क्या केंद्र सरकार सेवा से जुड़े मामलों में विधायी या कार्यपालिका कार्रवाई के ज़रिए दिल्ली की निर्वाचित सरकार की शक्तियों को निरस्त कर सकती है?
Himanshu Mishra
18 July 2025 11:14 AM

Government of NCT of Delhi v. Union of India (29 नवंबर 2023) के ऐतिहासिक निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच लंबे समय से चले आ रहे संवैधानिक और प्रशासनिक विवाद पर फैसला दिया। इस मामले में मुख्य प्रश्न यह था कि दिल्ली सरकार के अधिकारियों की नियुक्ति (Appointment), स्थानांतरण (Transfer), और अनुशासनात्मक कार्रवाई (Disciplinary Action) जैसे सेवा संबंधी मामलों पर नियंत्रण किसका होगा – चुनी हुई दिल्ली सरकार का या केंद्र सरकार का।
यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 239AA (Article 239AA) की व्याख्या करता है, जो दिल्ली के विशेष प्रशासनिक ढांचे को निर्धारित करता है। यह पहले दिए गए 2018 और 2023 के संवैधानिक पीठ (Constitution Bench) के निर्णयों को दोहराते हुए यह स्पष्ट करता है कि दिल्ली और केंद्र सरकार की शक्तियों की सीमा क्या है।
अनुच्छेद 239AA और दिल्ली की विशेष स्थिति (Article 239AA and Special Status of Delhi)
अनुच्छेद 239AA, जो 69वें संविधान संशोधन के जरिए 1991 में जोड़ा गया, दिल्ली के लिए विधान सभा (Legislative Assembly) की स्थापना करता है और उसे राज्य जैसी विधायी शक्तियां देता है। लेकिन इसमें कुछ विषयों पर केंद्र का नियंत्रण भी बरकरार रहता है।
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि दिल्ली एक पूर्ण राज्य नहीं है और इसलिए उसकी विधायी और कार्यपालिका शक्तियां (Legislative and Executive Powers) सीमित हैं। अनुच्छेद 239AA(3)(a) के अनुसार, दिल्ली विधानसभा को राज्य सूची (State List) और समवर्ती सूची (Concurrent List) के अधिकांश विषयों पर कानून बनाने की शक्ति है, लेकिन सार्वजनिक व्यवस्था (Public Order), पुलिस (Police) और भूमि (Land) इससे बाहर हैं।
कोर्ट ने कहा कि संविधान ने एक संतुलन बनाया है – जहाँ दिल्ली की जनता के लिए एक चुनी हुई सरकार हो, वहीं राजधानी होने के कारण केंद्र सरकार को कुछ विशेष नियंत्रण भी दिए गए हैं।
क्या सेवाओं पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण है? (Who Controls Services in Delhi?)
इस विवाद का मूल मुद्दा "सेवाएं" (Services) थीं, यानी सरकारी अधिकारियों का प्रशासनिक नियंत्रण। प्रश्न यह था कि इन अधिकारियों के ट्रांसफर, पोस्टिंग, विजिलेंस और अनुशासन (Discipline) पर नियंत्रण किसका होगा – दिल्ली सरकार का या उपराज्यपाल (Lieutenant Governor / LG) के माध्यम से केंद्र सरकार का?
मई 2023 में एक संविधान पीठ ने स्पष्ट किया था कि दिल्ली सरकार को सेवाओं पर नियंत्रण प्राप्त है, सिवाय पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि के। कोर्ट ने कहा था कि प्रशासनिक नियंत्रण (Administrative Control) चुनी हुई सरकार के पास होना चाहिए ताकि जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।
लेकिन इसके तुरंत बाद केंद्र सरकार ने Government of NCT of Delhi (Amendment) Ordinance, 2023 जारी किया, जिसमें एक National Capital Civil Services Authority (NCCSA) बनाई गई। इसमें मुख्यमंत्री (Chief Minister), मुख्य सचिव (Chief Secretary), और गृह सचिव (Home Secretary) शामिल थे, लेकिन अंतिम निर्णय उपराज्यपाल के पास रखा गया।
क्या NCCSA संवैधानिक है? (Is the NCCSA Constitutionally Valid?)
मुख्य कानूनी सवाल यह था कि क्या इस Ordinance और बाद में बने कानून ने दिल्ली की चुनी हुई सरकार की शक्तियों को असंवैधानिक रूप से कमजोर कर दिया है?
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि NCCSA जैसी प्रणाली ने दिल्ली की सरकार को केवल एक औपचारिक निकाय बना दिया और सारे निर्णय लेने का अधिकार उपराज्यपाल को दे दिया, जो केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी होते हैं। इससे लोकतंत्र के सिद्धांत (Principle of Representative Democracy) और संघीय ढांचे (Federal Structure) का उल्लंघन हुआ।
लोकतांत्रिक शासन और सत्ता पृथक्करण (Democratic Governance and Separation of Powers)
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि लोकतांत्रिक शासन (Democratic Governance) संविधान की मूल भावना है। अगर सेवाओं जैसे महत्वपूर्ण मामलों में भी चुनी हुई सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होगा, तो यह लोकतंत्र के सिद्धांत का उल्लंघन है।
State of NCT of Delhi v. Union of India (2018) और S.R. Bommai v. Union of India जैसे मामलों में यह पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है कि असली कार्यकारी शक्ति (Real Executive Power) निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास होनी चाहिए, न कि मनोनीत अधिकारियों (Nominated Officials) के पास।
उपराज्यपाल की भूमिका (Role of the Lieutenant Governor - LG)
कोर्ट ने कहा कि दिल्ली के प्रशासन में दोहरी व्यवस्था है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उपराज्यपाल को हर निर्णय में सर्वोच्च अधिकार प्राप्त है।
अनुच्छेद 239AA(4) के अनुसार, LG को उन मामलों में ही राष्ट्रपति को संदर्भ भेजने का अधिकार है जो विवादास्पद (Controversial) हों और जहाँ दिल्ली सरकार और LG की राय अलग हो। अन्य मामलों में LG को मंत्रिपरिषद की सलाह (Aid and Advice) से ही कार्य करना होता है।
NCCSA के माध्यम से LG को अंतिम निर्णय का अधिकार देना इस संवैधानिक संतुलन को नष्ट कर देता है।
Delhi Services Act, 2023 का प्रभाव (Impact of Delhi Services Act, 2023)
Ordinance के स्थान पर बनाए गए Delhi Services Act, 2023 ने NCCSA को स्थायी बना दिया और सेवाओं से संबंधित सभी निर्णयों में LG को अंतिम अधिकार दे दिया।
इस अधिनियम के माध्यम से LG को सर्वोच्च कार्यकारी बना दिया गया, जिससे मुख्यमंत्री और उनकी कैबिनेट की शक्तियां नाममात्र रह गईं। कोर्ट ने कहा कि संसद को भले ही केंद्रशासित प्रदेशों पर कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन वह संविधान की मूल भावना को नष्ट नहीं कर सकती।
न्यायिक समीक्षा और लोकतंत्र की रक्षा (Judicial Review and Protection of Democracy)
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संसद भले ही किसी क्षेत्र पर कानून बना सकती है, लेकिन वह ऐसा कानून नहीं बना सकती जो संविधान के मूल ढांचे (Basic Structure) को नुकसान पहुँचाए।
Rojer Mathew v. South Indian Bank Ltd. और K.S. Puttaswamy v. Union of India जैसे मामलों में कहा गया है कि अदालत को ऐसे कानूनों की समीक्षा करनी चाहिए जो संघीय व्यवस्था या लोकतंत्र को कमजोर करते हों।
Government of NCT of Delhi v. Union of India (2023) में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार को सेवाओं पर वास्तविक नियंत्रण से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 239AA और लोकतांत्रिक व्यवस्था की आत्मा के विरुद्ध है।
हालाँकि कोर्ट ने Delhi Services Act को तुरंत असंवैधानिक घोषित नहीं किया, लेकिन उसने यह साफ कर दिया कि लोकतंत्र में निर्वाचित सरकार को प्रशासनिक निर्णय लेने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। यह निर्णय शासन प्रणाली में शक्ति संतुलन (Balance of Power) बनाए रखने की दिशा में एक मजबूत संदेश है।