Right to Information Act में जुर्माना का आदेश बदला जाना
Shadab Salim
23 Jun 2025 10:54 AM IST

इस एक्ट से जुड़े एक मामले लुईस मैथ्यू बनाम राज्य सूचना आयुक्त, 2016 (160) ए आई सी 720 (केरल) में सूचना की ईप्सा की गयी थी कि किन परिस्थितियों के अन्तर्गत चतुर्थ प्रत्युत्तरदाता के स्वामित्याधीन भूमि को "धोदू" के रूप में परिवर्तित कर दिया गया था तथा यह सुनिश्चित किया जाये कि अभिकथित भूमि के क्षेत्र को "धोडू" के रूप में परिवर्तित किया गया था। अभिनिर्धारित किया गया कि, ईप्सित सूचना अधिनियम के अधीन परिभाषित "सूचना के अन्तर्गत नहीं आती है। संविधि के निबन्धनों के अनुसार आवेदन राजसाक्षी (अप्रूवर) आवेदन की कोटि में नहीं आता है। जैसा कि धारा 20 के अन्तर्गत अनुध्यात किया गया है मामले में सम्भावित परिस्थिति उत्पन्न नहीं होती है। शास्ति के आक्षेपित आदेश को अपास्त किया गया।
शमशाद अहमद एवं अन्य बनाम सूचना आयोग, इन्दिरा भवन, अशोक मार्ग, लखनऊ एवं अन्य 2010 (129) ए एल आर 596 (इलाहाबाद) सूचना का अप्रदाय"अधिनियम, 2005" की धारा 20 (1) के अधीन वसूली के साथ 25000 रुपये की शास्ति का अधिरोपण किया गया था।
अभिनिर्धारित किया गया कि कोई स्पष्टीकरण नहीं था कि किस प्रकार की सूचना का प्रदाय आवेदक को नहीं किया गया था। किसी संसाधन को समनुदेशित किये बिना राज्य सूचना आयोग द्वारा वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी (अपर जिला न्यायाधीश) को जो कि संवैधानिक प्राधिकारी भी था, को समन किया गया था। ऐसे अधिकारी को राज्य सूचना आयोग के अधीनस्थ नहीं माना जा सकता है।
उक्त के दृष्टिगत इस मामले में राज्य सूचना आयोग का दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से पूर्वाग्रह तथा विचार एवं कारणों से प्रभावित था तथा सद्भावपूर्ण के अन्यथा था। चांडीगण 50,000/- रुपये मात्रीकृत धनराशि को प्राप्त करने के हकदार हैं जिसे सम्बन्धित राज्य सूचना आयोग द्वारा याची को संदाय किया जायेगा।
धारा 20 (1) के अधीन, कारण बताओ नोटिस लोक प्राधिकारी को जारी की जा सकती है, यदि उसने लम्बा समय व्यतीत होने के बावजूद अपीलार्थी को पर्याप्त रूप से सूचना नहीं दी है। यह निर्णय दिनेश कुमार बनाम डिप्टी कमिश्नर एण्ड पी आई आर के मामले में दिया गया है।
नीरज कुमार बनाम डिपार्टमेंट ऑफ फूड एण्ड सप्लाइज, एन सी टी डेलही के मामले में कहा गया है कि सबूत का भार कि लोक सूचना अधिकारी ने युक्तियुक्त रूप से और तत्परता से कार्य किया है लोक सूचना अधिकारी पर है।
संजय हिण्डवान बनाम राज्य सूचना आयोग, ए आई आर 2013 एच पी 30 के मामले में कहा गया कि अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो आयोग को यथा उपबंधित के सिवाय दण्ड को या तो कम करने के लिये या बढ़ाने के लिये सशक्त करता है। यदि आयोग इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि विलम्ब के लिये युक्तियुक्त आधार है अथवा यह कि संबद्ध लोक सूचना अधिकारी (पी आई ओ) ने विलम्ब को संतोषजनक रूप से स्पष्ट कर दिया है, तब कोई दण्ड अधिरोपित नहीं किया जा सकता है। हालांकि जब एक बार आयोग इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि दण्ड अधिरोपित किया जाना है, तब इसे 250 रुपये प्रतिदिन की दर से न कि आयोग की सनक और इच्छा पर किसी अन्य दर पर होना चाहिए।
उत्तरप्रदेश सूचना का अधिकार नियमावली, 2015 के नियम 12 के अधीन आदेश की वापसी के आवेदन को नामंजूर कर दिया गया था। सूचना प्राप्त करने वाले व्यक्ति द्वारा दाखिल परिवाद पर उसके प्रस्तुतिकरण की अनुपस्थिति के लिए याची के विरुद्ध शास्ति के आदेश को पारित किया गया था।
डॉ० नूतन ठाकुर बनाम उत्तरप्रदेश राज्य, 2018 के मामले में कहा गया है कि अनुपस्थिति चूंकि आयोग की कार्यवाहियों में वैयक्तिक कोई त्रुटि नहीं थी आयोग को अपने आदेश का पुनर्विलोकन करने का आधार उपलब्ध है। विधि तथा आदेश में याची का प्रभावी ढंग में उपयोग करना आयोग के समक्ष उसकी अनुपस्थिति का कर्तव्य था आदेश की वापसी के लिए आवेदन में याची द्वारा दिया गया कारण आदेश को वापस मंगाने के लिए आयोग को शक्ति का प्रयोग करने के लिए क्षेत्राधिकार प्रदान किया गया है जैसा कि नियमों में आधार के रूप में प्रगणित किया गया है।
ऐसे आवेदन में दिये गये कारण की सत्यता की सत्यवादिता का सत्यापन आयोग द्वारा किये जाने की आवश्यकता है। आदेश की वापसी को ईप्सा करने वाले आवेदन का विनिश्चय आयोग द्वारा सूचना प्राप्त करने वाले व्यक्ति को नोटिस जारी करने के पश्चात् नये सिरे से करना चाहिए।
मेरठ विकास प्राधिकरण एवं अन्य बनाम उत्तरप्रदेश सूचना आयोग एवं अन्य, 2017 (6) के मामले में कहा गया कि सूचना को प्रदान करने में एक सौ दिनों का विलम्ब कारित किया गया था। राज्य सूचना आयोग ने याची सं० 3 को सूचना को प्रदान करते समय तत्परता से तथा युक्तियुक्त ढंग में कार्य किया था, सुनवाई का अवसर प्रदान किये बिना दण्ड का आदेश पारित किया था। यदि याची सं० 2 तथा 3 को युक्तियुक्त अवसर प्रदान किया जाता, तो वे आयुक्त के संज्ञान में सम्पूर्ण तथ्यों को ला सकते थे।
शास्ति का आदेश जैसा कि पाया गया है, सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 20 के अतिक्रमण में है। आक्षेपित आदेश को विधि को दृष्टि समर्थनीय न होने के कारण, अपास्त किया जाता है।

