SC/ST Act में Special Public Prosecutor की नियुक्ति

Shadab Salim

11 May 2025 4:39 PM IST

  • SC/ST Act में Special Public Prosecutor की नियुक्ति

    Special Public Prosecutor की नियुक्ति या तो केन्द्र सरकार या राज्य सरकार सम्बन्धित कोर्ट में मामलों के संचालन के प्रयोजन से Special Public Prosecutor की नियुक्ति कर सकती है।

    लोक अभियोजक की नियुक्ति स्वत: परिवादी के आवेदन पर नहीं हो सकती है। ऐसे विशेष कारण होते है जो इसके बारे में अभिलिखित किये जाने चाहिए कि Special Public Prosecutor को नियुक्त करते समय सामान्य नियम से विचलन क्यों किया गया है, आवेदन की प्राधिकारी के द्वारा उचित रूप से जाँच की जानी है और अभिलेख पर सामग्री के आधार पर समाधान हो जाने पर Special Public Prosecutor को नियुक्त किया जा सकता है। बिना मस्तिष्क का प्रयोग किये यदि आदेश पारित किया जाता है, तब यह मनमानेपन की कोटि में आ सकता है। ऐसी नियुक्ति केवल और केवल तब की जा सकती है, जब लोकहित ऐसी माँग करता है।

    नियमावली के नियम 4 (5) के अधीन जिला मजिस्ट्रेट अथवा उपखण्ड मजिस्ट्रेट ऐसे शुल्क के संदाय पर जैसे वह उपयुक्त समझे, विशेष कोर्ट में मामलों को संचालित करने के लिए विख्यात वरिष्ठ अधिवका नियुक्त कर सकता है "यदि अत्याचार के पीड़ित व्यक्ति के द्वारा ऐसी इच्छा व्यक्त की जाए। राजस्थान हाईकोर्ट ने ऐसी नियुक्ति को भी संपुष्ट किया तथा समान परिस्थितियों में इस हाईकोर्ट ने जिला मजिस्ट्रेट को ऐसे प्रत्यावेदन पर विचार करने के लिए भी निर्देशित किया।

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अधीन Special Public Prosecutor की नियुक्ति किसी विशेष जिले के सम्बन्ध में नहीं होती है, न तो प्रावधान यह अनुचिंतन अथवा निबंन्धित करता है कि केवल सम्बद्ध सत्र कोर्ट के समक्ष "दस वर्ष" का व्यवसाय रखने वाले वकील को ही Special Public Prosecutor किया जायेगा। किसी जिले में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अधीन अपेक्षा को संतुष्ट करने वाला कोई वकील, एक अन्य जिले में विशेष मामले/मामलों के वर्ग पर विचार करने के लिए 'विशेष लोक अभियोजक' के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।

    यह कि जहाँ तक अधिनियम के अधीन स्थापित विशेष कोर्ट का सम्बन्ध है, अधिनियम तथा नियमावली के अधीन विहित प्रक्रिया Special Public Prosecutor की नियुक्ति को शासित करेगी।

    यह सत्य है कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अधीन राज्य सरकार को अभियोजन अधिकारियों का नियमित कैडर गठित करने वाले व्यक्तियों में से लोक अभियोजक नियुक्त करने के लिए ससक्त किया गया है। तथापि, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1999, अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के विरुद्ध अत्याचार का अपराध कारित करने को निवारित करने के लिए अधिनियमित किया गया विशेष अधिनियमन है और धारा 14 त्वरित विचारण प्रदान करने के प्रयोजन के लिए विशेष कोर्ट की स्थापना का प्रावधान करती है।

    अधिनियम की धारा 15 पुनः यह प्रावधान करती है कि प्रत्येक विशेष कोर्ट के लिए राज्य सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा उस कोर्ट में मामलों को संचालित करने के प्रयोजन के लिए लोक अभियोजक अथवा Special Public Prosecutor विनिर्दिष्ट करेगी। इसके अनुकल्प में, एडवोकेट जो सात वर्ष से अनधिक अवधि तक एडवोकेट के रूप में व्यवसाय किया हो, भी नियम 4 के अधीन उक्त प्रयोजन के लिए Special Public Prosecutor के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।

    राज्य सरकार को जिला मजिस्ट्रेट की सिफारिश पर विशेष कोर्ट में मामलों को संचालित करने के लिए ऐसे विख्यात वरिष्ठ अधिवक्ताओं का, जो सात वर्ष से अनधिक का व्यवसाय किये हों, पैनल तैयार करना है। नियम 4 अभियोजन निदेशक के परामर्श से राज्य सरकार के द्वारा तैयार किये जाने वाले लोक अभियोजकों के पैनल के विनिर्देश के लिए प्रावधान करता है। दोनों उक्त पैनल राज्य के शासकीय राजपत्र में अधिसूचित किये जायेंगे और तीन वर्ष की अवधि तक प्रवर्तन में रहेंगे। अधिनियम की धारा 20 यह प्रावधान करती है कि अधिनियम के प्रावधान तत्समय प्रवृत्त अन्य विधियों पर अभिभावी होंगे।

    Special Public Prosecutor की नियुक्ति राज्य का विशेषाधिकार- इसके बारे में यह प्रश्न कि क्या किसी मामले में Special Public Prosecutor नियुक्त करना आवश्यक है या नहीं, और यदि ऐसा है तो इसके कारण नियुक्त किया जाने वाला व्यक्ति राज्य के विवेकाधिकार तथा विशेषाधिकार के भीतर होगा। राज्य किसी व्यक्ति के विकल्प पर विवेकाधिकार का अभ्यर्पण नहीं कर सकता है। इस सम्बन्ध में प्रयोग तथा निकाले गये निष्कर्ष को स्वयं नियुक्ति के आदेश से स्पष्ट होना आवश्यक है। उनका मौन से अथवा टिप्पणी की फाइल में समर्थित टिप्पणियों से निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है।

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अधीन लोक अभियोजक (जिसमे Additional Public Prosecutor और Special Public Prosecutorशामिल हैं) की नियुक्ति का ढंग तथा संहिता के अधीन Assistant Public Prosecutor की नियुक्ति का ढंग महत्वपूर्ण रूप से भिन्न है, लोक तथा Assistant Public Prosecutor की भूमिका तथा स्थिति में गुणात्मक अन्तर है। विधि के अनुक्रम के रूप में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अधीन Public Prosecutor की परिभाषा में Assistant Public Prosecutor शामिल नहीं है। Public Prosecutor का पद सिविल पद है और Assistant Public Prosecutor राज्य के कर्मचारी होते हैं, परन्तु हालांकि Public Prosecutor "लोक पद" का धारक है और वह 'पद' धारित करता है, फिर भी वह गोवेर्मेंट सर्विस में नहीं होता है।

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