क्या सांसद या विधायक घूस लेने पर संविधान में दी गई छूट का दावा कर सकते हैं?
Himanshu Mishra
22 July 2025 5:38 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सीता सोरेन बनाम भारत संघ (2024 INSC 161) के फैसले में एक अत्यंत महत्वपूर्ण संवैधानिक सवाल पर निर्णय दिया है — क्या कोई सांसद (MP) या विधायक (MLA) यह दावा कर सकता है कि उसने वोट देने या सदन में बोलने के लिए घूस (Bribe) ली हो तो उस पर अदालत में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता क्योंकि उसे संविधान के अनुच्छेद 105(2) या 194(2) में छूट (Immunity) दी गई है?
सात जजों की पीठ ने पुराने फैसले पी.वी. नरसिम्हा राव बनाम सीबीआई (1998) को पलटते हुए साफ किया कि संसद या विधान सभा के सदस्य अगर घूस लेते हैं तो वे इस संवैधानिक छूट का लाभ नहीं ले सकते। यह लेख सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले में उठाए गए मुख्य कानूनी व संवैधानिक मुद्दों को सरल भाषा में समझाता है।
अनुच्छेद 105(2) और 194(2) का क्या मतलब है? (What Are Articles 105(2) and 194(2)?)
संविधान का अनुच्छेद 105 संसद के सदस्यों और अनुच्छेद 194 राज्य विधानसभाओं के सदस्यों को कुछ विशेषाधिकार (Privileges) देता है। इसके उपबंध (Clause) (2) में लिखा है कि कोई भी सांसद या विधायक जो भी बात सदन में कहे या जिस तरह से वह वोट दे, उसके लिए उसे अदालत में उत्तरदायी (Liable) नहीं ठहराया जा सकता।
इसका मकसद यह है कि जनप्रतिनिधि (Elected Representatives) बेझिझक अपने विचार रख सकें और स्वतंत्रता से वोट दे सकें। लेकिन सवाल यह था कि क्या यह छूट घूस लेने जैसे आपराधिक (Criminal) कृत्य को भी ढक सकती है?
क्या पी.वी. नरसिम्हा राव का पुराना फैसला गलत था? (Was P.V. Narasimha Rao a Flawed Precedent?)
1998 में पी.वी. नरसिम्हा राव के केस में सुप्रीम कोर्ट ने 3:2 के बहुमत से फैसला दिया था कि अगर कोई सांसद घूस लेकर वोट देता है, तो उसे अनुच्छेद 105(2) की छूट मिल सकती है। कोर्ट ने "in respect of" शब्दों की व्याख्या बहुत व्यापक (Broad) रूप में की।
लेकिन न्यायमूर्ति एस.सी. अग्रवाल की अल्पमत (Minority) राय ने चेतावनी दी थी कि अगर ऐसे सांसदों को भी छूट मिलती है, तो वे कानून से ऊपर हो जाएंगे और लोकतंत्र और कानून के राज (Rule of Law) को गहरी चोट पहुंचेगी।
सीता सोरेन फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने क्या सुधार किया? (What Did the Supreme Court Correct in Sita Soren?)
सात जजों की संविधान पीठ ने पुराने बहुमत के निर्णय को पलटते हुए कहा कि घूस लेना संसद या विधान सभा में बोलने या वोट देने के विशेषाधिकार के तहत नहीं आता। अदालत ने कहा कि ये विशेषाधिकार सिर्फ वैध (Legitimate) विधायी कार्यों (Legislative Actions) को बचाने के लिए हैं, न कि अपराधों को ढकने के लिए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह की छूट कभी भी आपराधिक कृत्य जैसे घूसखोरी (Bribery) के लिए नहीं दी गई थी।
मुख्य संवैधानिक मुद्दे (Key Constitutional Issues)
1. “In respect of” का मतलब क्या है? (What Is the Meaning of “In Respect Of”?)
पी.वी. नरसिम्हा राव के फैसले में इसे बहुत व्यापक रूप में पढ़ा गया था, जिससे एक विरोधाभास (Paradox) पैदा हुआ—अगर कोई सदस्य घूस लेकर वोट देता है, तो वह बच सकता है, लेकिन अगर घूस लेकर वोट नहीं देता तो वह पकड़ा जाएगा।
सीता सोरेन में कोर्ट ने कहा कि “in respect of” का मतलब है “arising out of” यानी वह काम जो सीधे तौर पर भाषण या वोट देने से पैदा हुआ हो। इसका अर्थ यह है कि घूस लेना जो भाषण या वोट देने से पहले होता है, वह इस छूट के दायरे में नहीं आता।
2. लोक जीवन में शुचिता का महत्व (Importance of Probity in Public Life)
कोर्ट ने कहा कि लोक जीवन में ईमानदारी (Integrity) और पारदर्शिता (Transparency) संविधान के मूल मूल्य हैं। संसद या विधान सभा का सदस्य कोई आपराधिक कार्य करे, खासकर घूस ले, तो उसे छूट नहीं दी जा सकती।
3. न्यायालय और सदन की समान भूमिका (Parallel Jurisdiction of Courts and Legislature)
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि घूस जैसे मामलों में संसद या विधानसभा अपनी अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अदालत को मुकदमा चलाने से रोका जा सकता है। दोनों संस्थानों की अलग-अलग भूमिकाएं होती हैं।
4. पूर्व फैसलों की समीक्षा (Doctrine of Stare Decisis)
अदालत ने कहा कि पुराने फैसलों का सम्मान जरूरी है, लेकिन अगर कोई फैसला स्पष्ट रूप से गलत हो और जनहित (Public Interest) के खिलाफ हो, तो उसे पलटा जा सकता है। पी.वी. नरसिम्हा राव का फैसला न केवल कानूनी रूप से गलत था, बल्कि सार्वजनिक विश्वास को भी कमजोर करता था।
अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण (International Comparisons)
कोर्ट ने ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के कानूनों का अध्ययन किया और पाया कि इन देशों में भी कोई सांसद या विधायक घूसखोरी के लिए छूट का दावा नहीं कर सकता। यह फैसला भारत को भी इन्हीं लोकतांत्रिक मानकों (Democratic Standards) के साथ खड़ा करता है।
क्या राज्यसभा चुनाव भी इस छूट में आते हैं? (Are Rajya Sabha Elections Covered Under the Privilege?)
कोर्ट ने माना कि भले ही राज्यसभा चुनाव कोई आम विधायी प्रक्रिया नहीं हैं, लेकिन इनमें "legislative trappings" होते हैं यानी यह एक प्रकार की विधायी कार्रवाई जैसा होता है। फिर भी, अगर सदस्य चुनाव में घूस लेता है, तो वह छूट के दायरे में नहीं आता।
सीता सोरेन का फैसला भारतीय संविधान और लोकतंत्र के लिए एक मजबूत दिशा संकेत है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि संसद या विधानसभा का सदस्य अगर घूस लेता है, तो वह किसी भी स्थिति में अनुच्छेद 105(2) या 194(2) की छूट नहीं ले सकता।
इस फैसले ने यह सुनिश्चित किया कि संसद के विशेषाधिकार जनता की सेवा के लिए हैं, न कि जनप्रतिनिधियों को कानून से ऊपर रखने के लिए। अब यह साफ है कि लोकतंत्र और कानून के राज को बनाए रखने के लिए सांसदों और विधायकों को भी उतना ही जवाबदेह (Accountable) रहना होगा जितना कि कोई भी नागरिक।

