सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 162: आदेश 29 नियम 1 के प्रावधान

Shadab Salim

29 March 2024 2:14 PM IST

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 162: आदेश 29 नियम 1 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 29 निगमों द्वारा या उनके विरुद्ध वाद है। इस आदेश के अंतर्गत यह स्पष्ट किया गया है कि किसी निगम के विरुद्ध वाद कैसे लाया जाएगा एवं कोई निगम किस प्रकार वाद ला सकता है। चूंकि निगम भी एक अप्राकृतिक व्यक्ति ही है एवं उसके भी किसी व्यक्ति की तरह अधिकार दायित्व होते हैं। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 29 के नियम 1 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम-1 अभिवचन पर हस्ताक्षर किया जाना और उसका सत्यापन - किसी निगम द्वारा या उसके विरुद्ध वादों में कोई भी अभिवचन उस निगम की ओर से उस निगम के सचिव या किसी निदेशक या अन्य प्रधान अधिकारी द्वारा, जो मामले के तथ्यों के बारे में अभिसाक्ष्य देने योग्य हो, हस्ताक्षरित और सत्यापित किया जा सकेगा।

    निगम द्वारा या उसके विरुद्ध वाद के मामले में - अभिवचन (वादपत्र या लिखित कथन) उस निगम की ओर से -

    उस निगम के किसी निदेशक, या

    उस निगम के सचिव या

    उस निगम के अन्य प्रधान अधिकारी द्वारा,

    जो मामलों के तथ्यों के बारे में अभिसाक्ष्य देने योग्य हो (क) हस्ताक्षरित और (ख) सत्यापित किया जावेगा।

    कम्पनी की ओर से वाद संस्थित (फाइल) करना नियम 1 उसमें वर्णित व्यक्तियों को कम्पनी की ओर से वाद फाइल करने के लिए अधिकृत नहीं करता, ऐसा वाद कम्पनी के बोर्ड द्वारा वाद फाइल करने के लिए विशेषरूप से सशक्त किए गए निदेशक (डाइरेक्टर) द्वारा ही फाइल किया जा सकता है।

    बैंक द्वारा भागीदारी फर्म के विरुद्ध वाद संस्थित करना बैंक के निदेशक-मण्डल ने प्रस्ताव पारित कर बैंक के व्यवस्थापक को वाद संस्थित करने के लिए प्राधिकृत किया। एक वाद में निदेशक ने प्रबन्धक के पक्ष में अधिकार-पत्र (पावर आफ अटार्नी) निष्पादित किया। व्यवस्थापक उस अवधि में एक मुख्य अधिकारी था। उसके द्वारा संस्थित वाद सक्षम व्यक्ति द्वारा संस्थित वाद है।

    निगम का अर्थ और उसका विस्तार- निगम शब्द का अर्थ वही माना गया है, जो कम्पनी अधिनियम की धारा 34 में दिया गया है। जब कोई कम्पनी, कम्पनी अधिनियम को धारा 34 के अधीन रजिस्ट्रीकृत (पंजीकृत) कर ली जाती है, तो यह निगम मानी जाती है। एक समिति (सोसायटी) जो सोसायटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट के अधीन रजिस्ट्रीकृत है, विधि में निगमवत् स्वरूप धारण कर लेती है और उसके नाम से वाद ला सकती है या उसके विरुद्ध वाद लाया जा सकता है, धारा 6 से यह अधिकार प्रभावित नहीं होता।

    कलकत्ता नगर निगम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और नगर आयोजक के विरुद्ध उनके शासकीय पदनाम से वाद चलने योग्य नहीं है, क्योंकि ये कानून के अधीन निगम नहीं है। किसी बैंक का अभिकर्ता (एजेन्ट) प्रधान अधिकारी है, जो वादपत्र पर हस्ताक्षर करने और उसका सत्यापन करने के लिए सक्षम है। पक्षकार के रूप में निगम के संयोजन के अभाव में निगम के अधिकारी को पक्षकार बनाकर निगम के विरुद्ध निर्णय पारित नहीं किया जा सकता।

    नियम 1 अनुज्ञात्मक (Permissive) - यह नियम अनुज्ञात्मक है, न कि आज्ञापक। एक कम्पनी द्वारा वाद में वादपत्र का उस कम्पनी के सचिव या निदेशक अन्य प्रधान अधिकारी द्वारा, जो तथ्यों का कथन कर सकता है, हस्ताक्षरित किया जावेगा, परन्तु यह आदेश 6 नियम 14 को प्रवारित (अलग) नहीं करता है और जहाँ कम्पनी स्वयं हस्ताक्षर न कर सके, तो उसकी ओर से प्राधिकृत कोई व्यक्ति उसकी ओर से वादपत्र पर हस्ताक्षर कर सकेगा।

    विदेशी निगमों पर नियम लागू - विदेशी निगम के मामलों में भी यह नियम लागू होता है और वे इसका लाभ उठा सकते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में रजिस्ट्रीकृत सिंगर मैन्युफेक्चरिंग कम्पनी को और से उसके वादपत्र पर उसका प्राधिकृत एजेन्ट मुख्तारनामे के आधार पर वादपत्र पर हस्ताक्षर कर सकता है।

    शब्द प्रधान अधिकारी का अर्थ-यदि इस शब्द का अर्थ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अधिकारी से लिया जाता है, जो निगम में एक से अधिक अधिकारी आवेदन पर हस्ताक्षर कर सकेंगे। आदेश 29, नियम 1 को राज्य वित्त निगम अधिनियम की धारा 31 के साथ सामंजस्यपूर्वक पढ़ने पर यह प्रकट होता है कि-कोई अधिकारी सामान्य रूप से या विशेष रूप से इस सम्बन्ध में मण्डल (बोर्ड) द्वारा प्राधिकृत किया जाने पर आदेश 29 के प्रयोजनार्थ प्रधान अधिकारी माना जा सकेगा।

    जब किसी वादी की ओर से वादपत्र पर हस्ताक्षर और उसका सत्यापन करने के लिए कोई अभिकर्ता नियुक्त किया जाता है और उसको बाबत न्यायालय के समाधानपर्यन्त यह साबित हो जाता है कि वह मामले के तथ्यों से भलीभांति परिचित है तो ऐसा व्यक्ति आदेश 29 के नियम 1 के अर्थान्तर्गत प्रधान अधिकारी होगा और उसके द्वारा वादपत्र पर किया गया हस्ताक्षर और सत्यापन विधिमान्य होगा। जब कम्पनी द्वारा किसी व्यक्ति को वाद आदि संस्थित करने की शक्ति दी गई है, तो उस शक्ति में अपील फाइल करने की शक्ति भी सम्मिलित है, क्योंकि अपील किसी वाद का निरस्तीकरण है।

    प्रधान अधिकारी शब्द में सचिव सम्मिलित है, जिसको सामान्य मुख्यातरनामा दिया गया है, चाहे कम्पनी के विधान-पत्र (आर्टिकल आफ एशोसिएशन) में वाद फाइल करने से पहले निदेशक से अनुमति प्राप्त करना चाहा गया हो। आदेश 29, नियम 1 के अनुसार निगम के केवल सचिव, निदेशक या अन्य प्रधान अधिकारी, जो तथ्यों का कथन कर सकते हैं, को ही वादपत्र पर हस्ताक्षर करने की शक्ति है। खाद्य निगम के जिला प्रबंधक सक्षम नहीं है, क्योंकि आदेश 29, नियम 1 कहीं भी ऐसे एक अधिकारी को निगम की ओर से मामले का संचालन करने के लिए सशक्त नहीं करता।

    वाद पत्र का सत्यापन बैंक द्वारा धन वसूली के वाद में क्षेत्रीय व्यवस्थापक ने उस शाखा के मुख्य अधिकारी के रूप में वादपत्र पर हस्ताक्षर कर उसे सत्यापित किया। उसके प्राधिकार को किसी उचित व विश्वस्त साक्ष्य के द्वारा चुनौती नहीं दी गई। अतः सबूत और पावर आफ अटार्नी के अभाव में भी वाद को खारिज नहीं किया जा सकता।

    प्रतिनिधि वाद- वादी कम्पनी द्वारा धन की वसूली के लिए वाद उस व्यक्ति द्वारा संस्थित किया गया, जो कम्पनी के निदेशक मण्डल द्वारा संस्थित करने और उसे सत्यापित करने के लिए प्राधिकृत किया गया था। अभिनिर्धारित कि-वाद सक्षम व्यक्ति द्वारा उचित तरीके से संस्थित किया गया था।

    दोषी कम्पनी की बिजली काट देने पर व्यादेश नहीं-आवेदक कम्पनी के विरुद्ध भारी मात्रा में बिजली की राशि बकाया थी और उसने दण्डनीय ब्याज के विरुद्ध आदेश प्राप्त कर लिया और न्यायालय ने किश्तें बांध दी। फिर भी कम्पनी उन किश्तों का भुगतान करने में चूक करती रही। ऐसे स्थिति में बिजली की लाइन काटने के विरुद्ध व्यादेश नहीं दिया जा सकता। विद्युत मण्डल को ऐसे लगातार चूक करने वाले को विद्युत सप्लाई करने में आने वाली कठिनाइयों को अनदेखा नहीं किया जा सकता

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