क्या बिना वैध कानून के सरकार रिटायर्ड जजों को पोस्ट-रिटायरमेंट सुविधाएं दे सकती है?

Himanshu Mishra

21 July 2025 5:54 PM IST

  • क्या बिना वैध कानून के सरकार रिटायर्ड जजों को पोस्ट-रिटायरमेंट सुविधाएं दे सकती है?

    उत्तर प्रदेश राज्य बनाम रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट जजों का संघ (3 जनवरी 2024) के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह तय किया कि क्या रिटायर्ड जजों को सरकारी आदेशों (Government Orders – GOs) के ज़रिए पोस्ट-रिटायरमेंट सुविधाएं जैसे सरकारी आवास, वाहन और स्टाफ दिए जा सकते हैं, जब तक कि उसके लिए कोई वैध कानून न हो।

    कोर्ट ने यह साफ कर दिया कि इस प्रकार की सुविधाएं केवल विधायिका (Legislature) द्वारा बनाए गए कानून (Law) से ही दी जा सकती हैं, न कि सरकार की कृपा (Executive Discretion) से।

    क्या पोस्ट-रिटायरमेंट सुविधाएं कानूनी अधिकार (Legal Right) हैं या सरकार की कृपा (Favour)?

    मुख्य प्रश्न यह था कि क्या रिटायरमेंट के बाद भी कोई जज सरकारी बंगला, गाड़ी, ड्राइवर और घरेलू स्टाफ जैसी सुविधाओं का हकदार (Entitled) हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि रिटायरमेंट के बाद व्यक्ति अब संवैधानिक पद (Constitutional Post) पर नहीं होता, और इसलिए कोई भी सुविधा केवल कानून द्वारा ही दी जा सकती है।

    संविधान के अनुच्छेद 125 और 221 (Articles 125 and 221) में जजों की सेवा शर्तें (Service Conditions) जैसे वेतन और पेंशन का उल्लेख है, लेकिन रिटायरमेंट के बाद की कोई सुविधा इन अनुच्छेदों में शामिल नहीं है। इसलिए जब तक विधि द्वारा कोई व्यवस्था न हो, तब तक ये सुविधाएं अधिकार नहीं बनतीं।

    कार्यपालिका की सीमाएं (Limits of Executive Power)

    सुप्रीम कोर्ट ने यह भी देखा कि क्या कार्यपालिका (Executive) अपने स्तर पर प्रशासनिक आदेश (Administrative Orders) से ऐसी सुविधाएं दे सकती है। निर्णय यह हुआ कि जब सार्वजनिक धन (Public Money) या संसाधन (Resources) खर्च हो रहे हों, तो ऐसी सुविधा केवल कानून के तहत ही दी जा सकती है।

    कोर्ट ने Common Cause v. Union of India और Lok Prahari v. State of Uttar Pradesh जैसे मामलों का उल्लेख किया, जहाँ यह कहा गया कि बिना वैधानिक प्रावधान (Statutory Provision) के कोई व्यक्ति सार्वजनिक संपत्ति का उपयोग नहीं कर सकता।

    सत्ता पृथक्करण और संस्थागत गरिमा (Separation of Powers and Institutional Integrity)

    कोर्ट ने कहा कि अगर कार्यपालिका रिटायर्ड जजों को अपनी मर्जी से लाभ देती है, तो यह संविधान में तय तीनों अंगों – विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका (Legislature, Executive, and Judiciary) – के बीच संतुलन को बिगाड़ता है।

    ऐसे कार्य से यह संदेश जा सकता है कि रिटायरमेंट के बाद सुविधाएं किसी प्रकार की 'वफादारी' (Favouritism) का परिणाम हैं, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता (Judicial Independence) और गरिमा (Dignity) पर असर पड़ता है।

    अनुच्छेद 14 और समानता का अधिकार (Article 14 and Right to Equality)

    कोर्ट ने कहा कि भारत का संविधान सभी नागरिकों को समानता का अधिकार (Right to Equality) देता है। अगर रिटायर्ड जजों को बिना किसी वैध आधार (Valid Basis) के विशेष सुविधाएं दी जाती हैं, तो यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।

    E.P. Royappa v. State of Tamil Nadu और State of West Bengal v. Anwar Ali Sarkar जैसे मामलों में यह तय किया गया था कि राज्य का कोई भी निर्णय मनमाना (Arbitrary) नहीं होना चाहिए।

    सार्वजनिक संसाधनों का संरक्षण (Protection of Public Resources)

    सरकार की संपत्ति जैसे बंगले, गाड़ियाँ और स्टाफ का उपयोग केवल सार्वजनिक कार्यों (Public Purpose) के लिए ही होना चाहिए। कोर्ट ने माना कि रिटायरमेंट के बाद इनका उपयोग व्यक्तिगत सुविधा के लिए नहीं किया जा सकता।

    S.D. Bandi v. Divisional Traffic Officer और Lok Prahari जैसे मामलों में भी यह सिद्धांत अपनाया गया कि सरकारी बंगले रिटायरमेंट के बाद खाली किए जाने चाहिए।

    हितों का टकराव और न्यायपालिका की भूमिका (Conflict of Interest and Judiciary's Role)

    कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि न्यायपालिका (Judiciary) स्वयं अपने लिए पोस्ट-रिटायरमेंट सुविधाएं तय करती है, तो यह हितों के टकराव (Conflict of Interest) का मामला बनता है। यह Nemo Judex in Causa Sua के सिद्धांत (No One Should Be Judge in His Own Cause) का उल्लंघन है।

    ऐसी सभी व्यवस्थाएं या तो संसद (Parliament) द्वारा बननी चाहिए या स्वतंत्र संवैधानिक संस्था (Independent Constitutional Body) द्वारा तय की जानी चाहिए।

    संविधान की मूल संरचना और शासन प्रणाली (Basic Structure and Governance)

    संविधान के मूल ढांचे (Basic Structure) में शक्ति का पृथक्करण (Separation of Powers), पारदर्शिता (Transparency), और जवाबदेही (Accountability) जैसी विशेषताएं शामिल हैं। कोई भी कार्य जो विधायिका के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करता है, वह असंवैधानिक (Unconstitutional) हो सकता है।

    कोर्ट ने K.S. Puttaswamy v. Union of India और Rojer Mathew v. South Indian Bank Ltd. जैसे फैसलों का हवाला दिया, जहाँ सार्वजनिक नीति और प्रशासन में पारदर्शिता की आवश्यकता पर बल दिया गया था।

    सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय स्पष्ट करता है कि रिटायर्ड जजों को मिलने वाली सुविधाएं तभी दी जा सकती हैं जब वे किसी वैध कानून (Valid Law) पर आधारित हों। केवल कार्यपालिका द्वारा आदेश जारी कर देना पर्याप्त नहीं है।

    यह फैसला न केवल संविधान के मूल सिद्धांतों की रक्षा करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति even if formerly a judge सार्वजनिक संसाधनों (Public Resources) का अनुचित उपयोग न करे।

    इस निर्णय से यह संदेश दिया गया कि न्यायपालिका की गरिमा और निष्पक्षता केवल कोर्ट में दिए गए निर्णयों से नहीं, बल्कि रिटायरमेंट के बाद भी उनके आचरण और व्यवहार से जुड़ी होती है।

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