सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 151: आदेश 24 नियम 1 से 4 के प्रावधान

Shadab Salim

16 March 2024 1:29 PM IST

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 151: आदेश 24 नियम 1 से 4 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 24 का नाम न्यायालय में जमा है। यह आदेश इसलिए संहिता में दिया गया है जिससे प्रतिवादी ऋण या नुकसानी के वाद में पहले ही वाद में मांगी गई राशि को न्यायालय में जमा कर दे जिससे वह नुकसानी से बच सके जैसे ब्याज़ इत्यादि। इसके साथ ही ऐसी राशि जमा कर दिए जाने से वादी का वाद भी तुष्ट हो जाता है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 24 के नियमों पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम-1 दावे की तुष्टि में प्रतिवादी द्वारा रकम का निक्षेप ऋण या नुकसानी की वसूली के किसी भी वाद में प्रतिवादी वाद के किसी भी प्रक्रम में न्यायालय में धन की ऐसी राशि का निक्षेप कर सकेगा जो उसके विचार में दावे की पूर्ण तुष्टि हो।

    नियम-2 निक्षेप की सूचना - निक्षेप की सूचना प्रतिवादी न्यायालय की मार्फत वादी को देगा और निक्षेप की रकम (जब तक कि न्यायालय अन्यथा निदिष्ट न करे) वादी को उसके आवेदन पर दी जाएगी।

    नियम-3 निक्षेप पर ब्याज सूचना के पश्चात् वादी को अनुज्ञात नहीं किया जाएगा- प्रतिवादी द्वारा निक्षिप्त की गई किसी भी राशि पर वादी को कोई भी ब्याज ऐसी सूचना की प्राप्ति की तारीख से अनुज्ञात नहीं किया जाएगा चाहे निक्षिप्त की गई राशि दावे की पूर्ण तुष्टि करती हो या उससे कम हो।

    नियम-4 जहां वादी निक्षेप की भागतः तुष्टि के तौर पर प्रतिगृहीत करता है वहां प्रक्रिया -

    (1) जहां वादी ऐसी रकम को अपने दावे के केवल भाग की तुष्टि के तौर पर प्रतिगृहीत करता है वहां वह बाकी के लिए अपना वाद आगे चला सकेगा और यदि न्यायालय यह विनिश्चय करता है कि प्रतिवादी द्वारा किया गया निक्षेप वादी के दावे की पूर्ण तुष्टि करता था तो निक्षेप के पश्चात् वाद में उपगत खर्चों को और उससे पूर्व उपगत खर्चों को वहां तक वादी देगा जहां तक कि वे वादी वे दावे में आधिक्य के कारण हुए हैं।

    (2) जहां वह उसे पूर्ण तुष्टि के तौर पर प्रतिगृहीत करता है वहां प्रक्रिया - जहां वादी ऐसी रकम को अपने दावे की पूर्ण तुष्टि के तौर पर प्रतिगृहीत करता है वहां वह न्यायालय के समक्ष उस भाव का कथन उपस्थित करेगा और ऐसा कथन फाइल किया जाएगा और न्यायालय तदनुसार निर्णय सुनाएगा और यह निर्दिष्ट करने में कि हर एक पक्षकार के खर्चे किसके द्वारा दिये जाने हैं न्यायालय इस पर विचार करेगा कि पक्षकारों में से कौन सा पक्षकार मुकदमे के लिए सर्वाधिक दोष का भागी है।

    दावे की तुष्टि में न्यायालय में रकम जमा कराने का प्रभाव - नियम 1 के अनुसार, न्यायालय में राशि (रकम) निक्षेप करने (जमा कराने) के लिए निम्नलिखित आवश्यक शर्तें हैं -

    (1) वह वाद ऋण (उधार) या नुकसानी की वसूली के लिए होना आवश्यक है, अन्य प्रकार के वादों में यह लागू नहीं होगा।

    (2) वाद को किसी प्रक्रम पर प्रतिवादी दावे की राशि जमा करा सकेगा,

    (3) राशि वह होगी, जो प्रतिवादी के विचार में दावे की पूर्ण तुष्टि हो।

    ऋण (उधार) या नुकसानी की वसूली के लिए वाद- इस नियम में स्पष्ट उल्लेख है कि यह नियम केवल ऋण या नुकसानी वसूल करने के वाद को ही लागू होता है, दूसरे वादों को लागू नहीं होता।

    निम्नलिखित वादों को यह नियम लागू होता है यह नियन प्रत्याभूत क्रम (secured debt) को लगू होता है। इस प्रकार राशि जमा कराने पर प्रतिवादी को दो प्रकार का लाभ मिलता है-

    (1) उसे ब्याज से मुक्ति मिल जाती है।

    (2) उसे खर्चे के बारे में भी राहत मिलती है।

    यह नियम ऋण या नुकसानी की वसूली के साथ यदि कोई अन्य अनुतोष जैसे व्यादेश, मांगने पर भी लागू होता है। सुखाचार (प्रकाश और वायु) के मामले में वादी को भवन निर्माण करने से रोकने के लिए व्यादेश का बाद इस श्रेणी में नहीं आता, परन्तु विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 21 के अधीन नुक्सानी दिलवाने का विवेकाधिकार न्यायालय को है। फिर भी यह वाद इस नियम के अर्थ में नुकसानी के वाद की श्रेणी में नहीं आता।

    निम्न को यह नियम लागू नहीं होता है-

    लेखा संबंधी वादों को।

    सम्पत्ति अन्तरण अधिनियन की धारा 33 के अधीन संस्थित बाद को।

    आदेश 9, नियम 13 के अधीन एकपक्षीय डिक्री को अपास्त कराने के लिए जमा की गई राशि को।

    अन्तिम कुर्की की रकम जो निर्णय पूर्व जमा कराई गई।

    दायित्व को अस्वीकार करते हुए न्यायालय में रकम का संदाय इस नियम में ऐसा कोई उपबन्ध नहीं है, जो प्रतिवादी को न्यायालय में दायित्व को अस्वीकार करते हुए अर्थात् उसके कथनों पर विनीत प्रभाव डाले बिना रकम का संदाय करने के लिए समर्थ बनाता हो।

    भुगतान की केवल इच्छा करना केवल लिखित कथन में यह कथन करना कि वह रकम देने को इच्छुक है, यह न्यायालय के भुगतान के समान नहीं है, जिसके लिए ब्याज लगना बन्द हो जाय।

    व्यादेश वाद में भी प्रतिवादी द्वारा दावे की तुष्टि के लिए रकम जमा करा देने पर, चाहे उसने प्रतिरक्षा में दावे को अस्वीकार किया हो, तो उस जमा राशि की सीमा तक उस पर खर्चे लगाते समय नियम 4 तथा धारा 35 के अधीन ध्यान रखा जाता है।

    जहां पेटेन्ट डिजाइन के उल्लंघन के दावे में दोषी पक्षकार ने उस उल्लंघन को स्वीकार कर जो लाभ गलत तरीके से प्राप्त किया, उसे न्यायालय में जमा करा दिया, तो उसे खर्चे लगाते समय ध्यान में रक्खा गया।

    मोटर दुर्घटना में बीमा कम्पनी द्वारा निक्षेप एक मोटर दुर्घटना में मारे गये व्यक्ति के वारिसों ने बीमा कम्पनी से प्रतिकर का दावा किया। बीमा कम्पनी ने बैंक गारण्टी की शर्त पर राशि जमा करा दी। निर्धारित कि-उक्त जमा बिना शर्त नहीं थी और दावेदार ब्याज के लिए हकदार थे।

    बीमा पालिसी पर ब्याज बीना पालिसियों पर देय राशि की वसूली के बाद में प्रतिवादी बीमा कम्पनी ने पूरी राशि जमा करा कर भुगतान करने का प्रस्ताव किया। वादी ने एतराज उठाया, इस पर राशि जमा नहीं करवाई गई। निर्धारित हुआ कि-ऐसी स्थिति में वाद संस्थित करने के दिनांक से प्रतिवादी से ब्याज नहीं लिया जा सकता।

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