सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 52: आदेश 9 नियम 8 के प्रावधान
Shadab Salim
25 Dec 2023 2:00 PM IST
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 9 पक्षकारों के अदालत में उपस्थित होने एवं नहीं होने के संबंध में प्रावधान निश्चित करता है। आदेश 9 का नियम 8 केवल प्रतिवादी के उपस्थित होने के संबंध में प्रावधान करता है। यदि किसी वाद में केवल प्रतिवादी उपस्थित होता है तब न्यायालय क्या उपचार कर सकता है यह इस नियम में स्पष्ट किया गया है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 8 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।
नियम-8 जहाँ केवल प्रतिवादी उपसंजात होता है वहाँ प्रक्रिया- जहाँ वाद की सुनवाई के लिए पुकार होने पर प्रतिवादी उपसंजात होता है और वादी उपसंजात नहीं होता है वहाँ न्यायालय यह आदेश करेगा कि वाद को खारिज किया जाए। किन्तु यदि प्रतिवादी दावे या उसके भाग को स्वीकार कर लेता है तो न्यायालय ऐसी स्वीकृति पर प्रतिवादी के विरुद्ध डिक्री पारित करेगा और जहाँ दावे का केवल भाग ही स्वीकार किया गया हों वहाँ वह वाद को वहाँ तक खारिज करेगा जहाँ तक उसका सम्बन्ध अवशिष्ट दावे से है।
इस नियम में उस समय वाद को खारिज करने या आंशिक रूप से डिक्री देने का उपबन्ध किया गया है, जब प्रतिवादी उपस्थित है, परन्तु वादी उपस्थित नहीं है।
जब वादी अनुपस्थित है और प्रतिवादी उपस्थित है, वाद की सुनवाई का दिन नियत है और सुनवाई की पुकार हुई है तो-
(1) वाद खारिज कर दिया जावेगा। या- (2) प्रतिवादी ने दावे को पूरा या उसके भाग को स्वीकार कर लिया हो, तो उस स्वीकृति के आधार पर डिक्री पारित करेगा-या- (3) प्रतिवादी ने दावे का एक भाग ही स्वीकार किया हो, तो उस वाद को बाकी (अवशिष्ट) दावे की सीमा तक खारिज करेगा।
इस प्रकार इस नियम के अधीन प्रतिवादी द्वारा दावे को पूरा या उसके भाग को स्वीकार कर लेने पर आंशिक डिक्री और आंशिक खारिजी का आदेश दिया जाएगा।
आदेश 9. नियम 8 केवल तभी लागू होता है, जब सुनवाई की दिनांक निश्चित कर दी जाती है। एक वाद को सुनवाई के लिए तभी लगाया जा सकता है, जब सभी प्रतिवादियों पर समन की तामील के बारे में न्यायालय का समाधान हो जाता है या डाक को रसीदें प्राप्त हो जाती है।
एक वाद में, कुछ प्रतिवादियों को दिये गये नोटिस की डाक-रसीदें प्राप्त नहीं हुई थी, फिर भी वाद में विवाद्यक तय करने के लिए पेशी लगा दी गई। आदेश 5 नियम 19क (2) के परन्तुक के अधीन कोई घोषणा नहीं की गई। निर्धारित किया कि ऐसे मामलों में यदि वादी उपस्थित नहीं होता है, तो वाद को आदेश 9, नियम 8 के अधीन खारिज नहीं किया जा सकता।
नियम तब लागू होता है-
(1) जब प्रतिवादी उपस्थित होता है, परन्तु-
(ii) वादी उपस्थित नहीं होता।
इस नियम के अधीन प्रतिवादी वादी के वाद को खारिज करवाने के लिए अधिकृत है, परन्तु यह कोई साक्ष्य नहीं बुला सकता, चाहे वह कपट आदि के आरोपों को नासाबित करने के लिए ही क्यों न हो, जिनको वादपत्र में उसके विरुद्ध लगाया गया है। यह नियम वादी की मृत्यु या उसके दीवालिया हो जाने के कारण से उसकी अनुपस्थिति के मामलों में लागू नहीं होता। नियम 8 के अधीन किसी वाद को खारिज कर देने पर उसका उपचार नियम 9 में दिया गया है।
इस नियम के अधीन दिये गये वाद को खारिज करने का आदेश डिक्री नहीं है। अतः इसकी अपील नही होगी। उचित मामलों में ऐसे आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अनुच्छेद 227 के अन्तर्गत याचिका प्रस्तुत की जा सकती है।
नियम 8 तथा नियम 3 में अन्तर-
वादी अनुपस्थित रहा, पर प्रतिवादी के आवेदन पर कोई आदेश नहीं दिया गया और वाद को खारिज कर दिया गया क्योंकि वादी अनुपस्थित था। यह खारिज करने का आदेश नियम 3 के अधीन नहीं है, वरन् नियम 8 के अधीन है। क्योंकि यहाँ दोनों पक्षकार अनुपस्थित नहीं है।
आदेश में केवल वादी की अनुपस्थिति का उल्लेख करने से वह आदेश 9 नियम 3 के अधीन आदेश होने से वंचित नहीं होता और नियम 8 के अधीन आदेश नहीं हो जाएगा। जहाँ विचारण-न्यायालय ने अपने आदेश में वाद को खारिज करते हुए केवल वादी की अनुपस्थिति का उल्लेख किया, परन्तु प्रतिवादी को अनुपस्थिति का नहीं, तो ऐसे आदेश को आदेश 9 नियम 3 के अधीन मानना होगा, न कि नियम 8 के अधीन जिसको शर्तें स्वीकृत रूप में पूरी नहीं हुई है।
फिर आदेश 9 नियम 3 (नियम 8 के विपरीत) दोनों पक्षकारों की अनुपस्थिति अभिलिखित करने को समान शर्त नहीं बताता है। इस प्रकार न्यायालय पूरे वाद को खारिज नहीं कर सकता और अपनी अनुपस्थिति के लिए केवल वादी को दण्डित नहीं कर सकता। प्रक्रिया के नियमों का उपचार को बढ़ाने के लिए, न कि असफल बनाने के लिए, अर्थन्वयन किया जावेगा। एक वाद को वापस लेने पर उसे खारिज किया गया, तो वह आदेश 9, नियम 8 के समान धरातल पर खड़ा माना गया है।
जहाँ कोई वाद वादी की नियत दिनांक को अनुपस्थिति के कारण खारिज किया जाता है और उस दिनांक को सुनवाई न होकर अन्तर्वर्तीय मामले पर विचारण किया जाना था, तो यह नियम लागू नहीं होगा।
एक प्रतिवादी के विरुद्ध एकपक्षीय डिक्री जब संभव नहीं- एक मामले में कई प्रतिवादियों में से एक अनुपस्थित रहा और दूसरों ने उस पर प्रतिरक्षा की। वादी के अनुपस्थित रहने से उस वाद को नियम 8 के अधीन खारिज कर दिया गया। वादी ने उस अनुपस्थित प्रतिवादी के विरुद्ध एकपक्षीय डिक्री की माँग की, जिसे अस्वीकार कर दिया, क्योंकि उस प्रतिवादी के अनुपस्थित रहने से यह नहीं माना जा सकता कि उसने दावे को स्वीकार कर लिया था।
प्रमाण के अभाव में वाद को खारिज करने का प्रभाव -
एक प्रकरण में वाद में वादी की साक्ष्य का दिनांक तय किया गया, उस दिन केवल वादी का वकील उपस्थित हुआ, परन्तु उसने कार्यवाही में भाग नहीं लिया, तो वाद को प्रमाण के अभाव में खारिज कर दिया गया। यह अनुपस्थिति के कारण खारिज किया गया था, अतः प्रत्यास्थापन का आवेदन चलने योग्य है।
गवाह की अनुपस्थिति पर खारिज नहीं-वादी के गवाह की अनुपस्थिति आदेश 9 नियम 8 के अधीन वाद को खारिज करने का कोई आधार नहीं हो सकता।
सुनवाई के लिए तय पेशी पर वादी की अनुपस्थिति का प्रभाव -वादी निश्चित तारीख की पेशी पर नहीं आया। प्रतिवादी वादी के दावे को पूर्णतः भागतः स्वीकार नहीं करता। ऐसी स्थिति आदेश 9. नियम 8 के अधीन वाद को खारिज करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। येनकेन, सद्भावी व युक्तियुक कारण बताने पर एकपक्षीय आदेश को न्यायालय वापस ले सकता है।
किसी प्रकरण की पोषणीयता पर वादी की अनुपस्थिति में केवल प्रतिवादी को सुनकर पारित किया गया आदेश, आदेश 9 नियम 8 के अन्तर्गत पारित किया गया माना जायेगा। ऐसी स्थिति में वादपत्र वादी की चूक के कारण खारिज हुआ माना जायेगा। आदेश 9 नियम 8 में पारित आदेश डिक्री की परिभाषा में नहीं आता एवं ऐसे आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अनुच्छेद 227 के अन्तर्गत रिट याचिका पेश की जा सकती, हैं, अपील नहीं।
आदेश 9, नियम 8 का प्रयोग-मोटरयान दुर्घटना दावा- मोटर दुर्घटना के लिए प्रतिकर के लिए आवेदन किया। जहाँ दावेदार अपने दावों की पैरवी करने में हितबद्ध हो नहीं हो, तो दावाधिकरण व्यतिक्रम के कारण उस आवेदन को आदेश १, नियम 8 का प्रयोग कर समुचित मामलों में खारिज कर सकता है। ऐसे आदेश के विरुद्ध अपील संधारणीय नहीं है।