क्या GST काउंसिल की सिफारिशें सरकार के लिए बाध्यकारी हैं?

Himanshu Mishra

5 Feb 2025 5:30 PM IST

  • क्या GST काउंसिल की सिफारिशें सरकार के लिए बाध्यकारी हैं?

    GST (Goods and Services Tax) भारत में अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में एक ऐतिहासिक सुधार था, जिसका उद्देश्य केंद्र और राज्यों के कराधान को एकीकृत करना था। इस नई प्रणाली में GST काउंसिल की एक महत्वपूर्ण भूमिका है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 279A के तहत गठित किया गया है।

    इस परिषद का कार्य GST से संबंधित नीतियों और कर की दरों को लेकर सिफारिशें देना है। लेकिन एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या GST काउंसिल की सिफारिशें केंद्र और राज्यों के लिए बाध्यकारी होती हैं?

    इसी प्रश्न का उत्तर Union of India & Anr. v. M/s Mohit Minerals Pvt. Ltd. (2022) में दिया गया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि GST काउंसिल की सिफारिशें अनिवार्य नहीं, बल्कि अनुशंसात्मक (recommendatory) प्रकृति की होती हैं।

    संविधानिक प्रावधान और GST काउंसिल की भूमिका

    भारत में कराधान व्यवस्था संविधान के तहत नियंत्रित होती है। अनुच्छेद 246A केंद्र और राज्य दोनों को GST से संबंधित कानून बनाने का अधिकार देता है। वहीं, अनुच्छेद 279A GST काउंसिल को यह अधिकार देता है कि वह कर की दरें, छूट और अन्य नीतिगत मामलों पर सिफारिशें दे। काउंसिल की सिफारिशें तीन-चौथाई बहुमत से पारित होती हैं, जहां राज्यों का मत दो-तिहाई और केंद्र का मत एक-तिहाई होता है।

    लेकिन इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि GST काउंसिल कोई विधायी (legislative) निकाय नहीं है, बल्कि यह केवल एक अनुशंसात्मक (recommendatory) संस्था है, जिसकी सिफारिशों को केंद्र और राज्य स्वीकार कर सकते हैं या अस्वीकार कर सकते हैं।

    सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

    सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में स्पष्ट किया कि GST काउंसिल की सिफारिशें संसद और राज्य विधानमंडलों पर बाध्यकारी नहीं हैं। यदि संविधान निर्माताओं ने ऐसा चाहा होता, तो वे स्पष्ट रूप से अनुच्छेद 246A में यह प्रावधान जोड़ते। लेकिन क्योंकि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि GST काउंसिल की सिफारिशें स्वचालित रूप से कानून बन जाएंगी।

    न्यायालय ने यह भी कहा कि अगर काउंसिल की सिफारिशें बाध्यकारी मान ली जाएं, तो यह संघवाद (federalism) के बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाएगा, क्योंकि यह राज्यों को उनकी कराधान शक्तियों से वंचित कर देगा।

    महत्वपूर्ण मामलों का उल्लेख

    इस निर्णय में कई अन्य महत्वपूर्ण मामलों का हवाला दिया गया, जिनमें से प्रमुख हैं:

    1. Jindal Stainless Ltd. v. State of Haryana (2016) – इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि कर लगाने की शक्ति एक विधायी कार्य है और इसे सरकार के विवेकाधिकार पर छोड़ना संघीय ढांचे के खिलाफ होगा।

    2. State of Rajasthan v. Basant Agrotech (India) Ltd. (2013) – इस मामले में यह कहा गया था कि केंद्र और राज्य दोनों को अपनी-अपनी कराधान शक्तियों को स्वतंत्र रूप से लागू करने का अधिकार है।

    3. Union of India v. VKC Footsteps India Pvt. Ltd. (2022) – इस मामले में न्यायालय ने कहा था कि GST काउंसिल की सिफारिशें सहकारी संघवाद (cooperative federalism) के आधार पर काम करती हैं, लेकिन वे बाध्यकारी नहीं होतीं।

    दोहरे कराधान का मुद्दा और सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या

    इस निर्णय का एक महत्वपूर्ण पहलू समुद्री माल भाड़ा (ocean freight) पर IGST (Integrated GST) लगाने का प्रश्न था। केंद्र सरकार ने IGST अधिनियम, 2017 की धारा 5(1) और 5(3) के तहत एक अधिसूचना जारी की थी, जिसके अनुसार भारतीय आयातकों को विदेश से लाए गए माल पर समुद्री माल भाड़ा सेवाओं के लिए IGST का भुगतान करना था।

    गुजरात उच्च न्यायालय ने इसे दोहरे कराधान (double taxation) का मामला मानते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया। इसके बाद केंद्र सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब कोई सेवा एक "संयुक्त आपूर्ति" (composite supply) का हिस्सा होती है, और उस पर पहले से कर लगाया जा चुका है, तो उसी सेवा पर अलग से कर नहीं लगाया जा सकता।

    इस निर्णय में न्यायालय ने CGST अधिनियम, 2017 की धारा 2(30) और धारा 8 का हवाला दिया, जिनमें स्पष्ट किया गया है कि जब कोई सेवा एक समग्र आपूर्ति (composite supply) का हिस्सा होती है, तो उस पर अलग से कर नहीं लगाया जा सकता।

    संघवाद (Federalism) और सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism) का महत्व

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान में संघवाद (Federalism) की भावना को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि केंद्र और राज्य दोनों के पास स्वतंत्र कराधान शक्तियां हों। यदि GST काउंसिल की सिफारिशों को बाध्यकारी माना जाएगा, तो यह संघवाद के बुनियादी ढांचे को कमजोर करेगा और राज्यों को उनके कराधान अधिकारों से वंचित कर देगा।

    GST काउंसिल का उद्देश्य सहयोगात्मक संघवाद (Cooperative Federalism) को बढ़ावा देना है, न कि राज्यों को केंद्र के अधीन करना। इसीलिए अनुच्छेद 246A के तहत केंद्र और राज्यों को समान कराधान शक्तियां दी गई हैं, और अनुच्छेद 279A में GST काउंसिल को केवल अनुशंसात्मक भूमिका प्रदान की गई है।

    सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का प्रभाव यह होगा कि GST काउंसिल की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं मानी जाएंगी, बल्कि केवल एक मार्गदर्शक के रूप में काम करेंगी। केंद्र और राज्य अपनी कराधान नीति के अनुसार इन सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार कर सकते हैं।

    यह निर्णय संघीय ढांचे को बनाए रखने और राज्यों को उनकी कराधान शक्तियों का स्वतंत्र रूप से उपयोग करने का अधिकार सुनिश्चित करता है। यह स्पष्ट करता है कि GST काउंसिल की भूमिका केवल एक परामर्शदात्री संस्था की है, न कि एक विधायी निकाय की।

    इस निर्णय के बाद केंद्र और राज्यों को कराधान नीति में अधिक स्वतंत्रता मिलेगी, जिससे वे अपने-अपने क्षेत्र की आर्थिक आवश्यकताओं के अनुसार निर्णय ले सकेंगे। यह निर्णय संवैधानिक संघवाद, कराधान नीति और सहकारी संघवाद के संतुलन को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा।

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