सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 159: आदेश 26 नियम 11 तथा 12 के प्रावधान

Shadab Salim

25 March 2024 12:00 PM IST

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 159: आदेश 26 नियम 11 तथा 12 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 26 कमीशन के संबंध में है। यहां सीपीसी में कमीशन का अर्थ न्यायालय के कामों को किसी अन्य व्यक्ति को देकर न्यायालय की सहायता करने जैसा है। इस आलेख के अंतर्गत इस ही आदेश 26 के नियम 11 एवं 12 पर विवेचना प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम-11 लेखाओं की परीक्षा या समायोजन करने के लिए कमीशन - न्यायालय ऐसे किसी भी वाद में जिसमें लेखाओं की परीक्षा या समायोजन आवश्यक है, ऐसी परीक्षा या समायोजन करने के लिए ऐसे व्यक्ति के नाम उसे निदेश देते हुए जिसे वह ठीक समझे कमीशन निकाल सकेगा।

    नियम-12 न्यायालय कमिश्नर को आवश्यक अनुदेश देगा (1) न्यायालय कमिश्नर को कार्यवाहियों का ऐसा भाग और ऐसे अनुदेश देगा जो आवश्यक हों और ऐसे अनुदेशों में यह स्पष्टतया विनिर्दिष्ट होगा कि क्या कमिश्नर केवल उन कार्यवाहियों को पारेषित करे जिन्हें वह ऐसी जांच में करता है या उस बात के बारे में अपनी राय की भी रिपोर्ट करे जो उसकी परीक्षा के लिए निर्देशित की गई है।

    (2) कार्यवाहियां और रिपोर्ट साक्ष्य होंगी। न्यायालय अतिरिक्त जांच निर्दिष्ट कर सकेगा - कमिश्नर की कार्यवाहियां और रिपोर्ट (यदि कोई हों) वाद में साक्ष्य होंगी, किन्तु जहां न्यायालय के पास उनसे असन्तुष्ट होने के कारण हैं वहां वह ऐसी अतिरिक्त जांच निर्दिष्ट कर सकेगा जो वह ठीक समझे।

    नियम 11 तथा 12 में लेखाओं की परीक्षा करने के लिए कमीशन निकालने की व्यवस्था की गई या समायोजन करना आवश्यक न हो, आयुक्त की नियुक्ति का आदेश नहीं दिया जा सकता। आयुक्त द्वारा जांच का स्वरूप व क्षेत्र आयुक्त का यह कार्य नहीं है कि वह पक्षकारों के बीच के विवाद में मध्यस्थता करे और उसका निपटारा करे। उसे तो साक्ष्य पर विचार कर न्यायपूर्वक अपनी रिपोर्ट न्यायालय को देनी है। आयुक्त न्यायालय के सहायक की प्रास्थिति में है, ताकि वह न्यायालय को उस लेखे को समझने और उसका मूल्यांकन कर निर्णय पर पहुंचने में मदद करे।पक्षकारों का यह अधिकार है कि वे आयुक्त के निष्कर्ष पर आक्रमण करें और यह न्यायालय के लिए आवश्यक है कि वह उन आक्षेपों पर विचार करे और अपने स्वयं के स्वतंत्र निष्कर्ष (निर्णय) पर पहुंचे।

    दूसरे आयुक्त की नियुक्ति और उसकी रिपोर्ट- पहले आयुक्त की रिपोर्ट को अपास्त किये बिना, दूसरे आयुक्त की नियुक्ति और उसकी रिपोर्ट को स्वीकार करना पूर्णतः अवैध और बिना अधिकारिता के है। ऐसे मामले में दूसरे आयुक्त की रिपोर्ट पर विश्वास कर मामले का निर्णय करना अनाधिकृत और अधिकारिता के बिना है। यदि न्यायालय केवल पहले आयुक्त की रिपोर्ट व कार्यवाही से सन्तुष्ट नहीं है, तो कारण बताते हुए वह आगे जांच करने के लिए दूसरा आयुक्त नियुक्त कर सकता है।

    आदेश 26, नियम 12 का उपबन्ध महत्वपूर्ण (vital) है, जिसका कठोरता से पालन करने पर ही शीघ्र, प्रभावशील व सस्ते न्याय प्रशासन की सुविधा मिल सकती है।

    पूर्व न्याय गलत निर्णय को लागू नहीं जब अधिकारिता संबंधी एक प्रश्न का एक गलत निर्णय द्वारा न्यायालय ने अन्तिम निपटारा कर दिया, तो वह निर्णय आगे की कार्यवाही पर पूर्वन्याय के रूप में लागू नहीं होगा। जब दूसरे आयुक्त की नियुक्ति बिना अधिकारिता के थी, तो विचारण-न्यायालय का अन्तर्वर्ती आदेश, दूसरे आयुक्त की नियुक्ति को उच्च न्यायालय द्वारा पुष्ट कर देने पर भी, फाइनल डिक्री के विरुद्ध अपील में उस दूसरे आयुक्त की रिपोर्ट को प्रवारित करने (हटाने), उसकी समीक्षा करने या उसे अस्वीकार करने के लिए कोई वर्जन नहीं है।

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