सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 120: आदेश 21 नियम 46 के प्रावधान

Shadab Salim

9 Feb 2024 7:34 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 120: आदेश 21 नियम 46 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 21 का नाम डिक्रियों और आदेशों का निष्पादन है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 46 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम-46 ऐसे ऋण, अंश या अन्य सम्पत्ति की कुर्की जो निर्णीत ऋणी के कब्जे में नहीं हैं-

    (1) (क) ऐसे ऋण की दशा में जो परक्राम्य लिखत के द्वारा प्रतिभूत नहीं है,

    (ख) किसी निगम की पूंजी में के अंश की दशा में,

    (ग) किसी न्यायालय में निक्षिप्त या उसकी अभिरक्षा में की सम्पत्ति के सिवाय किसी अन्य ऐसी जंगम सम्पत्ति की दशा में जो निर्णीतऋणी के कब्जे में नहीं है,

    (i) ऋण की दशा में जब तक कि न्यायालय अतिरिक्त आदेश न हो, तब तक लेनदार को ऋण की वसूली करने से और ऋणी को उस ऋण को चुकाने से;

    (ii) अंश की दशा में उस व्यक्ति को, जिसके नाम में अंश उस समय दर्ज है उसे अन्तरित करने से या उस पर के किसी लाभांश को प्राप्त करने से;

    (iii) पूर्वोक्त को छोड़कर अन्य जंगम सम्पत्ति की दशा में उस पर कब्जा रखने वाले व्यक्ति को उसे निर्णीत ऋणी को देने से, प्रतिषिद्ध करने वाले लिखित आदेश द्वारा की जाएगी ।

    (2) ऐसे आदेश की एक प्रति न्याय-सदन के किसी सहजदृश्य भाग पर लगाई जाएगी और एक अन्य प्रति ऋण की दशा में ऋणी को, अंश की दशा में निगम के उचित अधिकारो को, और (पूर्वोक्त को छोड़कर) अन्य जंगम सम्पत्ति की दशा में उस पर कब्जा रखने वाले व्यक्ति को भेजी जाएगी ।

    (3) उपनियम (1) के खण्ड (i) के अधीन प्रतिषिद्ध ऋणी अपने ऋण की रकम न्यायालय में जमा कर सकेगा और ऐसे जमा करने से वह वैसे ही प्रभावी तौर पर उन्मोचित हो जाएगा जैसे वह उसे पाने के हकदार पक्षकार को संदाय करने से उन्मोचित हो जाता।

    आदेश 21 का नियम 46 उस क्रम, अंश (शेयर) या अन्य सम्पत्ति को कुर्क करने का तरीका बताता है, जो निर्णीत ऋणी के कब्जे में नहीं है।

    प्रतिषेधात्मक आदेश द्वारा कुर्की-जब कोई (क) ऋण, जो पक्राम्य-लिखत के द्वारा प्रतिभूत नहीं है, या (छ) निगम की पूंजी का अंश (शेयर) है या (ग) अन्य जंगम सम्पत्ति (न्यायालय में जमा या उसकी अभिरक्षा में नहीं है) के मामलों में एक प्रतिषेधात्मक आदेश निकाला जावेगा जिसकी एक प्रति न्याय सदन पर लगाई जावेगी और दूसरी प्रति सम्बन्धित व्यक्ति (ऋणी, निगम के समुचित अधिकारी या कब्जाधारक) को भेजी जाएगी। यह प्रतिषेधात्मक आदेश संहिता की पहली अनुसूची के प्ररूप क्रमांक 16,17 या 13 में यथास्थिति जारी किये जाने।

    उपनियम (2)- यह नियम आज्ञापक है। अतःजब कुर्की की प्रति न्याय-सदन पर नहीं चिपकाई गई, तो इसे कुर्की नहीं माना गया। जब नियम 45 के अधीन कुर्की न करके नियम 43 के अधीन कर दी गई तो यह एक अनियमितता है। इससे कार्यवाही शून्य नहीं हो जाती।

    उपनियम (3)-कुर्की की रकम का भुगतान कुर्की करने वाले न्यायालय में ही किया जाएगा इसे डिक्रीदार को सौंपा नहीं दिया जावेगा।

    नियम का लागू होना:-

    (क) भागीदारी के स्यत्व की निर्णय-पूर्व कुर्की एक फर्म में भागीदार का अधिकार, स्वत्व (हक) और हित विक्रय योग्य जंगम सम्पत्ति है, जिसे निर्णय से पहले कुर्क किया जा सकता है। आदेश 21, नियम 46 द्वारा विहित प्रक्रिया ऐसी कुर्की को लागू होती हैं।

    (ख) भावी किराया की कुर्की नहीं जो किराया अभी शोध्य (प्राप्त करने योग्य) नहीं हुआ है, वह कुर्की- योग्य नहीं है।

    इस नियम के अधीन कुर्की करना वास्तव में निष्पादन की एक कार्यवाही है, जो भुगतान करने में असमर्थ ऋणी की गिरफ्तारी और निरोध का आदेश देने से इन्कार करने के पहले की जाने वाली कुर्की के समान नहीं है। यह नियम भागीदारी के लेखा लेने के बाद की प्रारंभिक डिक्री के मामले में लागू नहीं होता है, क्योंकि वह भिन्न स्थिति है। यह संयुक्त कुटम्ब के सदस्यों के बीच विभाजन के वाद की डिक्री को भी लागू नहीं होगा

    भावी और समाश्रित ऋण (Contingent debts) का स्वरूप एक समाश्रित ऋण (Contingent debt) कठोर अर्थ में एक ऋण बिलकुल नहीं है। इसके साधारण तथा विधिक अर्थ में, रूप किसी विद्यमान बाध्यता के अधीन संदेय एक राशि है। यदि यह तुरन्त वर्तमान में संदेय है तो वह देव क्रम है, या यह किसी भविष्य के दिनांक पर सदैव है। तब वह उत्पन ऋण है। परन्तु इन दोनों मामलों में यह ऋण है। परन्तु एक समाश्रित ऋण का वर्तमान में कोई अस्तित्व नहीं होता, क्योंकि यह तभी सदेव है, जब वह घटना घटित हो जाये या घटित न भी हो।

    ऋण की कुर्की- नियम । (क), नियम 4(1) के अध्यधीन है, जो इस प्रकार है-

    इस नियम द्वारा अन्यथा उपबन्धित के सिवाय, किसी भागीदारी की सम्पत्ति उस फर्म के विरुद्ध या उसके भागीदारों के विरुद्ध उनकी उस हैसियत में पारित डिक्री से भिन्न डिक्री के निष्पादन में कुर्क नहीं की जाएगी और न उसका विक्रय किया जाएगा।

    अत: एक फर्म को देय ऋण या उसके भागीदारी की सम्पत्ति है, जो फर्म या उसके एक भागीदार के विरुद्ध प्राप्त की गई डिक्री के निष्पादन में कुर्क नहीं की जा सकती।

    बंधक-ऋण की कुर्की इस नियम के अर्थ में बंधक ऋण भी ऋण है, अतः उसे इस नियम में बताये तरीके से कुर्क किया जा सकता है। जब बंधक ऋण को कुर्क कर उसका विक्रय किया जाता है, तो नीलाम-क्रेता बंधक के सभी अधिकारों को प्राप्त कर लेता है। वह बंधकदार के विरुद्ध व्यक्तिगत डिक्री के लिए दावा कर सकता है और बंधक सम्पत्ति के विक्रय के लिए डिक्री प्राप्त कर सकता है।

    ऋण की कुर्की के महत्वपूर्ण नियम-

    (1) ऋण की कुर्की के प्रयोजन के लिए यह आवश्यक नहीं है कि उस ऋण की सही सही राशि बताई जाए, परन्तु वह ऋण कुर्की के समय में वास्तव में देय होना चाहिये।

    एक मामले में जहां निर्णीत-ऋणी को संदेय राशि के बारे में गारनिशी ने विवाद उठाया, तो उचित तरीका यह है कि उस ऋण को बिना किसी सीमा तक किसी निश्चित राशि के लिए सीमित नहीं कर के साधारण कुर्की करनी चाहिये। इसके बाद न्यायालय को उस सही राशि का पता लगाने के लिए जांच करनी चाहिये। यदि वह राशि उस समय वास्तव में भुगतान योग्य न भी हो, तो भी नियम 46 के अधीन प्रतिषेधात्मक आदेश दिया जा सकता है। इस सिद्धान्त को मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा भी अनुमोदित किया गया है।

    ऋण की कुर्की निर्णीत-ऋणी को अपने ऋणी पर दावा वाद करने या उस ऋण की वसूली के अन्य उपाय करने से नहीं रोकती है, परन्तु निर्णीत-ऋणी पहले उस ऋण को चुकाये बिना, जिसके लिए कुर्की की गई है अपने ऋणी से भुगतान प्राप्त करने का हकदार नहीं है।

    ऋण के भाग की कुर्की इस नियम के अधीन एक संयुक्त ऋण में से निर्णीत-ऋणी के भाग (हिस्से) की कुर्की नहीं की जा सकती। परन्तु न्यायालय की अन्तर्निहित शक्ति के प्रयोग में ऐसे संयुक्त कग का भाग कुर्क किया जा सकता है।

    कुर्की द्वारा प्राप्त अधिकार- कुर्की के अधीन दावा करने वाला व्यक्ति एक लेनदार की तरह ऋण को उस ऋणी के विरुद्ध उत्पन्न सभी प्रकार के साम्याओं सहित प्राप्त करता है। उसको ऋणी से अधिक अधिकार प्राप्त नहीं होते। अत: लेनदार (डिक्रीदार) को गारनिशी के पक्ष में साम्याओं के अधीन ही ऋणराशि प्राप्त हो सकती है। इस प्रकार यदि कुर्की के पहले कोई साम्यापूर्ण भार या साम्यापूर्ण समनुदेशन कर दिया जाता है, तो वह वैध होगा। यहां तक कि कुर्की का आदेश होने के बाद और उसे प्रभावशील करने के पहले भी कोई समनुदेशन किया जाता है, तो वह वैध होगा।

    कम्पनी (निगम) के भाग (शेयर्स) की कुर्की-जहां कम्पनी अधिनियन तथा कम्पनी के ज्ञापन के विरुद्ध शेयरों के अन्तरण का विलेख लिखा गया, तो वह अवैध है और उसका पश्चात्वर्ती क्रेता को लाभ नहीं मिल सकता, जबकि हिस्साधारी (शेयर होल्डर) के विरुद्ध डिक्री के निष्पादन में उन शेयर्स को कुर्क किया गया है। इस बारे में आदेश 21 के नियम 79 तथा 80 लागू किये जायेंगे।

    जब आदेश 21, नियम 46 के अधीन प्रतिषेधात्मक आदेश के अतिरिक्त परिशिष्ट (ङ) के प्ररूप संख्यांक 18 में भी कम्पनी को प्रतिषेधात्मक आदेश दिया गया था, फिर भी कम्पनी ने शेयरों का अन्तरण अभिलिखित कर दिया, यह स्पष्ट रूप से शेयरों के अन्तरण की अनुमति देना है, जो प्रतिषेध के विरुद्ध होने से कानून के विरुद्ध है।

    जीवन बीमा की पालिसी जीवन बीमा की पालिसी में यह अंकित है कि जीवन बीमा पालिसी बीमाधारक की मृत्यु का निदेशकों को समाधान कराने पर संदेय है। ऐसी स्थिति में पालिसी की राशि तब तक एक ऋण नहीं है, जब तक उस बीमाधारक की मृत्यु का कम्पनी को प्रमाण न दे दिया जाये।

    एक मामले में चिट फंड कम्पनियों के आयुक्त द्वारा कुर्की विक्रय करार की शर्तों का पालन नहीं करने पर करार रद्द हो गया। आयुक्तं द्वारा विवादित सम्पत्ति को कुर्क करना उचित नहीं था।

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