम 9 के अधीन आवेदन और (2) आदेश 43 नियम 1(ग) के अधीन अपील।

    (5) जब अपील (दूसरे उपचार) का निर्णय, इस ओर या उस ओर, हो जाता है, तो अनुपस्थिति के कारण खारिजी का आदेश जिसकी अपील की गई थी, अपीली-न्यायालय के आदेश में विलीन हो जाता है, और इसके बाद आदेश 9, नियम 9 का दूसरा आवेदन बेकार हो जाता है।

    (6) जब अपीली-न्यायालय के यह ध्यान में आता है कि आदेश 9, नियम 9 के अधीन एक आवेदन भी पुनःस्थापन के लिए किया गया है, तो अपीली-न्यायालय उस अपील की सुनवाई तब तक के लिए स्थगित कर सकता है, जब तक आदेश 9, नियम 9 के अधीन आवेदन का निर्णय नहीं हो जाता।

    (7) प्रथम आवेदन को पुनःस्थापित करने के लिए दिए गए दूसरे आवेदन को निरस्त (नामंजूर) कर देने पर कोई अपील नहीं होगी।

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