सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 107: आदेश 21 नियम 15 के प्रावधान

Shadab Salim

29 Jan 2024 7:53 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 107: आदेश 21 नियम 15 के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 21 का नाम डिक्रियों और आदेशों का निष्पादन है। इस आदेश का नियम 15 संयुक्त डिक्रीदार से संबंधित है। कभी कभी यह स्थिति होती है कि कोई डिक्री संयुक्त रूप से होती है तब उन संयुक्त डिक्रीधारी द्वारा निष्पादन की कार्यवाही किस प्रकार की जाए यह नियम 15 में बताया गया है।

    नियम-15 संयुक्त डिक्रीदार द्वारा निष्पादन के लिए आवेदन- (1) जहां डिक्री एक से अधिक व्यक्तियों के पक्ष में संयुक्त रूप से पारित की गई है वहां, जब तक कि डिक्री में इसके प्रतिकूल कोई शर्त अधिरोपित न हो, पूरी डिक्री के निष्पादन के लिए आवेदन ऐसे व्यक्तियों में से कोई एक या अधिक अपने सभी के फायदे के लिए या जहां उनमें से किसी की मृत्यु हो गई वहां मृतक के उत्तरजीवियों और विधिक प्रतिनिधियों के फायदे के लिए कर सकेगा।

    (2) जहां न्यायालय डिक्री का निष्पादन इस नियम के अधीन किए गए आवेदन पर अनुज्ञात करने के लिए पर्याप्त हेतुक देखे वहां वह ऐसा आदेश करेगा जो वह उन व्यक्तियों के जो आवेदन करने में सम्मिलित नहीं हुए हैं, हितों के संरक्षण के लिए आवश्यक समझे।

    संयुक्त डिक्री के निष्पादन के लिए कोई एक डिक्रीदार आवेदन कर सकेगा। इस बारे में प्रक्रिया इस नियम में दी गई है।

    निम्न शर्तें पूरी होने पर एक संयुक्त डिक्रीदार उस डिक्री के निष्पादन के लिए आवेदन दे सकेगा-

    (1) वह एक संयुक्त डिक्री है, जिसमें एक से अधिक डिक्रीदार हैं।

    (2) उस डिक्री में इस नियम के प्रतिकूल कोई शर्त नहीं लगाई गई है।

    (3) ऐसे संयुक्त डिक्रीदारों में से कोई एक या अधिक पूरी डिक्री के निष्पादन के लिए आवेदन, सभी के फायदे के लिए और मृतक के उत्तरजीवियों और विधिक प्रतिनिधियों के फायदे के लिए, कर सकता है।

    न्यायालय का दायित्व (उपनियम-1)-जब न्यायालय को ऐसे आवेदन पर विचार करते समय कोई पर्याप्त कारण दिखे, तो वह इसमें सम्मिलित न होने वाले व्यक्तियों के हित का संरक्षण करने के लिए आवश्यक आदेश करेगा। यह न्यायालय का दायित्व है और एक आज्ञापक उपबंध है।

    संयुक्त डिक्री का स्वरूप जब एक से अधिक व्यक्तियों के पक्ष में संयुक्त रूप से डिक्री पारित की जाती है तो उसे संयुक्त डिक्री कहा जाता है। जहां डिक्री के द्वारा डिक्रीदारों के भाग तय किये गये हैं, तो भी वह एक संयुक्त डिक्री है। एक मत है कि जब कई डिक्रीदारों के हितों को डिक्री में अलग-अलग दिखाया गया हो, तो उसे संयुक्त डिक्री नहीं कहा जा सकता। परन्तु दूसरे मत के अनुसार डिक्री की विषय-वस्तु का विभाजन (apportionment) होने से वह डिक्री संयुक्त होने से प्रवारित नहीं हो जाती।

    जहां डिक्री में प्रत्येक वादी डिक्रीदार की बकाया रकम अंकित की गई, परन्तु नुक्सानी (damages) तथा खर्च एक साथ दिखाये गये, तो भी वह संयुक्त डिक्री है, जिसमें से अपने हितों के लिए उनमें से कोई डिक्रीदार उसका निष्पादन करवा सकता है।

    संयुक्त डिक्री का निष्पादन अपवाद साधारणतया एक संयुक्त डिक्री को संयुक्त डिक्रीदारों की ओर से निष्पादित करवाया जाता है, परन्तु आदेश 21, नियम 15 इसका एक अपवाद है। एक संयुक्त डिक्री विभावनीय नहीं है और निष्पादित की जा सकती है और संयुक्त डिक्री के रूप में सदा निष्पादनीय रहती है। जहां डिक्रीदार के हिस्से बताये गये हैं या उनका पता लगाया जा सकता है या जहां हिस्सों का कोई विवाद नहीं है, तो संयुक्त डिक्री के किसी भाग का भी निष्पादन करवाया जा सकता है, अन्यथा निष्पादन-न्यायालय डिक्रीदारों के हिस्सों का पता नहीं लगा सकता। सह डिक्रीदारों के बीच का विवाद धारा 47 सीपीसी के परिक्षेत्र के बाहर है।

    विधिक-प्रतिनिधि-द्वारा निष्पादन जब दो डिक्रीदारों में से एक की मृत्यु हो गई, तो जीवित डिक्रीदार अपनी ओर से और उस मृतक डिक्रीदार के विधिक प्रतिनिधियों की ओर से आदेश 21, नियम 15 के अनुसार उस डिक्री का निष्पादन करवा सकता है और उत्तराधिकार अधिनियम के अधीन उत्तराधिकार प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है।

    सह डिक्रीदार द्वारा निष्पादन एक सह डिक्रीदार को दूसरे सभी सह डिक्रीदारों के लाभ के लिए एक संयुक्त डिक्री के निष्पादन की कार्यवाही करने की छूट है। एक फर्म के विरुद्ध डिक्री संयुक्त विक्री है जिसमें फर्म के सभी भागीदार संयुक्त डिक्रीदार होते हैं। एक डिक्रीदार की मृत्यु के बाद उसके कई उत्तराधिकारी संयुक्त डिक्रीदार के रूप में होते हैं। एक अविभाज्य हिन्दू मिताक्षरा कुटुम्ब के सहदायिकों के पक्ष में डिक्री संयुक्त डिक्री होती है। अतः उनमें से कोई सहदायिक निष्पादन के लिए आवेदन कर सकता है। एक डिक्री तीन भाइयों के पक्ष में संयुक्त रूप से दी गई है, तो उनमें से कोई भाई सब के हित के लिए उस डिकी का निष्पादन करवा सकता है।

    जब संयुक्त डिक्री का एक भाग निर्णीत-ऋणी को अन्तरित कर दिया गया जब किसी अचल सम्पत्ति की एक संयुक्त डिक्री चार डिक्रीदारों के पक्ष में थी, तो उनमें से एक डिक्रीदार ने अपना हित उस सम्पति में से निर्णीत-ऋणी को अन्तरित कर दिया गया। वह डिक्री उस अन्तरित हित की सीमा तक शान्त हो गई और इसके बाद उसके शेष भाग का निष्पादन करवाया जा सकता है।

    कई डिक्रीदारों में से एक द्वारा निष्पादन डिक्री अविभाजनीय-जब संयुक्त डिक्री का निष्पादन करवाने के लिए कई डिक्रीदारों में से एक आवेदन करता है, तो नियम 15 के अनुसार यह सम्पूर्ण डिक्री का अपनी ओर से तथा अन्य डिक्रीदारों की ओर से निष्पादन करवा सकता है। परन्तु यह उस डिक्री में जो अपना भाग (हिस्सा) समझता है केवल उसके लिए आवेदन नहीं कर सकता। इस प्रकार डिक्री अविभाजनीय होती है और उसमें से आनुपातिक भाग को अलग नहीं किया जा सकता।

    स्पष्ट भाग (हिस्से) बताने वाली डिक्री निष्पादन योग्य एक संयुक्त डिक्री में यदि डिक्रीदारों के भाग (हिस्से) अलग-अलग तय कर प्रत्येक का हित स्पष्ट अंकित किया गया हो, तो न्यायालय संयुक्त डिक्री होते हुए भी उस हिस्सेदार के भाग तक डिक्री का निष्पादन कर सकता है।

    जब निर्णीत-ऋणी डिक्री की सम्पूर्ण राशि किसी एक डिक्रीदार को दे देता है, तो दूसरे डिक्रीदार उस डिक्री की राशि में अपने हिस्से के लिए उस डिक्री का निष्पादन करवा सकते हैं।

    जब तक कि डिक्री में इसके प्रतिकूल कोई शर्त अधिरोपित न हो जहां डिक्री को शर्त द्वारा उसके निष्पादन के लिए सब डिक्रीदारों द्वारा संयुक्त रूप से आवेदन करने पर निर्भर बना दिया गया, तो इस नियम के उपबन्ध उस मामले में लागू नहीं होंगे।

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