क्या केंद्र सरकार बिना कानून बदले किसी State Administrative Tribunal को खत्म कर सकती है?

Himanshu Mishra

24 April 2025 12:10 PM

  • क्या केंद्र सरकार बिना कानून बदले किसी State Administrative Tribunal को खत्म कर सकती है?

    Orissa Administrative Tribunal Bar Association v. Union of India नामक मामले में, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 21 मार्च 2023 को निर्णयित किया, यह तय किया गया कि क्या केंद्र सरकार (Union Government) के पास यह अधिकार है कि वह एक बार बनाए गए राज्य प्रशासनिक अधिकरण (State Administrative Tribunal या SAT) को समाप्त (Abolish) कर सकती है, वह भी बिना संसद में किसी नए कानून को पारित किए।

    इस केस का मुख्य मुद्दा यह था कि जब संविधान के Article 323-A और Administrative Tribunals Act, 1985 के तहत एक Tribunal को स्थापित करने (Establish) का अधिकार दिया गया है, तो क्या उसमें उसे समाप्त करने (Abolish) का अधिकार भी शामिल है? सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यह एक प्रशासनिक निर्णय (Administrative Decision) है, जो विधिसम्मत (Lawful) तरीके से और उचित कारणों (Reasoned Grounds) पर लिया जाए तो वैध (Valid) है।

    Article 323-A के तहत Tribunals का प्रावधान (Administrative Tribunals under Article 323-A of the Constitution)

    संविधान का Article 323-A संसद को यह अधिकार देता है कि वह सरकारी सेवाओं (Public Services) से संबंधित विवादों के समाधान के लिए विशेष Tribunals बना सके। इस Article में “may” शब्द का प्रयोग हुआ है, जो यह दर्शाता है कि Tribunal बनाना सरकार के लिए अनिवार्य (Mandatory) नहीं बल्कि एक विकल्प (Discretionary) है।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब Tribunal बनाना एक वैकल्पिक शक्ति (Discretionary Power) है, तो उसे समाप्त करना भी सरकार के विवेक (Executive Discretion) में आता है। यानी, यदि सरकार यह महसूस करे कि Tribunal अब अपने उद्देश्य को पूरा नहीं कर रहा, तो वह उसे बंद करने का निर्णय ले सकती है।

    General Clauses Act की Section 21 के तहत Notification वापस लेना (Use of Section 21 of the General Clauses Act to Abolish Tribunals)

    Tribunal को समाप्त करने के लिए सरकार ने उस Notification को रद्द (Rescind) किया जिससे पहले Tribunal बना था। सवाल यह था कि क्या General Clauses Act, 1897 की Section 21 के तहत ऐसा किया जा सकता है?

    Section 21 कहती है कि जब किसी कानून के तहत Notification जारी करने की शक्ति दी गई हो, तो उसी के तहत उसे संशोधित (Amend) या रद्द (Rescind) भी किया जा सकता है, जब तक कि कानून में ऐसा करने से रोका न गया हो।

    Court ने माना कि Administrative Tribunals Act की Section 4(2) के तहत Tribunal को बनाने की जो Notification जारी की गई थी, उसे Section 21 के तहत रद्द करना पूरी तरह वैध था क्योंकि कानून में ऐसा करने पर कोई रोक नहीं है।

    Tribunal बनाना या समाप्त करना एक प्रशासनिक निर्णय है (Administrative Nature of the Decision to Establish or Abolish a Tribunal)

    Court ने यह स्पष्ट किया कि Tribunal बनाना या बंद करना एक Administrative Decision है, न कि Judicial या Quasi-Judicial। इसका मतलब यह हुआ कि सरकार इसे नीति (Policy) और प्रशासनिक कारणों (Administrative Reasons) के आधार पर तय कर सकती है, जैसे कि ट्रिब्यूनल की कार्यक्षमता (Efficiency), खर्च (Cost), और केस निपटारे की गति (Disposal Rate)।

    इस विषय पर Court ने Province of Bombay v. Khushaldas S. Advani और Board of High School v. Ghanshyam Das Gupta जैसे पुराने फैसलों का हवाला दिया, जिनमें बताया गया था कि कौन-से निर्णय Administrative होते हैं और कौन-से Judicial।

    न्याय तक पहुँच के अधिकार पर असर नहीं (Access to Justice and Impact on Litigants)

    याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि OAT (Odisha Administrative Tribunal) को समाप्त करने से litigants को High Court जाना पड़ेगा, जो कि ज़्यादा दूर और महँगा विकल्प है, जिससे उनके Article 14 और 21 के तहत मिलने वाले न्याय के अधिकार (Right to Access Justice) का उल्लंघन होता है।

    लेकिन Court ने कहा कि Access to Justice का मतलब यह नहीं है कि हर व्यक्ति को पास में ही Forum मिले। जब तक कोई कानूनी रास्ता (Legal Remedy) खुला हुआ है, तब तक संविधान का उल्लंघन नहीं माना जा सकता। Court ने L. Chandra Kumar v. Union of India फैसले का ज़िक्र किया, जिसमें यह कहा गया था कि Tribunals के निर्णय High Courts की Judicial Review के अधीन होंगे।

    Natural Justice और सुनवाई का अधिकार (Principles of Natural Justice and Procedural Fairness)

    Bar Association ने यह भी कहा कि Tribunal को बंद करने से पहले उन्हें सुना नहीं गया, जो Natural Justice के सिद्धांतों (Principles of Natural Justice) का उल्लंघन है।

    Court ने कहा कि जब सरकार कोई Policy Decision लेती है, तो उसमें हर Stakeholder को Personal Hearing देना जरूरी नहीं होता, जब तक कि कानून में ऐसा स्पष्ट न लिखा हो। Tribunal को बंद करने का निर्णय एक सामान्य नीति आधारित प्रशासनिक निर्णय था, न कि Judicial फैसला, इसलिए Natural Justice के सिद्धांत लागू नहीं होते।

    Article 77 और Notification की वैधता (Validity of the Notification under Article 77 of the Constitution)

    एक और मुद्दा यह था कि Tribunal को समाप्त करने की Notification President के नाम से जारी नहीं हुई, जबकि Article 77(1) कहता है कि सभी कार्य राष्ट्रपति के नाम पर किए जाएं। Court ने कहा कि यदि किसी Notification में President का नाम नहीं है तो भी वह स्वतः अमान्य (Void) नहीं हो जाती, लेकिन उसकी वैधता को चुनौती दी जा सकती है।

    सरकार यह साबित कर सकती है कि Notification उसके अधिकृत अधिकारियों द्वारा पूरी प्रक्रिया के अनुसार जारी की गई थी, इसलिए यह वैध मानी जाएगी।

    Judicial Impact Assessment जरूरी नहीं (No Need for Judicial Impact Assessment)

    याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि Tribunal को बंद करने से पहले Judicial Impact Assessment (न्यायिक प्रभाव मूल्यांकन) होना चाहिए था। Court ने कहा कि यह भले ही एक अच्छा प्रशासनिक अभ्यास (Good Governance Practice) हो, लेकिन यह कानूनन जरूरी नहीं है। इसकी गैर-उपलब्धता से सरकार का निर्णय अवैध नहीं हो जाता।

    MP और TN के मामलों से तुलना (Precedents from MP and TN Tribunal Abolition Cases)

    Court ने मध्यप्रदेश और तमिलनाडु में Administrative Tribunals को समाप्त करने से जुड़े मामलों का भी ज़िक्र किया। MP High Court Bar Association का मामला और तमिलनाडु का केस यह दिखाते हैं कि केंद्र सरकार Notification के जरिए State Tribunal को बंद कर सकती है, यदि State सरकार की अनुशंसा (Recommendation) हो और केंद्र यह समझे कि Tribunal की अब आवश्यकता नहीं है।

    ये फैसले Supreme Court की reasoning को और मजबूती देते हैं।

    Orissa Administrative Tribunal Bar Association v. Union of India मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ किया कि Administrative Tribunals को बनाना और बंद करना एक प्रशासनिक प्रक्रिया है, और इसे General Clauses Act की Section 21 के तहत किया जा सकता है। Tribunal को बंद करना कानून का उल्लंघन नहीं है, न ही यह न्याय तक पहुँच के अधिकार का हनन है।

    यह निर्णय यह दर्शाता है कि Tribunals महत्वपूर्ण ज़रूर हैं, लेकिन वे संविधान के तहत वैकल्पिक हैं। यदि वे अपने उद्देश्य को पूरा नहीं कर रहे, तो सरकार उन्हें बंद करने का फैसला ले सकती है, बशर्ते कि न्यायिक Remedy उपलब्ध हो और निर्णय विधिसम्मत हो।

    यह फैसला भारत की न्यायिक प्रणाली में संतुलन और पारदर्शिता की मिसाल प्रस्तुत करता है, जिसमें नीति और कानून दोनों के बीच उचित समन्वय को बनाए रखा गया है।

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