मरीज की कमजोरी को यौन शोषण के हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता: कर्नाटक हाइकोर्ट ने यौन उत्पीड़न के आरोपी डॉक्टर को राहत देने से किया इनकार
Amir Ahmad
13 Jun 2024 6:19 PM IST
कर्नाटक हाइकोर्ट ने डॉक्टर द्वारा दायर याचिका खारिज की। उक्त याचिका में मरीज द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत पर धारा 354-ए के तहत उसके खिलाफ दर्ज अपराध रद्द करने की मांग की गई थी।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा,
"डॉक्टर को यह याद रखना चाहिए कि मरीज उनकी मदद तब मांगते हैं, जब वे कमजोर स्थिति में होते हैं, जब वे बीमार होते हैं, जब उन्हें जरूरत होती है और जब उन्हें इस बात का संदेह होता है कि उन्हें क्या करना चाहिए। डॉक्टर-मरीज के रिश्ते में शक्ति का असमान वितरण यौन शोषण के अवसरों को जन्म दे सकता है। इस कमजोरी का इस्तेमाल डॉक्टरों द्वारा हथियार के रूप में नहीं किया जाना चाहिए, जिससे मरीज के डॉक्टर पर भरोसे का दुरुपयोग हो।"
इसमें आगे कहा गया,
"डॉक्टर और मरीज के बीच शक्ति और विश्वास की ऐसी स्थिति के कारण डॉक्टर द्वारा मरीज पर कोई भी कथित यौन गतिविधि स्वीकार्य नहीं है। अगर ऐसा होता है या ऐसा होने का आरोप लगाया जाता है तो यह यौन शोषण का प्रतिनिधित्व करता है। यदि इस तरह की कोई भी हरकत आरोप के रूप में भी सामने आती है तो डॉक्टर और मरीज के बीच विश्वास का रिश्ता खत्म हो जाता है।”
यह कहा गया कि सीने में दर्द के कारण शिकायतकर्ता जेपी नगर के ऑर्बस्की अस्पताल गई, जहां याचिकाकर्ता (डॉ. चेतन कुमार एस) ड्यूटी डॉक्टर थे। उन्होंने शिकायतकर्ता का इलाज किया और उसे छाती का ईसीजी, एक्स-रे कराने का सुझाव दिया और उसे अपने व्हाट्सएप पर विवरण साझा करने के लिए कहा।
यह कहा गया कि रिपोर्ट देखने के बाद याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता को 21.03.2024 को दोपहर लगभग 2.00 बजे अपने निजी क्लिनिक/प्रसिद्धि क्लिनिक में जाने का निर्देश दिया।
जब शिकायतकर्ता याचिकाकर्ता के क्लिनिक में गई तो यह कहा गया कि वह अकेली थी और डॉक्टर ने शिकायतकर्ता को कमरे में ले जाकर लेटने के लिए कहा और स्तन पर स्टेथोस्कोप लगाकर उसकी हृदय गति की जांच करना शुरू कर दिया। उसे अपनी शर्ट ऊपर खींचने का निर्देश दिया।
यह आरोप लगाया गया कि डॉक्टर ने फिर मरीज के स्तन को हाथ से छूना शुरू कर दिया और यहां तक कि बाएं स्तन को चूमा। शिकायतकर्ता ने कहा कि वह तुरंत क्लिनिक से चली गई और अगले दिन शिकायत दर्ज कराई।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वह डॉक्टर के रूप में अपना कर्तव्य निभा रहा था और उसने शिकायतकर्ता के स्तन पर केवल अपना स्टेथोस्कोप रखा था जैसा कि वह हर मरीज के साथ करता है। शिकायत छाती में जकड़न की थी। यह तर्क दिया गया कि यह आरोप कि शिकायतकर्ता को शर्ट और ब्रा उतारने के लिए कहा गया, झूठा है और इसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।
अभियोजन पक्ष ने दलील का विरोध करते हुए कहा कि शिकायत में बारीक विवरण दिए गए हैं, इसलिए याचिकाकर्ता के निर्दोष साबित होने के लिए यह जांच का विषय है।
निष्कर्ष:
पीठ ने शिकायत का संदर्भ दिया और नोट किया कि शिकायतकर्ता और डॉक्टर के बीच व्हाट्सएप चैट भी याचिका में संलग्न हैं, जो यह प्रदर्शित करेगा कि डॉक्टर ने शिकायतकर्ता को अपने निजी क्लिनिक में बुलाया।
आईपीसी की धारा 354-ए का संदर्भ देते हुए अदालत ने कहा,
“आईपीसी की धारा 354ए में चार तत्व हैं, शारीरिक संपर्क और अवांछित और स्पष्ट यौन प्रस्ताव शामिल हैं। अन्य तीन तत्व इस मामले के लिए प्रासंगिक नहीं हैं। डॉक्टर द्वारा शिकायतकर्ता को उसकी शर्ट और ब्रा उतारने का निर्देश देना और अपना मुंह उसके बाएं स्तन पर रखना निस्संदेह धारा 354ए के उपधारा (1) के खंड(i) के अनुसार धारा 354ए के अंतर्गत आता है, क्योंकि यह निस्संदेह अवांछित और स्पष्ट प्रस्ताव है।”
फिर उसने टिप्पणी की,
“पेशे से डॉक्टर के पास रोगी के शरीर तक पहुंच होती है। यदि पहुंच का उपयोग उपचार के उद्देश्य से किया जाता है तो यह पूरी तरह से अलग परिस्थिति और दैवीय कार्य है। यदि इसका उपयोग किसी अन्य भावना के लिए किया जाता है तो यह स्पष्ट रूप से ऐसा कदम होगा, जिस पर धारा 354ए लागू होगी।”
इसके बाद उसने माना कि शिकायत के आधार पर धारा 354ए आईपीसी के तहत अपराध बनता है और याचिकाकर्ता इस न्यायालय के समक्ष कार्यवाही रद्द करने की मांग करते हुए डॉक्टर-डॉक्टर की भूमिका नहीं निभा सकता, क्योंकि इस तरह की कोई भी स्वीकृति इस डॉक्टर के अपने रोगी - शिकायतकर्ता पर लगाए गए आरोपों को और अधिक पुष्ट करने के समान होगी।”
न्यायालय ने पाया कि यौन सीमाओं पर डॉक्टरों के लिए कुछ दिशा-निर्देश मौजूद हैं, जैसा कि भारतीय मेडिकल परिषद की वेबसाइट पर अधिसूचित किया गया।
इसने पाया कि इस तरह की सीमा संबंधी दिशा-निर्देशों पर भारतीय मनोरोग सोसायटी टास्क फोर्स द्वारा दिशा-निर्देश तैयार किए गए। उन्होंने कहा कि जब भी किसी महिला रोगी की जांच किसी पुरुष डॉक्टर द्वारा की जाती है तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि यह किसी महिला की उपस्थिति में किया जाए, विशेष रूप से शारीरिक जांच के समय।
तदनुसार, न्यायालय ने कहा,
"याचिकाकर्ता-डॉक्टर ने प्रथम दृष्टया उपरोक्त सभी का उल्लंघन किया। इसलिए कम से कम जांच जारी रखने की अनुमति दी जानी चाहिए।"
इस प्रकार इसने याचिकाकर्ता की याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल- डॉ. चेतन कुमार एस और कर्नाटक राज्य और अन्य