क्या हाईकोर्ट न्यायिक भर्ती में Viva Voce के लिए न्यूनतम अंक तय कर सकते हैं?

Himanshu Mishra

9 Aug 2025 6:38 PM IST

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    सुप्रीम कोर्ट ने Abhimeet Sinha & Ors. v. High Court of Judicature at Patna & Ors. (2024) में यह तय किया कि क्या न्यायिक भर्ती (Judicial Recruitment) के Viva Voce चरण में न्यूनतम अंकों (Minimum Qualifying Marks) का प्रावधान करना संवैधानिक (Constitutional) है और क्या यह All India Judges Association v. Union of India (2002) के फैसले के अनुरूप है।

    यह मामला बिहार और गुजरात में न्यायिक अधिकारियों की भर्ती से जुड़ा था, जहाँ क्रमशः 20% और 40% न्यूनतम Viva Voce अंक आवश्यक थे। याचिकाकर्ताओं (Petitioners) का तर्क था कि यह उनके संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और यह जस्टिस के.जे. शेट्टी आयोग (Justice K.J. Shetty Commission) की सिफारिशों के विपरीत है।

    अदालत ने संवैधानिक सवालों की जांच की, पहले के फैसलों की व्याख्या की और यह स्पष्ट किया कि वैधानिक भर्ती नियम (Statutory Recruitment Rules), शेट्टी आयोग की सिफारिशें, और सार्वजनिक रोजगार में निष्पक्षता (Fairness) के संवैधानिक सिद्धांत कैसे एक-दूसरे के साथ काम करते हैं।

    कानूनी ढांचा और प्रावधान (Legal Framework and Provisions)

    यह मामला मुख्य रूप से संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 पर आधारित था, जो क्रमशः कानून के समक्ष समानता (Equality before Law) और सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर (Equality of Opportunity in Public Employment) सुनिश्चित करते हैं। साथ ही, अनुच्छेद 234 जो राज्यों में न्यायिक अधिकारियों की भर्ती को नियंत्रित करता है विशेषकर गुजरात में महत्वपूर्ण था, जहाँ याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि नियम संशोधन के समय लोक सेवा आयोग (Public Service Commission) से परामर्श नहीं किया गया।

    बिहार में, Bihar Superior Judicial Service Rules, 1951 (2013 संशोधन सहित) ने Viva Voce में 20% न्यूनतम अंक का प्रावधान किया। गुजरात में, Gujarat State Judicial Service Rules, 2005 (2011 संशोधन) में Viva Voce के लिए 40% न्यूनतम अंक निर्धारित थे। दोनों ही राज्यों में भर्ती शुरू होने से पहले यह प्रावधान स्पष्ट रूप से नियमों में शामिल था।

    शेट्टी आयोग की सिफारिशें और उनकी कानूनी स्थिति (Shetty Commission Recommendations and Their Legal Status)

    शेट्टी आयोग का गठन न्यायिक सेवा शर्तों में एकरूपता लाने के लिए किया गया था। आयोग ने सुझाव दिया कि Viva Voce 50 अंकों का होना चाहिए और इसमें कोई न्यूनतम अंक सीमा नहीं होनी चाहिए, ताकि व्यक्तिपरकता (Subjectivity) और मनमानी (Arbitrariness) को कम किया जा सके।

    All India Judges Association (2002) ने आयोग की कई सिफारिशें स्वीकार कीं, लेकिन Viva Voce में 'कोई न्यूनतम अंक न रखने' के सुझाव पर विशेष चर्चा नहीं की। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शेट्टी आयोग की सिफारिशें केवल दिशानिर्देश (Guidelines) हैं और वैधानिक भर्ती नियम (Statutory Recruitment Rules) को अधिभूत (Override) नहीं कर सकतीं। जब दोनों में असंगति हो, तो नियमों को प्राथमिकता मिलेगी। यह सिद्धांत Syed T.A. Naqshbandi v. State of J&K (2003), Mahinder Kumar v. High Court of M.P. (2013) और Sasidhar Reddy v. State of A.P. (2014) में दोहराया गया।

    All India Judges (2002) से टकराव का प्रश्न (Contravention of All India Judges (2002))

    याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि All India Judges (2002) ने सभी शेट्टी आयोग सिफारिशों को स्वीकार किया, जिससे Viva Voce में न्यूनतम अंक तय करना वर्जित हो गया। कोर्ट ने इस तर्क को खारिज किया और कहा कि 2002 का फैसला इस बिंदु पर sub silentio है अर्थात इसने Viva Voce में न्यूनतम अंकों के मुद्दे पर कोई स्पष्ट राय नहीं दी।

    Dr. Kavita Kamboj v. High Court of Punjab and Haryana (2024) का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि उच्च न्यायालयों को सेवा की आवश्यकता (Service Exigencies) के आधार पर Viva Voce में न्यूनतम अंक तय करने का अधिकार है।

    अनुच्छेद 14 और 16 की चुनौती (Articles 14 and 16 Challenge)

    याचिकाकर्ताओं ने कहा कि यह प्रावधान मनमाना (Arbitrary) है और योग्य उम्मीदवारों को अनुचित रूप से बाहर कर देता है। कोर्ट ने E.P. Royappa v. State of T.N. (1974) और Ajay Hasia v. Khalid Mujib (1981) के सिद्धांतों को दोहराया कि मनमानी समानता के विपरीत है।

    हालांकि, कोर्ट ने पाया कि 20% (बिहार) और 40% (गुजरात) की सीमा न्यायिक भर्ती के लिए न तो अव्यवहारिक है और न ही अत्यधिक। Viva Voce का उद्देश्य व्यक्तित्व, संचार कौशल, और न्यायिक दृष्टिकोण जैसे गुणों का मूल्यांकन करना है, जिसे पहले भी Ramesh Kumar v. High Court of Delhi (2010) में मान्यता मिली थी।

    अनुच्छेद 234 और लोक सेवा आयोग से परामर्श (Article 234 and Consultation with Public Service Commission)

    गुजरात में याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि 2011 संशोधन, जिसमें Viva Voce की न्यूनतम अंक सीमा तय की गई, अमान्य है क्योंकि अनुच्छेद 234 के तहत गुजरात लोक सेवा आयोग से परामर्श नहीं किया गया। कोर्ट ने कहा कि यदि लोक सेवा आयोग परामर्श नहीं लेना चाहता, तो राज्यपाल पर इसे अनिवार्य रूप से करने का दबाव नहीं है। यहाँ नियम हाईकोर्ट से उचित परामर्श के साथ बनाए गए थे, इसलिए उन्हें अमान्य नहीं माना जा सकता।

    Res Judicata और याचिका की ग्राह्यता (Res Judicata and Maintainability)

    गुजरात हाईकोर्ट पहले ही 40% Viva Voce अंक सीमा को Special Civil Application No. 8793 of 2015 में वैध ठहरा चुका था। फिर भी, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वर्तमान याचिकाएं Res Judicata से बाधित नहीं हैं, क्योंकि इनमें अलग याचिकाकर्ता, अलग तथ्य और अतिरिक्त आधार शामिल हैं।

    कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि भर्ती प्रक्रिया में भाग लेने से उम्मीदवारों को प्रक्रिया की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने से नहीं रोका जा सकता, यदि उनके मौलिक अधिकार प्रभावित होते हैं (Dr. (Major) Meeta Sahai v. Union of India, 2019)।

    प्रमुख न्यायिक उदाहरण (Key Precedents Considered)

    निर्णय में कई महत्वपूर्ण मामलों का हवाला दिया गया, जिनमें शामिल हैं:

    • All India Judges Association (2002) – शेट्टी आयोग की सिफारिशें कुछ संशोधनों के साथ स्वीकार।

    • Syed T.A. Naqshbandi (2003) – नियमों की प्रधानता।

    • Mahinder Kumar (2013) – सिफारिशें केवल दिशानिर्देश।

    • Hemani Malhotra (2008) और Ramesh Kumar (2010) – यदि नियम पहले से हैं, तो Viva Voce में न्यूनतम अंक वैध।

    • Dr. Kavita Kamboj (2024) – उच्च न्यायालयों का अधिकार।

    • E.P. Royappa (1974) और Ajay Hasia (1981) – मनमानी के विरुद्ध संवैधानिक सिद्धांत।

    निष्कर्ष और अंतिम निर्णय (Conclusion and Final Holding)

    सुप्रीम कोर्ट ने बिहार और गुजरात दोनों में Viva Voce न्यूनतम अंकों की संवैधानिकता को बरकरार रखा। अदालत ने माना कि:

    1. यह All India Judges (2002) से टकराव में नहीं है, क्योंकि उस फैसले ने इस मुद्दे पर अंतिम राय नहीं दी।

    2. वैधानिक नियम (Statutory Rules) शेट्टी आयोग की सिफारिशों पर प्राथमिकता रखते हैं।

    3. 20% और 40% की सीमा न तो मनमानी है, न ही अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन।

    4. गुजरात में लोक सेवा आयोग से परामर्श न होने के बावजूद नियम अमान्य नहीं।

    यह निर्णय हाईकोर्ट की भर्ती नियम बनाने की स्वायत्तता (Autonomy) को मजबूत करता है, बशर्ते वे निष्पक्षता, पारदर्शिता और उचितता के संवैधानिक सिद्धांतों का पालन करें।

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