सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 155: आदेश 26 नियम 5,6 एवं 7 के प्रावधान

Shadab Salim

22 March 2024 5:36 PM IST

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 155: आदेश 26 नियम 5,6 एवं 7 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 26 कमीशन के संबंध में है। यहां सीपीसी में कमीशन का अर्थ न्यायालय के कामों को किसी अन्य व्यक्ति को देकर न्यायालय की सहायता करने जैसा है। इस आलेख के अंतर्गत इस ही आदेश 26 के नियम 5,6 व 7 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम-5 जो साक्षी भारत के भीतर नहीं है उसकी परीक्षा करने के लिए कमीशन या अनुरोध-पत्र-जहाँ किसी ऐसे न्यायालय का जिसको किसी ऐसे स्थान में निवास करने वाले व्यक्ति की जो [भारत] के भीतर का स्थान नहीं है, परीक्षा करने का कमीशन निकालने के लिए आवेदन किया गया है, समाधान हो जाता है कि ऐसे व्यक्ति का साक्ष्य आवश्यक है, वहाँ न्यायालय ऐसा कमीशन निकाल सकेगा या अनुरोध-पत्र भेज सकेगा।

    नियम-6 कमीशन के अनुसरण में न्यायालय साक्षी की परीक्षा करेगा-किसी व्यक्ति की परीक्षा करने के लिए कमीशन प्राप्त करने वाला हर न्यायालय उसके अनुसरण में उस व्यक्ति की परीक्षा करेगा या कराएगा।

    नियम-7 साक्षियों के अभिसाक्ष्य के साथ कमीशन का लौटाया जाना-जहाँ कमीशन का सम्यक् रूप से निष्पादन कर दिया गया है, वहाँ वह उसके अधीन लिए गये साक्ष्य सहित उस न्यायालय को जिसने उसे निकाला था, उस दशा के सिवाय लौटा दिया जाएगा जिसनें कि कमीशन निकालने वाले आदेश द्वारा अन्यथा निर्दिष्ट किया गया हो और उस दशा में कमीशन ऐसे आदेश के निबन्धनों के अनुसार लौटाया जाएगा और कमीशन और उसके साथ वाली विवरणी और उसके अधीन दिया गया साक्ष्य [नियम-8 के उपबन्धों के अधीन रहते हुए] वाद के अभिलेख का भाग होंगे।

    कमीशन या अनुरोध-पत्र (नियम 5) - "पक्षकार-साक्षी" और "पक्षकारेतर साक्षी" में अन्तर -

    आदेश 26, नियम 5 और आदेश 16, नियम 19 - पक्षकार साक्षी और पक्षकारेतर साक्षी के बीच अन्तर होता है। हालांकि सिविल प्रक्रिया संहिता में इस बारे में वादी, प्रतिवादी या साथी के बीच कोई अन्तर नहीं किया गया है फिर भी प्रज्ञा के नियम के रूप में इसे लागू किया गया है। पक्षकारंतर साक्षी मुकदमे में की विषय-वस्तु में हितबद्ध नहीं होता है। अतः उसके बारे में कमीशन निकालने या अनुरोध-पत्र भेजने का निदेश देना विधिमान्य होगा।

    जब अनुरोध-पत्र सम्भव नहीं-जिस देश के साथ आपसी व्यवस्था नहीं है, तो अनुरोध-पत्र वहाँ के न्यायालय को सम्बोधित नहीं किया जा सकता।

    अनुरोध-पत्र जारी करना- आदेश 16 के उपबन्ध, विशेष रूप से आदेश 16 नियम 19 भारत से बाहर रहने वाले साक्षियों को लागू नहीं होते हैं। इसका परिणाम यह है कि आदेश 26 नियम 4 (1) के प्रथम परन्तुक में आये शब्द "कमीशन जारी किया जाएगा" भारत से बाहर रहने वाले साक्षी को लगू नहीं होंगे। धारा 77 तथा आदेश 26, नियम 5 के उपबन्ध उस समय लागू होंगे, जब साक्षी भारत के बाहर के निवासी है। अतः न्यायालय ऐसे साक्षियों की परीक्षा के लिए कमीशन या अनुरोध-पत्र (letter of request) जारी कर सकेगा इसलिए यह सदा ही न्यायालय के विवेक के प्रयोग का प्रश्न है।

    भारत से बाहर के साक्षी की परीक्षा के लिए कमीशन जारी करना आदेश 26 में नहीं आता, परन्तु यह संहिता की धारा 77 के अधीन आयेगा। न्यायालय ऐसे साक्षी की परीक्षा के लिए कमीशन जारी कर सकेगा। आदेश 16, विशेष रूप से आदेश 16, नियम 10 सीपीसी भारत के बाहर के साक्षी को लागू नहीं होता है।

    कमीशन पर परीक्षा-एक पक्षकार ने जब कमीशन में भाग नहीं लिया, तो वह कमीशन के अधीन परीक्षा किये गये साक्षी की प्रतिपरीक्षा करने के लिए अधिकृत है। पूरी प्रतिपरीक्षा करने का अवसर दिये बिना लिए गये बयानों को स्वीकार नहीं करना चाहिये। परन्तु जहाँ न्यायालय प्रतिपरीक्षा को अनावश्यक रूप से लम्बी होती देखे, तो वह उसे निश्चित समय में पूरा करने का आदेश दे सकता है।

    एक साक्षी जो न्यायालय की क्षेत्रीय अधिकारिता से बाहर, किन्तु 200 मील के भीतर होने पर उसे न्यायालय की अधिकारिता से बाहर नहीं माना है। अतः उसे न्यायालय उपस्थित होने के लिए समन कर सकता है, परन्तु न्यायोचित कारणों से कमीशन द्वारा उसकी परीक्षा करवाने का उसे विवेकाधिकार है।

    कमीशन पर साक्षी के बयान लेना साक्षी की इच्छा पर निर्भर नहीं- यह न्यायालय का कार्य है- आवेदन प्राप्त होने पर न्यायालय ने एक दक्ष व्यक्ति की साक्ष्य लेखबद्ध करने के लिए वकील-आयुक्त नियुक्त कर दिया। रिवीजन में पाया गया कि सरकारी-परीक्षक ने अपने पत्र में यह अभिमत प्रकट किया कि इस मामले में उस व्यक्ति की साक्ष्य आवश्यक नहीं है। यह न्यायालय का अवमान माना गया।

    उच्चतम न्यायालय ने पाया कि किसी गवाह के बयान कमीशन पर या खुले न्यायालय में लेखबद्ध किए जानें या नहीं यह उस गवाह की इच्छा (चोइस) पर निर्भर नहीं है। यह प्रथम दृष्ट्या अधीनस्थ न्यायालय के कार्य में हस्तक्षेप हैं। अतः उक्त अधिकारी को नोटिस जारी किया जाये। विचारण-न्यायालय का यह आदेश पूर्णतः अवैध है, क्योंकि इसमें वह अधिकारिता का प्रयोग करने में असफल रहा है। यह निश्चय करना न्यायालय का कार्य है कि किसी गवाह को न्यायालय में आना है या उसके बयान कमीशन पर लेने है। कमीशन पर गवाह की परीक्षा करने के सुनिश्चित सिद्धान्त हैं, परन्तु गवाह न्यायालय में नहीं आना चाहता। यह कोई आधार नहीं है।

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