क्या संपत्ति के नए खरीदार से पुराने मालिक का बकाया बिजली बिल वसूल किया जा सकता है?
Himanshu Mishra
7 Jun 2025 5:34 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने K.C. Ninan बनाम Kerala State Electricity Board के ऐतिहासिक निर्णय में यह अहम सवाल सुलझाया कि क्या कोई बिजली कंपनी (Electric Utility) उस व्यक्ति से बकाया बिजली बिल वसूल सकती है, जिसने किसी संपत्ति को नीलामी (Auction) या अन्य प्रक्रिया से खरीदा है, लेकिन जिसने स्वयं बिजली का उपभोग (Consumption) नहीं किया है।
इस निर्णय में कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि क्या ऐसा करना कानूनन उचित है, और क्या विद्युत आपूर्ति कोड (Electricity Supply Code) या अन्य अधीनस्थ कानूनों (Subordinate Legislations) के ज़रिए ऐसी ज़िम्मेदारी डाली जा सकती है।
धारा 43 के तहत विद्युत सेवा दायित्व (Universal Service Obligation) की सीमा
Electricity Act, 2003 की धारा 43 के अनुसार हर distribution licensee पर यह दायित्व है कि वह किसी भी मालिक या कब्जाधारी को बिजली कनेक्शन दे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यह अधिकार पूर्ण (Absolute) नहीं है।
उपभोक्ता (Consumer) को बिजली कनेक्शन लेने के लिए आवेदन शुल्क, जरूरी दस्तावेज़ और अन्य Compliance पूरे करने होते हैं। ये शर्तें केवल औपचारिकता नहीं हैं, बल्कि वैधानिक आवश्यकता (Statutory Requirement) हैं।
कोर्ट ने Brihanmumbai Electric Supply & Transport Undertaking बनाम MERC (2015) मामले का हवाला दिया जिसमें यह तय किया गया कि आवेदन पूरा होने और शुल्क जमा होने के बाद ही बिजली आपूर्ति की बाध्यता शुरू होती है।
उपभोक्ता और संपत्ति का संबंध (Consumer vs. Premises)
महत्वपूर्ण प्रश्न यह था कि बिजली आपूर्ति उपभोक्ता (Consumer) से जुड़ी है या संपत्ति (Premises) से। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिजली एक वस्तु (Good) है, जो किसी विशेष व्यक्ति को दी जाती है, न कि किसी भवन को। इसलिए जब कोई नया व्यक्ति किसी संपत्ति को खरीदता है, तो वह पुराने उपभोक्ता का स्थान नहीं लेता।
कोर्ट ने State of Andhra Pradesh v. NTPC (2002) का उल्लेख करते हुए कहा कि बिजली एक चल संपत्ति (Movable Property) है, और इसकी आपूर्ति किसी विशेष व्यक्ति को होती है, केवल स्थान विशेष को नहीं।
पुनः कनेक्शन बनाम नया कनेक्शन (Reconnection vs. Fresh Connection)
एक और प्रमुख प्रश्न यह था कि यदि कोई नया खरीदार उसी संपत्ति के लिए बिजली कनेक्शन मांगता है, तो क्या यह “Reconnection” माना जाएगा या “Fresh Connection”? पुराने फैसलों जैसे Isha Marbles (1995) में इसे “Reconnection” माना गया था, जिससे यह भ्रम उत्पन्न हुआ कि नया मालिक पुराने बकायों के लिए जिम्मेदार है।
लेकिन Ahmedabad Electricity Co. Ltd. v. Gujarat Inns (2004) और इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नया मालिक भले ही पुरानी संपत्ति में हो, लेकिन वह नया उपभोक्ता है और इसलिए यह नया कनेक्शन (Fresh Connection) माना जाएगा। पुराने बकायों की ज़िम्मेदारी बिना स्पष्ट कानून के उस पर नहीं डाली जा सकती।
बिजली आपूर्ति कोड के तहत बकाया की वसूली (Recovery under Electricity Supply Code)
कोर्ट ने Electricity Act की धारा 49, 50, और 181 की व्याख्या की और माना कि राज्य विद्युत आयोग (State Electricity Commission) को यह अधिकार है कि वह नियमों के ज़रिए यह शर्त लागू कर सके कि किसी संपत्ति के नए मालिक को कनेक्शन देने से पहले पुराने बकायों का भुगतान करना होगा, बशर्ते यह शर्त कोड में स्पष्ट रूप से दी गई हो।
कोर्ट ने Hyderabad Vanaspathi Ltd. v. APSEB (1998) और Paschimanchal Vidyut Vitran Nigam Ltd. v. DVS Steels (2009) में दिए गए निर्णयों का हवाला दिया, जहाँ यह कहा गया कि यदि शर्तें गैर मनमानी (Non-arbitrary) और न्यायोचित (Reasonable) हों, तो इन्हें लागू किया जा सकता है।
नीलामी में "As is where is" क्लॉज का प्रभाव (Effect of “As Is Where Is” Clause)
कोर्ट ने इस बात पर भी विचार किया कि जब कोई संपत्ति "As is where is" आधार पर नीलाम होती है, तो क्या खरीदार पर पुराने बिजली बिल की ज़िम्मेदारी डाली जा सकती है? कोर्ट ने कहा कि यदि नीलामी की शर्तों में स्पष्ट रूप से यह लिखा है कि सभी देयताएं खरीदार को स्वीकार करनी होंगी, तो खरीदार इस जिम्मेदारी से बच नहीं सकता।
इस संदर्भ में कोर्ट ने Telangana State Southern Power Distribution v. Srigdhaa Beverages (2020) का हवाला दिया, जहाँ खरीदार से पुराने बिजली बिल की वसूली को सही ठहराया गया क्योंकि उसे नीलामी से पहले इस बारे में जानकारी थी।
संपत्ति पर कोई वैधानिक भार नहीं (No Statutory Charge on Property)
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बिजली बिल संपत्ति पर कोई वैधानिक भार (Statutory Charge) नहीं बनाता है। यानी, बिजली का बकाया नए मालिक से केवल इस आधार पर नहीं वसूला जा सकता कि वह अब उस संपत्ति का मालिक है। इसके लिए स्पष्ट कानून या वैध नियम की आवश्यकता होती है।
Isha Marbles के निर्णय को दोहराते हुए कोर्ट ने कहा कि जब तक कोई वैधानिक व्यवस्था नहीं है, किसी नए खरीदार पर पुराने उपभोक्ता के बकायों की ज़िम्मेदारी नहीं डाली जा सकती।
नागरिक वसूली की स्वतंत्रता (Right to Civil Recovery)
हालाँकि धारा 56(2) के तहत दो साल बाद बिजली आपूर्ति काटने का अधिकार समाप्त हो जाता है, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह नागरिक अदालत में बकाया की वसूली (Civil Recovery) करने के अधिकार को खत्म नहीं करता। लेकिन यह वसूली केवल उसी व्यक्ति से की जा सकती है जो असल उपभोक्ता था, न कि नए मालिक से जब तक कानून ऐसा न कहे।
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने एक लंबे समय से चले आ रहे विवाद को सुलझा दिया है। यह तय कर दिया गया है कि जब तक कोई स्पष्ट नियम या कानून न हो, पुराने उपभोक्ता का बिजली बिल नए मालिक से नहीं वसूला जा सकता। हालांकि बिजली कंपनियां अपने नियमों में कुछ शर्तें रख सकती हैं, लेकिन वे भी वैधानिक रूप से समर्थित (Statutorily Backed) और न्यायसंगत (Justified) होनी चाहिए।
इस निर्णय से उपभोक्ता अधिकारों की सुरक्षा और बिजली कंपनियों की वैधानिक सीमाओं के बीच संतुलन स्थापित हुआ है। अब खरीदारों को सलाह दी जाती है कि वे नीलामी या किसी संपत्ति के क्रय से पहले "No Dues Certificate" अवश्य प्राप्त करें और शर्तों को ठीक से पढ़ें। साथ ही, बिजली कंपनियों को यह ध्यान रखना होगा कि वे अपने नियमों को पारदर्शी और न्यायसंगत बनाएं।