घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) का घरेलू नातेदारी पर लागू होना
Shadab Salim
8 Oct 2025 8:12 PM IST

घरेलू नातेदारी से संबधित एक मामले में आन्ध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि- इस प्रकार, मुख्य प्रावधान की अन्तर्वस्तुओं की दृष्टि में प्रत्यर्थिनों के रूप में अपवर्जित घरेलू नातेदारी में स्वयं उसी महिला सदस्य को पुनः धारा के परन्तुक के अधीन सम्मिलित किये जाने का प्रश्न उद्भूत नहीं हो सकता है।
इसलिए इसे इससे समझा जाना है कि परन्तुक केवल उन पुरुष सदस्यों, जो घरेलू नातेदारी में से भी भिन्न हों, को सम्मिलित करने का आशय रखता है परन्तुक में विनिर्दिष्ट रूप से महिला को अपवर्जित करने का अनाशयित लोप होना प्रतीत है अथवा यह इस कारण से हो सकता है कि मुख्य धारा यह स्पष्ट करती है कि केवल पुरुष सदस्य हो प्रत्ययगण हो सकते हैं, इसे परन्तुक में पुनः विनिर्दिष्ट नहीं किया गया है।"
कोई महिला, जो घरेलू नातेदारी में है अथवा रही है, जिसे प्रत्यर्थी, अर्थात् उसके पति के द्वारा घरेलू हिंसा के अधीन बनाया गया है, वह "व्यथित व्यक्ति" के रूप में अधिनियम की धारा 12 के अधीन घरेलू हिंसा का परिवाद दाखिल कर सकती है अधिनियम के अधीन आदेशों, अर्थात् भरण-पोषण, संरक्षण आदेश, आदि की मांग कर सकती है।
इस प्रकार, प्रत्यर्थी को ऐसे आवेदन में घरेलू हिंसा के अधीन परिवाद के अनुसरण में अपनी पत्नी अथवा आवेदिका, जिसके साथ वह घरेलू नातेदारी में था, को अधिनियम के अधीन लाभों, अर्थात् इस सम्बन्ध में साझी गृहस्थी, भरण-पोषण, धनय लाभों से निरन्तर रूप से वंचित करके अधिनियम के प्रावधानों को विफल बनाने के अलए अनुज्ञात नहीं किया जा सकता है।
एक मामले में, मजिस्ट्रेट ने निश्चायक रूप से यह निष्कर्ष अभिलिखित किया है कि विरोधी पक्षकार संख्या 2 घरेलू हिंसा के आरोप को साबित करने में विफल हुई है। यह भी प्रकट है कि विरोधी पक्षकार संख्या 2 विवाह-विच्छेद के मामले में पारित किये गये आदेश के द्वारा अन्तरिम भरण-पोषण के रूप में याची से 4,000 रुपये प्रति मास पहले से ही प्राप्त कर रही है। यह दावा नहीं कर सकती है कि उसे बुरे समय में छोड़ दिया गया है और वह स्वयं का भरण-पोषण करने की स्थिति में नहीं है।
पुनः यह प्रकट है कि याची तथा विरोधी पक्षकार संख्या 2 बारह वर्षों से अधिक समय से पृथक् कर रहे हैं। विरोधी पक्षकार संख्या 2 का यह मामला नहीं है कि मामले संस्थित करने की तारीख से वह याची के साथ साझी गृहस्थी में कभी रही थी। इसलिए, याची तथा विरोधी पक्षकार संख्या 2 के बीच कोई घरेलू नातेदारी होना प्रतीत नहीं होता है।
साझी गृहस्थी में अन्य व्यक्ति के साथ रहना घरेलू सम्बन्ध का आवश्यक तत्व है, जैसा कि इस अधिनियम की धारा 2 (च) के अधीन अनुध्यात है। इसके अतिरिक्त, आवेदक को सम्बन्ध में, जो विवाह के समान है, मनुष्य के साथ साझी गृहस्थी में भी रहना चाहिए यदि वह स्वयं पत्नी या विवाह पक्षकार होने का दावा कर रही है।
इसके पश्चात् यदि वह पहले से विवाहिता महिला है, तो वह मनुष्य के साथ घरेलू सम्बन्ध में प्रवेश नहीं कर सकती। वर्तमान मामले में स्वीकृति स्थिति है कि प्रत्युत्तरदाता विवाहिता महिला है, जो अपने पति से कोई विधिक विवाह-विच्छेद अभिप्राप्त नहीं की है। इसलिए इस अधिनियम की धारा 12 के अधीन प्रारम्भ की गयी कार्यवाही विधि में समर्थित नहीं की जा सकती।
मजिस्ट्रेट की शक्ति ऐसी पीड़ित महिला के लिए न्याय सुनिश्चित करने हेतु जो घरेलू हिंसा का परिवाद करती है, उसके लिए मजिस्ट्रेट को समुचित आदेश पारित करने की अनुमति देते हुए वृहद शक्ति दी गयी है जो मजिस्ट्रेट उक्त अधिनियम की धारा 12 की उपधारा (1) के अधीन आवेदन में पारित कर सकता है।
उक्त शक्ति में व्यथित व्यक्ति को निवास का आदेश पारित करना शामिल है भले ही साझी गृहस्थी से प्रत्यर्थी को अलग कर दिया जाय। ऐसी शक्ति में धनी अनुतोष एवं प्रतिकर प्रदत्त करने, बच्चों की अभिरक्षा को व्यथित व्यक्ति को सौंपने का अधिकार भी शामिल है। अधिनियम विशिष्ट रूप से मजिस्ट्रेट को अन्तरिम निर्देश या एक पक्षीय अन्तरिम आदेश के द्वारा ऐसे आदेशों को पारित करने के लिए सशक्त करती है।
अधिनियम, मजिस्ट्रेट को अधिनियम की धारा 12 के अधीन पीड़ित व्यक्ति के परिवाद को विचारित करने के लिए सशक्त करती है एवं यह मजिस्ट्रेट पर दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अधीन उक्त की जांच करने का कर्त्तव्य अधिरोपित करती है जबकि अधिनियम की धारा 18 से 22 के अधीन अनुतोष केवल सिविल अनुतोष की प्रकृति के होते हैं। यहाँ केवल मजिस्ट्रेट के आदेश का उल्लंघन हैं जो अधिनियम की धारा 31 के अधीन अपराध बन जाते हैं एवं जो किसी भी प्रत्यर्थी द्वारा संरक्षण आदेश के उल्लंघन की स्थिति में दण्ड को आकर्षित करते हैं।
नीरज गोस्वामी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, 2013 के प्रकरण में आवेदन की तिथि पर, उसने त्यागपत्र देकर नौकरी छोड़ दी थी। यह प्रतीत होता है कि उसकी कम्पनी में नियोजन की उसकी प्रास्थिति त्यागपत्र स्वीकार न होने के कारण जारी थी परन्तु कम्पनी द्वारा यह प्रमाणित नहीं किया गया है कि वह प्रतिदिन ऑफिस जाती थी। उसका कथन कि वह अब लखनऊ स्थित अपने पिता के घर में रहती थी इसे इस प्रकार निर्वाचित नहीं किया जा सकता है कि उस तिथि को वह वहां नहीं रह रही थी, उस तिथि को अपने पिता के घर में रहते हुए भी वह कह सकती थी कि वह अब अपने पिता के घर में रहेगी।
इस प्रकार, घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के अधीन परिवाद के दाखिल किये जाने की तिथि पर लखनऊ में उसका निवास अस्थायी हो सकता है, यह सुस्थापित है, इसलिए हाईकोर्ट का मत था कि लखनऊ के मजिस्ट्रेट को घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 (1) के अधीन कारित अपराध को विचारित करने का क्षेत्राधिकार प्राप्त है।
मजिस्ट्रेट का दायित्व घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम की धारा 18 के अधीन किसी आदेश को पारित करने के लिए मजिस्ट्रेट को घरेलू हिंसा के विषय में यह समाधानित करना होगा कि ऐसी घटना हुई है या होने की सम्भावना है। हालांकि, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम की धारा 19 के अधीन कोई आदेश पारित करने के लिए मजिस्ट्रेट को घरेलू हिंसा के कारित होने के विषय में अपने समाधान को अभिलिखित करने का दायित्व होता है। केवल अटकलों एवं अंदाजों के आधार पर घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम की धारा 18 एवं 19 के अधीन आदेश पारित नहीं किया जा सकता।
आवेदन पर कोई आदेश पारित करने से पहले मजिस्ट्रेट पर संरक्षण अधिकारी या सेवा प्रदाता के प्राप्त रिपोर्ट को विचारण में लेना आज्ञापक होता है। न तो ऐसी रिपोर्ट मांगना आबध्यकारी होता है न ही यह आवध्यकारी होता है कि याची को नोटिस जारी करने से पहले मजिस्ट्रेट ऐसी रिपोर्ट पर विचार करे शब्द किसी आदेश को पारित करने से पहले आवेदन पर किसी अन्तिम आदेश को प्रावधानित करता है, प्रत्यर्थी को नोटिस जारी करने को नहीं। शब्द कोई रिपोर्ट उल्लिखित करता है कि कोई रिपोर्ट, यदि मजिस्ट्रेट के द्वारा प्राप्त की गयो हो तो विचारित की जाएगी। अतः इस प्रक्रम पर यदि रिपोर्ट नहीं मंगायी गयी है या विचारित नहीं की गयी है तो यह कार्यवाही को खारिज करने का आधार नहीं हो सकता।

