घोषणात्मक डिक्री से संबंधित वादों में न्यायालय शुल्क की गणना – धारा 24 राजस्थान कोर्ट फीस एक्ट
Himanshu Mishra
11 April 2025 12:41 PM

राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम की धारा 24 उन वादों पर लागू होती है जिनमें वादी केवल एक घोषणा (Declaration) चाहता है, चाहे उसके साथ किसी अन्य राहत (Relief) की भी मांग हो या नहीं। इस धारा में विस्तार से बताया गया है कि ऐसी घोषणात्मक डिक्री या आदेश के लिए शुल्क किस प्रकार से गणना किया जाएगा। यह धारा उस स्थिति पर लागू होती है जब वाद धारा 25 के अंतर्गत नहीं आता हो।
धारा 24 में कुल पांच उपखंड (a से e) दिए गए हैं, जो विभिन्न प्रकार की घोषणात्मक याचिकाओं को अलग-अलग परिस्थितियों में वर्गीकृत करते हैं। इस लेख में हम इन सभी उपखंडों को विस्तार से, सरल भाषा में समझेंगे और यह जानेंगे कि किस स्थिति में कितना शुल्क देना होता है।
घोषणात्मक डिक्री क्या होती है?
घोषणात्मक डिक्री वह न्यायिक आदेश होता है जिसमें अदालत केवल किसी पक्ष के अधिकार, स्थिति या कानूनी दर्जे की पुष्टि करती है, बिना प्रत्यक्ष कार्यवाही (जैसे कब्जा दिलवाना या हर्जाना देना) के। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति यह चाहता है कि अदालत यह घोषित करे कि वह किसी भूमि का असली मालिक है, तो यह एक घोषणात्मक वाद होगा।
धारा 24 का उद्देश्य
इस धारा का मुख्य उद्देश्य यह है कि जब कोई व्यक्ति केवल किसी अधिकार की घोषणा चाहता है या उसके साथ कुछ और राहतें भी मांगता है, तो न्यायालय शुल्क का निर्धारण किस आधार पर किया जाए – इस पर स्पष्ट नियम बनाए जाएं। इससे शुल्क का निर्धारण न्यायोचित और पारदर्शी बनता है।
अब आइए हम धारा 24 के प्रत्येक उपखंड को विस्तार से समझते हैं।
धारा 24(a): जब वादी घोषणा के साथ संपत्ति पर कब्जे की भी मांग करता है
यदि कोई वादी न्यायालय से यह घोषणा चाहता है कि वह किसी संपत्ति का स्वामी है और साथ ही वह उस संपत्ति का कब्जा भी मांगता है, तो शुल्क संपत्ति के बाजार मूल्य के आधार पर लगाया जाएगा। हालांकि, न्यूनतम शुल्क 20 रुपये होगा।
उदाहरण: मान लीजिए कोई व्यक्ति यह चाहता है कि अदालत यह घोषित करे कि वह 50 लाख रुपये मूल्य की ज़मीन का मालिक है और साथ ही उस ज़मीन का कब्जा भी दिलवाया जाए, तो शुल्क 50 लाख रुपये के आधार पर लगेगा। यदि संपत्ति का मूल्य बहुत कम है तो भी न्यूनतम शुल्क 20 रुपये देना अनिवार्य है।
धारा 24(b): जब घोषणा के साथ संपत्ति से संबंधित निषेधाज्ञा (injunction) की मांग की गई हो
यदि वादी चाहता है कि अदालत यह घोषित करे कि वह किसी अचल संपत्ति (Immovable Property) का मालिक है और साथ ही प्रतिवादी को उस संपत्ति में हस्तक्षेप करने से रोका जाए (यानी निषेधाज्ञा दी जाए), तो शुल्क संपत्ति के बाजार मूल्य के आधे भाग पर लगेगा। न्यूनतम शुल्क 20 रुपये रहेगा।
उदाहरण: यदि संपत्ति का बाजार मूल्य 10 लाख रुपये है और वादी घोषणा तथा निषेधाज्ञा चाहता है, तो शुल्क 5 लाख रुपये के आधार पर लगेगा। भले ही संपत्ति का मूल्य कम हो, न्यूनतम शुल्क 20 रुपये देना होगा।
धारा 24(c): जब घोषणा वादी के विशिष्ट अधिकार (Exclusive Right) से संबंधित हो
यह उपखंड उन मामलों पर लागू होता है जहां वादी यह चाहता है कि अदालत उसके किसी विशिष्ट अधिकार की घोषणा करे, जैसे—
• कोई नाम,
• चिह्न (Trademark),
• पुस्तक,
• चित्र,
• डिज़ाइन आदि को बेचने, छापने या प्रदर्शित करने का विशेषाधिकार।
यदि ऐसा विशेषाधिकार किसी उल्लंघन (Infringement) के आधार पर मांगा गया हो, तो शुल्क उस राशि पर लगेगा जिस पर वादी ने राहत का मूल्यांकन किया है। हालांकि न्यूनतम शुल्क 40 रुपये अनिवार्य है।
उदाहरण: मान लीजिए वादी यह कहता है कि उसकी एक किताब को प्रतिवादी ने बिना अनुमति के प्रकाशित किया है, और वादी यह चाहता है कि अदालत यह घोषित करे कि केवल उसे ही उस पुस्तक को छापने का अधिकार है। यदि वादी इस राहत को 1 लाख रुपये मूल्य का बताता है, तो शुल्क उसी पर लगेगा, लेकिन चाहे मूल्य कुछ भी हो, न्यूनतम शुल्क 40 रुपये देना ही होगा।
धारा 24(d): जब केवल घोषणा मांगी गई हो, पर किसी अतिरिक्त राहत की मांग न की गई हो
यदि वादी केवल यह चाहता है कि अदालत उसके किसी संपत्ति पर अधिकार की घोषणा करे, लेकिन वह कब्जा या निषेधाज्ञा जैसी कोई अतिरिक्त राहत नहीं चाहता, तो शुल्क संपत्ति के बाजार मूल्य पर लगेगा। न्यूनतम शुल्क 20 रुपये होगा।
उदाहरण: वादी चाहता है कि अदालत यह घोषित करे कि वह 5 लाख रुपये मूल्य की ज़मीन का मालिक है, लेकिन वह ज़मीन उसके कब्जे में पहले से है, इसलिए कब्जे की मांग नहीं करता। ऐसी स्थिति में शुल्क 5 लाख रुपये के आधार पर लगेगा।
धारा 24(e): अन्य घोषणात्मक वादों में शुल्क निर्धारण
यदि वादी किसी अन्य प्रकार की घोषणात्मक राहत चाहता है जो ऊपर दी गई किसी श्रेणी में नहीं आती—चाहे मामला मूल्यांकनीय हो या न हो—तो शुल्क उस राशि के आधार पर लगेगा जिस पर वादी ने राहत का मूल्य निर्धारण किया है। न्यूनतम शुल्क 25 रुपये होगा।
उदाहरण: यदि वादी चाहता है कि अदालत यह घोषित करे कि वह किसी ट्रस्ट या संगठन का वैध सचिव है, और वह इस अधिकार को 10,000 रुपये मूल्य का आंकता है, तो शुल्क उसी के आधार पर लगेगा, लेकिन न्यूनतम 25 रुपये देना होगा।
धारा 24 और अन्य धाराओं का आपसी संबंध
इस धारा को समझने से पहले धारा 23 को जानना जरूरी है, जिसमें चल संपत्ति से संबंधित मामलों में शुल्क निर्धारण की बात की गई है। वहीं धारा 22 में भरण-पोषण व वार्षिकी से जुड़े मामलों की गणना दी गई है। इसके विपरीत, धारा 24 घोषित अधिकारों की पुष्टि से संबंधित है। धारा 25, जिसकी चर्चा यहाँ से बाहर की गई है, उन वादों के लिए है जहां विशिष्ट निषेधाज्ञा या आदेश मांगा जाता है।
इस प्रकार, यदि वादी केवल किसी अधिकार की पुष्टि चाहता है (जैसे मालिकाना हक, विशेष अधिकार आदि) और कोई सीधा भौतिक राहत नहीं मांगता, तो वह धारा 24 में आता है। यदि वह निषेधाज्ञा या कब्जे जैसी प्रत्यक्ष कार्यवाही चाहता है, तो वह धारा 24(a) या (b) में आएगा।
धारा 24 न्यायालय शुल्क की गणना में स्पष्टता और न्यायिक अनुशासन लाती है। यह वादों की प्रकृति के अनुसार शुल्क निर्धारित करने में सहायता करती है और यह सुनिश्चित करती है कि न्याय की मांग करते समय कोई अनावश्यक शुल्क बोझ न पड़े। यह धारा उन लोगों के लिए भी विशेष रूप से उपयोगी है जो केवल अपने अधिकार की कानूनी मान्यता चाहते हैं।
धारा 24 को समझना हर वकील और वादी के लिए जरूरी है क्योंकि घोषणात्मक डिक्री के वाद आमतौर पर संपत्ति विवादों, बौद्धिक संपदा अधिकारों और पारिवारिक संपत्ति के मामलों में दायर किए जाते हैं। यदि यह धारा सही प्रकार से लागू हो तो न्यायालय में पारदर्शिता बनी रहती है और वादी को अपने अधिकारों की रक्षा का उचित माध्यम मिल जाता है।