क्या प्राथमिक कक्षा में पढ़ाने के लिए केवल B.Ed. डिग्रीधारी शिक्षक योग्य माने जा सकते हैं?
Himanshu Mishra
26 Jun 2025 11:18 AM

अनुच्छेद 21A और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का महत्व (Article 21A and Importance of Quality Education)
भारत के संविधान का अनुच्छेद 21A (Article 21A) यह गारंटी देता है कि हर बच्चे को 14 वर्ष की आयु तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा (Free and Compulsory Education) मिले। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने देवेश शर्मा बनाम भारत संघ (2023) मामले में यह साफ किया कि यह अधिकार केवल स्कूल जाने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा (Quality Education) भी शामिल है।
गुणवत्ता कोई अतिरिक्त या वैकल्पिक चीज़ नहीं है, बल्कि यह शिक्षा के अधिकार की आत्मा है। इसके लिए शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (Right to Education Act – RTE Act) लाया गया ताकि हर बच्चे को प्रशिक्षित और योग्य शिक्षकों के माध्यम से प्रभावी शिक्षा मिल सके।
RTE अधिनियम की धारा 23 और NCTE की भूमिका (Section 23 of RTE Act and Role of NCTE)
RTE अधिनियम की धारा 23(1) यह कहती है कि केंद्र सरकार एक शैक्षिक प्राधिकरण (Academic Authority) नियुक्त कर सकती है, जो प्राथमिक शिक्षा के लिए न्यूनतम योग्यता (Minimum Qualification) तय करे। यह भूमिका नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन (National Council for Teacher Education – NCTE) को दी गई है।
2010 में NCTE ने जो अधिसूचना (Notification) जारी की, उसमें प्राथमिक शिक्षकों के लिए दो वर्षीय डिप्लोमा इन एलिमेंट्री एजुकेशन (D.El.Ed.) को आवश्यक योग्यता बताया गया, न कि B.Ed. को।
प्राथमिक शिक्षा की विशिष्ट आवश्यकता (Pedagogical Needs at the Primary Level)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्राथमिक स्तर (Primary Level) पर पढ़ाने के लिए विशेष शिक्षण विधियों (Pedagogical Methods) की ज़रूरत होती है। छोटे बच्चों की मानसिक, सामाजिक और शैक्षिक अवस्था अलग होती है, जिसे समझने और संभालने के लिए D.El.Ed. जैसे पाठ्यक्रम में विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है – जैसे कि बाल मनोविज्ञान (Child Psychology), प्रारंभिक शिक्षा के तौर-तरीके (Early Learning Methods), और सतत मूल्यांकन (Continuous Assessment)। जबकि B.Ed. कोर्स माध्यमिक और उच्च माध्यमिक कक्षाओं के लिए बनाया गया है।
न्यायिक दृष्टिकोण: B.Ed. को D.El.Ed. के समकक्ष नहीं माना जा सकता (Judicial View: B.Ed. Not Equivalent to D.El.Ed.)
कोर्ट ने कई पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि B.Ed. को D.El.Ed. के समकक्ष (Equivalent) नहीं माना जा सकता। दिलीप कुमार घोष बनाम चेयरमैन (2005) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि B.Ed. प्रशिक्षित शिक्षक प्राथमिक स्तर की जरूरतों को पूरा नहीं कर सकते।
पी.एम. लता बनाम केरल राज्य (2003) और योगेश कुमार बनाम एनसीटी दिल्ली सरकार (2003) में भी यही कहा गया कि B.Ed. किसी भी तरह से D.El.Ed. की जगह नहीं ले सकता।
नीति निर्णयों पर न्यायिक समीक्षा (Judicial Review of Policy Decisions)
केंद्र सरकार ने NCTE को धारा 29 (Section 29 of NCTE Act) के तहत B.Ed. को प्राथमिक शिक्षण के लिए मान्यता देने को कहा। कोर्ट ने कहा कि भले ही यह नीति निर्णय (Policy Decision) था, फिर भी अगर यह निर्णय असंवैधानिक (Unconstitutional) या अनुचित (Unreasonable) हो तो अदालत हस्तक्षेप कर सकती है।
Council of Civil Service Unions v. Minister for Civil Service (1984) और बृज मोहन लाल बनाम भारत संघ (2012) में यह सिद्धांत स्थापित किया गया था कि सभी नीतिगत निर्णय भी न्यायिक समीक्षा के दायरे में आते हैं।
NCTE की स्वायत्तता और केंद्र सरकार के निर्देश (NCTE's Autonomy vs Government Directive)
कोर्ट ने यह कहा कि NCTE एक स्वतंत्र शैक्षिक प्राधिकरण (Independent Academic Authority) है और इसे केवल केंद्र सरकार के आदेश पर B.Ed. को प्राथमिक शिक्षकों के रूप में मान्यता नहीं देनी चाहिए थी। 2018 की अधिसूचना केंद्र सरकार के प्रशासनिक दबाव में जारी की गई थी, न कि NCTE के स्वतंत्र निर्णय के रूप में।
ब्रिज कोर्स का प्रावधान स्वयं ही अपर्याप्तता की पुष्टि (Bridge Course Indicates Inadequacy)
2018 की अधिसूचना में कहा गया कि B.Ed. डिग्रीधारी उम्मीदवारों को नियुक्ति के बाद दो साल के भीतर छह महीने का ब्रिज कोर्स (Bridge Course) पूरा करना होगा। कोर्ट ने कहा कि यह प्रावधान स्वयं यह स्वीकार करता है कि B.Ed. अकेले प्राथमिक शिक्षण के लिए पर्याप्त नहीं है। और यह भी उल्लेखनीय है कि उस समय ऐसा कोई ब्रिज कोर्स अस्तित्व में भी नहीं था।
D.El.Ed. उम्मीदवारों के साथ अन्याय (Unfairness to D.El.Ed. Candidates)
B.Ed. उम्मीदवारों को प्राथमिक स्तर की नौकरियों के लिए पात्र घोषित करना D.El.Ed. धारकों के साथ अन्याय है। D.El.Ed. धारक केवल प्राथमिक स्तर (Primary Level) के लिए प्रशिक्षित होते हैं, जबकि B.Ed. धारक उच्च स्तर (Upper Levels) पर भी पढ़ा सकते हैं। ऐसे में सीमित अवसरों पर B.Ed. को प्राथमिकता देना D.El.Ed. योग्यता को कमजोर करता है और उसके उद्देश्य को विफल करता है।
शिक्षा के अधिकार अधिनियम की मूल भावना का उल्लंघन (Violation of RTE Act's Spirit)
RTE अधिनियम का उद्देश्य केवल नामांकन नहीं, बल्कि गुणवत्ता और समानता (Equity) को बढ़ावा देना है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि B.Ed. को प्राथमिक स्तर के लिए मान्य बनाना शिक्षा की गुणवत्ता को कमजोर करता है और अधिनियम की आत्मा के खिलाफ है। यह अनुच्छेद 21A द्वारा गारंटीकृत अधिकार का उल्लंघन है।
न्यायालय का अंतिम निर्णय (Final Holding of the Court)
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा और 2018 की अधिसूचना को असंवैधानिक (Unconstitutional) और मनमाना (Arbitrary) घोषित करते हुए रद्द कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्राथमिक कक्षा में केवल D.El.Ed. योग्य शिक्षक ही नियुक्त किए जाने चाहिए ताकि बच्चों को उनकी उम्र के अनुसार उपयुक्त शिक्षण प्राप्त हो सके।
इस ऐतिहासिक निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा के अधिकार की गुणवत्ता पर फिर से बल दिया और यह सुनिश्चित किया कि प्राथमिक स्तर पर केवल वही शिक्षक नियुक्त हों जो इस आयु वर्ग के बच्चों को समझने और पढ़ाने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित हों।
यह फैसला न केवल शिक्षा व्यवस्था की गुणवत्ता को बनाए रखने की दिशा में एक मजबूत कदम है, बल्कि यह संविधान के तहत बच्चों के अधिकारों की भी रक्षा करता है। साथ ही यह फैसला यह भी दर्शाता है कि किसी भी नीति को कानून और संविधान के दायरे में रहकर ही लागू किया जा सकता है।