वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 का तीसरा अध्याय — वन्यजीवों का शिकार

Himanshu Mishra

25 Aug 2025 5:20 PM IST

  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 का तीसरा अध्याय — वन्यजीवों का शिकार

    वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 का तीसरा अध्याय शिकार (Hunting) के विषय में है। यह अध्याय अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि शिकार ही ऐतिहासिक रूप से वन्यजीवों के लिए सबसे बड़ा खतरा रहा है। जिस प्रकार अध्याय II (Authorities) ने संरक्षण के लिए प्रशासनिक संरचना का निर्माण किया और अध्याय I ने परिभाषाएँ एवं उद्देश्यों को स्पष्ट किया, उसी प्रकार अध्याय III वन्यजीवों की रक्षा के लिए शिकार पर रोक और उससे जुड़े अपवाद (Exceptions) का विस्तार करता है।

    भारत में लंबे समय तक शिकार एक मनोरंजन और प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता था। राजाओं, अंग्रेज अधिकारियों और यहाँ तक कि स्वतंत्रता के बाद भी कई दशकों तक शिकार के कारण बाघ, शेर, हाथी, गैंडा और अनेक पक्षी प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर पहुँच गईं। यही कारण था कि 1972 के अधिनियम में शिकार पर लगभग पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया।

    धारा 9 — शिकार पर प्रतिबंध (Prohibition of Hunting)

    धारा 9 के अनुसार कोई भी व्यक्ति अनुसूची I, II, III और IV में सूचीबद्ध किसी भी वन्यजीव का शिकार नहीं कर सकता। इस धारा में एक सामान्य और कठोर नियम निर्धारित किया गया है, जिसके तहत शिकार एक दंडनीय अपराध माना गया है।

    हालाँकि, यह धारा कुछ अपवादों की अनुमति देती है, जिन्हें धारा 11 और 12 में विस्तृत किया गया है। अर्थात्, सामान्य परिस्थितियों में शिकार वर्जित है, लेकिन यदि कोई विशेष परिस्थिति हो—जैसे किसी जानवर का अत्यधिक खतरनाक हो जाना या वैज्ञानिक उद्देश्य से शोध कार्य करना—तो शिकार अनुमति से किया जा सकता है।

    उदाहरण

    यदि कोई व्यक्ति किसी अभयारण्य में घूमते हुए बाघ का शिकार करता है, तो यह धारा 9 का सीधा उल्लंघन होगा और उसे कठोर सजा मिलेगी। लेकिन यदि वही बाघ किसी गाँव में घुसकर कई लोगों की जान के लिए खतरा बन गया है, तब धारा 11 के अंतर्गत मुख्य वन्यजीव वार्डन (Chief Wildlife Warden) की अनुमति से कार्रवाई की जा सकती है।

    धारा 11 — विशेष परिस्थितियों में शिकार की अनुमति (Hunting of Wild Animals to be Permitted in Certain Cases)

    धारा 11 एक महत्वपूर्ण अपवाद (Exception) प्रदान करती है। यह बताती है कि किन परिस्थितियों में राज्य का मुख्य वन्यजीव वार्डन (Chief Wildlife Warden) किसी जानवर को शिकार के लिए चिन्हित कर सकता है।

    खतरनाक या बीमार जानवर (Dangerous or Diseased Animals)

    यदि कोई जानवर अनुसूची I में सूचीबद्ध है और वह मानव जीवन के लिए अत्यंत खतरनाक हो गया है, या बीमारी अथवा चोट के कारण पूरी तरह से असमर्थ हो गया है, तो मुख्य वन्यजीव वार्डन लिखित आदेश देकर उसके शिकार की अनुमति दे सकता है।

    लेकिन कानून यह भी स्पष्ट करता है कि जानवर को मारने का आदेश अंतिम उपाय (Last Resort) होना चाहिए। पहले उसे पकड़ने, बेहोश करने (Tranquilise) या अन्यत्र स्थानांतरित (Translocate) करने का प्रयास किया जाना चाहिए। यदि ऐसा संभव न हो तो ही शिकार की अनुमति दी जाएगी।

    अनुसूची II, III और IV के जानवर

    अनुसूची II, III और IV में सूचीबद्ध जानवरों के मामले में मानक थोड़े लचीले हैं। यदि वे मानव जीवन या संपत्ति (जैसे खड़ी फसलें) के लिए खतरा बन जाते हैं, तो उन्हें शिकार के लिए चिन्हित किया जा सकता है।

    आत्मरक्षा का प्रावधान (Right of Self Defence)

    यदि कोई व्यक्ति आत्मरक्षा में या किसी अन्य की जान बचाने के लिए किसी जानवर को मार देता है, तो इसे अपराध नहीं माना जाएगा। लेकिन इसके लिए यह शर्त है कि उस समय वह व्यक्ति खुद किसी अन्य अवैध गतिविधि (Illegal Act) में संलग्न न हो।

    सरकार की संपत्ति (Government Property)

    आत्मरक्षा में मारे गए जानवर भी सरकार की संपत्ति माने जाएंगे। इसका उद्देश्य यह है कि कोई भी व्यक्ति आत्मरक्षा का बहाना बनाकर शिकार को वैध न ठहरा सके।

    उदाहरण

    1. यदि राजस्थान के किसी गाँव में एक पैंथर (तेंदुआ) बार-बार लोगों पर हमला करता है, तो मुख्य वन्यजीव वार्डन जाँच के बाद लिखित आदेश देकर उस पैंथर को पकड़ने या आवश्यक होने पर मारने की अनुमति दे सकता है।

    2. वहीं यदि कोई किसान खेत की रखवाली करते हुए जंगली सुअर को मार देता है क्योंकि वह उस पर हमला कर रहा था, तो इसे अपराध नहीं माना जाएगा।

    धारा 12 — विशेष उद्देश्यों के लिए परमिट (Grant of Permit for Special Purposes)

    धारा 12 वैज्ञानिक और शैक्षिक उद्देश्यों के लिए शिकार की सीमित अनुमति देती है। यह स्पष्ट करती है कि मुख्य वन्यजीव वार्डन लिखित आदेश और निर्धारित शुल्क लेकर विशेष परमिट (Permit) जारी कर सकता है।

    यह परमिट केवल निम्न उद्देश्यों के लिए दिया जा सकता है—

    1. शिक्षा (Education): विद्यार्थियों और शोधकर्ताओं को शिक्षा के लिए अध्ययन हेतु अनुमति मिल सकती है।

    2. वैज्ञानिक अनुसंधान (Scientific Research): जैसे कि किसी प्रजाति के व्यवहार या बीमारी पर शोध करना।

    3. वैज्ञानिक प्रबंधन (Scientific Management): इसमें जानवरों का स्थानांतरण (Translocation) या उनकी जनसंख्या का नियंत्रण (Population Management) शामिल है, बशर्ते इसमें जानवर को मारना शामिल न हो।

    4. नमूने संग्रह करना (Collection of Specimens): मान्यता प्राप्त चिड़ियाघरों, संग्रहालयों और अनुसंधान संस्थानों के लिए नमूने एकत्र किए जा सकते हैं।

    5. साँप का ज़हर (Snake Venom) प्राप्त करना: जीवनरक्षक दवाइयाँ बनाने के लिए साँप का ज़हर एकत्र करने की अनुमति दी जा सकती है।

    लेकिन यहाँ भी कुछ महत्वपूर्ण शर्तें हैं—

    • यदि जानवर अनुसूची I में है, तो केंद्रीय सरकार की पूर्व अनुमति आवश्यक है।

    • यदि जानवर किसी अन्य अनुसूची में है, तो राज्य सरकार की अनुमति आवश्यक है।

    उदाहरण

    दिल्ली विश्वविद्यालय के जीवविज्ञान विभाग को यदि किसी दुर्लभ साँप की प्रजाति पर शोध करना है, तो वे मुख्य वन्यजीव वार्डन से परमिट के लिए आवेदन कर सकते हैं। लेकिन यदि वह प्रजाति अनुसूची I में आती है, तो परमिट तभी मिलेगा जब केंद्र सरकार भी अनुमति देगी।

    अध्याय III यह स्पष्ट करता है कि भारत में शिकार सामान्य परिस्थितियों में पूरी तरह निषिद्ध (Prohibited) है। धारा 9 कठोर प्रतिबंध लगाती है, जबकि धारा 11 और 12 केवल विशेष और विवश परिस्थितियों में सीमित अनुमति देती हैं।

    यह प्रावधान अध्याय II (Authorities) से जुड़ता है, क्योंकि उन्हीं अधिकारियों—विशेष रूप से मुख्य वन्यजीव वार्डन—को यह अधिकार है कि वे शिकार की अनुमति दें। इस प्रकार प्रशासनिक ढाँचे और कानूनी नियमों का सम्मिलन होता है।

    कानून की मूल भावना यही है कि वन्यजीवों को मारना अंतिम उपाय होना चाहिए। चाहे वह खतरनाक स्थिति हो या वैज्ञानिक उद्देश्य, हर बार यह सुनिश्चित किया जाता है कि शिकार के बिना भी समाधान तलाशा जाए। यह दृष्टिकोण इस तथ्य को रेखांकित करता है कि संरक्षण का अर्थ केवल जानवरों को बचाना ही नहीं, बल्कि उन्हें प्राकृतिक आवास में सुरक्षित और संतुलित रूप से बनाए रखना भी है।

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