क्या भ्रामक विज्ञापनों पर लगाम लगाने के लिए 'Self Declaration' प्रणाली उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा का नया कानूनी औज़ार बन सकती है?

Himanshu Mishra

11 Aug 2025 5:02 PM IST

  • क्या भ्रामक विज्ञापनों पर लगाम लगाने के लिए Self Declaration प्रणाली उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा का नया कानूनी औज़ार बन सकती है?

    सुप्रीम कोर्ट ने Indian Medical Association बनाम Union of India (2024) में एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए यह स्पष्ट किया कि भ्रामक और धोखाधड़ीपूर्ण विज्ञापनों पर नियंत्रण केवल मौजूदा कानूनों और नियमों पर निर्भर नहीं रह सकता, बल्कि इसके लिए एक ठोस और पहले से लागू होने वाला तंत्र आवश्यक है।

    इस निर्णय के तहत अब किसी भी प्रकार का विज्ञापन चाहे वह टीवी पर हो, रेडियो पर, अखबार में या इंटरनेट पर प्रसारित या प्रकाशित करने से पहले विज्ञापनदाता को 'Self Declaration' देना अनिवार्य होगा। अदालत ने इस आदेश को उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार की रक्षा का एक प्रत्यक्ष उपाय माना। यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दिया गया और अनुच्छेद 141 के अनुसार पूरे देश के लिए बाध्यकारी है।

    लागू कानूनी ढांचा और प्रावधान (Applicable Legal Framework and Provisions)

    इस मामले में अदालत ने भ्रामक विज्ञापनों पर नियंत्रण से जुड़े कई प्रमुख कानूनों का विस्तृत उल्लेख किया। इनमें Drugs and Magic Remedies (Objectionable Advertisements) Act, 1954 प्रमुख है, जो दवाओं और चिकित्सा उपचार से संबंधित झूठे और जादुई दावों पर रोक लगाता है। Drugs and Cosmetics Act, 1940 भी महत्वपूर्ण है, जो दवाओं की गुणवत्ता, निर्माण, लेबलिंग और बिक्री से जुड़े मानक निर्धारित करता है।

    इसके अलावा Consumer Protection Act, 1986 के तहत उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के लिए Central Consumer Protection Authority (CCPA) की स्थापना की गई, जिसे भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई का व्यापक अधिकार प्राप्त है।

    विज्ञापन प्रसारण के संदर्भ में Cable Television Networks (Regulation) Act, 1995 लागू होता है, जिसमें विज्ञापन कोड और प्रसारण के लिए मानक निर्धारित हैं। खाद्य उत्पादों के लिए Food Safety and Standards Act, 2006 और इसके अंतर्गत बनाए गए नियम उपभोक्ताओं को गलत या भ्रामक दावों से बचाने का प्रावधान करते हैं।

    साल 2022 में जारी Guidelines for Prevention of Misleading Advertisements ने विज्ञापनदाताओं, निर्माताओं और सेलिब्रिटी एंडोर्सर्स पर स्पष्ट जिम्मेदारियां डालीं, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि विज्ञापन में किए गए दावे तथ्यात्मक और प्रमाणित हों।

    मौलिक संवैधानिक प्रश्न (Fundamental Constitutional Question)

    अदालत के सामने मूल प्रश्न यह था कि क्या मौजूदा कानूनी प्रावधान और प्रवर्तन तंत्र भ्रामक विज्ञापनों को रोकने में पर्याप्त हैं। अदालत ने पाया कि यद्यपि कानून स्पष्ट रूप से मौजूद हैं, उनका क्रियान्वयन कई मामलों में कमजोर है और शिकायतों का समाधान धीमी गति से होता है। खासकर स्वास्थ्य और खाद्य उत्पादों के मामले में उपभोक्ताओं को सीधे नुकसान पहुंच सकता है यदि भ्रामक दावे किए जाएं और इन पर समय रहते कार्रवाई न हो।

    अदालत ने माना कि यह मुद्दा केवल उपभोक्ता अधिकारों तक सीमित नहीं है बल्कि यह स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार से जुड़ा है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित किया गया है। जब कोई विज्ञापन गलत दावे करता है और उपभोक्ता उस पर भरोसा करके उत्पाद खरीदता या सेवा लेता है, तो यह उसके जीवन और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।

    मंत्रालयों और नियामक एजेंसियों की भूमिका (Role of Ministries and Regulatory Agencies)

    अदालत ने विभिन्न मंत्रालयों और नियामक एजेंसियों की जिम्मेदारियों का विस्तृत उल्लेख किया। Ministry of AYUSH आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी से संबंधित उत्पादों और सेवाओं के विज्ञापनों की निगरानी करता है। Ministry of Health and Family Welfare स्वास्थ्य संबंधी दवाओं और उपचारों के भ्रामक विज्ञापनों पर कार्रवाई करता है।

    Ministry of Consumer Affairs उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के लिए जिम्मेदार है और Central Consumer Protection Authority के माध्यम से नोटिस जारी करता है और दंडात्मक कार्रवाई करता है। Ministry of Information and Broadcasting प्रसारण और प्रकाशन से जुड़े नियमों का पालन सुनिश्चित करता है।

    अदालत ने यह भी नोट किया कि CCPA ने 2020 से 2024 के बीच 163 नोटिस जारी किए, जिनमें से केवल 58 मामलों का निपटारा हुआ। इसी तरह Food Safety and Standards Authority of India (FSSAI) के पास स्वतः संज्ञान लेने की शक्ति है, लेकिन इस संबंध में पर्याप्त और ठोस कार्रवाई के आंकड़े अदालत के समक्ष उपलब्ध नहीं कराए गए।

    अदालत द्वारा जारी प्रमुख निर्देश (Key Directions Issued by the Court)

    अदालत ने अपने निर्णय में कई ठोस निर्देश जारी किए। सबसे महत्वपूर्ण यह था कि अब सभी विज्ञापनदाताओं और विज्ञापन एजेंसियों को किसी भी विज्ञापन के प्रकाशन या प्रसारण से पहले 'Self Declaration' देना होगा। टेलीविजन और रेडियो के विज्ञापनों के लिए यह घोषणा Broadcast Sewa Portal पर अपलोड करनी होगी, जिसे Ministry of Information and Broadcasting संचालित करेगा।

    प्रिंट और इंटरनेट विज्ञापनों के लिए एक नया पोर्टल चार सप्ताह के भीतर विकसित किया जाएगा, जहां विज्ञापन जारी होने से पहले घोषणा अपलोड करनी होगी। इस घोषणा में विज्ञापनदाता को यह प्रमाणित करना होगा कि विज्ञापन में किए गए सभी दावे तथ्यों और प्रमाणों पर आधारित हैं और वे किसी भी तरह से उपभोक्ता को गुमराह नहीं करते।

    अदालत ने यह भी कहा कि यह आदेश अनुच्छेद 141 के तहत 'Law Declared' है, जिसका अर्थ है कि यह पूरे देश में बाध्यकारी होगा और सभी विज्ञापनदाताओं, मीडिया प्लेटफॉर्म और नियामक एजेंसियों को इसका पालन करना होगा।

    उपभोक्ता अधिकार और स्वास्थ्य का संबंध (Relationship between Consumer Rights and Health)

    अदालत ने स्पष्ट किया कि भ्रामक विज्ञापन उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य और जीवन के अधिकार का प्रत्यक्ष उल्लंघन करते हैं। उपभोक्ता को यह जानने का संवैधानिक अधिकार है कि वह जो उत्पाद खरीद रहा है, उसकी वास्तविक गुणवत्ता, सामग्री और प्रभाव क्या है। अगर विज्ञापन में कोई झूठा दावा किया जाता है और उपभोक्ता उस पर भरोसा करता है, तो इससे उसके स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान हो सकता है।

    इस संदर्भ में अदालत ने उपभोक्ता संरक्षण को केवल आर्थिक धोखाधड़ी से बचाने का उपाय नहीं माना, बल्कि इसे एक व्यापक संवैधानिक गारंटी बताया, जो उपभोक्ता की शारीरिक और मानसिक सुरक्षा सुनिश्चित करती है।

    एंडोर्सर्स और विज्ञापन एजेंसियों की जिम्मेदारी (Responsibility of Endorsers and Advertising Agencies)

    अदालत ने जोर देकर कहा कि केवल विज्ञापनदाता ही नहीं, बल्कि वे सेलिब्रिटी, इन्फ्लुएंसर और सार्वजनिक हस्तियां जो किसी उत्पाद या सेवा का प्रचार करती हैं, वे भी पूरी तरह जिम्मेदार हैं। Guidelines for Prevention of Misleading Advertisements, 2022 के तहत एंडोर्सर्स को यह सुनिश्चित करना होगा कि उन्होंने जिस उत्पाद का प्रचार किया है, उसके बारे में उनके पास पर्याप्त जानकारी और अनुभव है। उन्हें यह भी देखना होगा कि विज्ञापन में कोई दावा गलत, भ्रामक या अतिरंजित न हो।

    विज्ञापन एजेंसियों के लिए भी यह अनिवार्य होगा कि वे विज्ञापन की सामग्री की सत्यता की जांच करें और यह सुनिश्चित करें कि सभी दावे कानून और नियमों के अनुरूप हों।

    यह निर्णय भारत में विज्ञापन नियंत्रण व्यवस्था को अधिक पारदर्शी, उत्तरदायी और प्रभावी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। 'Self Declaration' की अनिवार्यता से विज्ञापनदाता और एंडोर्सर्स पर कानूनी जिम्मेदारी बढ़ेगी, जिससे भ्रामक दावों की संभावना घटेगी।

    अदालत का यह कदम केवल उपभोक्ताओं को आर्थिक हानि से बचाने का उपाय नहीं है, बल्कि यह उनके स्वास्थ्य और जीवन के मौलिक अधिकार की सुरक्षा के लिए एक सीधा कानूनी औज़ार है। आने वाले समय में इस आदेश का प्रभाव न केवल विज्ञापन उद्योग पर, बल्कि उपभोक्ता संस्कृति और बाजार की पारदर्शिता पर भी व्यापक रूप से देखा जाएगा।

    Next Story