सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 161: आदेश 26 नियम 19 से 22 तक के प्रावधान

Shadab Salim

27 March 2024 4:47 PM IST

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 161: आदेश 26 नियम 19 से 22 तक के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 26 कमीशन के संबंध में है। यहां सीपीसी में कमीशन का अर्थ न्यायालय के कामों को किसी अन्य व्यक्ति को देकर न्यायालय की सहायता करने जैसा है। इस आलेख के अंतर्गत इस ही आदेश 26 के नियम 19,20,21 एवं 22 पर विवेचना प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम-19 यदि किसी उच्च न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि- (क) किसी विदेश में स्थित कोई विदेशी न्यायालय अपने समक्ष की किसी कार्यवाही में किसी साक्षी का साक्ष्य अभिप्राप्त करना चाहता है, (ख) कार्यवाही सिविल प्रकृति की है, तथा

    (ग) साक्षी उस उच्च न्यायालय की अपीली अधिकारिता की सीमाओं के भीतर निवास करता है, तो नियम 20 के उपबन्धों के अधीन रहते हुए वह ऐसे साक्षी की परीक्षा करने के लिए कमीशन निकाल सकेगा।

    (2) उपनियम (1) के खण्ड (क), खण्ड (ख) और खण्ड (ग) में विनिर्दिष्ट बातों का साक्ष्य - (क) भारत में उस विदेश के उच्चतम पंक्ति वाले कौन्सलीय आफिसर द्वारा हस्ताक्षरित और केन्द्रीय सरकार की मार्फत उच्च न्यायालय को पारेषित किए गए प्रमाणपत्र के रूप में, अथवा (ख) विदेशी न्यायालय द्वारा निकाले गए और केन्द्रीय सरकार की मार्फत उच न्यायालय को पारेषित अनुरोधपत्र के रूप में, अथवा

    (ग) विदेशी न्यायालय द्वारा निकाले गए और कार्यवाही के पक्षकार द्वारा उच्च न्यायालय के समक्ष पेश किए गए अनुरोध पत्र के रूप में, हो सकेगा।

    नियम-20 कमीशन निकलवाने के लिए आवेदन उच्च न्यायालय- (क) विदेशी न्यायालय के समक्ष की कार्यवाही के पक्षकार के आवेदन पर, अथवा

    (ख) राज्य सरकार के अनुदेशों के अधीन कार्य करते हुए राज्य सरकार के विधि अधिकारी के आवेदन पर नियम 19 के अधीन कमीशन निकाल सकेगा।

    नियम-21 कमीशन किसके नाम निकाला जा सकेगा नियम 19 के अधीन कमीशन किसी भी ऐसे न्यायालय के नाम जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर साक्षी निवास करता है या जहां साक्षी उच्च न्यायालय की मामूली आरम्भिक सिविल अधिकारिता] की स्थानीय सीमाओं के भीतर निवास करता है वहां किसी ऐसे व्यक्ति के नाम जिसे न्यायालय कमीशन का निष्पादन करने के लिए ठीक समझे, निकाला जा सकेगा।

    नियम-22 कमीशन का निकाला जाना, निष्पादन और लौटाया जाना और विदेशी न्यायालय को साक्ष्य का पारेषण- इस आदेश के नियम 6, नियम 15, 97 नियम 16क के उपनियम (1), नियम 17, नियम 18 और नियम 18ख] के उपबन्ध ऐसे कमीशनों के निकाले जाने, निष्पादन या लौटाए जाने को वहां तक लागू होंगे जहां तक कि उन्हें वे लागू हो सकते हों, और जब कि ऐसा कोई कमीशन सम्यक् रूप से निष्पादित कर दिया गया हो तब वह उसके अधीन लिए गए साक्ष्य के सहित उच्च न्यायालय को लौटाया जाएगा जो उसे विदेशी न्यायालय को पारेषित करने के लिए अनुरोधपत्र सहित केन्द्रीय सरकार को अग्रेषित कर देगा।

    विदेशी न्यायालय/अधिकरण की प्रेरणा पर निकाले गए कमीशन के बारे में नियम 19 से 22 में व्यवस्था की गई है।

    विदेशी न्यायालय द्वारा भेजे गये आयोग पर कार्यवाही सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908-धारा 78 सहपठित आदेश 26 नियम 19, 20 और 21 सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 26 के नियम 19 के साथ पठित धारा 78 के अधीन उच्च न्यायालय में निहित अधिकारिता का अवलम्ब लिए जा सकने से पूर्व तीन शर्तों का पूरा किया जाना आवश्यक है और उक्त शर्तें ये हैं:-

    (i) विदेशी न्यायालय को साक्षी के साक्ष्य को अभिप्राप्त करने की इच्छा व्यक्त करनी चाहिए;

    (ii) उसके समक्ष सिविल प्रकृति की कार्यवाही होनी चाहिए, और

    (iii) साक्षी उच्च न्यायालय की अपीली अधिकारिता के अन्दर निवास कर रहा होना चाहिए।

    इन शर्तों की पूर्ति होने पर, उच्च न्यायालय का कमीशन निकालना विधिमान्य है।

    एक वाद में याची ने सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 151 के साथ पठित, आदेश 26, नियम 18, 20 और 21 के अधीन आरम्भिक प्रकीर्ण याचिका फाइल की, जिसमें यह निवेदन किया गया कि उच्च न्यायालय अनुरोध पत्र के प्रयोजन के लिए कमीशन निकाले। याची के विद्वान् काउन्सेल को सुनने के पश्चात्, इस न्यायालय ने आवेदन मंजूर किया था और सिविल प्रक्रिया संहिता तथा इस देश की अन्य विधियों के अनुसार अनुरोधपत्र निष्पादित करने के लिए एक स्थानीय आयुक्त (कमिश्नर) नियुक्त किया था। उक्त कमीशन के निष्पादित किए जा सकने से पूर्व, मध्यक्षेपी द्वारा तीन आई.ए. (अन्तरिम आवेदन) फाइल किए।

    आवेदन खारिज करते हुए, अभिनिर्धारित किया गया कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 26 नियम 19 के परिशीलन से यह दर्शित होता है कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 26 के नियम 19 के साथ पठित, धारा 78 के अधीन इस न्यायालय में निहित अधिकारिता का अवलम्ब लिए जा सकने से पूर्व तीन शर्तों का पूरा किया जाना आवश्यक है और उक्त शर्तें ये हैं:- (क) विदेशी न्यायालय को साक्षी के साक्ष्य को अभिप्राप्त करने की इच्छा व्यक्त करनी चाहिए; (ख) उसके समक्ष सिविल प्रकृति की कार्यवाही होनी चाहिए; और (ग) साक्षी उच्च न्यायालय की अपीली अधिकारिता के अन्दर निवास कर रहा होना चाहिए। इन शर्तों की पूर्ति होने पर, उच्च न्यायालय का कमीशन निकालना विधिमान्य है।

    मध्यक्षेपी को अनुरोपपत्र के अनुसरण में निष्पादन हेतु कमीशन निकाले जाने पर आक्षेप करने का कोई अधिकार प्राप्त नहीं है। मध्यक्षेपी या साक्षी, जिन्हें अनुरोपपत्र के अनुसरण में कमीशन निकाले जाने की ईप्सा की गई है, इन कार्यवाहियों के समुचित पक्षकार नहीं हैं, आवश्यक पक्षकार होने का तो प्रश्न ही नहीं है। कल्पना की किसी भी उड़ान द्वारा यह स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि उसे ऐसे आवेदन फाइल करने का और ओहियो न्यायालय के अनुरोपपत्र के अनुसरण में याची की प्रेरणा से इस न्यायालय द्वारा निकाले गए कमीशन के निष्पादन पर आक्षेप उठाने का कोई अधिकार प्राप्न है।

    उच्च न्यायालय में प्राप्त अनुरोपपत्र का इस न्यायालय को लागू होने वाली विधि के प्रकाश में ही निपटारा किया जाना चाहिए, न कि आंग्ल विधि के अनुसार। संगति के प्रश्न का विनिश्वय भारतीय विधि के अनुसार नहीं बल्कि विदेशी न्यायालय की विधि के अनुसार किया जाना है, जहां सिविल कार्यवाहियां लम्बित हैं और इस न्यायालय के लिए उक्त दस्तावेजों की संगति के प्रश्न पर न्याय निर्णय करना अधिकारिता से परे होगा।

    यह न्यायालय अनुरोधपत्र की तह में नहीं जाएगा और अनुरोपपत्र के जारी किए जाने की अधिकारिता की जांच नहीं करेगा, जिन्हें दो प्रभुतासंपन्न देशों के बीच आदान-प्रदान के कारण स्वीकार और निष्पादित किया जाना है। विधि के उपबंधों द्वारा इस न्यायालय को अनुरोपपत्र के औचित्य या संगति अथवा साक्ष्य की ग्राह्यता के इन प्रश्नों पर विचार कराने की कोई शक्ति प्रदत्त नहीं की गई है।

    संगति और ग्राह्यता के इन प्रश्नों पर अनुरोधपत्र जारी करने वाले न्यायालय द्वारा विचार किया जाना है और इस तथ्य से ही कि अनुरोधपत्र जारी किया गया है, यह विवक्षित है कि वह विदेशी न्यायालय द्वारा संगति और ग्राह्यता के प्रश्न पर विचार किए जाने के पश्चात् ही जारी किया गया है। यह न्यायालय मामले के इस पहलू पर विदेशी न्यायालय के आदेशों पर (अपीलवत्) विचार नहीं करेगा।

    विदेशी न्यायालय का आयोग यदि साक्षीगण न्यायालय की साधारण अधिकारिता के क्षेत्र में रहते हैं, जहां आयोग जारी करने के लिए आवेदन किया गया है, तो वह न्यायालय आदेश 26, नियम 21 के प्रभाव से आयोग जारी कर सकता है। उक्त उपबंध यह दर्शित नहीं करता है कि अनुरोध-पत्र के अनुसरण में जिस मध्यक्षेपी या गवाहों के लिए आयोग चाहा गया है, वे उस कार्यवाही में आवश्यक तो क्या उचित पक्षकार भी नहीं है।

    विधि के उपरोक्त उपबंध को देखते हुए यह कहना कठिन होगा कि मध्यक्षेपी द्वारा आवेदन करने का उसको वादाधिकार है। किसी भी कल्पना से यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि ओहियो-न्यायालय के अनुरोधपत्र के अनुसरण में प्रार्थी की प्रेरणा पर इस न्यायालय द्वारा आयोग के निष्पादन के उद्देश्य से कोई आवेदन देने का प्रार्थी को कोई अधिकार है।

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