क्या केवल सज़ा पर रोक से दोषसिद्ध सरकारी कर्मचारी सेवा में बने रह सकते हैं, जबकि दोषसिद्धि बनी रहे?
Himanshu Mishra
17 July 2025 11:12 AM

State of Punjab v. Punjab State Veterinary Officers Association (2023) के महत्वपूर्ण निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जब किसी सरकारी कर्मचारी को आपराधिक मामले में दोषी ठहराया गया हो, और अपील में केवल उसकी सज़ा पर रोक (Stay of Sentence) लगी हो, लेकिन दोषसिद्धि (Conviction) को स्थगित (Stayed) नहीं किया गया हो तो क्या वह सेवा में बना रह सकता है?
यह निर्णय पंजाब सिविल सेवा (सजा एवं अपील) नियम, 1970 की नियम 18(1) और संविधान के अनुच्छेद 311(2)(a) की व्याख्या करता है, तथा K.C. Sareen v. CBI, Union of India v. K. Paramasivam और Narinderjit Singh v. State of Punjab जैसे पूर्व मामलों को संदर्भित करता है।
सेवा नियमों में दोषसिद्धि का प्रभाव (Effect of Conviction under Service Jurisprudence)
प्रमुख सवाल यह था कि क्या कोई सरकारी कर्मचारी, जिसे आपराधिक मामले में दोषी ठहराया गया है, सेवा में बना रह सकता है यदि उसकी सज़ा (Sentence) तो रोक दी गई है, पर दोषसिद्धि (Conviction) अभी भी बनी हुई है।
संविधान के अनुच्छेद 311(2)(a) और सेवा नियमों के अनुसार, किसी भी सरकारी कर्मचारी को आपराधिक मामले में दोषसिद्ध होने पर विभागीय जांच (Departmental Inquiry) किए बिना सेवा से हटाया (Dismissed) जा सकता है।
यहाँ “Conviction” का अर्थ केवल अंतिम (Final) अपील के बाद की सज़ा नहीं है, बल्कि ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई दोषसिद्धि भी इसके लिए पर्याप्त मानी जाती है।
दंड निलंबन और दोषसिद्धि स्थगन में अंतर (Distinction between Suspension of Sentence and Stay of Conviction)
कोर्ट ने फिर से इस स्थापित सिद्धांत को दोहराया कि सज़ा पर रोक और दोषसिद्धि पर रोक दो अलग-अलग बातें हैं।
यदि केवल सज़ा निलंबित (Suspended) की गई हो, तो व्यक्ति को अभी जेल नहीं जाना होगा, लेकिन वह अब भी “दोषी” माना जाता है जब तक कि उच्च न्यायालय दोषसिद्धि पर रोक न लगाए।
कोर्ट ने K.C. Sareen v. CBI (2001) के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि केवल सज़ा पर रोक लगने से दोषसिद्धि का दाग नहीं मिटता और उसकी प्रशासनिक (Administrative) और सेवा से संबंधित प्रभाव (Consequences) जारी रहते हैं।
अनुच्छेद 311(2)(a) और सुनवाई का अधिकार (Article 311(2)(a) and Right to Hearing)
अनुच्छेद 311(2)(a) यह प्रावधान करता है कि यदि कोई सरकारी कर्मचारी किसी आपराधिक न्यायालय द्वारा दोषसिद्ध (Convicted) होता है, तो उसे विभागीय जांच किए बिना सेवा से हटाया जा सकता है।
इसका आधार यह है कि उस व्यक्ति को पहले ही न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) में पूरा अवसर मिल चुका है। इसलिए, विभागीय जांच की दोहराव की आवश्यकता नहीं होती।
इस मामले में कोर्ट ने यह तर्क अस्वीकार किया कि अगर अपील लंबित है और सज़ा पर रोक लगी है तो कर्मचारी को सेवा में बने रहने देना चाहिए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दोषसिद्धि होते ही अनुच्छेद 311(2)(a) लागू होता है।
दोषसिद्धि के बाद सेवा में बने रहने का कोई अधिकार नहीं (No Right to Continue in Service after Conviction)
सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती से कहा कि जब तक किसी उच्च न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर स्पष्ट रूप से रोक नहीं लगाई जाती, तब तक सरकारी कर्मचारी को सेवा में बने रहने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।
यदि ऐसा अनुमति दी जाए, तो यह सार्वजनिक सेवा की मर्यादा और ईमानदारी को कमजोर करता है। कोर्ट ने कहा कि प्रशासन में जनता का विश्वास (Public Faith) बनाए रखने के लिए यह ज़रूरी है कि दोषी ठहराए गए व्यक्ति को सेवा से हटाया जाए।
सरकार की भूमिका और विवेक का दायरा (Role of Government and Scope of Discretion)
कोर्ट ने पंजाब सरकार की इस नीति की आलोचना की जिसमें उन्होंने केवल सज़ा पर रोक के आधार पर दोषसिद्ध अधिकारी को सेवा में बने रहने दिया। कोर्ट ने कहा कि यह कार्रवाई कानून के अनुसार नहीं थी।
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जब तक दोषसिद्धि बरकरार है, तब तक सरकार के पास उस व्यक्ति को सेवा में बनाए रखने का कोई वैध विवेक (Discretion) नहीं है।
अन्य फैसलों की प्रासंगिकता (Relevance of Other Judgments)
कोर्ट ने Union of India v. K. Paramasivam (2015) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि दोषसिद्धि के बाद सेवा में बना रहना स्वतःस्फूर्त (Automatic) नहीं होता। इसके लिए आवश्यक है कि उच्च न्यायालय दोषसिद्धि को स्थगित करे।
साथ ही Narinderjit Singh v. State of Punjab (2009) में भी यही सिद्धांत अपनाया गया था — कि जब तक दोषसिद्धि पर रोक नहीं लगाई जाती, तब तक सेवा में बने रहना अनुचित है।
स्वच्छ प्रशासन का सिद्धांत (Doctrine of Clean Public Administration)
कोर्ट ने यह भी दोहराया कि साफ-सुथरा और जवाबदेह प्रशासन (Clean and Accountable Governance) संविधान का मूल उद्देश्य है। दोषसिद्ध व्यक्ति को सार्वजनिक सेवा में बने रहने देना इस उद्देश्य के विरुद्ध है।
कोर्ट ने पहले के फैसलों जैसे K.C. Sareen की भावना को दोहराते हुए कहा कि सार्वजनिक पद (Public Office) एक विश्वास का पद होता है और दोषसिद्ध व्यक्ति उस पद की गरिमा को बनाए नहीं रख सकता।
State of Punjab v. Punjab State Veterinary Officers Association में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि केवल सज़ा पर रोक लगने से दोषसिद्ध सरकारी कर्मचारी को सेवा में बनाए रखना कानूनसम्मत नहीं है। जब तक दोषसिद्धि पर स्पष्ट रूप से रोक नहीं लगाई जाती, तब तक सेवा से निष्कासन (Dismissal from Service) पूर्णतः वैध है।
यह निर्णय साफ करता है कि संविधान के अनुच्छेद 311(2)(a) का उद्देश्य प्रशासन को दोषसिद्ध व्यक्तियों से मुक्त रखना है और यह कि न्यायपालिका, निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए कार्यपालिका के विवेक पर भी सीमाएं लगाती है।