क्या क्लब की बैंक डिपॉज़िट से अर्जित ब्याज म्युचुअलिटी सिद्धांत के तहत टैक्स से मुक्त हो सकता है?

Himanshu Mishra

28 Jun 2025 3:09 PM

  • क्या क्लब की बैंक डिपॉज़िट से अर्जित ब्याज म्युचुअलिटी सिद्धांत के तहत टैक्स से मुक्त हो सकता है?

    मूल प्रश्न की समझ (Understanding the Core Issue)

    सुप्रीम कोर्ट ने Secunderabad Club बनाम आयकर आयुक्त (Commissioner of Income Tax) के फैसले में यह तय किया कि क्या क्लब द्वारा बैंक में की गई फिक्स्ड डिपॉज़िट (Fixed Deposit) से अर्जित ब्याज आय (Interest Income) को म्युचुअलिटी के सिद्धांत (Principle of Mutuality) के तहत इनकम टैक्स से छूट मिल सकती है।

    म्युचुअलिटी का मतलब होता है – "कोई व्यक्ति स्वयं से लाभ नहीं कमा सकता"। यानी अगर क्लब के सदस्य ही फंड में योगदान करते हैं और वही सेवाएं लेते हैं, तो वह मुनाफे (Profit) का मामला नहीं होता।

    लेकिन जब यह पैसा बैंक में डिपॉज़िट किया जाता है और बैंक उसे अन्य लोगों को उधार देकर ब्याज देता है, तो यह लेनदेन क्लब और उसके सदस्यों की सीमाओं से बाहर चला जाता है। कोर्ट ने इसी बिंदु पर निर्णय दिया।

    म्युचुअलिटी के सिद्धांत की तीन शर्तें (Triple Test of Mutuality)

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी संस्था को म्युचुअलिटी का लाभ तभी मिल सकता है जब ये तीन शर्तें पूरी हों:

    1. योगदानकर्ता (Contributors) और लाभार्थी (Participators) एक ही व्यक्ति हों।

    2. योगदान संस्था के उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया गया हो।

    3. लाभ केवल सदस्य को सदस्य के रूप में ही मिले, न कि बाहरी व्यक्ति की तरह।

    जब क्लब सदस्य का पैसा बैंक में जमा करता है और बैंक उस पैसे को तीसरे पक्ष (Third Party) को उधार देता है, तब यह म्युचुअल सर्कल (Mutual Circle) टूट जाता है। ऐसे में अर्जित ब्याज आय पर टैक्स लगाया जा सकता है।

    पहले के फैसलों की व्याख्या (Clarifying Past Precedents)

    क्लब ने तर्क दिया कि Bangalore Club केस में सुप्रीम कोर्ट ने गलत ढंग से Cawnpore Club के पुराने फैसले को नजरअंदाज किया था, जिसमें म्युचुअलिटी के आधार पर टैक्स से छूट दी गई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि Cawnpore Club का निर्णय संक्षिप्त (Summary) था और उसमें गहराई से म्युचुअलिटी की समीक्षा नहीं हुई थी। इसके विपरीत Bangalore Club में विस्तृत और गहराई से कानूनी विश्लेषण किया गया था, इसलिए वही फैसला संविधान के अनुच्छेद 141 (Article 141 – Binding Precedent) के तहत बाध्यकारी है।

    इनकम टैक्स एक्ट की धाराओं की व्याख्या (Interpretation of Income Tax Act Provisions)

    इनकम टैक्स एक्ट की धारा 2(24) में 'Income' की परिभाषा दी गई है, जिसमें अन्य स्रोतों से आय (Income from Other Sources) को भी शामिल किया गया है। धारा 56 भी बताती है कि बैंक डिपॉज़िट पर मिला ब्याज इस श्रेणी में आता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भले ही यह पैसा क्लब के सदस्यों से आया हो, लेकिन एक बार यह बैंकिंग सिस्टम में आकर कमर्शियल लेनदेन (Commercial Transaction) का हिस्सा बन गया, तो उस पर टैक्स लगना उचित है।

    Bangalore Club केस की पुष्टि (Bangalore Club as Binding Precedent)

    कोर्ट ने Bangalore Club बनाम CIT (2013) में लिए गए निर्णय को सही ठहराया। उस केस में क्लब ने अपने सदस्य बैंकों में फिक्स्ड डिपॉज़िट की थी, लेकिन कोर्ट ने कहा कि जब बैंक उन पैसों का उपयोग तीसरे पक्ष को लोन देने में करता है, तो म्युचुअलिटी की कड़ी टूट जाती है।

    कोर्ट ने कहा कि केवल यह कहना कि पैसा क्लब से जुड़ा है, पर्याप्त नहीं है। यह देखना जरूरी है कि उस पैसे से कोई व्यावसायिक लाभ (Commercial Gain) तो नहीं हो रहा।

    Canara Bank फैसले की अनुपयुक्तता (Inapplicability of Canara Bank Judgment)

    क्लब ने Canara Bank केस का हवाला दिया, जिसमें हाईकोर्ट ने म्युचुअलिटी की अनुमति दी थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह निर्णय तथ्यों पर आधारित था और व्यापक कानूनी सिद्धांत नहीं था। साथ ही वह सुप्रीम कोर्ट का निर्णय नहीं था, इसलिए बाध्यकारी नहीं माना जा सकता।

    बॉम्बे और मद्रास हाईकोर्ट ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया था कि फालतू रकम को निवेश कर उस पर ब्याज अर्जित करने की स्थिति में म्युचुअलिटी का लाभ नहीं दिया जा सकता।

    अनुच्छेद 141 और न्यायिक मिसाल (Article 141 and Doctrine of Precedent)

    कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का कोई विस्तृत निर्णय (Reasoned Decision) अगर किसी कानूनी प्रश्न पर दिया गया हो, तो वह पूरे देश के लिए बाध्यकारी होता है। Kunhayammed बनाम केरल राज्य केस में कहा गया था कि यदि विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition) के बाद सिविल अपील के रूप में कोई निर्णय आता है, तो वह न्यायिक मिसाल बन जाता है।

    Bangalore Club का निर्णय पूर्ण और विधिक विश्लेषण पर आधारित है, इसलिए वह अन्य सभी अदालतों पर लागू होता है।

    Calcutta Club फैसला क्यों लागू नहीं होता (Why Calcutta Club Is Not Applicable)

    क्लब ने Calcutta Club बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2019) के निर्णय का भी हवाला दिया, जिसमें जीएसटी (GST) से छूट दी गई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह केस बिक्री कर (Sales Tax) और वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax) से जुड़ा था, न कि इनकम टैक्स (Income Tax) से। इसलिए उस केस की मिसाल वर्तमान विषय पर लागू नहीं होती।

    सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय (Final Conclusion of the Court)

    सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि क्लब द्वारा फिक्स्ड डिपॉज़िट से अर्जित ब्याज पर म्युचुअलिटी का सिद्धांत लागू नहीं होता। चाहे वह पैसा क्लब के सदस्यों से ही क्यों न आया हो, लेकिन जब वह पैसा बैंक के कमर्शियल चक्र में चला गया, तो वह टैक्स से मुक्त नहीं रह सकता।

    कोर्ट ने Bangalore Club को ही सही और बाध्यकारी निर्णय माना और सभी अपीलें खारिज कर दीं।

    यह निर्णय अब पूरे देश में यह स्पष्ट करता है कि क्लबों की ब्याज आय (Interest Income) इनकम टैक्स के दायरे में आती है, भले ही वे गैर-लाभकारी संस्थाएं (Non-Profit Entities) हों। केवल सदस्यता आधारित संगठन होने से कोई संस्था टैक्स छूट (Exemption) की हकदार नहीं हो सकती यदि वह फंड को व्यवसायिक निवेश (Commercial Investment) के लिए उपयोग कर रही हो।

    इस फैसले से यह भी साफ हो गया कि म्युचुअलिटी का सिद्धांत केवल उन लेनदेन पर लागू होगा जो सदस्यों के बीच ही सीमित हों और किसी बाहरी व्यापारिक गतिविधि का हिस्सा न बनें। टैक्स कानूनों में छूट तभी मिलेगी जब उसका आधार पूरी तरह कानूनी और वास्तविक हो।

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