POCSO Act में रेप का क्राइम करने का प्रयास

Shadab Salim

31 Oct 2025 1:43 PM IST

  • POCSO Act में रेप का क्राइम करने का प्रयास

    रेप के अपराध के प्रयास के मामले में अभियुक्त लड़की के साथ बलात्संग कारित करने के लिए आशयित था। उस अपराध को कारित करने में वह मारूति कार में सीट पर लड़की को लिटा दिया और तब स्वयं उस पर लेट गया। वह उसका नीकर नीचे खींच दिया और अपनी पैंट की जिप भी खोल लिया और अपना पुरुष जननांग बाहर निकाल लिया। वह अपना पुरुष जननांग लड़की के गुप्तांग पर दाबा था, परन्तु चूंकि उसका स्खलन हो गया था. इसलिए वह प्रवेशन नहीं कर सका था और बलात्संग का अपराध पूरा करने में असमर्थ था. लेकिन यह स्पष्ट है कि उसने बलात्संग कारित करने का प्रयत्न किया था।

    भेरू लाल बनाम राजस्थान राज्य, 2004 क्रि लॉ ज 1677 (राज) चूंकि पीड़िता (अभियोक्त्री लड़की) 7-8 वर्ष की थी, इसलिए पूर्ण जानकारी में प्रवेशन का कोई प्रश्न उद्भूत नहीं होता है तथा लिंग को उसकी योनि में डालने पर अपराध पूरा हो जाता है और यह संभाव्य है कि जब अभियुक्त-अपीलार्थी ने अपना लिंग उसकी योनि में बलपूर्वक डालने का प्रयत्न किया था, तब रक्तस्त्राव प्रारम्भ हो गया था और मामला समाप्त हो गया था।

    इस प्रकार, अभियुक्त-अपीलार्थी के अधिवक्ता का यह तर्क कि अभियुक्त-अपीलार्थी के द्वारा बलात्संग का अपराध कारित नहीं किया गया था, परन्तु अधिकांशतः अपराध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376/511 के परे नहीं जाता है, विफल होता है और नामंजूर किया जाता है।

    कर्नाटक राज्य बनाम महा बालेश्वर गौर्य नायक, एआईआर 1992 एससी 2043 के प्रकरण में चिकित्सा अधिकारी के अनुसार लड़की के साथ भग प्रवेशन के द्वारा बलात्संग कारित किया जा सकता है, यदि बलपूर्वक प्रवेशन न हो और इसलिए योनिच्छद अविकल था। कोई रक्तस्त्राव नहीं हुआ था. कोई स्खलन नहीं हुआ था और भगांजलि किसी सूजन के बिना अविकल थी। इसी प्रकार अभियुक्त की जांच पर यह पाया गया था कि उसके लिंग पर न तो कोई रक्त का धब्बा न ही कोई बाल देखा गया था तथा जननांग का बाल मैला नहीं हुआ था। पिछली एक-चौथाई ग्रंथियों के पिछले भाग पर भगोष्ठमल की थोड़ी मात्रा थी।

    पीड़िता से लिए गये यौनिक भगोष्ठमल तथा अभियुक्त से लिए गये शिश्नमल को रासायनिक परीक्षण के लिए भेजा गया था, परन्तु कोई वीर्य का शुक्राणु नहीं पाया गया था। विचारण कोर्ट ने प्रत्यर्थी को धारा 341 और 323 के अधीन दोषसिद्ध किया था। यह अभिनिर्धारित किया गया था कि ऐसी परिस्थितियों में अपराध केवल बलात्संग के प्रयत्न का था यौनिक पदार्थ की उपस्थिति हाल के समागम से असंगत थी, क्योंकि यह एकत्र होने में लगभग 24 घण्टे लेगा, यदि शिश्नमल को समागम के दौरान रगड़ा जाता है। ऐसी परिस्थितियों में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376 सपठित धारा 511 के अधीन अपराध कारित किया गया था।

    अभियोक्त्री ने यह कहीं नहीं कहा है कि अपीलार्थी ने अपनी पैंट पूर्ण रूप से हटाई थी और उसका गुप्तांग दृश्यमान था स्वयं उसके प्रकथन के अनुसार यह प्रतीत होता है कि अनियोक्त्री को भूमि पर गिरा दिया गया था और उसके अण्डरवियर को हटाया गया था, इसके पश्चात् अपीलार्थी ने अपनी पैंट खोली थी, इन सब कृत्यों के बीच वह चिल्लाई थी, जिस पर अपीलार्थी भाग गया था।

    यह इस बात को दर्शाता है कि अपीलार्थी ने अपनी पैंट पूर्ण रूप में नहीं हटाई थी और अभियोक्त्री का ऐसा कोई कथन नहीं है कि उसे जमीन पर गिराने के पश्चात् अपीलार्थी उसके शरीर पर बैठा था और उसके गुप्तांग में पुरुष जननांग का प्रवेशन करने का प्रयत्न किया था। मामले की इस दृष्टि में यदि घटना के बारे मे अभियोक्त्री के सम्पूर्ण कथन को स्वीकार किया जाता है, तब अपराध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376/511 के अधीन नहीं आएगा।

    अशोक उर्फ पप्पू बनाम म.प्र. राज्य, 2005 क्रि लॉ ज 2301 (एमपी) अभियोक्त्री की लज्जा भंग करने के लिए दायित्व वर्तमान मामले में लड़की ने चिल्लाहट से अभियुक्त को रोका था और अभियुक्त स्वय अभियोक्त्री के शरीर पर भी नहीं लेटा था और अपना पुरुष जननांग भी प्रदर्शित नहीं किया था परन्तु तत्काल घटनास्थल से भाग गया था। मामले की इस दृष्टि में कोर्ट का यह विचारित विचार था कि अपीलार्थी के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376/511 के अधीन दण्डनीय अपराध नहीं बनेगा, परन्तु उसी समय वह अभियोक्त्री की उसके अण्डरवियर को हटा करके लज्जा भंग करने के लिए। दायी होगा और जो भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 के अधीन दण्डनीय है।

    बलात्संग कारित करने के प्रयत्न के सबूत के लिए यह साबित किया जाना चाहिए कि अभियुक्त प्रवेशन के प्रक्रम से परे गया था। एक मामले में जहाँ पर अपीलार्थी अभियोक्त्री का जो 13 वर्ष की थी, प्रधानाध्यापक था तथा अभियुक्त के द्वारा उसे बलपूर्वक नंगा किया गया था और उसने उसे जमीन पर लेटा दिया था स्वयं निर्वस्त्र हो गया था और बलपूर्वक उसके गुप्तांग पर अपना लिंग रगड़ा था तथा स्वयं स्खलित हो गया था, यह स्पष्ट रूप में बलात्संग कारित करने के प्रयत्न का मामला था, न कि लड़की की लज्जा भंग करने की कोटि में आने वाला धारा 354 के अधीन मात्र अपराध था।

    अशोक उर्फ पप्पू बनाम मप्र राज्य, 2005 क्रि लॉ ज 2301 (एमपी) के मामले में अभियुक्त ने अभियोक्त्री को बलपूर्वक समागम के लिए विलुब्ध किया था, उसने प्रतिरोध किया था और उसकी चिल्लाहट ने साक्षियों को आकर्षित किया था। अभियुक्त भाग गया था। अभियोक्त्री और स्वतंत्र साक्षियों का साक्ष्य विश्वसनीय था और वह तात्विक विशिष्टियों पर अभियोजन मामले को संपुष्ट करता था परन्तु अभिलेख से लैंगिक समागन कारित करने की अभियुक्त की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक पूंसुकता को साबित नहीं किया गया था।

    साक्ष्य में यह नहीं था कि अभियुक्त ने पीड़िता का पायजामा अथवा स्वयं अपना पायजामा उतारा था। यह अभिनिर्धारित किया गया था कि यह नहीं कहा जा सकता है कि वह प्रतिरोध के बावजूद सभी स्थितियों में लैंगिक समागम कारित करने के लिए दृढ संकल्प था। चूंकि बलात्संग कारित करने के लिए दृढ संकल्प की उच्चतर मात्रा आवश्यक थी, जिसका अभाव था इसलिए पीड़िता की लज्जा भंग करने के लिए भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 के अधीन दण्डनीय अपराध बनता था और तदनुसार दोषसिद्धि को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376/511 से धारा 354 में परिवर्तित किया गया।

    अपीलार्थी अपराध कारित करने की तैयारी करने और उसका आशय रखने के कारण उसके कारित करने के प्रति कृत्य करता है, ऐसे कृत्य को उस अपराध को कारित करने के प्रति अन्तिम कृत्य होना आवश्यक नहीं है, परन्तु इसे अपराध कारित करने के अनुक्रम के दौरान कृत्य होना चाहिए। चूंकि अपीलार्थी उस समय स्खलित हो गया था जब उसने लड़की के गुप्तांग पर अपना पुरुष जननांग रगड़ा था. इसलिए वह प्रवेशन नहीं कर सका था और बलात्संग का अपराध पूरा करने में असमर्थ था। लेकिन यह स्पष्ट है कि उसने बलात्संग कारित करने का प्रयत्न किया था।

    सुनील कुमार बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य, 2005 क्रि लॉ ज 2512 (एच पी) अध्यापक ने पीड़िता लड़कियों को कमरे में बुलाया था उनके सलवार को हटाया था, तब अपने पेंट की जिप हटाने के पश्चात् उनके साथ बलात्संग कारित करने का प्रयत्न किया था। पीड़िताओं का अभिसाक्ष्य अन्य साक्षियों के द्वारा तात्विक विशिष्टियों पर संपुष्ट हुआ था। बाल साक्षी के द्वारा बतायी गयी घटना की गलत तारीख समय बीतने के कारण थी, क्योंकि उसकी परीक्षा घटना के लगभग 2 वर्ष पश्चात् की गयी थी। इस प्रकार पीड़िता का अभिसाक्ष्य घटना की गलत तारीख का उल्लेख करने के आधार पर अविश्वसनीय नहीं था इसलिए प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने में विलम्ब, यदि कोई हो, को स्पष्ट किया गया था और अभियुक्त की दोषसिद्धि को उचित अभिनिर्धारित किया गया था।

    लाला उर्फ लाल चन्द बनाम राजस्थान राज्य, 2004 क्रि लॉ ज 1218 (राज) के मामले में अभियुक्त अभियोक्त्री, जो मानसिक रूप में मंदबुद्धि की थी के साथ उस समय बलात्संग कारित करने के लिए अभिकथित किया गया था, जब वह अपने घर में अकेली थी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने में विलम्ब हुआ था। अभियोजन कहानी की कोई स्वतंत्र संपुष्टि नही हुई थी। साक्षियों के कथन विरोधी थे और अभियोक्त्री के शरीर पर उस समय किसी प्रकार की कोई क्षति नहीं पायी गयी थी, जब उसकी चिकित्सीय रूप में जांच की गयी थी। इस प्रभाव का निष्कर्ष कि अभियोक्त्री के सलवार पर वीर्य पाया गया था। किसी परिणाम का नहीं था, क्योंकि वह विवाहित महिला थी और विशेष रूप में जब अभियुक्त को बलात्संग के प्रयत्न का, न कि बलात्संग का दोषी पाया गया था। इसलिए अभियुक्त दोषमुक्त किए जाने के लिए दायी था।

    एक मामले में महिला अपने ससुर के साथ डॉक्टर के पास उपचार के लिए आयी थी, और ससुर को गर्म पानी लाने के लिए बाहर भेजा गया था और उसके पश्चात् डॉक्टर ने बलात्संग कारित करने का प्रयत्न किया था और जब उसका ससुर वापस लौटा, तब उसने डॉक्टर को नंगे खड़े हुए देखा था और अपीलार्थी ने तत्काल कपड़ा पहना था। इन परिस्थितियों में अभियुक्त को सही तौर पर दोषसिद्ध किया गया।

    पीडिता अवयस्क लड़की का साक्ष्य यह था कि अपीलार्थी ने उसके साथ बलात्संग कारित करने का प्रयत्न किया था। उसकी मित्र भी बाल साक्षी थी। उसके साक्ष्य ने हाईकोर्ट को घटना, जो घटित हुई थी के व्यापक पक्ष पर पीड़िता के प्रकथन की सच्चाई से आश्वास किया था। पीड़िता का साक्ष्य उसके मित्र तथा चिकित्सीय साक्ष्य के द्वारा संपुष्ट हुआ था हाईकोर्ट विशेष रूप में चिकित्सीय साक्ष्य और उसके मित्र के भी अभिसाक्ष्य के प्रकाश में पीडिता की कहानी पर विश्वास करने में सही था। इसलिए हाईकोर्ट के द्वारा दोषमुक्ति के आदेश को उलटते हुए प्रदान की गयी दोषसिद्धि में कोई त्रुटि नहीं हो सकती है।

    पीड़िता लड़की घटना के समय लगभग 10 वर्ष की आयु की अवयस्क थी। अभियोजन मामला यह था कि अपीलार्थी उसे गेहूं के खेत में ले गया था जहाँ पर उसने उसके साथ बलात्संग कारित करने का प्रयत्न किया था। यह पीड़िता के साक्ष्य और चिकित्सीय साक्ष्य के द्वारा समर्थित था। मिथ्या फँसाव का कोई मामला नहीं बनाया गया था। धारा 376/511 के अधीन अभियुक्त की दोषसिद्धि उचित थी। पुनः 8 वर्ष के कठोर कारावास के दण्डादेश का अधिरोपण अत्यधिक नही पाया गया।

    अजय पारिडा बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, 2009 क्रि लॉ ज 2582 अभियोजन सभी युक्तियुक्त संदेह से परे यह साबित करने में समर्थ हुआ है कि अभियुक्त अभियोक्त्री को अपने कमरे के अन्दर उस समय ले गया था, जब उसके अन्य परिवार के सदस्य घर में नहीं थे और उक्त अभियोक्त्री पर लैंगिक रूप में हमला किया था, जो अपीलार्थी के द्वारा मात्र अश्लील आक्रमण नहीं था, परन्तु यह कि वह वास्तविक रूप में अभियोक्त्री के साथ बलात्संग कारित करने का प्रयत्न किया था, यद्यपि यह असफल रूप में योनि के प्रवेश के आस-पास के भाग पर लालिमा के अपवाद के साथ प्रवेशन करना था। अभियोजन सभी युक्तियुक्त संदेह से परे यह साबित करने में समर्थ रहा है कि अभियुक्त-अपीलार्थी ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376/511 के अधीन दण्डनीय अपराध कारित किया था, जिसके लिए अभियुक्त अपीलार्थी को आरोपित किया गया था और विद्वान अपर सत्र न्यायाधीश के द्वारा विचारित किया गया था।

    यह अभिकथन किया गया था कि अभियुक्त ने स्वयं अपनी पुत्री के साथ बलात्संग कारित किया था। डॉक्टर का यह साक्ष्य कि कोई वास्तविक लैंगिक समागम अथवा कम-से-कम प्रवेशन नहीं हुआ था, परन्तु लैंगिक समागम करने के प्रयत्न से इन्कार नहीं किया जा सकता था। पुनः अभियुक्त के द्वारा लैंगिक समागम का आश्रय लेने के पहले स्वयं तथा पीड़िता के नारियल का तेल लगाने का तथ्य यह दर्शाने के लिए इंगित करने वाला एक अन्य कारक था कि अभियुक्त का स्वयं अपनी पुत्री के विरुद्ध लैंगिक हमला कारित करने का स्पष्ट आशय था। बलात्संग के प्रयत्न का अपराध बनता था। अभियुक्त की धारा 376 (2) (घ) के अधीन दोषसिद्धि को धारा 376(2)(च) सपठित धारा 511 के अधीन परिवर्तित किया गया।

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