क्या WhatsApp चैट्स अदालत में साक्ष्य के रूप में मान्य हैं? अदालत में WhatsApp चैट्स का प्रमाणपत्र और साक्ष्य मान्यता के नए नियम
Himanshu Mishra
19 Sept 2024 5:44 PM IST
इस लेख में हम जानेंगे कि क्या जाँच एजेंसियां किसी आरोपी या संबंधित व्यक्ति के फोन से डेटा (Data) जैसे कि WhatsApp संदेशों को प्राप्त कर सकती हैं, और ऐसा करते समय उन्हें किन कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना होता है। यह विषय काफी चर्चा में रहा है, खासकर इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य (Electronic Evidence) के संबंध में।
जांच के दौरान डेटा एक्सेस करना: स्वैच्छिक (Voluntary) या अदालत का आदेश?
जाँच एजेंसियां आरोपी या संबंधित व्यक्ति से उनके फोन के पासवर्ड, पासकोड, या बायोमेट्रिक्स (Biometrics) देने का अनुरोध कर सकती हैं। अगर व्यक्ति स्वेच्छा से अपनी जानकारी साझा कर देता है, तो उस फोन से प्राप्त डेटा, जैसे कि WhatsApp संदेश, कानूनी रूप से वैध माना जाता है। आजकल के मामलों में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
लेकिन यहाँ ये समझना जरूरी है कि इस तरह के अनुरोध को मानना पूरी तरह से स्वैच्छिक (Voluntary) है। आरोपी या संबंधित व्यक्ति इस तरह के अनुरोध को मना कर सकता है। अगर वे मना करते हैं, तो जाँच एजेंसी को अदालत से सर्च वारंट (Search Warrant) प्राप्त करना पड़ता है। यह सर्च वारंट एजेंसी को फोन की जाँच और डेटा प्राप्त करने की अनुमति देता है। ऐसा कानून Criminal Procedure Code, 1973 (CrPC) के तहत किया जाता है, जो खोज और जब्ती (Seizure) की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताता है।
कभी-कभी आपातकालीन (Emergency) स्थिति में, जब फोन का डेटा नष्ट होने का खतरा होता है, एजेंसी फोन को जब्त (Seize) कर सकती है। लेकिन तब भी, एजेंसी को डेटा एक्सेस करने के लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होता है।
एक उदाहरण है Virendra Khanna v. State of Karnataka (2021) का मामला, जहाँ कर्नाटक हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जाँच एजेंसी बिना अदालत के वारंट के आरोपी से उनके फोन का एक्सेस प्राप्त नहीं कर सकती।
क्या फोन से प्राप्त डेटा दोष सिद्ध कर सकता है?
जबकि फोन से प्राप्त इलेक्ट्रॉनिक डेटा, जैसे कि WhatsApp संदेश, अदालत में साक्ष्य के रूप में उपयोग हो सकता है, लेकिन यह अकेले आरोपी का दोष सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं होता। इस डेटा को अन्य साक्ष्यों के साथ मिलाकर अदालत के सामने पेश किया जाता है।
उदाहरण के तौर पर, एक आर्थिक घोटाले से जुड़े मामले में जाँच एजेंसी ने आरोपी के फोन से WhatsApp संदेश प्राप्त किए। लेकिन बचाव पक्ष (Defense) ने तर्क दिया कि ये संदेश अकेले दोष सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं, और इन्हें अन्य साक्ष्यों से साबित किया जाना चाहिए।
धारा 65B के तहत इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की मान्यता (Admissibility)
भारत में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य Indian Evidence Act, 1872 की Section 65B के तहत मान्य होते हैं। लेकिन इसके लिए अभियोजन पक्ष (Prosecution) को धारा 65B के तहत एक प्रमाणपत्र (Certificate) दाखिल करना होता है, जो उस इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की प्रामाणिकता (Authenticity) को साबित करता है।
इस प्रमाणपत्र में निम्नलिखित जानकारी शामिल होती है:
1. इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड का प्रकार।
2. इसे कैसे तैयार किया गया।
3. वह डिवाइस जिस पर यह तैयार हुआ।
4. एक बयान जिसमें पुष्टि हो कि रिकॉर्ड के साथ कोई छेड़छाड़ (Alteration) नहीं की गई।
5. इसे एक नियमित रूप से इस्तेमाल होने वाले डिवाइस पर बनाया गया।
यह प्रमाणपत्र उस व्यक्ति द्वारा साइन किया जाना चाहिए, जो उस डिवाइस की देखरेख या संचालन के लिए जिम्मेदार है। इस प्रमाणपत्र के बिना इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य अदालत में स्वीकार्य नहीं होते।
Arjun Panditrao Khotkar v. Kailash Kushanrao Gorantyal (2020) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 65B का प्रमाणपत्र इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की मान्यता के लिए अनिवार्य है। अदालत ने कहा कि इस प्रमाणपत्र के बिना WhatsApp संदेशों जैसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को वैध साक्ष्य नहीं माना जा सकता।
उदाहरण: Rakesh Kumar Singla v. Union of India
एक और महत्वपूर्ण मामला है Rakesh Kumar Singla v. Union of India (2021), जिसमें अभियोजन पक्ष ने आरोपी की भूमिका साबित करने के लिए WhatsApp संदेशों पर निर्भर किया। लेकिन पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने आरोपी को जमानत दे दी क्योंकि अभियोजन पक्ष ने धारा 65B का प्रमाणपत्र दाखिल नहीं किया था। इसके कारण WhatsApp संदेश अदालत में अस्वीकार्य (Inadmissible) साबित हुए।
अवैध रूप से प्राप्त इलेक्ट्रॉनिक डेटा: इसका मूल्य और सीमाएँ
एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा है अवैध रूप से डेटा प्राप्त करना। यदि जाँच एजेंसियां किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उसके फोन से डेटा प्राप्त करती हैं, जैसे कि उसे हैक करके, तो वह डेटा अदालत में उपयोग नहीं किया जा सकता। ऐसा डेटा अदालत में मान्य नहीं होता, जब तक कि उसके साथ धारा 65B के तहत प्रमाणपत्र न हो।
Section 65B की अनुपालना के बिना, ऐसे अवैध रूप से प्राप्त डेटा को अदालत में सबूत के रूप में पेश नहीं किया जा सकता।
दिल्ली हाई कोर्ट का WhatsApp चैट्स पर फैसला
हाल ही में, जुलाई 2024 में, दिल्ली हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि WhatsApp चैट्स को तब तक साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता जब तक उनके साथ धारा 65B के तहत प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं किया जाता। अदालत के इस फैसले ने इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की प्रक्रिया की महत्वपूर्णता पर फिर से जोर दिया।
WhatsApp चैट्स और ईमेल्स की मान्यता को प्रभावित करने वाले कारक
जब अदालत में WhatsApp चैट्स और ईमेल्स को साक्ष्य के रूप में पेश किया जाता है, तो कई कारक महत्वपूर्ण होते हैं। सबसे पहले, उस इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की प्रासंगिकता (Relevance) साबित करनी होती है। अभियोजन पक्ष को यह दिखाना होता है कि वह डेटा मामले से सीधा संबंध रखता है। इसके बाद, उस साक्ष्य की प्रामाणिकता को साबित करना होता है कि वह छेड़छाड़ (Tamper) या बदलाव से मुक्त है।
फोन से प्राप्त इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य, खासकर WhatsApp संदेश, आजकल की कानूनी प्रक्रियाओं में अहम भूमिका निभाते हैं। जाँच एजेंसियों को इस डेटा को कानूनी रूप से प्राप्त करने और अदालत में प्रस्तुत करने के लिए धारा 65B के तहत प्रमाणपत्र की आवश्यकता होती है। भारत में Arjun Panditrao Khotkar और हाल के दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि केवल प्रमाणित और प्रामाणिक (Authentic) इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों को कानूनी मान्यता मिल सकती है।