क्या हर आपराधिक साजिश को PMLA के तहत अनुसूचित अपराध माना जा सकता है?
Himanshu Mishra
11 July 2025 11:15 AM

पावना डिब्बूर बनाम प्रवर्तन निदेशालय (2023) में सुप्रीम कोर्ट ने Prevention of Money Laundering Act, 2002 (PMLA) की व्याख्या करते हुए यह तय किया कि क्या केवल आपराधिक साजिश (Criminal Conspiracy) के आधार पर किसी व्यक्ति के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का मामला चलाया जा सकता है, जब मूल अपराध (Predicate Offence) PMLA की अनुसूची (Schedule) में शामिल न हो।
यह फैसला स्पष्ट करता है कि किसी व्यक्ति को केवल IPC की धारा 120-B (Criminal Conspiracy) के तहत अभियोजन (Prosecution) नहीं किया जा सकता, जब तक कि जिस अपराध की साजिश रची गई हो वह खुद PMLA की अनुसूची में शामिल न हो।
PMLA की धारा 3 के अंतर्गत मनी लॉन्ड्रिंग की परिभाषा (Definition of Money Laundering under Section 3 of PMLA)
PMLA की धारा 3 के अनुसार, मनी लॉन्ड्रिंग (Money Laundering) का अपराध तब बनता है जब कोई व्यक्ति किसी अपराध से प्राप्त संपत्ति (Proceeds of Crime) को छिपाता है, इस्तेमाल करता है, प्राप्त करता है, या उसे वैध (Un-tainted) रूप में प्रस्तुत करता है। यह कार्य प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हो सकता है।
2019 के संशोधन में एक स्पष्ट व्याख्या (Explanation) जोड़ी गई जिससे यह बताया गया कि मनी लॉन्ड्रिंग एक Continuing Offence (निरंतर चलने वाला अपराध) है और तब तक जारी माना जाएगा जब तक उस अवैध संपत्ति का लाभ उठाया जा रहा है।
कोर्ट ने दोहराया कि मनी लॉन्ड्रिंग का मामला तभी बनता है जब दो शर्तें पूरी हों:
पहली, अपराध ऐसा हो जो PMLA की अनुसूची में दर्ज हो (Scheduled Offence)
दूसरी, उस अपराध से कोई Proceeds of Crime प्राप्त हुआ हो
Proceeds of Crime और Scheduled Offence की परिभाषा (Definition of Proceeds of Crime and Scheduled Offence)
धारा 2(1)(u) के अनुसार Proceeds of Crime वह संपत्ति होती है जो किसी अनुसूचित अपराध (Scheduled Offence) से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में प्राप्त होती है। अगर ऐसा कोई अपराध ही नहीं है, जो अनुसूची में हो, तो मनी लॉन्ड्रिंग का अपराध बनता ही नहीं।
धारा 2(1)(y) में Scheduled Offence की परिभाषा दी गई है, जिसमें उन अपराधों को शामिल किया गया है जो अनुसूची के Part A, B और C में दर्ज हैं। इसमें IPC, NDPS Act और Customs Act जैसे कानूनों के विशिष्ट गंभीर अपराध शामिल हैं।
कोर्ट ने Vijay Madanlal Choudhary v. Union of India (2022) के फैसले का उल्लेख करते हुए दोहराया कि जब तक अनुसूचित अपराध नहीं होगा, तब तक मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज नहीं हो सकता।
क्या केवल धारा 120-B IPC मनी लॉन्ड्रिंग के लिए पर्याप्त है? (Is IPC Section 120-B Alone Sufficient for PMLA?)
इस मामले का केंद्रीय प्रश्न था कि क्या IPC की धारा 120-B (आपराधिक साजिश) को मनी लॉन्ड्रिंग के लिए Scheduled Offence माना जा सकता है, भले ही जिसकी साजिश रची गई हो वह अपराध PMLA की अनुसूची में न हो।
प्रवर्तन निदेशालय (ED) का तर्क था कि चूंकि 120-B अनुसूची में शामिल है, इसलिए किसी भी साजिश को मनी लॉन्ड्रिंग का आधार बनाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसा मान लिया जाए तो यह PMLA की अनुसूची का मकसद ही खत्म कर देगा। तब कोई भी मामूली अपराध, चाहे वह सूची में न हो, साजिश के बहाने मनी लॉन्ड्रिंग के अंतर्गत लाया जा सकता है, जो कि कानून के उद्देश्य के विपरीत है।
दंडात्मक कानूनों की सख्त व्याख्या और विधायी उद्देश्य (Strict Interpretation of Penal Laws and Legislative Intent)
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दंड देने वाले कानूनों (Penal Statutes) की व्याख्या हमेशा संकुचित (Strict) और न्यायोचित होनी चाहिए। अगर दो अर्थ निकलते हैं तो वह अर्थ अपनाना चाहिए जो अभियुक्त को सजा से बचाता है।
G.P. Singh's Principles of Statutory Interpretation का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि किसी कानून के शब्दों के साथ-साथ उसके उद्देश्य (Purpose) को भी समझना जरूरी है। PMLA का उद्देश्य संगठित आर्थिक अपराधों (Serious Economic Offences) को रोकना है, न कि हर प्रकार की आपराधिक साजिश को मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल करना।
अगर कोई व्यक्ति मूल अपराध में नामजद नहीं है तो क्या फिर भी PMLA लागू होगा? (Effect of Not Being Named in the Scheduled Offence)
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि वह न तो FIR में नामजद थीं और न ही आरोप पत्र (Chargesheet) में, इसलिए उन पर PMLA लागू नहीं हो सकता। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को भी अस्वीकार कर दिया।
कोर्ट ने Vijay Madanlal Choudhary मामले को दोहराते हुए कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग एक स्वतंत्र अपराध है। अगर किसी व्यक्ति ने Proceeds of Crime को छिपाया या उपयोग किया हो, तो वह व्यक्ति चाहे मूल अपराध में शामिल न हो, फिर भी उसके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है।
अनुसूची में अपराधों की सीमाएँ और उद्देश्य (Limits of the Scheduled Offences and Legislative Intent)
कोर्ट ने कई उदाहरण देते हुए बताया कि अनुसूची केवल विशिष्ट और गंभीर अपराधों को ही कवर करती है, जैसे कि नारकोटिक्स, आतंकवाद, संगठित तस्करी आदि। अगर 120-B के सहारे कोई भी अपराध शामिल किया जाने लगे तो यह विधायिका (Legislature) की मंशा का उल्लंघन होगा।
इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 120-B को अनुसूचित अपराध माना जाएगा केवल तब जब जिस अपराध की साजिश रची गई हो, वह अपराध खुद अनुसूची में दर्ज हो।
पावना डिब्बूर बनाम प्रवर्तन निदेशालय में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि PMLA जैसे कठोर कानून का प्रयोग तभी किया जाना चाहिए जब वह विधिक ढांचे (Legal Framework) के भीतर हो।
केवल आपराधिक साजिश (Section 120-B) को आधार बनाकर किसी भी गैर-अनुसूचित अपराध को मनी लॉन्ड्रिंग के दायरे में लाना संविधान के सिद्धांतों और अपराध कानून की न्यायपूर्ण प्रकृति के विरुद्ध होगा।
यह निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि PMLA का उद्देश्य – यानी गंभीर आर्थिक अपराधों पर नियंत्रण – सही दिशा में बना रहे, और इसका दुरुपयोग (Misuse) न हो। साथ ही यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) और न्याय के सिद्धांतों की रक्षा भी करता है।