सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 140: आदेश 22 नियम 2 के प्रावधान

Shadab Salim

27 Feb 2024 11:13 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 140: आदेश 22 नियम 2 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 22 वाद के पक्षकारों की मृत्यु, विवाह और दिवाला है। किसी वाद में पक्षकारों की मृत्यु हो जाने या उनका विवाह हो जाने या फिर उनके दिवाला हों जाने की परिस्थितियों में वाद में क्या परिणाम होगा यह इस आदेश में बताया गया है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 22 के नियम 2 पर चर्चा की जा रही है।

    नियम-2 जहां कई वादियों या प्रतिवादियों में से एक की मृत्यु हो जाती है और वाद लाने का अधिकार बना रहता है वहां प्रक्रिया- जहां एक से अधिक वादी या प्रतिवादी हैं और उनमें से किसी की मृत्यु हो जाती है और जहां वाद लाने का अधिकार अकेले उत्तरजीवी वादी या वादियों को या अकेले उत्तरजीवी प्रतिवादी या प्रतिवादियों के विरुद्ध बचा रहता है वहां न्यायालय अभिलेख में उस भाग की एक प्रविष्टि कराएगा और वाद उत्तरजीवी वादी या वादियों की प्रेरणा पर या उत्तरजीवी प्रतिवादी या प्रतिवादियों के विरुद्ध आगे चलेगा।

    इन नियम के अंतर्गत शब्द बचा रहता है जीवित रहता है का अर्थ- शब्द जीवित रहता है केवल कठोर और तकनीकी अर्थ में उत्तरजीविता को ही सम्मिलित नहीं करता, इसमें उत्तराधिकार और विरासत द्वारा न्यायगमन के मामले भी आते हैं।

    नियम का लागू होना - यह नियम तभी लागू होता है, जब एक से अधिक वादी या प्रतिवादी हो और उनमें से एक की मृत्यु हो जाती है और वादाधिकार उत्तरजीवियों को बचा रहता है तो उनकी प्रेरणा से वाद आगे चलेगा। एक से अधिक वादी वाले वाद के लम्बन काल के दौरान एक वादी के निधन के उपरान्त भी वादाधिकार उत्तरजीवियों के पक्ष में बचे रहने की स्थिति में आदेश 22 नियम 2 के प्रावधान लागू होंगे।

    सुखाचार के अधिकार के मामले में- एक अहाता संयुक्त स्वामित्व में था, जिसके सुखाचार सम्बन्धी अधिकार को लागू करने के वाद में एक वादी की मृत्यु हो गई। शेष वादियों को वादाधिकार जीवित रहेगा।

    जब उपशमन का प्रश्न ही नहीं उठता- (आदेश 22 नियम 2 से 5) - यदि सम्पदा का प्रतिनिधित्व ऐसे व्यक्तियों द्वारा किया जाता है जिनका नाम पहले से हो अभिलेख पर है तो उपशमन का कोई प्रश्न नहीं उठता।

    प्रतिनिधिक हैसियत में वाद फाइल किया जाना-वादियों अपीलार्थियों में से एक को मृत्यु हो जाने पर दूसरी अपील की सक्षमता समाप्त नहीं होती है।

    भाग भागीदारी फर्म के मामले में - आदेश 22, नियम 2 सपठित आदेश 30, नियम 4 के अनुसार जब बेदखली के लिए वाद में फर्म को किरायेदार बताया गया, किन्तु साथ में भागीदार भी पक्षकार बना लिए गए तो किसी भागीदार को मृत्यु से फर्म की अपील उपशमित नहीं हो जाती। एक भागीदारी फर्म के भागीदारों द्वारा अपने व्यक्तिगत नामों से वाद लाया गया, जो फर्म के नाम से नहीं था। उनमें से एक की मृत्यु हो जाने पर वादाधिकार जीवित भागीदारों के लिए जीवित रहेगा।

    आधिपत्य के मामले - प्रतिवादी को जबरन कब्जा लेने व अनधिकृत निर्माण करने से रोकने के लिए किए गए वाद में एक प्रतिवादी की मृत्यु हो जाने पर वह वाद उपशमित नहीं होता। कई व्यक्तियों के विरुद्ध आधिपत्य का वाद किया गया, जिसमें वादी के पक्ष में डिक्री हो गई। अपील के दोहरान एक अपीलार्थी-प्रतिवादी की मृत्यु हो गई, पर उसके वारिसों को पक्षकार नहीं बनाया गया। इस मामले में अपोल सम्पूर्ण रूप से उपशमित हो गई। कई व्यक्तियों के अलग-अलग दायी होने पर भी डिक्री पारित होने के बाद उपशमित हो जाता है।

    पक्षकार बनाने के आवेदन को उपशमन को अपास्त करने का आवेदन मानना - यदि वाद का उपमशन नहीं होता है और मृत-वादी के विधिक प्रतिनिधियों को पक्षकार बनाने के लिए आवेदन किया जाता है और यह प्रश्न उठाया जाता है कि वे व्यक्ति उस मृत-वादी के विधिक प्रतिनिधि नहीं है, तो न्यायालय इस प्रश्न पर पहले निर्णय करेगा। यदि वे ऐसे पाये जाते हैं, तो उनको वादियों के रूप में पक्षकार बनाना चाहिए। परन्तु यदि वाद का उपशमन हो गया है, तो उपशमन को अपास्त करने के लिए आवेदन किया जाना चाहिए। यदि उपशमित हुए वाद में मृत्-वादी के विधिक प्रतिनिधियों को पक्षकार बनाने का आवेदन दिया जाता है, तो उसे उपशमन को अपास्त करने का आवेदन मानकर उसी के अनुसार आगे कार्यवाही करनी चाहिए।

    उपशमित हुए वाद में मृतक वादी के विधिक प्रतिनिधियों को पक्षकार बनाने का आवेदन- ऐसे आवेदन के उपशमन को अपास्त करने का आवेदन मानकर उस पर कार्यवाही की जानी चाहिये। परन्तु यदि इस आवेदन को पक्षकार बनाने का आवेदन मानकर परिसीमा से वर्जित होने पर खारिज किया जाता है, तो यह उपशमन को अपास्त करने से मना करने का आदेश नहीं है और आदेश 43, नियम 1 के अधीन इसकी अपील नहीं होगी।

    निष्कासन की कार्यवाही का उपशमन - प्रार्थी ने मूल सद्भाविक आवश्यकता बताते हुए निष्कासन की याचिका प्रस्तुत की थी। प्रार्थीया स्वामिनी बेवा महिला थी, जो कि धारा 23 मध्यप्रदेश एको. कन्ट्रोल एक्ट के तहत विशिष्ट श्रेणी में आती थी एवं उक्त आधार पर निष्कासन का प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने के लिए सक्षम थी। स्वामिनी की मृत्यु दौराने याचिका हो गई। इससे इस याचिका का उपशमन नहीं होगा। आदेश 22 सीपीसी के उपबंध लागू होंगे। वैधानिक प्रतिनिधि याचिका को जारी रखेंगे।

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