क्या सरकारी कर्मचारियों के सेवा नियमों को समय-समय पर बदला जा सकता है?
Himanshu Mishra
4 Feb 2025 5:25 PM IST

प्रस्तावना
सरकारी सेवाओं में नियुक्ति और पदोन्नति के नियम संविधान के अनुच्छेद 309, 310 और 311 के अंतर्गत आते हैं। इन नियमों में बदलाव समय-समय पर किया जाता है, लेकिन जब किसी पद के लिए पहले से रिक्तियां मौजूद हों और बाद में सेवा नियमों में संशोधन हो, तो यह प्रश्न उठता है कि इन रिक्तियों को पुराने नियमों के अनुसार भरा जाएगा या नए नियमों के तहत।
इसी प्रश्न का उत्तर सुप्रीम कोर्ट ने State of Himachal Pradesh & Ors. v. Raj Kumar & Ors. (2022) के निर्णय में दिया। इस निर्णय में न्यायालय ने Y.V. Rangaiah v. J. Sreenivasa Rao (1983) को अस्वीकृत करते हुए एक नई कानूनी दृष्टि प्रस्तुत की।
State of Himachal Pradesh & Ors. v. Raj Kumar & Ors. (2022) सेवा कानून (Service Law) से संबंधित है और यह इस मुद्दे पर केंद्रित है कि सरकारी सेवाओं में रिक्तियों को किस नियम के तहत भरा जाना चाहिए—पुराने नियमों के तहत या संशोधित नए नियमों के तहत। सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय में Y.V. Rangaiah v. J. Sreenivasa Rao (1983) 3 SCC 284 को अस्वीकृत (overruled) कर दिया और सेवा नियमों की व्याख्या के लिए नए सिद्धांत स्थापित किए।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि सरकारी सेवा में भर्ती और पदोन्नति पूरी तरह से लागू नियमों के अधीन होती है। कोई भी सरकारी कर्मचारी यह दावा नहीं कर सकता कि जब कोई रिक्ति पैदा हुई थी, तो उस समय जो नियम लागू थे, केवल उन्हीं के तहत उसे लाभ मिलना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि सेवा नियमों में बदलाव के बाद नई रिक्तियां नए नियमों के अनुसार ही भरी जाएंगी, भले ही वे रिक्तियां पुराने नियमों के तहत बनी हों।
Y.V. Rangaiah केस को अस्वीकृत किया गया
इससे पहले Y.V. Rangaiah v. J. Sreenivasa Rao (1983) 3 SCC 284 में यह सिद्धांत दिया गया था कि जो रिक्तियां संशोधित नियमों से पहले उत्पन्न हुई थीं, उन्हें पुराने नियमों के आधार पर ही भरा जाना चाहिए। लेकिन State of Himachal Pradesh v. Raj Kumar (2022) के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि यह निर्णय सेवा नियमों की सही व्याख्या नहीं करता है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सेवा में कार्यरत किसी भी व्यक्ति के पास कोई 'वेस्टेड राइट' (न्यायसंगत अधिकार) नहीं होता कि वह केवल पुराने नियमों के आधार पर ही पदोन्नति का दावा करे।
संवैधानिक दृष्टिकोण
इस फैसले में संविधान के अनुच्छेद 309 (सेवा नियमों को बनाने की शक्ति), अनुच्छेद 310 (राज्य सेवाओं में 'प्लीजर डॉक्ट्रिन'), और अनुच्छेद 311 (सरकारी सेवकों को सुरक्षा देने वाले प्रावधान) का विस्तार से विश्लेषण किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार को यह अधिकार है कि वे सार्वजनिक हित में सेवा नियमों को संशोधित करें और उनकी व्याख्या करें।
महत्वपूर्ण संदर्भित मामले
इस निर्णय में निम्नलिखित महत्वपूर्ण मामलों का हवाला दिया गया:
1. Roshan Lal Tandon v. Union of India (1968) 1 SCR 185 – इस मामले में कहा गया था कि सरकारी सेवा का संबंध केवल अनुबंध (contract) से नहीं, बल्कि स्थिति (status) से भी होता है, और यह पूरी तरह से सेवा नियमों द्वारा शासित होता है।
2. Union of India v. S.S. Uppal (1996) 2 SCC 168 – इस फैसले में कहा गया कि सरकारी सेवा में नियुक्ति के लिए केवल रिक्ति का उत्पन्न होना पर्याप्त नहीं है, बल्कि नियुक्ति के समय लागू नियम ही मान्य होंगे।
3. State Bank of India v. Kashinath Kher (1996) 8 SCC 762 – इसमें भी यह सिद्धांत स्थापित किया गया कि अगर नई नीति पहले की रिक्तियों पर लागू की जाती है तो यह अवैध नहीं होगा।
4. K. Ramulu v. S. Suryaprakash Rao (1997) 3 SCC 59 – इस फैसले में कहा गया कि सरकार यह तय कर सकती है कि जब तक नए नियम लागू न हो जाएं, तब तक रिक्तियां भरी न जाएं।
न्यायालय द्वारा स्थापित नए सिद्धांत
इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने यह सिद्धांत स्थापित किया कि:
1. किसी सरकारी कर्मचारी को यह अधिकार नहीं है कि उसकी पदोन्नति पुराने नियमों के तहत ही की जाए, भले ही रिक्ति उन नियमों के तहत बनी हो।
2. सरकारी सेवा में नियुक्ति और पदोन्नति केवल प्रचलित सेवा नियमों के अनुसार ही की जाएगी।
3. अगर नए सेवा नियम लागू होते हैं, तो वे सभी लंबित रिक्तियों पर भी लागू होंगे, जब तक कि नियमों में कोई अपवाद न हो।
4. सेवा नियमों में बदलाव सरकार का नीतिगत निर्णय होता है और यह संविधान के अनुच्छेद 309 और 310 के तहत पूरी तरह से वैध है।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय सरकारी सेवाओं में पारदर्शिता और सेवा नियमों की सर्वोच्चता को स्थापित करता है। अब यह पूरी तरह स्पष्ट हो गया है कि सरकारी कर्मचारी यह दावा नहीं कर सकते कि उनकी नियुक्ति या पदोन्नति केवल उन नियमों के आधार पर होनी चाहिए जो उस समय लागू थे जब कोई रिक्ति बनी थी। इसके बजाय, जो भी सेवा नियम लागू होंगे, वही नियुक्तियों पर प्रभावी होंगे। इससे सरकारों को नीति-निर्माण में अधिक स्वतंत्रता मिलेगी और भर्ती प्रक्रियाओं में अनावश्यक कानूनी अड़चनों से बचा जा सकेगा।