क्या हल्की त्रुटियां या जानकारियां छिपाना किसी उम्मीदवार का चुनाव रद्द करने का आधार हो सकता है?

Himanshu Mishra

31 July 2025 9:22 PM IST

  • क्या हल्की त्रुटियां या जानकारियां छिपाना किसी उम्मीदवार का चुनाव रद्द करने का आधार हो सकता है?

    जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 (Representation of the People Act, 1951) की रूपरेखा

    सुप्रीम कोर्ट ने करिखो क्रि बनाम नुने तायंग (Karikho Kri v. Nuney Tayang, 2024) मामले में यह स्पष्ट किया कि कोई चुनाव उम्मीदवार अगर अपने शपथपत्र (Affidavit) में कुछ संपत्तियों या जानकारियों को छुपाता है, तो क्या यह उसके चुनाव को रद्द करने का वैध आधार हो सकता है। इस निर्णय में मुख्य रूप से धारा 100(1)(b), 100(1)(d)(i), 100(1)(d)(iv) और धारा 123(2) की व्याख्या की गई।

    धारा 100 उन स्थितियों को बताती है जिनमें हाई कोर्ट किसी प्रत्याशी का चुनाव रद्द कर सकता है।

    धारा 123(2) "Corrupt Practice" यानी भ्रष्ट आचरण की व्याख्या करती है, जिसमें Undue Influence (अनुचित प्रभाव) भी शामिल है।

    क्या नामांकन पत्र का गलत स्वीकार किया जाना पर्याप्त है? (Improper Acceptance of Nomination)

    धारा 36(4) के अनुसार, Returning Officer (रिटर्निंग ऑफिसर) किसी भी नामांकन को तब तक अस्वीकार नहीं कर सकता जब तक कि वह त्रुटि "Substantial Character" (मूल प्रकृति की) न हो। इस मामले में हाई कोर्ट ने माना कि करिखो क्रि द्वारा अपनी पत्नी और बेटे के नाम रजिस्टर्ड तीन पुराने वाहनों की जानकारी न देना एक गंभीर त्रुटि थी।

    सुप्रीम कोर्ट ने इस निष्कर्ष को खारिज किया और स्पष्ट किया कि वे वाहन पहले ही Sale (बिक्री) या Gift (उपहार) के माध्यम से अन्य व्यक्तियों को दे दिए गए थे। इसलिए, वे उनके परिवार के स्वामित्व में नहीं थे और उन्हें शपथपत्र में शामिल करना आवश्यक नहीं था।

    हाई कोर्ट ने Motor Vehicles Act, 1988 और Naveen Kumar v. Vijay Kumar (2018) पर भरोसा किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह निर्णय दुर्घटना से संबंधित दावों के लिए था, चुनाव कानून में इसका स्वतः कोई विस्तार नहीं हो सकता।

    क्या यह भ्रष्ट आचरण (Corrupt Practice) था? (Corrupt Practice and Undue Influence)

    हाई कोर्ट ने इस मामूली जानकारी के छुपाने को "Undue Influence" यानी अनुचित प्रभाव माना और इसे धारा 123(2) के अंतर्गत Corrupt Practice मान लिया।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब उम्मीदवार ने स्वयं की और अपने परिवार की कुल चल संपत्ति ₹8.41 करोड़ बताई हो, तो कुछ हजार रुपये के पुराने वाहनों को न बताना न तो गंभीर त्रुटि है और न ही यह मतदाताओं को गुमराह करने की मंशा को दर्शाता है।

    इस संदर्भ में कोर्ट ने Kisan Shankar Kathore v. Arun Dattatray Sawant (2014) के मामले को भिन्न बताया, जहाँ बड़ी संपत्तियों को जानबूझकर छुपाया गया था।

    क्या इन त्रुटियों ने चुनाव परिणाम को प्रभावित किया? (Material Effect on Election Result)

    धारा 100(1)(d)(iv) के तहत, किसी भी गैर-अनुपालन (Non-compliance) को साबित करना जरूरी होता है, और यह भी दिखाना होता है कि उसने चुनाव परिणाम को Materially Affect (मूल रूप से प्रभावित) किया।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नुने तायंग ने न तो ठीक से यह दलील दी और न ही कोई सबूत दिए कि ये कथित त्रुटियाँ चुनाव के परिणाम को वास्तव में प्रभावित करती हैं। उन्होंने बस निष्कर्ष निकाल लिया कि चूंकि नामांकन में गलती हुई, इसलिए चुनाव रद्द हो।

    Mangani Lal Mandal v. Bishnu Deo Bhandari और L.R. Shivaramagowda v. T.M. Chandrashekar जैसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि इस धारा का उपयोग तभी किया जा सकता है जब असर को साबित किया जाए।

    मतदाता के अधिकार और गोपनीयता के बीच संतुलन (Right to Know vs. Right to Privacy)

    कोर्ट ने माना कि मतदाता का "Right to Know" (जानने का अधिकार), जो अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत आता है, अत्यंत महत्वपूर्ण है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि प्रत्याशी को अपनी व्यक्तिगत जिंदगी का हर पहलू सार्वजनिक करना होगा।

    हर छोटी चीज़ जैसे सामान्य घड़ी, फर्नीचर, या कपड़े अगर कम मूल्य के हों, तो उन्हें बताना आवश्यक नहीं। लेकिन अगर कोई उम्मीदवार बहुत महंगी वस्तुएं छुपाता है, तो यह उसके जीवनशैली को दर्शाता है और मतदाताओं की राय पर असर डाल सकता है, जो कि Undue Influence माना जा सकता है।

    मुख्य निर्णय और प्रासंगिक पूर्ववर्ती फैसले (Key Judicial Precedents)

    1. Naveen Kumar v. Vijay Kumar – वाहन रजिस्ट्रेशन के आधार पर स्वामित्व तय करने का निर्णय दुर्घटना दावों तक सीमित है।

    2. Kisan Shankar Kathore Case – बंगलों और महंगे वाहनों की जानकारी न देना गंभीर त्रुटि मानी गई।

    3. Mangani Lal Mandal Case – Material Effect दिखाना जरूरी।

    4. Lok Prahari v. Union of India – जानकारी न देना Undue Influence हो सकता है, लेकिन सटीक परिस्थितियों में ही।

    5. Association for Democratic Reforms – मतदाता को जरूरी जानकारी देने का अधिकार मौलिक है।

    सुप्रीम कोर्ट ने अंततः कहा कि हर मामूली भूल को चुनाव रद्द करने का आधार नहीं बनाया जा सकता। नामांकन में त्रुटि तभी गंभीर मानी जाएगी जब वह जानबूझकर छिपाई गई हो, और उसका प्रभाव चुनाव पर पड़े।

    इस निर्णय में कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि पारदर्शिता जरूरी है, लेकिन उम्मीदवारों के निजता (Privacy) के अधिकार को भी बरकरार रखा जाना चाहिए।

    इस फैसले से यह संदेश गया कि चुनाव प्रक्रिया में सच्चाई और ईमानदारी आवश्यक है, लेकिन हर छोटी गलती को भ्रष्ट आचरण का नाम देकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित नहीं किया जाना चाहिए।

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