चल संपत्ति से संबंधित वादों में न्यायालय शुल्क की गणना : धारा 23 राजस्थान न्यायालय शुल्क मूल्यांकन अधिनियम
Himanshu Mishra
10 April 2025 12:09 PM

राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम के अंतर्गत धारा 23 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो यह स्पष्ट करती है कि जब कोई वादी (Plaintiff) चल संपत्ति (Movable Property) से संबंधित वाद दायर करता है, तो उस वाद में न्यायालय शुल्क (Court Fee) किस प्रकार से निर्धारित किया जाएगा। इस धारा में दो प्रमुख प्रकार के वादों की बात की गई है – पहला, सामान्य चल संपत्ति के लिए, और दूसरा, टाइटल दस्तावेज़ (Documents of Title) के लिए।
धारा 23 को समझना इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे यह सुनिश्चित होता है कि न्यायालय में किसी भी प्रकार की चल संपत्ति की मांग करते समय वादी से उचित शुल्क लिया जाए। इस लेख में हम धारा 23 की पूरी गहराई से, सरल हिंदी में व्याख्या करेंगे।
धारा 23(1): साधारण चल संपत्ति के लिए शुल्क की गणना
इस उपधारा में उन वादों की बात की गई है जो दस्तावेज़ों को छोड़कर किसी भी अन्य प्रकार की चल संपत्ति से संबंधित होते हैं। चल संपत्ति में वे सभी वस्तुएं आती हैं जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित की जा सकती हैं, जैसे—गाड़ी, सोना-चांदी, फर्नीचर, मोबाइल फोन, कंप्यूटर, कृषि उपज आदि।
इस उपधारा के अनुसार शुल्क दो स्थितियों में अलग-अलग प्रकार से लगाया जाएगा:
(a) जब संपत्ति का बाजार मूल्य हो (Market Value):
यदि जिस चल संपत्ति की मांग की जा रही है उसका बाजार मूल्य मौजूद है, तो शुल्क उसी मूल्य पर लगाया जाएगा।
उदाहरण: अगर कोई व्यक्ति अपनी चोरी हुई बाइक वापस पाने के लिए वाद करता है और उस बाइक की बाजार कीमत 80,000 रुपये है, तो शुल्क 80,000 रुपये के आधार पर लगाया जाएगा।
(b) जब संपत्ति का कोई बाजार मूल्य न हो:
यदि उस चल संपत्ति का कोई निश्चित बाजार मूल्य नहीं है, तो शुल्क उस राशि के आधार पर लगाया जाएगा जिस पर वादी ने अपनी याचिका में राहत (Relief) का मूल्य तय किया है।
उदाहरण: यदि कोई पुरानी विरासत में मिली वस्तु है, जिसका बाजार मूल्य तय नहीं किया जा सकता, और वादी उसका मूल्य 50,000 रुपये मानते हुए राहत मांगता है, तो शुल्क 50,000 रुपये पर ही लगाया जाएगा।
धारा 23(2)(a): टाइटल दस्तावेज़ों की प्राप्ति हेतु वाद
इस उपधारा में विशेष प्रकार के चल संपत्ति वादों की बात की गई है—ऐसे दस्तावेज़ जो किसी संपत्ति में अधिकार (Title) को दर्शाते हैं, जिन्हें “Documents of Title” कहा गया है।
यदि कोई व्यक्ति ऐसे दस्तावेज़ों को प्राप्त करने के लिए वाद दायर करता है, तो शुल्क इस आधार पर लगेगा:
जब वादी के शीर्षक (Title) को नकारा गया हो या विवाद उठाया गया हो:
• यदि वादी के यह कहने पर कि वह उस संपत्ति या राशि का मालिक है जिसे दस्तावेज़ द्वारा सुरक्षित किया गया है, प्रतिवादी (Defendant) उसके शीर्षक को नकारता है;
• या अदालत में इस विषय पर मुद्दा (Issue) तय होता है कि वादी का उस संपत्ति पर कोई अधिकार है या नहीं;
तो शुल्क उस राशि या संपत्ति के बाजार मूल्य के एक चौथाई (One-Fourth) भाग पर लगेगा।
उदाहरण: मान लीजिए वादी यह कहता है कि एक जमीन के बैनामे की असली रजिस्ट्री उसके पास होनी चाहिए, और उस जमीन की बाजार कीमत 20 लाख रुपये है, और प्रतिवादी उसका मालिकाना हक नकारता है—तो शुल्क 5 लाख रुपये (20 लाख का चौथाई भाग) के आधार पर लगेगा।
यदि विवाद केवल किसी हिस्से तक सीमित हो:
यदि वाद केवल संपत्ति के किसी हिस्से या राशि के एक भाग तक सीमित हो, तो शुल्क भी केवल उसी हिस्से के चौथाई मूल्य पर लगेगा।
उदाहरण: अगर 20 लाख की संपत्ति में केवल 5 लाख की हिस्सेदारी को लेकर विवाद है, तो शुल्क 1.25 लाख रुपये (5 लाख का चौथाई) पर लगेगा।
धारा 23(2)(b): जब वादी के शीर्षक को नकारा नहीं गया हो
यदि प्रतिवादी यह नहीं कहता कि वादी का उस दस्तावेज़ या संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है, यानी वादी का मालिकाना हक मान लिया जाता है, तो शुल्क दो आधारों पर तय किया जाएगा:
• वादी द्वारा अपनी याचिका में जिस मूल्य पर राहत मांगी गई है, या
• न्यायालय द्वारा जिस मूल्य पर राहत का आकलन किया गया है,
इन दोनों में से जो अधिक हो, उसी पर शुल्क लगेगा।
उदाहरण: यदि वादी कहता है कि वह दस्तावेज़ जो एक 10 लाख की संपत्ति से संबंधित है, उसे वापस चाहता है, और उसका मूल्य 2 लाख रुपये बताया गया है; लेकिन न्यायालय मानता है कि उसका मूल्य 3 लाख रुपये है—तो शुल्क 3 लाख रुपये के आधार पर लगेगा।
स्पष्टीकरण (Explanation): “Document of Title” का अर्थ
इस धारा के अंत में यह स्पष्ट किया गया है कि “Document of Title” क्या होता है। ऐसा कोई भी दस्तावेज़, जो वर्तमान या भविष्य में किसी संपत्ति में अधिकार (Right), शीर्षक (Title), स्वामित्व (Ownership), सीमांकन (Limitation) या संपत्ति के अंत (Extinguishment) को स्थापित करता हो, उसे "टाइटल दस्तावेज़" कहा जाएगा।
इसमें निम्न प्रकार के दस्तावेज़ शामिल हो सकते हैं:
• संपत्ति की रजिस्ट्री
• बैनामा
• वसीयतनामा (Will)
• पट्टा
• ऋण सुरक्षा अनुबंध (Mortgage deed)
उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति किसी ज़मीन का असली रजिस्ट्री दस्तावेज़ चाहता है, जो गलत तरीके से प्रतिवादी के पास है, तो वह टाइटल डॉक्यूमेंट की प्राप्ति का वाद धारा 23(2) के अंतर्गत दायर कर सकता है।
धारा 23 न्यायालय शुल्क की गणना से संबंधित चल संपत्ति के मामलों में स्पष्ट और विस्तृत नियम देती है। यह धारा बताती है कि जब चल संपत्ति की मांग की जाती है तो शुल्क कैसे तय होगा—क्या संपत्ति का बाजार मूल्य है या नहीं, वादी के शीर्षक को नकारा गया है या नहीं, दस्तावेज़ से संबंधित संपत्ति की क्या स्थिति है—इन सभी पहलुओं के आधार पर शुल्क निर्धारित किया जाता है।
इस धारा से पहले हमने धारा 20 से 22 तक देखा कि धन, भरण-पोषण और वार्षिकी के मामलों में शुल्क कैसे तय होता है। अब धारा 23 चल संपत्ति के मामलों में समान रूप से विस्तारपूर्वक गणना की पद्धति बताती है। आगे आने वाली धाराएं स्थायी संपत्ति से संबंधित होंगी, जिनमें भूमि, मकान या भवनों से संबंधित वादों में शुल्क निर्धारण की व्यवस्था होगी।
इस तरह धारा 23 न्यायालय शुल्क अधिनियम के ढांचे में एक मजबूत कड़ी के रूप में कार्य करती है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता, न्याय और उचित शुल्क निर्धारण सुनिश्चित होता है।