क्या पति की पहली शादी से हुए बच्चों के कारण महिला का Maternity Leaveरोका जा सकता है?
Himanshu Mishra
22 Feb 2025 11:46 AM

सुप्रीम कोर्ट ने दीपिका सिंह बनाम सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल & अन्य (2022) मामले में एक महत्वपूर्ण सवाल पर फैसला सुनाया कि क्या एक महिला को उसके जैविक (Biological) बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) से वंचित किया जा सकता है, सिर्फ इसलिए क्योंकि उसके पति की पहली शादी से दो बच्चे हैं?
कोर्ट ने अपने फैसले में यह स्पष्ट किया कि मातृत्व अवकाश कोई विशेषाधिकार (Privilege) नहीं बल्कि एक कानूनी अधिकार (Legal Right) है, जो महिला कर्मचारियों को सेंट्रल सिविल सर्विसेज (Central Civil Services - CCS) लीव रूल्स, 1972 के तहत दिया जाता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह के सामाजिक कल्याण कानूनों (Social Welfare Laws) की व्याख्या उद्देश्यपरक (Purposive) तरीके से की जानी चाहिए ताकि महिलाओं को कार्यस्थल पर समान अवसर (Equal Opportunity) मिल सके।
कानूनी मुद्दा और कोर्ट की व्याख्या (Legal Issue and Court's Interpretation)
इस मामले में मुख्य मुद्दा यह था कि क्या दीपिका सिंह, जो एक सरकारी कर्मचारी थीं, मातृत्व अवकाश की हकदार थीं, जबकि उनके पति की पहली शादी से दो बच्चे पहले से मौजूद थे?
प्रशासन ने उनका आवेदन यह कहकर खारिज कर दिया था कि उन्होंने पहले से ही अपने पति के बच्चों के लिए चाइल्ड केयर लीव (Child Care Leave - CCL) ली थी, इसलिए वे मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) की पात्र (Eligible) नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि मातृत्व अवकाश और चाइल्ड केयर लीव दो अलग-अलग अधिकार (Distinct Rights) हैं। मातृत्व अवकाश का उद्देश्य महिला को उसके जैविक मातृत्व (Biological Motherhood) के लिए सुरक्षा देना है, जबकि चाइल्ड केयर लीव बच्चे की देखभाल (Child Rearing) के लिए दी जाती है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि महिलाओं के प्रजनन (Reproductive) अधिकार और गरिमा (Dignity) की रक्षा करना संविधान (Constitution) के अनुच्छेद 21 (Article 21) के तहत आवश्यक है।
मातृत्व अवकाश: एक मौलिक अधिकार (Maternity Leave: A Fundamental Right)
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मातृत्व अवकाश संविधान के अनुच्छेद 42 (Article 42) के तहत एक आवश्यक सामाजिक सुरक्षा उपाय (Social Security Measure) है। इस अनुच्छेद में सरकार को यह निर्देश दिया गया है कि वह महिलाओं को मातृत्व सुरक्षा (Maternity Protection) और उचित कार्य परिस्थितियां (Humane Working Conditions) प्रदान करे।
इसके अलावा, कोर्ट ने अंतरराष्ट्रीय संधियों (International Conventions) का भी उल्लेख किया, जिनमें शामिल हैं:
• यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स (Universal Declaration of Human Rights - UDHR) का अनुच्छेद 25(2), जो कहता है कि मां और बच्चे को विशेष देखभाल और सहायता (Special Care and Assistance) मिलनी चाहिए।
• सीडॉ (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women - CEDAW) का अनुच्छेद 11(2), जो कहता है कि महिलाओं को मातृत्व अवकाश वेतन (Maternity Leave Pay) या समान सामाजिक लाभ (Comparable Social Benefits) के साथ दिया जाना चाहिए।
असामान्य परिवारों को समान सुरक्षा का अधिकार (Atypical Families and the Right to Equal Protection)
इस फैसले की एक महत्वपूर्ण बात यह थी कि कोर्ट ने पारंपरिक (Traditional) परिवारों से अलग संरचना वाले परिवारों को भी समान कानूनी सुरक्षा देने की बात कही।
कोर्ट ने कहा कि "परिवार" की परिभाषा (Definition of Family) को केवल पति-पत्नी और उनके बच्चों तक सीमित नहीं किया जा सकता। कई तरह के परिवार अस्तित्व में हैं, जैसे:
• एकल माता-पिता परिवार (Single Parent Families), जो तलाक (Divorce), अलगाव (Separation) या जीवनसाथी की मृत्यु (Death of Spouse) के कारण बन सकते हैं।
• सौतेले (Stepfamilies) या दत्तक (Adoptive) परिवार, जो पुनर्विवाह (Remarriage) या गोद लेने (Adoption) से बनते हैं।
• समलैंगिक (Queer) या अविवाहित (Unmarried) साथियों के परिवार, जो समाज में धीरे-धीरे मान्यता प्राप्त कर रहे हैं।
कोर्ट ने कहा कि ऐसे "असामान्य" परिवार (Atypical Families) भी कानून और सामाजिक कल्याण योजनाओं (Social Welfare Schemes) के तहत उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने पारंपरिक परिवार।
उद्देश्यपरक व्याख्या का महत्व (Importance of Purposive Interpretation)
कोर्ट ने इस मामले में "उद्देश्यपरक व्याख्या" (Purposive Interpretation) के सिद्धांत को अपनाया, जिसका अर्थ है कि कानून को उसके वास्तविक उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए पढ़ा जाना चाहिए, न कि केवल उसके शब्दों तक सीमित रहना चाहिए।
कोर्ट ने कुछ महत्वपूर्ण पुराने फैसलों का भी उल्लेख किया, जैसे:
1. KH Nazar v. Mathew K Jacob (2020) – कोर्ट ने कहा कि कल्याणकारी कानूनों (Beneficial Legislations) की व्याख्या उदार दृष्टिकोण (Liberal Approach) से की जानी चाहिए।
2. Badshah v. Urmila Badshah Godse (2014) – इस फैसले में कहा गया कि कोर्ट को सामाजिक न्याय (Social Justice) को बढ़ावा देने के लिए सामाजिक संदर्भ (Social Context) में न्याय करना चाहिए।
इन फैसलों के आधार पर, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दीपिका सिंह को मातृत्व अवकाश से वंचित करना कानून की भावना (Spirit of Law) के खिलाफ होगा।
कार्यस्थल पर मातृत्व सुरक्षा की जरूरत (Need for Maternity Protection at Workplace)
कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य (State) और नियोक्ता (Employer) की यह जिम्मेदारी है कि वे कार्यस्थल (Workplace) पर महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करें।
• यदि मातृत्व अवकाश नहीं दिया जाएगा, तो कई महिलाएं नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएंगी, जिससे कार्यबल (Workforce) में महिलाओं की भागीदारी कम हो जाएगी।
• कार्यस्थल की नीतियां (Workplace Policies) महिला-केंद्रित और संवेदनशील (Gender-Sensitive) होनी चाहिए, ताकि प्रसव (Childbirth) को नौकरी के लिए बाधा के रूप में न देखा जाए।
• संविधान के अनुच्छेद 14, 15(3) और 42 सरकार को निर्देश देते हैं कि वह महिलाओं को समान अवसर (Equal Opportunity) और सामाजिक सुरक्षा (Social Security) प्रदान करे।
दीपिका सिंह बनाम सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (2022) मामला भारत में महिला अधिकारों (Women's Rights), मातृत्व सुरक्षा (Maternity Protection) और असमान्य परिवारों (Atypical Families) की कानूनी मान्यता के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल (Precedent) बन गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि महिलाओं को केवल इसलिए मातृत्व अवकाश से वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि वे अपने पति के पहले बच्चों की देखभाल कर रही थीं।
इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया कि परिवार की पारंपरिक परिभाषा को बदलने की जरूरत है, ताकि महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों का पूरा लाभ मिल सके। अदालत का यह फैसला न्याय, समानता और सामाजिक सुरक्षा (Justice, Equality, and Social Security) को आगे बढ़ाने वाला एक ऐतिहासिक निर्णय है।