सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 146: आदेश 22 नियम 10(क) के प्रावधान

LiveLaw News Network

8 March 2024 7:33 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 146: आदेश 22 नियम 10(क) के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 22 वाद के पक्षकारों की मृत्यु, विवाह और दिवाला है। किसी वाद में पक्षकारों की मृत्यु हो जाने या उनका विवाह हो जाने या फिर उनके दिवाला हों जाने की परिस्थितियों में वाद में क्या परिणाम होगा यह इस आदेश में बताया गया है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 22 के नियम 10(क) के प्रावधानों पर विवेचना की जा रही है।

    नियम-10(क) न्यायालय को पक्षकार की मृत्यु संसूचित करने के लिए प्लीडर का कर्तव्य - वाद में पक्षकार की ओर से उपसंजात होने वाले प्लीडर को जब कभी यह जानकारी प्राप्त हो कि उस पक्षकार की मृत्यु हो गई है तो वह न्यायालय को इसकी इत्तिला देगा और तब न्यायालय ऐसी मृत्यु की सूचना दूसरे पक्षकार को देगा और इस प्रयोजन के लिए प्लीडर और मृत पक्षकार के बीच हुई संविदा अस्तित्व में मानी जाएगी।

    आदेश 22 के नियम 10-क विधि आयोग ने, अपनी रिपोर्ट में इस उपबंध की सिफारिश (अनुशंसा) करते हुए अवलोकन किया है कि ऐसा उपबंध, कुछ सीमा तक, प्रतिवादी की मृत्यु का वादी को पता न चलने से उत्पन्न कई उलझनों को कम कर देगा।

    मृत व्यक्ति के वकील का यह दायित्व नहीं है कि वह मृत व्यक्ति के विधिक प्रतिनिधियों को सूची न्यायालय में पेश करें। आदेश 22 नियम 10क के प्रावधान आज्ञापक (Mandatory) नहीं है, बल्कि निदेशात्मक (Directory) है। इस धारा का मुख्य उद्देश्य प्रत्यर्थी के अधिवक्ता पर यह कर्तव्य अधिरोपित करना है, कि प्रत्यर्थी की मृत्यु की सूचना न्यायालय को देवे ताकि अपीलार्थी उसके विधिक प्रतिनिधियों को अभिलेख पर प्रतिस्थापित कर सकें। विधिक प्रतिनिधियों को अभिलेख पर लाने हेतु 2381 दिन एवं 2601 दिनों का विलम्ब, विलम्ब का कोई स्पष्टीकरण नहीं, विधिक परिणामों के बारे में अज्ञानता को आधार विलम्ब को माफ करने का पर्याप्त कारण नहीं है।

    नियम 10(क) का आवेदन करने के लिए मृतक की मृत्यु के दिनांक से परिसीमा काल आरम्भ होगा।

    नियम 10 क का विस्तार - एकमात्र प्रत्यर्थी की मृत्यु पर अपील का उपशमन हो गया, जिसे अपास्त करते हुए उच्चतम न्यायालय ने आदेश 22 के नियम 10क के विस्तार का विवेचन किया। यह नया और सम्मानित नियम है, जो न्याय प्रशासन में होने वाली देरी को कम करने के लिए 1976 के संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया है। यह नियम पक्षकार के वकील पर यह कर्त्तव्य प्रभारित करता है कि वह अपने पक्षकार की मृत्यु पर न्यायालय को सूचित करे, ताकि न्यायालय दूसरे पक्ष को सूचना दे और वह विधिक प्रतिनिधियों को अभिलेख पर ला सके। यह कर्तव्य पक्षकार के वकील पर इसलिए प्रभारित किया गया है, क्योंकि दूसरा पक्ष से अपने प्रतिपक्षी के जीवन और मृत्यु पर निगरानी रखने को आशा नहीं की जा सकती। इस मामले में उपशमन रद्द किया गया, मामला वापस निर्णयार्थ भेजा गया।

    प्रतिवादी के विधिक प्रतिनिधियों को पक्षकार बनाने की बाबत न्यायालय को संसूचित करने का प्लीडर का कर्तव्य- प्रतिवादी की मृत्यु की बावत बैंक को संसूचित करने में विलंब - यदि बैंक को एक शाखा को नोटिस दिया जाता है तो वह नोटिस बैंक को अन्य शाखाओं को नोटिस नहीं माना जाएगा, अत: किसी पक्षकार को ओर से हाजिर होने वाले वकील का यह कर्तव्य बन जाता है कि वह न्यायालय को पक्षकार की मृत्यु की बाबत संसूचित करे ताकि न्यायालय दूसरे पक्षकार को इसके बारे में संसूचित कर सके।

    एक अपील में अपील को प्रत्यर्थी का अपीलार्थी बैंक में ओवर ड्राफ्ट खाता था। प्रत्यर्थी के पति की मृत्यु हो जाने पर, प्रत्यर्थी ने बैंक को एक शाखा को इसकी मृत्यु के बारे में संसूचित किया। प्रत्यर्थी के विधिक प्रतिनिधियों को पक्षकार बनाने के लिए आवेदन किए जाने में विलंब किया गया। उच्च न्यायालय में अपील किए जाने पर, उच्च न्यायालय ने विलम्ब माफ करने की बाबत किए गए आवेदन नामंजूर कर दिए।

    उच्च न्यायालय के निर्णय से व्यथित होकर अपीलार्थी, बैंक ने उच्चतम न्यायालय में अपील फाइल को। उच्चतम न्यायालय ने अपील मंजूर करते हुए कहा कि- बैंक की एक शाखा को नोटिस उस बैंक को अन्य शाखाओं को नोटिस नहीं माना जाएगा। ऐसी स्थिति में यह तथ्य कि देश प्रिय पार्क शाखा को मृत्यु की जानकारी थी रॉयल एक्सचेंज शाखा को आन्वयिक नोटिस माने जाने के लिए तथा उपशमन को अपास्त करने और विलम्ब माफ करने हेतु किए गए आवेदनों को नामंजूर करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।

    वर्तमान सिविल प्रक्रिया संहिता में दी गई विधि आदेश 22, नियम 10(क) के अधीन कुछ हद तक इस परेशानी को दूर करती है। इस नियम के अधीन, वाद के किसी पक्षकार की ओर से हाजिर होने वाले किसी अधिवक्ता को उस पक्षकार की मृत्यु का पता चल जाए तो वह न्यायालय को इस बारे में सूचित करेगा, इसके पश्चात् न्यायालय उसकी मृत्यु की सूचना दूसरे पक्षकार को देगा।

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