किराए में संशोधन से जुड़ी परिस्थितियाँ – राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम की धारा 22-D

Himanshu Mishra

10 April 2025 12:28 PM

  • किराए में संशोधन से जुड़ी परिस्थितियाँ – राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम की धारा 22-D

    राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 (Rajasthan Rent Control Act, 2001) को 2017 में हुए संशोधन (Amendment) के बाद अधिक व्यावहारिक और संतुलित बनाया गया है, ताकि मकान मालिक (Landlord) और किरायेदार (Tenant) दोनों के अधिकारों और कर्तव्यों के बीच संतुलन बना रहे। इन संशोधनों के तहत कई नयी धाराएं जोड़ी गईं, जिनमें से एक महत्वपूर्ण धारा है – धारा 22-D, जो कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में किराए के पुनर्निरीक्षण (Revision) से संबंधित है।

    इस धारा को पूरी तरह समझने के लिए हमें इससे पहले की कुछ धाराओं पर भी हल्का-सा ध्यान देना होगा जो किराएदारी की नींव तैयार करती हैं।

    धारा 22-A – किराया प्राधिकारी की नियुक्ति (Appointment of Rent Authority)

    राज्य सरकार, अधिसूचना (Notification) द्वारा राजस्थान प्रशासनिक सेवा (Rajasthan Administrative Service) के उपमंडल अधिकारी (Sub-Divisional Officer) स्तर के अधिकारियों को Rent Authority नियुक्त करती है। यह अधिकारी Section 22-D समेत अन्य धाराओं से संबंधित विवादों को सुलझाने का काम करते हैं।

    धारा 22-B – किराएदारी समझौता (Tenancy Agreement)

    किसी भी किराए पर ली गई संपत्ति के लिए एक लिखित समझौता (Written Agreement) होना अब अनिवार्य है। मकान मालिक और किरायेदार को Schedule-D के अनुसार इस समझौते का विवरण Rent Authority को देना होता है।

    धारा 22-C – किराएदारी की अवधि (Period of Tenancy)

    इस धारा के अनुसार, किराए की अवधि वही मानी जाएगी जो कि लिखित समझौते में तय की गई हो। अवधि समाप्त होने पर अगर नया समझौता नहीं होता और किरायेदार खाली नहीं करता, तो अधिकतम 6 महीने तक माह-दर-माह (Month-to-month) के आधार पर किराया मान्य रहेगा।

    अब इस पृष्ठभूमि में हम समझते हैं धारा 22-D, जो कि किराए में बदलाव की प्रक्रिया और अधिकारों की चर्चा करती है।

    धारा 22-D(1): मकान मालिक द्वारा किए गए सुधार या बदलाव पर किराया बढ़ाना (Rent Increase due to Improvement or Alteration by Landlord)

    इस उपधारा के अनुसार, अगर मकान मालिक, किरायेदारी शुरू होने के बाद और किरायेदार की सहमति से, मकान में कोई सुधार (Improvement), संरचनात्मक बदलाव (Structural Alteration) या नवीनता (Addition) करता है, तो वह किराया बढ़ा सकता है। लेकिन इसमें जरूरी मरम्मत (Repairs) शामिल नहीं हैं।

    मुख्य शर्तें (Key Conditions):

    1. काम शुरू होने से पहले दोनों पक्षों में सहमति होनी चाहिए।

    2. किराए में कितनी बढ़ोतरी होगी, यह भी पहले से तय होनी चाहिए।

    3. यह बढ़ा हुआ किराया, काम पूरा होने के एक महीने बाद से लागू होगा।

    Illustration (उदाहरण):

    अगर मकान मालिक Mr. Sharma, किरायेदार Rina की सहमति से एक अतिरिक्त कमरा बनवाते हैं और दोनों ₹1500 किराए में बढ़ोतरी पर सहमत होते हैं, तो कमरे के पूरा होने के एक महीने बाद Rina नया किराया देने लगेगी।

    धारा 22-D(2): मकान की स्थिति या सेवाओं में गिरावट पर किराया घटाना (Rent Reduction due to Deterioration in Premises or Services)

    अगर किराया तय हो जाने के बाद मकान की हालत बिगड़ती है या आवश्यक सुविधाएं (Housing Services) जैसे पानी, बिजली, लिफ्ट, सफाई आदि पहले जैसी नहीं मिल रही हैं, तो किरायेदार किराए में कटौती की मांग कर सकता है।

    यह प्रावधान किरायेदार के अधिकारों की रक्षा करता है ताकि वह खराब सेवाओं के लिए उतना ही किराया दे, जितना उचित हो।

    Illustration (उदाहरण):

    Mr. Ali एक फ्लैट में रह रहे हैं जिसमें लिफ्ट और 24 घंटे पानी की सुविधा थी। कुछ महीने बाद लिफ्ट बंद हो गई और पानी भी अनियमित हो गया। मकान मालिक मरम्मत नहीं करवाते। ऐसे में Mr. Ali किराया कम करने की मांग कर सकते हैं।

    धारा 22-D(3): मकान मालिक के पास दो विकल्प (Two Options for Landlord)

    अगर किरायेदार किराया घटाने की मांग करता है, तो मकान मालिक के पास दो विकल्प होते हैं:

    1. मकान को उसकी प्रारंभिक स्थिति (Original Condition) में वापस लाना।

    2. किराया कम करने के लिए सहमत होना।

    इससे निष्पक्षता बनी रहती है और किरायेदार को यह आश्वासन मिलता है कि अगर सुविधाएं घटती हैं तो किराए में राहत मिल सकती है।

    Illustration (उदाहरण):

    Mr. Suresh ने किरायेदार Lakshmi को वादा किया था कि जनरेटर बैकअप और गार्डन की सफाई नियमित रहेगी। जब जनरेटर खराब हो गया और गार्डन की सफाई बंद हो गई, तो Lakshmi ने किराया घटाने की मांग की। अब Mr. Suresh या तो सुविधाएं ठीक करें या किराया घटाएं।

    धारा 22-D(4): विवाद होने पर Rent Authority का समाधान (Dispute Resolution by Rent Authority)

    अगर किरायेदार और मकान मालिक आपसी सहमति से मामले को नहीं सुलझा पाते, तो दोनों में से कोई भी Rent Authority के पास याचिका (Petition) दायर कर सकता है।

    Rent Authority की भूमिका (Role of Rent Authority):

    1. दोनों पक्षों को सुनकर आपसी समाधान (Amicable Settlement) करवाने की कोशिश करना।

    2. अगर समाधान नहीं हो पाता, तो उपलब्ध साक्ष्यों (Evidence) के आधार पर उचित आदेश (Appropriate Order) पारित करना।

    Illustration (उदाहरण):

    Mr. George अपने मकान में पानी की लीकेज और बालकनी की टूट-फूट की शिकायत लेकर Rent Authority के पास जाते हैं। मकान मालिक समस्या मानने को तैयार नहीं। Authority दोनों को सुनती है, साक्ष्य देखती है और फिर आदेश देती है – या तो मरम्मत हो या किराया कम हो।

    Schedule-D का महत्व और किराएदारी पंजीकरण (Importance of Schedule-D and Registration)

    Section 22-B के तहत, किराएदारी समझौता अनिवार्य है और इसकी जानकारी Rent Authority को दी जानी चाहिए। Rent Authority इन जानकारियों का एक Register बनाती है और उन्हें Website पर अपलोड करती है।

    यह सब दस्तावेज Rent Authority को Section 22-D के विवादों को सुलझाने में मदद करते हैं, क्योंकि हर बात रिकॉर्ड में होती है।

    धारा 22-D से किराएदारी में पारदर्शिता और संतुलन (Fairness through Section 22-D)

    धारा 22-D यह सुनिश्चित करती है कि अगर मकान मालिक अपनी संपत्ति में निवेश करता है तो वह किराया बढ़ा सके, और अगर किरायेदार को सुविधाएं नहीं मिलतीं तो वह किराया घटा सके। यह कानून मकान मालिक और किरायेदार के रिश्ते को न्यायसंगत (Fair) और लचीला (Adaptive) बनाता है।

    Section 22-A से लेकर 22-D तक की श्रृंखला यह दिखाती है कि राजस्थान सरकार ने किराएदारी संबंधी कानून को समयानुकूल, तकनीकी रूप से सक्षम और न्यायोचित बनाया है।

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