क्या केवल कॉन्ट्रैक्ट खत्म हो जाने से मैटरनिटी बेनिफिट रोका जा सकता है?
Himanshu Mishra
30 Jun 2025 4:51 PM IST

भारत में मातृत्व लाभ (Maternity Benefit) का कानूनी आधार (Legal Basis)
मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 (Maternity Benefit Act, 1961) का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कामकाजी महिलाओं को गर्भावस्था, प्रसव और उससे जुड़ी स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतों के दौरान सुरक्षा और वित्तीय सहायता मिले।
इस अधिनियम की धारा 5 (Section 5) के तहत महिला को अधिकतम 26 सप्ताह तक का वेतन सहित मातृत्व लाभ प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है। धारा 5(2) कहती है कि यदि महिला ने प्रसव से पहले के 12 महीनों में कम से कम 80 दिन कार्य किया है, तो वह इस लाभ की पात्र (Eligible) है। कानून किसी भी स्थायी (Permanent) या संविदा (Contractual) कर्मचारी के बीच भेद नहीं करता।
संविदा कर्मचारियों को मातृत्व लाभ: मुख्य प्रश्न (Maternity Benefit for Contractual Employees: The Key Issue)
डॉ. कविता यादव बनाम स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (2023) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रश्न यह था कि क्या एक संविदा (Contractual) पर नियुक्त महिला कर्मचारी, जिसकी नियुक्ति अवधि (Contract Period) उसके मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) के दौरान समाप्त हो गई, उसे अधिनियम के तहत पूर्ण लाभ मिल सकता है? पहले नियोक्ता (Employer) ने यह लाभ केवल कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने की तिथि तक ही सीमित कर दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस व्याख्या को गलत बताया।
धारा 5 और मातृत्व लाभ का स्वतंत्र अधिकार (Section 5 and Independent Right of Maternity Benefit)
धारा 5(1) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि महिला को उसके औसत दैनिक वेतन (Average Daily Wage) के आधार पर मातृत्व लाभ दिया जाएगा। एक बार जब महिला धारा 5(2) की शर्तें पूरी कर देती है, तो यह लाभ उसका वैधानिक अधिकार (Statutory Right) बन जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह लाभ केवल नौकरी की अवधि पर निर्भर नहीं है, बल्कि एक बार पात्रता (Eligibility) पूरी हो जाने के बाद यह पूरा लाभ दिया जाना चाहिए, भले ही कॉन्ट्रैक्ट बीच में समाप्त हो जाए।
'डिस्चार्ज' (Discharge) का व्यापक अर्थ – धारा 12 की व्याख्या (Meaning and Scope of 'Discharge' – Section 12)
धारा 12(2)(a) कहती है कि यदि गर्भावस्था के दौरान महिला को निकाला जाता है (Discharge or Dismiss), तो केवल इस आधार पर उसे मातृत्व लाभ से वंचित (Deprived) नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि “डिस्चार्ज” शब्द का अर्थ केवल बर्खास्तगी (Dismissal) तक सीमित नहीं है, बल्कि यह संविदा समाप्त होने (Expiry of Contract) जैसी स्थिति को भी शामिल करता है। यानी कॉन्ट्रैक्ट समाप्त हो जाने पर भी महिला को यह लाभ मिलना चाहिए।
अधिनियम की प्राथमिकता: धारा 27 का प्रभाव (Overriding Effect – Section 27)
धारा 27 कहती है कि यदि किसी अन्य कानून, सेवा अनुबंध (Service Contract) या नियम में कोई विरोधाभास (Inconsistency) हो, तो मातृत्व लाभ अधिनियम के प्रावधानों को प्राथमिकता दी जाएगी। इसका अर्थ है कि भले ही किसी अनुबंध में नियुक्ति की तारीख तय हो, लेकिन यदि मातृत्व लाभ का अधिकार पूरा हो गया है, तो उस पर कोई भी शर्त प्रभावी नहीं हो सकती।
Municipal Corporation of Delhi v. Female Workers निर्णय का प्रभाव (Impact of MCD v. Female Workers Judgment)
कोर्ट ने Municipal Corporation of Delhi v. Female Workers (2000) मामले का संदर्भ दिया, जिसमें कहा गया था कि दैनिक वेतनभोगी (Daily Wagers) महिला भी मातृत्व लाभ की हकदार हैं यदि वे न्यूनतम कार्य दिवस की शर्त पूरी करती हैं। यह निर्णय महिलाओं को समान अधिकार (Equality) और गरिमा (Dignity) देने की दिशा में एक मजबूत आधार बनाता है।
दीपिका सिंह बनाम CAT निर्णय और मातृत्व के अधिकार (Deepika Singh Judgment and Rights of Motherhood)
सुप्रीम कोर्ट ने दीपिका सिंह बनाम CAT (2022) मामले का हवाला देते हुए कहा कि मातृत्व एक प्राकृतिक अधिकार (Natural Right) है और महिलाओं को इस अवधि में विशेष संरक्षण (Special Protection) मिलना चाहिए। यह संविधान के अनुच्छेद 21 (Right to Life), अनुच्छेद 14 (Equality) और अनुच्छेद 15 (Non-Discrimination) का हिस्सा है।
मातृत्व लाभ केवल अवकाश नहीं, बल्कि वैधानिक हक (Not Mere Leave, But a Statutory Entitlement)
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि मातृत्व लाभ को सिर्फ "अवकाश (Leave)" के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। अधिनियम में इसे "मातृत्व लाभ (Maternity Benefit)" कहा गया है, जो न केवल समय बल्कि आर्थिक सहायता (Financial Support) भी प्रदान करता है। यह अधिकार महिला को नौकरी के दौरान प्राप्त होता है, और सिर्फ कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने से समाप्त नहीं हो सकता।
अधिनियम का उद्देश्य और संविधानिक समर्थन (Purpose of the Act and Constitutional Backing)
कोर्ट ने यह कहा कि अधिनियम का उद्देश्य केवल औपचारिक राहत देना नहीं, बल्कि माँ और बच्चे के स्वास्थ्य और गरिमा की रक्षा करना है। अनुच्छेद 42 (Just and Humane Conditions of Work) के अनुसार राज्य का यह कर्तव्य है कि वह मातृत्व सुरक्षा (Maternity Protection) सुनिश्चित करे। साथ ही भारत CEDAW जैसे अंतरराष्ट्रीय संधियों (International Conventions) का सदस्य है, जो महिलाओं के साथ भेदभाव (Discrimination) को खत्म करने की बात करता है।
सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय (Final Holding of the Court)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डॉ. कविता यादव को अधिनियम की धारा 5 और 8 के तहत पूरा मातृत्व लाभ मिलना चाहिए, भले ही उनकी नियुक्ति की अवधि खत्म हो गई हो। नियोक्ता द्वारा लाभ को सीमित करना गलत और असंवैधानिक (Unconstitutional) था। कोर्ट ने लंबित लाभ तीन महीने में चुकाने का निर्देश दिया।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि एक बार महिला पात्रता शर्तें पूरी कर देती है, तो उसके मातृत्व लाभ का अधिकार स्वतः (Automatically) सुरक्षित हो जाता है। अनुबंध की समाप्ति उस लाभ को रोकने का बहाना नहीं बन सकती।

