सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 115: आदेश 21 नियम 30, 31 एवं 32 के प्रावधान

Shadab Salim

5 Feb 2024 10:13 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 115: आदेश 21 नियम 30, 31 एवं 32 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 21 का नाम डिक्रियों और आदेशों का निष्पादन है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 30, 31 एवं 32 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम-30 धन के संदाय की डिक्री-धन के संदाय की हर डिक्री, जिसके अन्तर्गत किसी अनुतोष के अनुकल्प के रूप में धन के संदाय की डिक्री भी आती है, निर्णीतऋणी से सिविल कारागार में निरोध द्वारा उसकी सम्पत्ति की कुर्की और विक्रय द्वारा या दोनों रीति से निष्पादित की जा सकेगी।

    नियम-31 विनिर्दिष्ट जंगम सम्पत्ति के लिए डिक्री- (1) जहां डिक्री किसी विनिर्दिष्ट जंगम वस्तु के, या किसी विनिर्दिष्ट जंगम वस्तु में वे अंश के लिए है वहां यदि जंगम वस्तु या अंश का अभिग्रहण साध्य हो तो उस जंगम वस्तु के या अंश के अभिग्रहण द्वारा और उस पक्षकार को जिसके पक्ष में वह न्यायनिर्णीत किया गया है या ऐसे व्यक्ति को, जिसे वह अपनी ओर से परिदान प्राप्त करने के लिए नियुक्त करे, परिदान द्वारा या निर्णीतऋणी के सिविल कारागार में निरोध द्वारा उसकी सम्पत्ति की कुर्की द्वारा या दोनों रीति से निष्पादित की जा सकेगी।

    (2) जहां उपनियम (1) के अधीन की गई कोई कुर्की

    [तीन मास] के लिए प्रवृत्त रह चुकी है वहां यदि निर्णीतऋणी ने डिक्री का आज्ञानुवर्तन नहीं किया है और डिक्रीदार ने कुर्क की गई सम्पत्ति के विक्रय किए जाने के लिए आवेदन किया है तो ऐसी सम्पत्ति का विक्रय किया जा सकेगा और आगमों में से न्यायालय डिक्रीदार को उन दशाओं में, जहां जंगम सम्पत्ति के परिदान के अनुकल्पस्वरूप दिए जाने के लिए कोई रकम डिक्री द्वारा निश्चित की गई है, ऐसी रकम और अन्य दशाओं में ऐसा प्रतिकर, जो वह ठीक समझे, दे सकेगा और बाकी (यदि कोई हो) निर्णीतऋणी के आवेदन पर उसे देगा।

    (3) जहां निर्णीतऋणी ने डिक्री का आज्ञानुवर्तन कर दिया गया है और उसका निष्पादन करने के लिए सभी खर्चों का संदाय कर दिया गया है जिनका संदाय करने के लिए वह आबद्ध है या जहां कुर्की की तारीख से [तीन मास] का अन्त होने तक सम्पत्ति के विक्रय किए जाने के लिए कोई आवेदन नहीं किया गया है या किया गया है तो नामंजूर कर दिया गया है वहां कुर्की समाप्त हो जाएगी।

    नियम-32 विनिर्दिष्ट पालन के लिए दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के लिए या व्यादेश के लिए डिक्री-

    (1) जहां उस पक्षकार को, जिसके विरुद्ध संविदा के विनिर्दिष्ट पालन के लिए, या दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के लिए या व्यादेश के लिए कोई डिक्री पारित की गई है, उस डिक्री के आज्ञानुवर्तन के लिए अवसर मिल चुका है और उसका आज्ञानुवर्तन करने में वह जानबूझकर असफल रहा है वहां वह डिक्री [दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के लिए डिक्री की दशा में, उसकी सम्पत्ति की कुर्की के द्वारा या संविदा के विनिर्दिष्ट पालन के लिए या व्यादेश के लिए डिक्री की दशा में सिविल कारागार में उसके निरोध द्वारा या उसकी सम्पत्ति की कुर्की द्वारा, या दोनों रीति से प्रवृत्त की जा सकेगी।

    (2) जहां वह पक्षकार जिसके विरुद्ध विनिर्दिष्ट पालन के लिए या व्यादेश के लिए डिक्री पारित की गई है, कोई निगम है वहां डिक्री उस निगम की सम्पत्ति की कुर्की द्वारा या न्यायालय की इजाजत से उसके निदेशकों या अन्य प्रधान अधिकारियों के सिविल कारागार में निरोध द्वारा या कुर्की और निरोध दोनों रीति से प्रवृत्त की जा सकेगी।

    (3) जहां उपनियम (1) या उपनियम (2) के अधीन की गई कोई कुर्की [छठ मास] के लिए प्रवृत्त रह चुकी है वहां यदि निर्णीतऋणी ने डिक्री का आज्ञानुवर्तन नहीं किया है और डिक्रीदार ने कुर्क की गई सम्पत्ति के विक्रय किए जाने के लिए आवेदन किया है तो ऐसी सम्पत्ति का विक्रय किया जा सकेगा और आगमों में से न्यायालय डिक्रीदार को ऐसा प्रतिकर दे सकेगा जो वह ठीक समझे और बाकी (यदि कोई हो) निर्णीतऋणी के आवेदन पर उसे देगा।

    (4) जहां निर्णीतऋणी ने डिक्री का आज्ञानुवर्तन कर दिया है और उसका निष्पादन करने के लिए सभी खर्चों का संदाय करने के लिए वह आबद्ध है या जहां कुर्की की तारीख से [छह मास] का अन्त होने तक सम्पत्ति के विक्रय किए जाने के लिए कोई आवेदन नहीं किया गया है या यदि किया गया है तो नामंजूर कर दिया गया है वहां कुर्की नहीं रह जाएगी।

    (5) जहां संविदा के विनिर्दिष्ट पालन की या व्यादेश की किसी डिक्री का आज्ञानुवर्तन नहीं किया गया है वहां न्यायालय पूर्वोक्त सभी आदेशिकाओं के या उनमें से किसी के भी बदले में या उनके साथ-साथ निदेश दे सकेगा कि वह कार्य, जिसके किए जाने की अपेक्षा की गई थी, जहां तक हो सके, डिक्रीदार या न्यायालय द्वारा नियुक्त किए गए किसी अन्य व्यक्ति द्वारा निर्णीतऋणी के खर्चे पर किया जा सकेगा और कार्य कर दिए जाने पर जो व्यय उपगत हुए हों वे ऐसी रीति से अभिनिश्चित किए जा सकेंगे जो न्यायालय निदिष्ट करे और इस प्रकार वसूल किए जा सकेंगे मानो वे डिक्री में ही सम्मिलित हों।

    स्पष्टीकरण-शंकाओं को दूर करने के लिए यह घोषणा की जाती है "वह कार्य जिसके किए जाने की अपेक्षा की गई थी' के अन्तर्गत प्रतिषेधात्मक तथा आज्ञापक आदेश आते हैं।

    दृष्टांत- संहिता में नियम 32 के साथ निम्न दृष्टांत दिया गया-

    क, जो बहुत कम सम्पत्ति वाला व्यक्ति है, एक ऐसा निर्माण खड़ा करता है जो ख की कौटुम्बिक हवेली को मानव निवास के अयोग्य बना देता है। क, कारागार में निरुद्ध किए जाने और अपनी सम्पत्ति के कुर्क होने पर भी ख के द्वारा उसके विरुद्ध अधिप्राप्त की गई और अपना निर्माण हटाने के लिए उसे निर्दिष्ट करने वाली डिक्री का आज्ञानुवर्तन करने से इन्कार करता है। न्यायालय की यह राय क की सम्पत्ति के विक्रय द्वारा प्राप्त होने वाली कोई भी राशि इतनी न होगी कि वह ख की हवेली के मूल्य में अवक्षयण के लिए उसको उसके लिए पर्याप्त प्रतिकर हो। ख, न्यायालय से आवेदन कर सकेगा कि वह निर्माण हटा दिया जाए और उसे हटाने के खर्चे की निष्पादन कार्यवाहियों में क से वसूल कर सकेगा।

    जिस डिक्री में धन का संदाय (भुगतान) किया जाना हो, उसके निष्पादन के तरीके नियम 30 में बताये गये हैं। धन के संदाय की डिक्री का निष्पादन निर्णीत ऋणी को सिविल कारागार में निरोध द्वारा या उसकी सम्पत्ति की कुर्की और विक्रय दोनों तरीकों से किया जा सकता है।

    निष्पादन न्यायालय की संतुष्टि, कि निर्णीत ऋणी के पास डिक्री धन की अदायगी के लिए पर्याप्त साधन है के उपरांत भी वह अदायगी नहीं कर रहा है, न्यायालय निर्णीत ऋणी को सिविल कारागार में निषेध कर सकेगा।' परन्तु यदि न्यायालय का यह अभिमत हो कि-डिक्रीदार निर्णीत-ऋणी को अनावश्यक रूप से तंगकर त्रास देने के लिए न्यायालय की क्रिया का दुरुपयोग करना चाहता है, तो न्यायालय ऐसी दशा में डिक्री का निष्पादन उस रीति से करने से मना कर सकता है। कारागार में भेजने के लिए संहिता की धारा 51 तथा धारा 58 के उपबन्धों का पालन करना होगा। धन के संदाय के लिए डिक्री का निष्पादन अन्तिम डिक्री के अभाव में भी किया जा सकता है।

    संयुक्त धनीय-डिक्री का निष्पादन-एक डिक्री संयुक्त धनीय डिक्री थी, जो सभी प्रतिवादियों के विरुद्ध व्यक्तिगत (परसनल) भी थी और उसमें प्रतिभू (गारेन्टर) भी सम्मिलित था। इसके साथ साथ निष्पादन करने पर वह बिना किसी परिसीमा के एक बंधक- डिक्री भी थी। ऐसी स्थिति में निष्पादन में डिक्रीदार को पहले केवल बंधक - डिक्री में निष्पादन कराकर अनुतोष को पूरा करने और फिर प्रतिभू के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

    विनिर्दिष्ट (निश्चित) जंगम (चल) सम्पत्ति की डिक्री का निष्पादन नियम 31 के अनुसार इस प्रकार किया जावेगा-

    (i) जंगम सम्पत्ति को अभिग्रहण कर (कब्जे में लेकर) डिक्रीदार या उसके अधिकृत व्यक्ति को परिदान किया (संभलवाया) जावेगा।

    (ii) ऐसा न हो सकने पर निर्णीत ऋणी को सिविल कारागार भेजा सकता है, या

    (iii) उसकी सम्पत्ति की कुर्की की जावेगी या

    (iv) ये दोनों तरीके अपनाये जावेंगे।

    कुर्की की व्यवस्था-(उपनियम-2 तथा 3)-कुर्क की गई सम्पत्ति को तीन मास में नहीं छुडाने पर इसे डिक्रीदार के आवेदन पर विक्रय (नीलामी) कर डिक्री को चुका दिया जावेगा और बाकी आवेदन करने पर निर्णीत ऋणी को दे दी जावेगी। कुर्की को चुका देने पर या तीन मास समाप्त होने पर यदि डिक्रीदार द्वारा विक्रय के लिए आवेदन नहीं करने पर या उस आवेदन को अस्वीकार कर देने पर कुर्की समाप्त हो जावेगी।

    नियम लागू नहीं होगा-जब कुर्क की जाने वाली सम्पत्ति उस निर्णीत-ऋणी के आधिपत्य (कब्जे) में नहीं है, तो यह नियम लागू नहीं होता।

    जहाँ डिक्री में किसी निश्चित अवधि के भीतर सम्पत्ति देने का निर्देश है और चूक होने पर निर्णीत-ऋणी द्वारा वादी-डिक्रीदार को कुछ निश्चित राशि देनी होगी, तो अभिनिधारित कि यह नियम लागू नहीं होगा और वह सम्पत्ति के विरुद्ध कार्यवाही पूरी किये बिना ही धन-राशि वसूल कर सकेगा।

    निष्पादन के तरीकों का प्रयोग-जब किसी डिक्री में सम्पत्ति के बदले में मूल्य देने का उल्लेख न हो, तो निष्पादन न्यायालय उसका मूल्यांकन तय नहीं कर सकता, पर प्रतिकर (हर्जाना) दिलवा सकता है। यदि डिक्री में यह अनुतोष दिया गया हो कि - जंगम सम्पत्ति का परिदान और उसका मूल्य दिया जाएगा, तो डिक्रीदार उस सम्पत्ति के परिदान के लिए आवेदन करने से पहले उसके मूल्य की राशि के लिए उस डिक्री का निष्पादन नहीं करवा सकता। इसी प्रकार निर्णीत-ऋणी को भी इस बारे में कोई विकल्प (चुनने की छूट) नहीं है।

    नियम 32 में तीन प्रकार की डिक्री के निष्पादन के तरीके इस प्रकार बताये गये हैं-

    (अ) संविदा के विनिर्दिष्ट पालन के लिए-सम्पत्ति की कुर्की द्वारा या सिविल कारागार भेजकर या दोनों।

    (ब) दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के लिए- सम्पत्ति की कुर्की द्वारा।

    (स) व्यादेश (इन्जंक्शन) के लिए - सिविल कारागार भेजने या सम्पत्ति की कुर्की करने या दोनों तरीकों से। (उपनियम 1) उपनियम (5) में प्रतिषेधात्मक और आज्ञापक दोनों प्रकार के व्यादेश आते हैं। अब 2002 में एक स्पष्टीकरण जोड़कर इसे स्पष्ट कर दिया गया है।

    आधार जब डिक्री की पालना करने का अवसर मिलने के बाद भी जानबूझकर आज्ञा का पालन नहीं किया , तभी उपर्युक्त तरीकों से निष्पादन करवाया जा सकता है। यह एक पूर्व शर्त है।

    निगम के बारे में-उपनियम (2) के अनुसार निगम की सम्पत्ति कुर्क की जावेगी-या-न्यायालय की इजाजत से उसके निदेशकों या प्रधान अधिकारियों के विरुद्ध सिविल कारागार में भेजने, या कुर्की और निरोध (गिरफ्तारी) या दोनों तरीके अपनाये जा सकेंगे।

    कुर्की की व्यवस्था-उपनियम (3) के अनुसार छः माह तक कुर्की रहने के बाद निर्णीत-ऋणी उसे नहीं छुड़ता है और डिक्रीदार विक्रय के लिए आवेदन करता है, तो कुर्क की गई सम्पत्ति की नीलामी की जावेगी और आगम राशि में से डिक्रीदार को प्रतिकर (हर्जाना) चुका कर बाकी राशि, यदि हो, तो निणींत- ऋणों के आवेदन करने पर उसको दे दो जावेगी, परन्तु निर्णीत-ऋणी द्वारा डिक्री की पालना कर देने पर या कुर्की की तारीख से छः माह बीत जाने पर कुर्की समाप्त हो जाएगी।

    निर्णीत ऋणी के खर्चे पर कार्य पूरा करवाना - (उपनियम-5)- जब विनिर्दिष्ट पालन या व्यादेश की डिक्री को पालना नहीं की गई हो, तो ऊपर बताये गये तरीकों की बजाय या उनके साथ-साथ उस अपेक्षित कार्य को निर्णीत ऋणी के खर्चे पर पूरा करवाकर उसका खर्च डिक्री में सम्मिलित कर वसूल कर सकेगा।

    व्यादेश कि डिक्री (उपनियम-1)

    व्यादेश के मामले विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 के भाग (3), अध्याय 7 व 8 धारा 13 से 42 तक में दिये गये उपबन्धों से विनियमित होते हैं। उपनियम (1) निवारक तथा शाश्वत दोनों प्रकार के व्यादेशों के मामलों में लागू होता है। व्यादेश के लिए अलग वाद लाना धारा 47 के उपबन्धों से वर्जित है।

    एक मामले में कहा गया है कि आज्ञापक व्यादेश की डिक्री के निष्पादन में स्थावर सम्पत्ति के कब्जे के परिदान (डिलिवरी) के लिए वारण्ट का जारी किया जाना। विचारण-न्यायालय को ऐसा वारण्ट जारी करने की अधिकारिता नहीं है। इस मामले में नियम 32 लागू होता है न कि नियम 35। जहाँ व्यादेश के लिए डिक्री पारित की गई है और जहाँ निर्णीत ऋणी को डिक्री का पालन करने का अवसर प्राप्त था और वह जानबूझकर उसका पालन करने में असफल रहा है, वहाँ सिविल कारागार में उसके निरोध द्वारा या उसकी सम्पत्ति की कुर्की द्वारा, या दोनों द्वारा डिक्री प्रवृत्त की जा सकेगी।

    स्थायी व्यादेश के लिए डिक्री के निष्पादन को यही एकमात्र रीति है। नियम 32 में प्रत्यास्थापन को बिल्कुल भी अनुध्यात नहीं किया गया है। बलात् कब्जाहरण के ऐसे मामले में पक्षकार को उपलब्ध उपचार वाद फाइल करना है। व्यादेश डिक्री के निष्पादन की समयावधि अपीलीय न्यायालय द्वारा पारित डिक्री को दिनांक से लागू होगी, न कि विचारण न्यायालय द्वारा पारित डिक्री की दिनांक से।

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