सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 160: आदेश 26 नियम 16 से 18 तक के प्रावधान

Shadab Salim

27 March 2024 11:14 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 160: आदेश 26 नियम 16 से 18 तक के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 26 कमीशन के संबंध में है। यहां सीपीसी में कमीशन का अर्थ न्यायालय के कामों को किसी अन्य व्यक्ति को देकर न्यायालय की सहायता करने जैसा है। इस आलेख के अंतर्गत इस ही आदेश 26 के नियम 16,16(क),17 एवं 18 पर विवेचना प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम-16 कमिश्नरों की शक्तियां इस आदेश के अधीन नियुक्त कोई भी कमिश्नर उस दशा के सिवाय, जिसमें नियुक्ति के आदेश द्वारा उसे अन्यथा निदिष्ट किया गया हो,-

    (क) स्वयं पक्षकारों की ओर ऐसे साक्षी की जिसे वे या उनमें से कोई पेश करे और किसी ऐसे अन्य व्यक्ति की जिसे कमिश्नर अपने को निर्देशित मामले में साक्ष्य देने के लिए बुलाना ठीक समझे, परीक्षा कर सकेगा;

    (ख) जांच के विषय से सुसंगत दस्तावेजों और अन्य चीजों को मंगवा सकेगा और उनकी परीक्षा कर सकेगा;

    (ग) आदेश में वर्णित किसी भी भूमि में या निर्माण के भीतर किसी युक्तियुक्त समय पर प्रवेश कर सकेगा।

    नियम-16(क) वे प्रश्न जिन पर कमिश्नर के समक्ष आक्षेप किया जाता (1) जहां इस आदेश के अधीन नियुक्त कमिश्नर के समक्ष कार्यवाहियों में साक्षी से पूछे गए किसी प्रश्न पर किसी पक्षकार या उसके प्लीडर द्वारा आक्षेप किया जाता है, वहां कमिश्नर प्रश्न, उत्तर, आक्षेपों को और इस प्रकार आक्षेप करने वाली, यथास्थिति, पक्षकार या प्लीडर का नाम लिखेगा

    परन्तु कमिश्नर किसी ऐसे प्रश्न का जिस पर विशेषाधिकार के आधार पर आक्षेप किया जाता है, उत्तर नहीं लिखेगा किन्तु वह साक्षी की परीक्षा विशेषाधिकार का प्रश्न न्यायालय द्वारा विनिश्चित कराने के लिए पक्षकार पर छोड़ते हुए, जारी रख सकता है और जहां न्यायालय विनिश्चय करता है कि विशेषाधिकार का कोई प्रश्न नहीं है वहां साक्षी को कमिश्नर द्वारा पुनः बुलाया जा सकता है और उसके द्वारा परीक्षा की जा सकती है या न्यायालय द्वारा उस प्रश्न की बाबत जिस पर आक्षेप विशेषाधिकार के आधार पर किया गया था, साक्षी की परीक्षा की जा सकती है। (2) उपनियम (1) के अधीन लिखे गए किसी उत्तर को वाद में साक्ष्य के रूप में न्यायालय के आदेश के बिना नहीं पढ़ा जाएगा।]

    नियम-17 कमिश्नर के समक्ष साक्षियों की हाजिरी और उनकी परीक्षा (1) साक्षियों को समन करने, साक्षियों की हाजिरी और साक्षियों की परीक्षा सम्बन्धी और साक्षियों के पारिश्रमिक और उन पर अधिरोपित की जाने वाली शास्तियों सम्बन्धी इस संहिता के उपबन्ध उन व्यक्तियों को लागू होंगे जिनसे साक्ष्य देने की या दस्तावेजें पेश करने की अपेक्षा इस आदेश के अधीन की गई है, चाहे वह कमीशन जिसका निष्पादन करने में उनसे ऐसी अपेक्षा की गई है, की सीमाओं की भीतर स्थित न्यायालय द्वारा या की सीमाओं से परे स्थित न्यायालय द्वारा निकाला गया हो और कमिश्नर के वारे में इस नियम के प्रयोजनों के लिए यह समझा जाएगा कि वह सिविल न्यायालय है:

    [परन्तु जब कमिश्नर सिविल न्यायालय का न्यायाधीश नहीं है तब वह यह शास्तियां अधिरोपित करने के लिए सक्षम नहीं होगा, किन्तु ऐसे कमिश्नर के आवेदन पर ऐसी शास्तियां उस न्यायालय द्वारा जिसने कमीशन निकाला था, अधिरोपित की जा सकेंगी।]

    (2) कमिश्नर कोई ऐसी आदेशिका निकालने के लिए, जिसे वह साक्षी के नाम या उसके विरुद्ध निकालना आवश्यक समझे, ऐसे किसी न्यायालय से (जो उच्च न्यायालय नहीं है) और जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर ऐसा साक्षी निवास करता है, आवेदन कर सकेगा और ऐसा न्यायालय स्वविवेकानुसार ऐसी आदेशिका निकाल सकेगा जो वह युक्तियुक्त और उचित समझे।

    नियम-18 पक्षकारों का कमिश्नर के समक्ष उपसंजात होना (1) जहां कमीशन इस आदेश के अधीन निकाला जाता है वहां न्यायालय निदेश देगा कि वाद के पक्षकार कमिश्नर के समक्ष या तो स्वयं या अपने आदेश 26 नियम 17 अभिकर्ताओं के या प्लीडरों के द्वारा उपसंजात हों। (2) जहां सभी पक्षकार या उनमें से कोई इस प्रकार उपसंजात न हो वहां कमिश्नर उनकी अनुपस्थिति में कार्यवाही कर सकेगा।

    आदेश 26 के नियम 16 से 18 तक में कमिश्नरों (आयुक्तों) की शक्तियों, उनके सामने उठाये गये प्रश्नों का निपटारा (नियम-16क) उनके सामने साक्षियों की हाजिरी और उनकी परीक्षा (नियम-17) तथा पक्षकारों की उपसंजाति (नियम 18) के बारे में नियम व तरीका दिया गया है।

    पक्षकारों की परीक्षा के लिए आयुक्त जारी करना जब एक वाद चण्डीगढ में फाइल किया गया और प्रतिवादीगण बम्बई में रहते हैं और प्रार्थी आयोग का खर्च देने को तैयार है, तो आयोग जारी करने के लिए मना नहीं किया जा सकता, हालांकि न्यायालय गवाह-कक्ष में गवाहों के मनोभाव पर निगरानी नहीं कर सकेगा।

    सिविल वाद (नियम 17 का उपनियम-1) जब पहले आयुक्त की मृत्यु या अन्य कारण से उसका स्थान रिक्त हो जाए, तो नये कमिश्नर की नियुक्ति की जाती है। ऐसी स्थिति में पूर्व आयुक्त के समक्ष अभिलिखित साक्षियों की साक्ष्य आदेश 18, नियम 15 के अधीन उन साक्षियों की पुनः परीक्षा किए बिना उस मामले में साक्ष्य होगी।

    परन्तु ऐसा आयुक्त शपथ अधिनियम 1873 के प्रयोजनार्थ न्यायालय नहीं है। नियम 17 का उपनियम (2) और साक्षी को समन उपनियम (2) न्यायालय को उसकी अधिकारिता के क्षेत्र में रहने वाले साक्षी को उसकी परीक्षा के लिए, आयुक्त के आवेदन पर, समन जारी करने के लिए सशक्त करता है।

    पक्षकार को आयुक्त के बारे में सूचना (नोटिस) (नियम 18) इस संहिता में ऐसा कोई उपबन्ध नहीं है जो न्यायालय को एकपक्षीय आयोग जारी करने से वर्जित (मना) करता हो। परन्तु यह नियम तभी लागू होता है, जब कि एक आयुक्त की नियुक्ति का आदेश दे दिया गया है और यह अपेक्षा करता है कि न्यायालय पक्षकारों को आयुक्त के समक्ष उपसंजात होने की सूचना दे। जहां ऐसा नहीं किया गया, तो आयुक्त के समक्ष की कार्यवाहियां अवैध हैं। आयुक्त द्वारा दिया गया नोटिस पर्याप्त नहीं है।

    न्यायालय का निदेश आज्ञापक आदेश 26, नियम 18 उपबंध करता है कि जब आयोग जारी किया जाए, तो न्यायालय पक्षकारों को आयुक्त के समक्ष व्यक्तिगत रूप से या अपने एजेंट या प्लीडर के द्वारा उपस्थित होने का निर्देश देगा और यदि पक्षकार उपस्थित नहीं होता है, तो आयुक्त उस पक्षकार की अनुपस्थिति में आगे कार्यवाही कर सकेगा। इससे प्रथम दृष्ट्या यह दिखाई देता है कि पक्षकारों को सूचित करने की बाध्यता इस नियम में ही दी गई है, जो आज्ञापक है। इसका अर्थ यह है कि यदि न्यायालय इस नियम के अनुसार निर्देश नहीं देता है, तो आयुक्त द्वारा दिया गया नोटिस पर्याप्त नहीं है।

    कुछ उच्च न्यायालय आयुक्त के द्वारा दिये गये नोटिस को इस नियम की पर्याप्त अनुपालना मानते हैं। परन्तु यदि आयुक्त ने नोटिस की तामील नहीं करवाई, तो उस आयुक्त के स्थानीय अन्वेषण को स्वीकार नहीं किया जा सकेगा। परन्तु यदि न्यायालय या आयुक्त किसी ने भी नोटिस नहीं दिया, तो ऐसी कार्यवाही शून्य होगी।

    निर्वचन का सिद्धान्त नियम 18, जहां तक नियम 10-क में अनुध्यात वैज्ञानिक अन्वेषण का सम्बन्ध है, वह आज्ञापक नहीं है।

    एक वाद में उच्चतम न्यायालय द्वारा कहा गया है कि आयुक्त के प्रतिवेदन (रिपोर्ट) के विरुद्ध किये गये पुनरीक्षण में उच्च न्यायालय को, सिवाय आत्यंतिक मामलों के, हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये।

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