सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 35: वादपत्र में वाद मूल्यांकन एवं न्याय शुल्क संबंधित अभिवचन

Shadab Salim

15 Dec 2023 10:40 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 35: वादपत्र में वाद मूल्यांकन एवं न्याय शुल्क संबंधित अभिवचन

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 7 वादपत्र है। आदेश 7 यह स्पष्ट करता है कि एक वादपत्र किस प्रकार से होगा क्या क्या चीज़े वादपत्र का हिस्सा होगी। आदेश 7 के अंतर्गत बनने वाले वादपत्र में वाद मूल्यांकन एवं न्याय शुल्क संबंधित कथन भी करने होते हैं। इस आलेख में वादपत्र पर न्याय शुल्क से संबंधित अभिवचन पर चर्चा की जा रही है।

    वाद-मूल्यांकन और न्यायालय-शुल्क सम्बन्धी कथन का इस नियम के अनुसार अधिकारिता के और न्यायालय फीस के प्रयोजनों के लिए वाद की विषय-वस्तु के मूल्य ऐसा कथन वाद पत्र में सम्मिलित किया जायेगा।

    वाद मूल्यांकन तथा न्यायालय शुल्क संबंधी अलग अलग राज्य के अलग अलग अधिनियम हैं। ऐसे अभिवचन में उन अधिनियमों का ध्यान रखना होता है।

    आज्ञापक उपबन्ध-वाद मूल्यांकन का कथन करने का उपबन्ध आज्ञापक है और इसका पालन न करने से वाद-पत्र नियम 10 के अधीन वापस लौटाया जाना चाहिए।

    न्यायालय-शुल्क की संगणना का आधार वाद-पत्र में दिया गया अधिकथन ही इसके लिए केवल आधार होगा। अतः वाद पत्र में दिये गए समस्त तात्विक अधिकथनों का एक साथ समावेश कर उनका नैसर्गिक अर्थ लगाना चाहिए।

    एक मामले में संयुक्त हिन्दू कुटुम्ब की सम्पत्तियों के विभाजन व पृथक् कब्जे के लिए वाद- संयुक्त सम्पत्ति में हिस्से के लिए वादीगण हकदार थे और वादियों को अविभक्त कुटुम्ब से अलग किये जाने के बारे में वादपत्र में कोई स्पष्ट प्रकथन नहीं था। वादपत्र में यह प्रकथन कि वादियों का संयुक्त कब्जा इसलिए नहीं रह सका कि उन्हें संयुक्त सम्पत्ति में से कोई आय नहीं दी गई, उन्हें अलग किये जाने की कोटि में नहीं आता। अतः वादी धारा 37 (1) तमिलनाडु कोर्ट फीस एण्ड सूटवेलूएशन एक्ट के अधीन न्यायालय फीस देने के लिए दायी नहीं है।

    न्यायालय की शक्तियां सीमित वादी द्वारा किये गये वाद मूल्यांकन में न्यायालय की सामान्य शक्तियां न्यायालय फीस अधिनियन, 1870 की पारा 7 (iv) (ग) में दिये गये विशेष विधिक उपबंध के द्वारा संशोधित हो गई हैं, जिसके अनुसार वाद-पत्र में या अपील के ज्ञापन में चाहे गये अनुतोष के अनुसार मूल्यांकन किया जाता है। इस प्रकार वादपत्र में जो अनुतोष मांगे गये हैं, उनके आधार पर किये गये मूल्यांकन को न्यायालय स्वीकार कर लेते हैं।

    वादमूल्यांकन में न्यायालय के निर्देश देने की सीमा- लेखाओं के लिये वाद में जहां अधिकारिता के प्रयोजन के लिये वादपत्र में मूल्यांकन नहीं दिया गया हो, तो न्यायालय जो कुछ कर सकता है वह यह है कि यह वादी को मूल्यांकन देने का निर्देश दे, परन्तु न्यायालय वादी को ऐसा निर्देश नहीं दे सकता कि यह विशिष्ट राशि पर मूल्यांकन करे। लेखाओं के वाद में वादी को अपने स्वयं के मूल्यांकन का कथन करना होता है। न्यायालय के ऐसे निर्देश के विरुद्ध पुनरीक्षण या पुनर्विलोकन फाइल किये बिना भी ऐसे मामले में उच्च न्यायालय भारत के संविधान के अनु. 227 के अधीन हस्तक्षेप कर सकता है।

    किसी भूमि या अचल सम्पत्ति के आधिपत्य के लिये किये गये वाद में प्रभावित होने वाली पूरी सम्पत्ति का मूल्यांकन वाद के लिये करना होगा। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ का निर्णय है कि भूमि के कब्जे के लिये किये गये वाद में उस भूमि पर लगे हुए बगीचे और उस पर स्थित भवनों को वाद पत्र को वापस करना वाद मूल्यांकन वाद पत्र को वापस किया जा सकता है, जब न्यायालय को स्पष्टतः अधिकारिता न हो। अधिकारिता का सामान्यतः निर्णय वादी द्वारा वाद पत्र में किए गये मूल्यांकन के आधार पर किया जाता है। प्रारम्भ में हस्तक्षेप तभी किया जावेगा, जब वह मूल्यांकन काल्पनिक या स्पष्टतया बढ़ाया हुआ हो।

    न्यायालय की आर्थिक अधिकारिता- जब वादपत्र में मूल्यांकन-खण्ड में संशोधन करने के बाद अधिक मूल्य के लिए अधिक न्यायालय फीस का भुगतान कर दिया गया, तो उस नये वाद मूल्यांकन के आधार पर न्यायालय को उस वाद-पत्र को उचित न्यायालय में प्रस्तुत करने के लिए लौटा देना होगा, जिसकी आर्थिक अधिकारिता में वह वाद आता हो।

    इस प्रकार जो मूल्यांकन न्यायालय शुल्क के लिये किया जाता है, वही मूल्यांकन वाद मूल्यांकन माना जाता है, जिसके अनुसार न्यायालय की धन सम्बन्धी अधिकारिता निश्चित होती है और न्यायालय-शुल्क के मुद्रांक (टिकिट) वाद-पत्र के ऊपर "शीर्षक" के ऊपर छोड़े गये स्थान पर चिपकाये जाते हैं।

    उदाहरण- वाद मूल्यांकन एवं न्याय शुल्क के कथन इस प्रकार होते हैं

    वाद की विषय वस्तु का मूल्य अधिकारिता के प्रयोजन के लिये रु. 10,000/- अक्षरे रुपये तीन हजार है और न्यायालय फीस के प्रयोजन के लिये रु. 10,000/- अक्षरी रुपये तीन हजार हैं।

    यह कि न्यायालय शुल्क और अधिकारिता के प्रयोजनार्थ वाद मूल्य रु..... है। अतः न्यायालय को अधिकारिता है।

    वाद की विषय वस्तु का मूल्य अधिकारिता के प्रयोजन के लिये रु..... है, जिस पर रु..... न्यायालय-शुल्क का संदाय कर दिया गया है।

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