Arbitration And Conciliation Act सुलह का कानून
Shadab Salim
28 Jun 2025 8:22 PM IST

महत्वपूर्ण और बड़े विवादों को सुलझाने के लिए Arbitration And Conciliation Act का क़ानून बनाया गया है। इस अधिनियम में कुल 86 धाराएं हैं तथा जिसे अलग-अलग भागों में बांटा गया है। इस अधिनियम के अंतर्गत 3 अनुसूचियां भी शामिल की गई हैं। इसके पहले के माध्यस्थम अधिनियम 1940 में अंतरराष्ट्रीय माध्यस्थम संबंधी कोई प्रावधान नहीं था। वह सिर्फ घरेलू माध्यस्थम तक ही सीमित था।
इस विधि को अधिक स्पष्ट किया गया है। इस अधिनियम के द्वारा माध्यस्थम न्यायाधिकरण की परिकल्पना की गई है। संविधानिक माध्यस्थ को न्यायाधिकरण का दर्जा दिया गया है। इस अधिनियम द्वारा विदेशी तथा अंतरराष्ट्रीय माध्यस्थम के चुनाव संबंधी विस्तृत प्रक्रिया को उल्लेखित किया गया है। यह अधिनियम के द्वारा प्रथम बार सुलह की प्रक्रिया को मान्यता प्रदान की गई है।
इस अधिनियम के द्वारा सुलह की कार्यवाही को अन्य कार्यवाही में स्वीकार योग्य बनाया गया है। जैसा कि इस अधिनियम के शीर्षक से स्पष्ट है।
इसमें माध्यस्थम के अलावा सुलह को भी वाणिज्यिक विवादों के निपटारे के साधन के रूप में विधिक मान्यता प्रदान की गई जिसे पूर्ववर्ती अधिनियम में विधिक मान्यता प्राप्त नहीं थी। केवल इतना ही नहीं अधिनियम में सुलह को वही स्थान प्राप्त है जोकि माध्यस्थम को अर्थात सुलह द्वारा रजामंदी से दिए गए निर्णय को मान्यता वैसी ही होगी जैसी कि माध्यस्थों द्वारा दिए गए पंचाट की तथा इसका न्यायालय डिक्री की भांति प्रवर्तनीय किया जा सकेगा।
इस अधिनियम के अधीन देसी अंतरराष्ट्रीय दोनों ही प्रकार के विवाद सुलह द्वारा निपटाए जा सकेंगे। ज्ञातव्य है कि सुलह तथा माध्यस्थम में मुख्य अंतर यह है कि सुलहकार पक्षकारों को अपने मतभेद या विवाद आपसी रजामंदी से निपटा लेने में केवल उत्प्रेरक सहायक की भूमिका निभाता है।
इस अधिनियम के द्वारा न्यायालय की शक्तियों को सीमित किया गया है। अधिनियम में इस संबंध में उल्लेख किया गया है कि माध्यस्थम कार्यवाही के ऊपर न्यायिक हस्तक्षेप नहीं करेंगे। इस अधिनियम के अनुसार भाग 1 के प्रावधानों के अधीन माध्यस्थ पंचाट (अवॉर्ड) अंतिम होगा।
यह अधिनियम के भाग 5 में माध्यस्थता संबंधी विस्तृत प्रक्रिया को उल्लेखित किया गया है। इसके द्वारा प्रथम बार पक्षकारों के बीच समानता रखी गई है तथा पक्षकारों को सामान्य पूर्ण अवसर देने संबंधी प्रावधान रखे गए हैं। माध्यस्थम अभिकरण को यह स्वतंत्रता दी गई है कि वह सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के प्रावधानों को अपना सके।
इस अधिनियम के प्रावधानों के द्वारा मध्यस्थ को बड़ी शक्तियां दी गई हैं। वह अंतरिम आदेश भी जारी कर सकता है। मध्यस्थ को किसी प्रकार से उचित कार्यवाही के तहत प्रतिभूति लेने का भी अधिकार है। इस अधिनियम में माध्यस्थम पंचाट के विरुद्ध अपील का कोई प्रावधान नहीं है। मध्यस्थ तथा मध्यस्थों द्वारा दिया गया पंचाट निर्णय पक्षकारों के लिए अंतिम और बंधनकारी होगा।
लेकिन अधिनियम की धारा 34 में वर्णित कतिपय आधारों पर व्यथित पक्षकार पंचाट को अपास्त करने हेतु न्यायालय में आवेदन कर सकता है। पूर्ववर्ती अधिनियम में पंचाट की संतुष्टि न्यायालय डिक्री द्वारा हुए बिना उसे प्रवर्तित नहीं कराया जा सकता था। इस हेतु पक्षकारों को न्यायालय में आवेदन करना पड़ता था।

