सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 112: आदेश 21 नियम 23 से 25 के प्रावधान

Shadab Salim

31 Jan 2024 8:05 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 112: आदेश 21 नियम 23 से 25 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 21 का नाम डिक्रियों और आदेशों का निष्पादन है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 23 से 25 तक टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम-23 सूचना के निकाले जाने के पश्चात् प्रक्रिया - (1) जहाँ वह व्यक्ति, जिसके नाम [नियम 22] के अधीन सूचना निकाली गई है, उपसंजात नहीं होता है या न्यायालय को समाधानप्रद रूप में हेतुक दर्शित नहीं करता है कि डिक्री का निष्पादन क्यों न किया जाए वहाँ न्यायालय आदेश देगा कि डिक्री का निष्पादन किया जाए।

    (2) जहाँ ऐसा व्यक्ति डिक्री के निष्पादन के विरुद्ध कोई आक्षेप पेश करता है वहाँ न्यायालय ऐसे आक्षेप पर विचार करेगा और ऐसा आदेश करेगा जो वह ठीक समझे।

    नियम-24) निष्पादन के लिए आदेशिका (1) जब पूर्वगामी नियमों द्वारा अपेक्षित प्रारम्भिक उपाय (यदि कोई हो) किए जा चुके हों तब, जब तक कि न्यायालय को इसके प्रतिकूल हेतुक दिखाई न दे, वह उस डिक्री के निष्पादन के लिए अपनी आदेशिका निकालेगा।

    (2) हर ऐसी आदेशिका में उस दिन की तारीख लिखी जाएगी जिस दिन वह निकाली गई है और वह न्यायाधीश द्वारा या ऐसे अधिकारी द्वारा जो न्यायालय इस निमित्त नियुक्त करे, हस्ताक्षरित की जाएगी और न्यायालय की मुदा से मुदांकित की जाएगी और निष्पादित किए जाने के लिए उचित अधिकारी को परिदत्त की जाएगी।

    [(3) हर ऐसी आदेशिका में यह दिन विनिर्दिष्ट किया जाएगा जिस दिन या जिसके पूर्व वह निष्पादित की जाएगी और वह दिन भी विनिर्दिष्ट किया जाएगा जिस दिन या जिसके पूर्व वह न्यायालय को वापस की जाएगी, किन्तु कोई भी आदेशिका उस दशा में शून्य नहीं समझी जाएगी जिसनें उसके लौटाए जाने के लिए कोई दिन उसमें विनिर्दिष्ट नहीं किया गया हो।]

    नियम-25 आदेशिका पर पृष्ठांकन (1) वह अधिकारी जिसे आदेशिका का निष्पादन सौंपा गया है उस पर वह दिन जब, और वह रीति, जिससे वह निष्पादित की गई है, और यदि उसके लौटाए जाने के लिए आदेशिका में विनिर्दिष्ट अन्तिम दिन से अधिक समय निकल गया है तो विलम्ब का कारण या यदि वह निष्पादित नहीं की गई थी तो वह कारण जिससे उसका निष्पादन नहीं किया गया, पृष्ठोंकित करेगा और उस आदेशिका को ऐसे पृष्ठांकन के साथ न्यायालय को लौटाएगा।

    (2) जहाँ पृष्ठांकन इस भाव का है कि ऐसा अधिकारी आदेशिका का निष्पादन करने में असमर्थ है वहाँ न्यायालय उसकी अभिकथित असमर्थता के बारे में उसकी परीक्षा करेगा और यदि वह ऐसा करना ठीक समझे तो ऐसी असमर्थता के बारे में साक्षियों को समन और उनकी परीक्षा कर सकेगा और परिणाम को अभिलिखित करेगा।

    नियम 23 में सूचना के निकाले जाने के पश्वात् की प्रक्रिया बताई गई है। वर्ष 1976 में नियम 12 के बाद नियम 22-क जोड़ा गया था, उसके परिणामस्वरूप इस नियम में संशोधन किया गया है।

    सूचना पर कार्यवाही-जब नियम 22 की सूचना निकालने पर-

    (1) यदि निर्णीत ऋणी उपस्थित नहीं होता है या उचित कारण दर्शित नहीं करता है, तो न्यायालय निष्पादन करने का आदेश देगा,

    (2) परन्तु डिक्री के विरुद्ध आक्षेप प्रस्तुत किये जाने पर उन पर न्यायालय विचार करेगा और उचित आदेश देगा।

    निष्पादन करने के आदेश का प्रभाव - यदि सूचना की प्राप्ति के बाद निर्णीत-ऋणी हाजिर नहीं होता अथवा न्यायालय के समाधानपर्यन्त यह हेतुक दर्शित नहीं करता कि डिक्री क्यों न निष्पादित को जाए, तो न्यायालय डिक्री के निष्पादन का आदेश देगा। ऐसा आदेश स्वतः प्रवृत्त नहीं है, किन्तु इसमें यह न्यायनिर्णयन विवक्षित है कि डिक्रीदार को डिक्री निष्पादित कराने का अधिकार है, निर्णीत-ऋणी डिक्री के निष्पादन के दायित्वाधीन है और निष्पादन आवेदन परिसीमा से वर्जित नहीं है।

    डिक्री की निष्पादनीयता का एतराज - जब एक व्यक्ति को नियम 22 के अधीन नोटिस दिया गया और वह उपस्थित होने तथा अपने कथन (एतराज) उठाने में असफल रहा, तो वह बाद के किसी प्रक्रम पर डिक्री की निष्पादनीयता के बारे में कोई एतराज नहीं उठा सकता। परन्तु जब उक्त नोटिस नहीं दिया गया, तो वह ऐसा एतराज बाद के प्रक्रम पर उठा सकता है।

    धारा 47 व आदेश 21 नियम 23 (2) - डिक्री के निष्पादन में धारा 47 के अन्तर्गत निर्णित ऋणी द्वारा विशिष्ट रूप से उठाये गये विवाद को आदेश 21 नियम 23 (2) के प्रावधान के अधीन पुनः नहीं उठाया जा सकता।

    नियम 24 व 25 में निष्पादन के लिए आदेशिका निकालने व उस पर पृष्ठांकन की व्यवस्था की गई है। निष्पादन की कार्यवाही में अनेक नियमों के अधीन आदेशिकायें निकाली जाती हैं, वे इन नियमों के अनुसार निष्पादित की जायेंगी।

    वर्ष 1976 में उप- नियम (3) को अन्तः स्थापित कर आदेशिका में वापसी का दिनांक न लिखने पर उसे शून्य होने से बचाया गया है।

    आदेशिका कब निकाली जाएगी [नियम 24, उपनियम (1)]-इसके लिए दो शर्तें दी गई हैं-

    (1) पूर्वगामी (पिछले) नियमों में चाहे गये प्रारंभिक उपाय (यदि कोई हों) पूरे कर लिए गये हैं और

    (2) जब तक न्यायालय को कोई प्रतिकूल हेतुक दिखाई न दे।

    (इन दोनों शर्तों के पूरा होने पर न्यायालय डिक्री के निष्पादन के लिए आदेशिका निकालेगा। ये आदेशिकायें सम्पत्ति की कुर्की, विक्रय, निर्णीत-ऋणी की गिरफ्तारी और उसे सिविल जेल भेजने के लिए निकाली जावेगी, जिनके बारे में आगे नियमों में उपबंध किये गये हैं और पहली अनुसूची के परिशिष्ट (ड) में निर्धारित प्ररूप (फार्म) दिये गये है; उन्हीं का उपयोग किया जाएगा।

    इसके प्रतिकूल हेतुक दिखाई न दे इस शब्दावली का प्रयोग कर न्यायालय को यह शक्ति दी गई है कि यदि उसे कोई प्रतिकूल हेतुक (या विपरीत कारण) दिखाई दे, तो वह आदेशिका जारी नहीं करेगा।

    आदेशिका का स्वरूप नियम 24 का उपनियम (2) आदेशिका के स्वरूप के बारे में निम्न बातें बताता है-

    (1) हर एक आदेशिका में उसके जारी करने (निकालने) की तारीख लिखी जाएगी,

    (2) न्यायाधीश द्वारा या उसके द्वारा नियुक्त अन्य अधिकारी द्वारा उस पर हस्ताक्षर किये जायेंगे,

    (3) उस पर न्यायालय की मुद्रा (मोहर) की जावेगी।

    (4) निष्पादित करने के लिए उचित अधिकारी को दी जावेगी

    (5) उप नियम (3) के अनुसार उसमें-

    वह दिनांक भी अंकित होगी, जिसके पहले उसे निष्पादित किया जाएगा, और वह दिनांक भी अंकित किया जाएगा, जिसको या जिसके पहले उस आदेशिका को न्यायालय में वापस किया जाएगा।

    उप नियम (3) के अनुसार उसमें लौटाये जाने की दिनांक अंकित नहीं करने के कारण उसे शून्य नहीं माना जावेगा। इनके अलावा यदि इस बारे में आपके उच्च न्यायालय ने कोई नियम बनाये हैं, तो उनका भी पालन किया जावेगा।

    दिन भी विनिर्दिष्ट किया जाएगा, जिस दिन या जिसके पूर्व वह न्यायालय को वापस की जाए निष्पादन के वारंट में वह दिन अंकित किया जाएगा जिसके पहले वह वारंट न्यायालय को वापस किया जाएगा।

    इस प्रकार निष्पादन की अवधि वारंट में होगी। ऐसा दिन या अवधि अंकित नहीं होने पर वह वारंट अवैध होगा और उसका प्रतिरोप (अड़चन) करना अवैध नहीं होगा। निश्चित दिन के बाद उसे निष्पादित करने पर किए गए प्रतिरोप के लिए भारतीय संहिता की धारा 186 का अपराध नहीं बनेगा। अब वापसी का दिनांक न देने से आदेशिका अवैध नहीं होगी।

    निष्पादन के लिए आदेशिका - इस आदेशिका में उस दिनांक का उल्लेख करना आज्ञापक है जिसको या जिससे पहले डिक्री का निष्पादन किया जाना आवश्यक है।

    नियम आज्ञापक- आदेशिका के निष्पादन संबंधी नियम आज्ञापक हैं। बिना न्यायालय मुद्रा के वारंट से की गई कुर्की अवैध मानी गई। गिरफ्तारी के वारंट में नियम में बताया गया पूरा विवरण होना आवश्यक है। खाली वारंट, जिस पर निष्पादन कर्ता का नाम नहीं दिया गया था; अवैध माना गया।

    जब न्यायालय का एक अधिकारी एक निर्णीत-ऋणी को गिरफ्तार करता है उस समय उसके पास गिरफ्तारी का वारंट कब्जे में नहीं था। अभिनिर्धारित कि वह गिरफ्तारी अवैध थी।

    उचित अधिकारी (Proper Officer)- जब आदेशिका उचित अधिकारी को परिदत की (दी) जाती है, तो यह आवश्यक नहीं है कि वह स्वयं उसको निष्पादित करे। वह अपने किसी अधीनस्थ को निष्पादिन करने के लिए उस आदेशिका को दे सकता है। वह किसी अन्य अधिकारी को निष्पादन करने के लिए अधिकृत कर सकता है।

    न्यायालय के नाजिर को अधिकृत किया जा सकता है। परन्तु यह प्रत्यायोजन उचित पृष्ठांकन द्वारा होना आवश्यक है। परन्तु न्यायालय के चपरासी के नामांकित आदेशिका को उस न्यायालय का नाजिर निष्पादित नहीं करा सकता। इस प्रकार जिस व्यक्ति को आदेशिका पर पृष्ठांकन (एन्डोर्समेंट) द्वारा निष्पादन के लिए नामांकित करके (नाम लिखकर या पदनाम लिखकर) अधिकृत किया जाता है, वही उसका निष्पादन कर सकेगा, दूसरा व्यक्ति नहीं।

    विनिर्दिष्ट दिन को निष्पादन आवश्यक [आदेश 21, नियम 24(3) और 25(1)] अधिवक्ता आयुक्त द्वारा, जो न्यायालय का अभिकर्ता होता है, कब्जे का परिदान उसी रीति से कराया जाना चाहिए, जिसे कब्जे के परिदान की आदेशिका में विनिर्दिष्ट किया गया हो। आदेशिका में नियत तारीख के पश्चात् कराए गए कब्जे के परिदान की कार्यवाही अविधिमान्य है।

    निष्पादन- कार्यवाही के दौरान डिक्रीदार की मृत्यु उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 214 के अधीन विधिक वारिसों (उत्तराधिकारियों) को निष्पादन कार्यवाही को जारी रखने के लिए उत्तराधिकार प्रमाणपत्र प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है।

    निष्पादन संबंधी प्रश्नों में अधिकारिता निष्पादन न्यायालय को ऐसे मामलों में एक मात्र अधिकारिता होती है, जिसका एक अपवाद है- आधिपत्य (कब्जे) की डिक्री का निष्पादन। जब कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा दी गई पुलिस मदद से कब्जा ले लिया गया, तो निष्पादन शून्य है। इसकी वैधता का प्रश्न उस समय उठाया जा सकता है, जब कि उसे लागू करना हो। इसे अपास्त कराने के लिए निष्पादन न्यायालय का मार्ग अपनाना आवश्यक नहीं है।

    आधिपत्य की डिक्री के निष्पादन में पुलिस सहयोग केवल निष्पादन-न्यायालय के द्वारा ही पुलिस सहयोग इस मामले में दिलवाया जा सकता है। कार्यपालक मजिस्ट्रेट दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 107/144 के अपील कार्यवाही में पारित आदेश द्वारा पुलिस सहायता नहीं दिलवा सकता।

    निष्पादन आवेदन में संशोधन [धारा 151 और 153 सपठित आदेश 21, नियम 17 और 24]-यदि संशोधित आदेश द्वारा निष्पादन आवेदन की प्रकृति (स्वरूप) को बदलना चाहा गया है, तो उक्त धाराओं के अधीन न्यायालय की शक्ति का आश्रय नहीं लिया जा सकता। आदेश 21, नियम 24 के अधीन आदेशिका जारी करने के पश्चात् भी निष्पादन - आवेदन में संशोधन करने के लिए उक्त धाराओं का आश्रय नहीं लिया जा सकता, यदि चाहा गया संशोधन निष्पादन के आवेदन की प्रकृति या रूप को परिवर्तित करता हो।

    नियम 17 के उपनियम (1) के अधीन यथा परिकल्पित (जैसा चाहा गया) आवेदन प्राप्त करना और नियम 17 के उपनियम (4) के अधीन आवेदन ग्रहण करना दोनों ही सुभित्र (अलग) बातें हैं और सुभित्र प्रक्रम (स्टेज) हैं। नियम 17 के अधीन आवेदन की बाबत संशोधन केवल उक्त नियम के उपनियम (4) के अधीन न्यायालय द्वारा संवीक्षा किए जाने से पूर्व किए जा सकते हैं।

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