सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 106: आदेश 21 नियम 10 से 14 तक के प्रावधान

Shadab Salim

27 Jan 2024 10:05 AM GMT

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 106: आदेश 21 नियम 10 से 14 तक के प्रावधान

    सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 21 का नाम डिक्रियों और आदेशों का निष्पादन है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 10 से 14 तक के प्रावधानों पर चर्चा प्रस्तुत की जा रही है।

    नियम-10 निष्पादन के लिए आवेदन- जहां डिक्री का धारक उसका निष्पादन कराना चाहता है वहां वह डिक्री पारित करने वाले न्यायालय से या इस निमित्त नियुक्त अधिकारी से (यदि कोई हो) या यदि डिक्री किसी अन्य न्यायालय को इसमें इसके पूर्व अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अधीन भेजी गई है तो उस न्यायालय से या उसके उचित अधिकारी से आवेदन करेगा।

    नियम-11 मौखिक आवेदन (1) जहां डिग्री धन के संदाय के लिए है वहां, यदि निर्णीत ऋणी न्यायालय की परिसीमाओं के भीतर है तो, न्यायालय डिक्री पारित करने के लिए समय डिकीदार द्वारा किए गए मौखिक आवेदन पर आदेश दे सकेगा कि वारण्ट की तैयारी के पूर्व ही डिकी का अविलम्ब निष्पादन निर्णीत ऋणी की गिरफ्तारी द्वारा किया जाए।

    (2) लिखित आवेदन- उसके सिवाय जैसा उपनियम (1) द्वारा उपबन्धित है, डिकी के निष्पादन के लिए हर आवेदन लिखा हुआ और आवेदक या किसी अन्य ऐसे व्यक्ति द्वारा, जिसके बारे में न्यायालय को समाधानप्रद रूप में साबित कर दिया गया है कि वह मामले के तथ्यों से परिचित है, हस्ताक्षरित और सत्यापित होगा और उसमें सारणीबद्ध रूप में निम्न विशिष्टियां होगी, अर्थात्

    (क) वाद का संख्यांक,

    (ख) पक्षकारों के नाम,

    (ग) डिक्री की तारीख,

    (घ) क्या डिक्री के विरुद्ध कोई अपील की गई है,

    (ड) क्या डिक्री के पश्चात् पक्षकारों के बीच कोई संदाय या विवादग्रस्त बात का कोई अन्य समायोजन है और (यदि कोई हुआ है तो) कितना या क्या,

    (च) क्या डिक्री के निष्पादन के लिए कोई आवेदन पहले किए गए है और (यदि कोई किए गए है तो) कौन से हैं और ऐसे आवेदनों की तारीखें और उनके परिणाम,

    (छ) डिकी मद्धे शोध्य रकम, यदि कोई ब्याज हो तो उसके सहित, या उसके द्वारा अनुदत्त अन्य अनुतोष, किसी प्रतिडिकी की विशिष्टियों के सहित चाहे वह उस डिकी की तारीख के पूर्व या पश्चात् पारित की गई हो जिसका निष्पादन चाहा गया है,

    (ज) अधिनिर्णीत खर्चा की (यदि कोई हो) रकम,

    (झ) उस व्यक्ति का नाम जिसके विरुद्ध डिक्री का निष्पादन चाहा गया है, तथा

    (ञ) वह ढंग जिसमें न्यायालय की सहायता अपेक्षित है अर्थात् क्या -

    (1) किसी विनिर्दिष्टतः डिक्री सम्पत्ति के परिदान द्वारा;

    किसी सम्पत्ति की कुर्की द्वारा या कुर्की और विषय द्वारा या कुर्की के बिना विक्रय द्वारा,]

    किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी और कारागार में निरोध द्वारा;

    (iv) रिसीवर की नियुक्ति द्वारा,

    (v) अन्यथा, जो अनुदत्त अनुतोष की प्रकृति से अपेक्षित है।

    (3) जिस न्यायालय से उपनियम (2) के अधीन आवेदन किया गया है, वह आवेदक से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह डिक्री की एक प्रमाणित प्रति पेश करे।

    नियम-11 (क) गिरफ्तारी के लिए आवेदन में आधारों का कथित होना- जहां निर्णीतऋणी की गिरफ्तारी और कारागार में निरोध के लिए आवेदन किया जाता है वहां उसने उन आधारों का जिन पर गिरफ्तारी के लिए आवेदन किया गया है, कथन होगा या उसके साथ एक शपथपत्र होगा जिसमें उन आधारों का जिन पर गिरफ्तारी के लिए आवेदन किया गया है, कथन होगा।

    नियम-12 ऐसी जंगम सम्पत्ति की कुर्की के लिए आवेदन जो निर्णीतऋणी के कब्जे में नहीं है- जहां किसी ऐसी जंगम सम्पत्ति की कुर्की के लिए आवेदन किया गया है जो निर्णीत ऋणी की है किन्तु उसके कब्ज में नहीं है वहां डिक्रीदार उस सम्पत्ति का जिसकी कुर्की की जानी है युक्तियुक्त रूप से यथार्थ वर्णन अन्तर्विष्ट करने वाली एक सम्पत्ति तालिका आवेदन के साथ उपाबद्ध करेगा।

    नियम-13 स्थावर सम्पत्ति की कुर्की के आवेदन में कुछ विशिष्टियों का अन्तर्विष्ट होना जहां निर्णीत ऋणी की किसी स्थावर सम्पत्ति की कुर्की के लिए आवेदन किया जाता है वहां उस आवेदन के पाद-भाग में निम्नलिखित बाते अन्दर्दिष्ट होगी, अर्थात-

    (क) ऐसी सम्पत्ति का ऐसा वर्णन जो उसे पहचानने के लिए पर्याप्त है और उस दशा में जिसमें ऐसी सम्पत्ति सीमाओं द्वारा या भू-व्यवस्थापन या सर्वेक्षण के अभिलेख के संख्यांकों के द्वारा पहचानी जा सकती है. ऐसी सीमाओं या संख्यांकों का विनिर्देश, तथा

    (ख) निर्णीतऋणी का ऐसी सम्पत्ति में, जो अंश या हित आवेदक के सर्वोत्तम विश्वास के अनुसार है और जहां तक वह उसका अभिनिश्चय कर पाया हो वहां तक उस अंश या हित का विनिर्देश।

    नियम-14 कलेक्टर के रजिस्टर में से प्रमाणित उद्धरणों की कुछ दशाओं में अपेक्षा करने की शक्ति- जहां किसी ऐसी भूमि की कुर्की के लिए आवेदन किया जाता है जो कलेक्टर के कार्यालय में रजिस्ट्रीकृत है वहा न्यायालय आवेदक से अपेक्षा कर सकेगा कि वह उस भूमि के स्वत्वधारी के रूप में या उस भूमि में या उसके राजस्व में कोई अन्तरणीय हित रखने वाले के रूप में या उस भूमि के लिए राजस्व देने के दायी के रूप में रजिस्टर में दर्ज व्यक्तियों का और रजिस्टर में दर्ज स्वत्वधारियों के अंशों को विनिर्दिष्ट करने वाला प्रमाणित उद्धरण ऐसे कार्यालय के रजिस्टर में से पेश करे।

    आदेश 21 के नियम 1 से 14 में निष्पादन के आवेदन संबंधी मुख्य बातें बताई गई हैं-

    2. निष्पादन के लिए आवेदन-

    (क) कौन कर सकता है - शब्द डिक्री का धारक (Holder of a decree) की व्यापकता- यहां शब्द डिक्री का धारक का प्रयोग किया गया है, न कि डिक्रीदार का। अतः इस शब्द में निम्नलिखित भी सम्मिलित माने गये हैं-

    (1) डिक्री में जिसका नाम डिक्रीदार के रूप में लिखित है, वह डिक्रीदार

    (2) आदेश 21, नियम 15 के अधीन कोई संयुक्त डिक्रीदारों में से कोई एक,

    (3) आदेश 21, नियम 16 के अधीन डिक्री का कोई अन्तरिती या

    (4) डिक्रीदार का कोई समनुदेशिती। वह डिक्रीदार के साथ संयुक्त आवेदन कर सकता है।

    वास्तव में हितधारी व्यक्ति डिक्री का धारक नहीं माना गया है, जो डिक्रीदार को बेनामी बताता है। बेनामी संव्यवहार अब अवैध हो गए हैं।

    (ख) न्यायालय-निर्णय

    विवादग्रस्त भूमि की बाबत घोषणा और व्यादेश हेतु वाद किया जाना और पक्षकारों के बीच हुए समझौते के आधार पर पारित डिक्री को रजिस्ट्रीकृत कराया जाना। यदि डिक्री को रजिस्ट्रीकृत करा लिया गया हो तो उसकी विधिमान्यता को चुनौती नहीं दी जा सकती- यदि समझौते के दौरान मामले के निपटारे के लिए कोई पक्षकार अपने दावे का कोई भाग छोड़ देता है या सम्पत्ति के किसी और भाग को शामिल कर लिया जाता है तो यह नहीं कहा जा सकता कि ऐसी स्थिति में पारित डिक्री वाद से सम्बन्धित है।

    घोषणात्मक डिक्री का निष्पादन [आदेश 21 नियम 10 सठित औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947-धारा 33-ग (2)]- सिविल न्यायालय द्वारा प्रत्यर्थी के पक्ष में की गई डिक्री का निष्पादन याची राज्य द्वारा डिक्री के घोषणात्मक प्रकृति की होने के अभिवाक पर स्थगन का प्रश्न ज्येष्ठता और प्रोत्रति के मामलों में मुकदमेबाजी का दृष्टिकोण अपनाना उचित नहीं- ऐसे मामलों में सिविल न्यायालयों द्वारा पारित डिक्री को सम्मान देते हुए गहरी दिलचस्पी लेने का स्वर अपनाया जाना चाहिए।

    अपील की डिक्री का प्रभाव जब विचारण-न्यायालय ने डिक्रीदार को किसी नियत समय में कोई राशि जमा कराने का निर्देश दिया। इसके बाद अपील हो गई और अपीली डिक्री दे दी गई, तो उस नियत समय की गणना अपीली-डिक्री के दिनांक से की जावेगी और डिक्रीदार को नियत समय में वह राशि जमा करानी होगी।

    नये भार का प्रभाव- जब निर्णीत-ऋणी की कुछ जंगम सम्पत्ति पर किसी डिक्री द्वारा भार (चार्ज) सृजित हो गया हो, तो भी डिक्रीदार उस निर्णीत ऋणी की व्यक्तिगत सम्पत्तियों के विरुद्ध कार्यवाही कर सकता है। यह भार डिक्रीदार के लाभ के लिए है और वह उस पर निर्भर करने के लिए बाध्य नहीं है।

    एक वाद में कहा गया है कि व्यादेश की डिक्री निष्पादनीय नहीं यह उल्लेख करना समुचित होगा कि व्यादेश की डिक्री अनिष्पादनीय है, किन्तु इसे प्रभावी बनाने के लिए कदम उठाये जा सकते हैं। व्यादेश के आदेश को लागू करने के लिए डिक्रीदार को सदा पुलिस की सहायता प्राप्त करने की छूट है और उस प्रयोजन के लिए वह धारा 151, सीपीसी के अधीन सिविल न्यायालय की अन्तर्निहित अधिकारिता को जागृत कर सकता है, या संविधान के अनुच्छेद 226 के अधीन उच्च न्यायालय की असाधारण अधिकारिता को जागृत कर सकता है। अतः जिला मुन्सिफ ने व्यादेश की डिक्री के निष्पादन के आवेदन को नामंजूर करने में कोई गलती नहीं की।

    एक पक्षीय डिक्री के अपास्त होने के बाद दी गई नई डिक्री का निष्पादन-

    जब एक एकपक्षीय डिक्री किसी दूसरे न्यायालय को निष्पादन के लिए भेज दी गई, इसी बीच मूल न्यायालय ने उस एकपक्षीय डिक्री को अपास्त कर नई डिक्री दे दी, जिसमें वही समान शर्तें थीं। जब एक पक्षीय डिक्री अपास्त हो गई तो उसके निष्पादन की कार्यवाही का अन्त हो गया। अब नई डिक्री का यह न्यायालय निष्पादन नहीं कर सकता, जब तक कि एक नये आदेश से उस नई डिक्री को उसे अन्तरित न कर दिया जावे है।

    पुनर्विलोकन संभव- मूल ऋणी के विरुद्ध तथा सम्पत्ति के विरुद्ध कार्यवाही किए बिना उसके प्रतिभू के विरुद्ध डिक्री के निष्पादन की कार्यवाही की गई, जिसमें गारण्टीदाता (प्रतिभू) ने एतराज किया और विधि की गलत धारणा के आधार पर निष्पादन-न्यायालय ने उस एतराज को स्वीकार कर लिया। इसके बाद निष्पादन न्यायालय अपने उस निर्णय का पुनर्विलोकन कर सकता है।

    (ग) आवेदन किस को किया जावेगा- डिक्री के निष्पादन के लिए आवेदन (1) डिक्री पारित करने वाले न्यायालय था उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त अधिकारी को या (2) अन्तरिती न्यायालय को या उसके द्वारा इस निमित नियुक्त उचित अधिकारी को किया जावेगा।

    (3) आवेदन का स्वरूप (नियम-11) यह आवेदन नियम 11 के अनुसार तथा परिशिष्ट (ङ) के संध्यांक 6 में दिया जायेगा, जिसमें उपनियम (2) में दी गई (क) से (अ) तक की विशिष्टियां दी जायेंगी।

    4. आवेदन में विशिष्टियां आने के नियमों के अनुसार आवेदन में निम्न प्रकार की विशिष्टियां देना आवश्यक

    (1) नियम 11-क- गिरफ्तारी के लिए आधार बताने होंगे।

    (2) नियम 12- जो जंगम सम्पत्ति निर्णीत-ऋणी के कब्जे में नहीं है, उसका विवरण।

    (3) नियम 13- स्थावर सम्पत्ति की कुर्की के आवेदन में उस सम्पत्ति की पहचान व निर्णीत-ऋणी का उसमे हिस्सा बताया जावेगा।

    (4) नियम 14 के अनुसार जहां आवश्यक हो, कलेक्टर के कार्यालय के रजिस्टर में से प्रमाणित उद्धरण (अंश) उस सम्पत्ति के बारे में देने होंगे।

    मौखिक-आवेदन [नियम 11 का उपनियम (1)]- धन के संदाय की डिक्री पारित करने के समय यदि निर्णीत ऋणी न्यायालय के परिसर के भीतर है, तो डिक्रीदार के मौखिक आवेदन पर वारंट तैयार करने से पहले ही निर्णीत-ऋणी को गिरफ्तार कर डिक्री का उसी समय निष्पादन न्यायालय द्वारा किया जा सकेगा।

    इस उपनियन के अधीन कार्यवाही संभव है, क्योंकि धारा 51 की बातों की पालना करना आवश्यक है तथा आदेश 21 के नियम 11 क की अपेक्षाओं का भी पालन करना होगा। इसके लिए उस निर्णीत-ऋणी को सुनवाई का अवसर भी देना होगा। केवल डिक्रीदार के मौखिक आवेदन पर किसी निर्णीत ऋणी को इस प्रकार गिरफ्तार करना न्यायोचित नहीं कहा जा सकता। इस उप-नियम की वैधता को चुनौती दी जा सकती है।

    निम्न नियमों पर भिन्न भिन्न अवसरों पर न्यायलयों के मत-

    आवेदन- (धारा 73 एवं आदेश 21, नियम 11 सपठित मुम्बई सिटी सिविल कोर्ट रूल्सर, 1984) नियमों का प्रभाव-धारा 73 में विद्यमान सिद्धांत का कार्यान्वयन और हिसाब शेरिफ द्वारा की गई वसूली के बारे में उसका प्रमाणपत्र प्राप्त होने पर रजिस्ट्रार द्वारा ऋण-अनुक्रमणिका (निगेटिव इन्डेक्स) रजिस्टार के आधार पर विवरण प्रस्तुत कर दिए जाने पर हो किया जाता है-अतः ऋण अनुक्रमणिका में दर्ज आवेदन उक्त आदेश 21, नियम 11 के अनुसार आवेदन माना जाएगा।

    आदेश 21, नियम 11, खण्ड (अ) (v)-इस खंड में अन्यथा पद का प्रयोग करके इसमें डिक्रीदारों को समुचित अनुतोष चाहने के अन्य अवसर प्रदान किए गए हैं। आनुपातिक वितरण इसी खण्ड के अधीन आता है।

    परिसीमा की गणना [ आदेश 21, नियम 11(2)-सपठित इण्डियन लिमिटेशन एक्ट (भारतीय परिसीमा अधिनियम), 1908 अनुच्छेद 182 (5)]- यदि आवेदन निष्पादन के लिए या निष्पादन के किसी सहायक कदम के लिए है और यह विधि के अनुसार है और उसे समुचित न्यायालय के समक्ष पेश किया गया है तो डिक्रीदार उस तारीख से परिसीमा की अवधि की गणना करने के लिए हकदार होगा, जिस तारीख को न्यायालय द्वारा ऐसे आवेदन पर अन्तिम आदेश पारित किया गया हो, भले हो डिक्रीदार ने अपेक्षित कदम उठाने में व्यतिक्रम किया हो।

    यदि निष्पादन पिटीशन डिक्रीदार के वकील द्वारा हस्ताक्षरित किया जाता है और मामले के तथ्यों से परिचित व्यक्ति द्वारा सत्यापित किया जाता है किन्तु किसी अन्य व्यतिक्रम के कारण निष्पादन आवेदन उक्त आदेश 21 के नियम 11(2) के अधीन विधि के अनुसार आवेदन माना जाएगा और नया निष्पादन आवेदन इण्डियन लिमिटेशन एक्ट, 1908 के अनुच्छेद 182 (5) के अर्थ में परिसीमा द्वारा वर्जित नहीं होगा।

    आवेदन का सत्यापन [आदेश 21, नियम 11(2)]- उक्त उपबन्ध द्वारा इतना ही अपेक्षित है कि निष्पादन याचिका का सत्यापन ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाए जो मामले के तथ्यों से परिचित हो तथा यह अपेक्षित नहीं है कि वह डिक्रीदार द्वारा प्राधिकृत हो। आदेश 21 नियम 11 (2) एवं न्यास अधिनियम 1892 को धारा 47 के स्पष्टीकरण को एक साथ पढ़ने से यह निष्कर्ष निकलता है कि न्यास के सचिव द्वारा अनुसचिवीय प्रकृति का कार्य किया जा सकता है। न्यायालय को संतुष्ट होना होगा कि आवेदन प्रस्तुत करने वाले को प्राधिकार है।

    आनुपातिक वितरण का अधिकार कब उदित होता है- यह उस समय उदित (उत्पन्न) नहीं होता, जब आस्तियों को वसूल किया जाता है, परन्तु तब उदित होता है जब विभिन्न (कई) डिक्रीदारों के आवेदन उसी एक निर्णीत-ऋणी के विरुद्ध धन के संदाय के लिए उनको डिक्रियों के निष्पादन के लिए आते हैं और ये आवेदन न्यायालय में आस्तियों को प्राप्ति के पहले पंजीबद्ध (फाइल) किये जाते हैं।

    एक धन की डिक्री के निष्पादन के लिए दिये गये आवेदन में कोष्ठक सं. 10 में निष्पादन के तरीकों (रीति) दूसरी डिक्री के निष्पादन में नीलामी विक्रय में वसूल हुई राशि के आनुपातिक वितरण का उल्लेख करने पर यह विधि के अनुसार आवेदन है।

    विधिक प्रतिनिधि- निष्पादन के समय अपील के दोहरान प्रतिवादी की मृत्यु हो गई और उसके विधिक-प्रतिनिधियों को अभिलेख पर लाया गया। इस बारे में उच्च न्यायालय का आदेश निष्पादन न्यायालय में प्रस्तुत कर दिया गया। परन्तु आदेश 21, नियम 11 के अधीन आवेदन में संशोधन नहीं किया गया। यह कोई घातक दोष नहीं माना।

    धन के संदाय की डिक्री के निष्पादन में निर्णीत-ऋणी को गिरफ्तार कर जेल भेजना (नियम 11क)-

    जब धनीय-डिक्री के निष्पादन में एक निर्णीत-ऋणी को गिरफ्तार कर जेल में निरुद्ध किया जाता है; तो इसके पहले उसे कारण बताओ नोटिस दिया जाना आवश्यक है। जब तक यह साबित नहीं किया गया कि निर्णीत-ऋणी ने निष्पादन को असफल करने या उसमें देरी करने के लिए सम्पत्ति को छिपाया है, उसे जेल भेजने का आदेश नहीं दिया जा सकता।

    इस मामले में डिक्री व्यवस्थापन-निदेशक के माध्यम से कम्पनी के विरुद्ध थी, न कि व्यवस्थापन निदेशक के विरुद्ध व्यक्तिगत रूप से। तो उसे जेल भेजने की कार्यवाही नहीं की जा सकती।

    निर्णीत-ऋणी की गिरफ्तारी व जेल में निरोध के लिए आवेदन आदेश 21, नियम 11-क के अनुसार ऐसे आवेदन में वे आधार विस्तार से दिये जायेंगे जिन पर निर्णीत-ऋणी का जेल में निरोध करने के लिए प्रार्थना की गई है। इसके साथ एक शपथ-पत्र भी संलन किया जावेगा। केवल ऐसी प्रार्थना करना पर्याप्त नहीं होगा। यदि आवेदन में ऐसे आधारों का पूरा विवरण नहीं दिया गया हो, तो ऐसे आधार संलम शपथ पत्र में दिये जायेंगे।

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