सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 17: आदेश 6 नियम 2 व 3 के अंतर्गत तात्विक तथ्य किसे कहा गया है
Shadab Salim
4 Dec 2023 10:20 AM IST
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 6 अभिवचन से संबंधित है। इस आदेश का नियम 2 अत्यधिक महत्वपूर्ण है जो कि अभिवचन के साधारण नियमों को स्पष्ट कर देता है। इस नियम में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जिसे तात्विक तथ्य कहा जाता है, उसका अभिवचन में उपयोग करने हेतु संहिता द्वारा कहा गया है। इस आलेख के अंतर्गत इस ही सिद्धांत पर चर्चा की जा रही है।
तात्विक तथ्य किसे कहा जाता है-
संहिता के आदेश 6 के नियम 2 में स्पष्ट किया गया है कि अभिवचन में केवल तात्विक तथ्य दिये जायेंगे, जो सारवान हो, आवश्यक हो और जिनको सिद्ध कर देने पर पक्षकार को सफलता मिलती हो। तात्विक या सारवान् तथ्य क्या है। यह एक कठिन प्रश्न है और इसका कम शब्दों में उत्तर देना भी उतना ही कठिन है।
अभिवचन में केवल तात्विक तथ्यों को अंकित करना चाहिये। विवाद्यक भी तात्विक तथ्यों तक ही सीमित रहना चाहिये। साख्यिक तथ्यों पर विरचित विवाद्यक हटाये जाने चाहिये। सारवान् तथ्य जो वाद हेतुक गठित करते हैं, वाद पत्र में नहीं दिये गये, तो इससे वह वाद असफल होगा।
परन्तु वादहेतुक गठित करने वाले सारवान तथ्यों का अभिवचन में लोप कर देने से न्यायालय अधिकारिता से वंचित नहीं हो जाता और उसकी अधिकारिता बनी रहती है। वादहेतुक से सम्बन्धित सारवान् तथ्य वे तथ्य हैं, जिनके बिना बादी डिक्री प्राप्त नहीं कर सकता।
तात्विक तथ्य न देना और तात्विक तथ्यों को पूर्णयता न देना इनमें भित्रता है। जब किसी पक्षकार ने तात्विक तथ्य बिल्कुल ही नहीं दिये हों, तब उसे नये सिरे से ऐसे तथ्य देने का कोई अधिकार ही नहीं होता, परन्तु अपूर्ण तथ्य देने पर वह उन्हें पूर्ण कर सकता है। कौन से तथ्य किसी वाद के लिये तात्विक हैं, यह उस वाद की परिस्थितियों पर निर्भर करता है। पक्षकार अपने पक्ष को सिद्ध करने के लिये जो तथ्य रखना चाहे, वे सभी तात्विक हैं। इस प्रकार तात्विक तथ्य केवल वाद हेतुक गठित करने वाले तथ्यों तक ही सीमित नहीं है, वरन् जिन तथ्यों को कोई पक्षकार विचारण के समय सिद्ध करना चाहे, वे सभी तात्विक तथ्य होगे।
तात्विक तथ्य शब्द से पता चलता है कि पूर्ण वादहेतुक बनाने के लिये आवश्यक तथ्यों का उल्लेख किया जाना चाहिये। एक भी तात्विक तथ्य के लोप से वाद हेतुक अपूर्ण हो जाता है और कथन या वाद पत्र दोष पूर्ण हो जाता है। अपूर्ण अभिकथन के कारण ऐसे आरोप आदेश 1 नियन 16 के अधीन रद्द किये जाने योग्य होते हैं। जब पिटीशन में सारवान् (तात्विक) तथ्यों का अभाव हो तो न्यायालय को यह विवेकाधिकार है कि वह पिटीशनर को परिसीमा के अवसान (समाप्ति) के पश्चात भी अपेक्षित विशिष्टियाँ देने की इजाजत दे। जो प्राथमिक तथ्य किसी वादहेतुक या प्रतिरक्षा के अस्तित्व को साबित करने के लिये किसी पक्षकार द्वारा विचारण में साबित किये जाने हैं। वे सभी सारवान (तात्विक) तथ्य हैं। विशिष्टियों और तात्विक तथ्यों में अन्तर है। विशिष्टियों तात्विक तथ्यों को पूरित करती हैं, परन्तु वे स्वयं में तात्विक तथ्य नहीं कहीं जा सकती। वाद हेतुक गठन करने वाले सभी संघटक (शर्तें) देना आवश्यक है, उनके बिना वादहेतुक नहीं बनता और वाद चलने योग्य नहीं होता।
सारवान तथ्य ऐसे तथ्य हैं जिनके साबित हो जाने पर पिटीशनर को वह अनुतोष प्राप्त हो जाएगा जिसको मांग की थी। यदि प्रत्यर्थी पेश न होता, तो क्या न्यायालय निर्वाचन पिटीशनर के पक्ष में मामले का फैसला कर सकता था। हालांकि हमारे न्यायालयों में अभिवचनों का उदारता से अर्थ लगाया जाता है, ताकि वाद में प्रत्येक प्रश्न उठाने और उस पर विचार-विमर्श करने को अनुमति दी जा सके, परन्तु एक वादी ऐसे तथ्यों और दस्तावेजों पर अनुतोष (सहायता) पाने का हकदार नहीं है, जिनका अभिवचन में न तो कोई कथन है और न ही कोई प्रसंग।
तात्विक तथ्यों के कधन के अभाव में वादहेतुक हो उत्पन्न नहीं होता-वादी एक संविदा के आधार पर सरकार के विरुद्ध वाद लाना चाहता है। आदेश 6 का नियम 2 तात्विक तथ्यों के कथन को मांग करता है। ऐसे तथ्यों का उल्लेख नहीं करने से न तो अभिवचन किया गया, न वादहेतुक हो उत्पन्न हुआ। यह सुझाव गलत है कि वादपत्र को धारा 80 के नोटिस के साथ पढ़ा जाना चाहिये। केवल धुंधले और अनिश्चित अधिकथन राज्य के कर्मचारियों के कार्यों के अनुचित होने के बारे में बिना किसी विवरण के दिये गये, जिनको काट दिया गया। कोई संव्यवहार (लेन-देन) शून्य है या शून्यकरणीय है, इसे प्रदर्शित करने वाली सामग्री अभिवचन में देनी होगी। जब कोई कथन प्रतिरक्षा में नहीं लिया गया, तो उस पर दो गई साक्ष्य पर विचार नहीं किया जा सकता।
तथ्यों का स्वरूप और भेद-
समस्त अधिकार और दायित्व तथ्यों पर ही आश्रित होते हैं और उन्हीं से उद्भूत (उत्पन्न) होते हैं। साक्ष्य उन्हीं तथ्यों पर लिया जाता है, जो विवादग्रस्त हैं। ऐसे तथ्यों को साक्ष्य अधिनियम की भाषा में 'विवाद्यक तथ्य' (fact in issue) कहा जाएगा और सिविल प्रक्रिया संहिता को भाषा में 'तथ्य विवाद्यक' (issue facts)। इस प्रकार के ऐसे तथ्य होते हैं जिनसे कोई विधिक अधिकार, दायित्व या निर्योग्यता अवश्य हो उत्पन्न होते हैं और जिनके अनुसार हो किसी विनिश्चय या निर्णय पर पहुँचा जा सकता है। इस प्रकार किसी मामले के निर्णायक तथ्य (अर्थात् जिन पर किसी वाद का निर्णय निर्भर रहता है) तात्विक या सारवान तव्य होते हैं।
तात्विक तथ्यों में से अनुतोष (सहायता) की मांग भी एक तात्विक तथ्य है। किन्तु एक प्रतिवादी को वाद में दी गई प्रार्थना या ऐसे मामले, जो केवल खर्च को प्रभावित करते हैं, अधिकथित करने की आवश्यकता नहीं है। वादी ने जो कुछ अधिकथित किया है और अभिवचन में उसे सम्मिलित किया है, केवल उसी के आधार पर वह सफल हो सकता है। वह केवल उन्हीं तात्विक तथ्यों से सम्बन्धित साक्ष्य दे सकता है, जिनको उसने अभिवचन में दिया है। अन्य साक्ष्य देने के लिये उसे न्यायालय की अनुमति लेकर अपने अभिवचनों में आदेश 6, नियम 17 के अधीन संशोधन करना होगा, जो खर्चे देने से महंगा पड़ेगा। यह विचारणीय बात है। अतः ऐसी परिस्थितियों में यह एक मूल्यवान सुझाव होगा कि यदि किसी तथ्य के तात्विक होने या न होने के बारे में आपको संदेह हो, तो ऐसे तथ्य को अभिवचन में दे देना ही अच्छा होगा; ताकि उसके तात्विक होने पर कोई संशोधन नहीं करना पड़े।
आवश्यक एवं तात्विक तथ्य, जो अभिवचन में दिये जाने चाहिये-अपमानलेख या अपमान वचन के वाद में उनमें निश्चितता के साथ वास्तव में प्रयोग किये शब्दों को वादपत्र में देना आवश्यक है। इसी प्रकार सार्वजनिक रास्ता रोकने के वाद में यह कथन आवश्यक है कि प्रतिवादी ने मार्गाधिकार को रोका है। व्यादेश (स्थानादेश) के बाद में विधि की इस अध्यपेक्षा का कथन करना चाहिए कि प्रतिवादी अपने कार्य को दोहराना चाहता है और इसके लिये धमकियां दे रहा है। इसी प्रकार किसी अधिनियम में चाहे गये तथ्यों सम्बन्धी सभी तथ्य देने चाहिए, जिनसे वे शर्तें पूरी होने पर पक्षकारों का कोई अधिकार या कर्तव्य उत्पन्न होता हो।
क्षतिपूर्ति (नुकसानी) के लिये अभिवचन-
साधारण क्षतिपूर्ति को अभिवचन करने और उसे सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है, परन्तु विशेष क्षतिपूर्ति को विशेष रूप से अभिवचन में बताना और सिद्ध करना होगा। क्षतिपूर्ति की राशि की मात्रा का निर्धारण एक तथ्य का प्रश्न है, जो न्यायालय के विवेकाधिकार पर निर्भर है। अतः जब तक कि वह पूर्णतः गलत नहीं हो, अपील न्यायालय उसमें हस्तक्षेप नहीं करता है।
इस प्रकार क्षतिपूर्ति (नुकसानी) दो प्रकार की होती है- (1) साधारण, जिसका अभिवचन करने की कोई आवश्यकता नहीं है, और (2) विशेष नुकसानी, जिसे अभिवचन में कहना होगा और साक्ष्य से साबित करना होगा।
नुकसानी को बढ़ाने वाले तथ्यों का भी अभिवचन करना चाहिए, उसी प्रकार नुकसानी को कम करने वाले तथ्यों को भी प्रतिवाद-पत्र में दिया जाना चाहिए। ऐसे तथ्यों से नुकसानी की मात्रा पर प्रभाव पड़ता है, जिस पर न्यायालय का विचार करना होता है। इस प्रकार नुकसानी को प्रभावित करने वाले सभी तथ्य तात्विक तथ्य हैं, जिनको अभिवचन में सम्मिलित करना आवश्यक है।
आदेश 7 नियम 1 में वे तथ्य जिनसे वादहेतुक गठित है का उल्लेख है, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि आदेश 6 नियम 2 के अनुसार केवल वाद हेतुक गठित करने वाले तथ्य ही 'तात्विक तथ्य' हैं। दूसरे आवश्यक तथ्य भी तात्विक होते हैं, जैसा कि पीछे में सम्मिलित करना होगा। बताया गया है; जिनको वाद की सफलता के लिए आवश्यक होने से अभिवचन नुकसानी (हानि) का दावे में अभिवचन करना आवश्यक-विनिर्दिष्ट नुकसानी, जो परीक्षा की कापियों का गलत मूल्यांकन करने से हुई, उनका न तो अभिवचन किया, न उनको स्थापित (साबित) किया, तो नुकसानी नहीं दी जा सकती।
अभिवचन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये वादी को अपने वादपत्र में उन सभी तथ्यों का कथन करना चाहिये, जो उस के वाद हेतुक (वाद कारण) की संरचना करते हो। यह अभिकथन करना पर्याप्त नहीं होगा कि यदि ऐसी कोई बात उसमें जोड़ दी जाय, जो वादपत्र में नहीं है, तो उसका कार्यवाही में क्या आधार होगा? इस प्रकार अभिवचन के सही सिद्धान्तों के आधार पर जो वाद हेतुक है उसी का अभिकथन करना आवश्यक है, न कि सम्भावित वाद हेतुक का।
अतः भविष्य की सम्भावनाओं की कल्पना वादपत्र में नहीं की जानी चाहिये। अभिवचन में केवल तात्विक तथ्य देने होते हैं और ऐसे भावी या पूर्वकल्पित तथ्य वर्तमान में तात्विक नहीं होते।
उदाहरणार्थ - अपमान लेख के वाद में वादी जिन शब्दों से अपमान होने का उल्लेख करता है, उनसे इन्कार करते हुए यह बताना उचित नहीं है कि प्रतिवादी ने दूसरे शब्द कहे थे, जो विधि के अनुसार उचित थे।
निर्वाचन याचिका (वादपत्र) में उन तात्विक तथ्यों का संक्षिप्त कथन अन्तर्विष्ट होगा जिन पर अर्जीदार (वादी) निर्भर करता है। उसके दावे के कथन का यह कोई अंग नहीं है कि यह प्रतिरक्षा का अनुमान लगाये और ऐसा कथन करे कि जो कि वह उसके उत्तर में कहता।
इसी प्रकार प्रतिवादी को अपने प्रतिवाद पत्र में उन तात्विक तथ्यों को कहना चाहिये, जिन पर वह अपने बचाव के लिये निर्भर करता है। जब दोनों पक्षों के अभिवचनों का परिणाम यह होता हो, कि किसी तात्विक तथ्य का एक पक्ष पुष्ट करता है और दूसरा उसका प्रत्याख्यान (अस्वीकार) करता है, तो जो प्रश्न उत्पन्न होता है, उसे "तथ्य का विवाद्यक" कहते हैं। परन्तु जब एक पक्षकार अपने विपक्षी के अभिवचन पर विधि के बिंदु की आपत्ति करता है, तो इससे उत्पन्न विधिक-प्रश्न को विधि का विवाद्यक कहते हैं। अतः विवाधक (वाद प्रश्न) उत्पन्न करने वाले सभी तथ्य तात्विक तथ्य होते हैं।